ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

परमेश्वर की आशीषें

उत्पत्ति 17:4-6 देख, मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। इसलिये अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा, परन्तु तेरा नाम अब्राहम होगा; क्योंकि मैं ने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। मैं तुझे अत्यन्त फलवन्त करूँगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूँगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।

उत्पत्ति 18:18-19 अब्राहम से तो निश्‍चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी। क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह अपने पुत्रों और परिवार को, जो उसके पीछे रह जाएँगे, आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें; ताकि जो कुछ यहोवा ने अब्राहम के विषय में कहा है उसे पूरा करे।

उत्पत्ति 22:16-18 यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूँगा; और निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूँगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।

अय्यूब 42:12 यहोवा ने अय्यूब के बाद के दिनों में उसके पहले के दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, छ: हज़ार ऊँट, हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गदहियाँ हो गईं।

सृष्टिकर्ता के कथनों का अद्वितीय अंदाज़ और लहज़ा सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार और पहचान का एक प्रतीक हैं

बहुत से लोग परमेश्वर की आशीषों को खोजना और पाना चाहते हैं, परन्तु हर कोई इन आशीषों को प्राप्त नहीं कर सकता है, क्योंकि परमेश्वर के अपने ही सिद्धांत हैं, और वह अपने ही तरीके से मनुष्यों को आशीष देता है। वे प्रतिज्ञाएँ जो परमेश्वर मनुष्य से करता है और जितना अनुग्रह वह मनुष्य को देता है, वे मनुष्यों के विचारों और कार्यों के आधार पर बाँटे जाते हैं। इस प्रकार, परमेश्वर की आशीषों के द्वारा क्या प्रदर्शित होता है? लोग उनमें क्या देख सकते हैं? इस बिन्दु पर, हम इस वाद-विवाद को दरकिनार करें कि परमेश्वर किस प्रकार के लोगों को आशीष देता है या मनुष्यों को आशीष देने के लिए परमेश्वर के सिद्धांत क्या हैं। उसके बजाए, आओहम परमेश्वर के अधिकार को जानने के उद्देश्य के साथ और परमेश्वर के अधिकार को जानने के दृष्टिकोण से मनुष्य को परमेश्वर द्वारा दी गयी आशीष पर नज़र डालें।

बाइबल के ऊपर दिए गए सभी चार अंश मनुष्य को परमेश्वर के द्वारा दी गयी आशीष का अभिलेख हैं। वे परमेश्वर कीआशीष पाने वालों, जैसे अब्राहम और अय्यूब का विस्तृत विवरण देते हैं। साथ ही साथ, उन कारणों का भी विवरण देते हैं कि परमेश्वर ने क्यों अपनी आशीषों को बरसाया और इन आशीषों में क्या निहित था। परमेश्वर के कथनों का अंदाज़ और ढंग और वह दृष्टिकोण और स्थिति जिसके तहत उसने वचन बोले, लोगों को यह समझने देता है कि आशीषों को देने वाला और ऐसी आशीषों को पाने वाले बिलकुल ही अलग पहचान, हैसियत और सार के होते हैं। इन बोले गए वचनों का अंदाज़ और ढंग और जिस हैसियत से वे बोले गए थे, परमेश्वर के लिए अद्वितीय हैं, जो सृष्टिकर्ता की पहचान को धारण करता है। उसके पास अधिकार और सामर्थ्‍य है, साथ ही साथ, सृष्टिकर्ता का सम्मान और प्रताप भी, जो किसी मनुष्य के संदेह को बर्दाश्त नहीं कर सकता है।

पहले, आओ हम उत्पत्ति 17:4-6 को देखें : "देख, मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। इसलिये अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा, परन्तु तेरा नाम अब्राहम होगा; क्योंकि मैं ने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। मैं तुझे अत्यन्त फलवन्त करूँगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूँगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।" ये वचन वह वाचा थी जो परमेश्वर ने अब्राहम के साथ बाँधी थी, साथ ही साथ, परमेश्वर द्वारा अब्राहम को दी गयी आशीष भी थी: परमेश्वर अब्राहम को जातियों का पिता बनाएगा और उसे बहुत ही अधिक फलवंत करेगा और उससे अनेक जातियों का मूल बनाएगा और उसके वंश में राजा पैदा होंगे। क्या तुम इन वचनों में परमेश्वर के अधिकार को देखते हो? ऐसे अधिकार को तुम कैसे देखते हो? तुम परमेश्वर के अधिकार के सार के किस पहलू को देखते हो? इन वचनों को ध्यान से पढ़ने से, यह पता करना कठिन नहीं है कि परमेश्वर का अधिकार और पहचान परमेश्वर के वचनों में स्पष्टता से प्रकाशित हैं। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर ने कहा "मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू ... हो जाएगा। ... मैं ने तुझे ठहरा दिया ... मैं तुझे बनाऊँगा...," इसमें "तू बनेगा" और "मैं करूँगा," जैसे वाक्यांश जिनके वचन परमेश्वर की पहचान और अधिकार की पुष्टि करते हैं, वे एक मायने में, सृष्टिकर्ता की विश्वसनीयता का संकेत हैं; दूसरे मायने में, वे परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए विशिष्ट वचन हैं, जो सृष्टिकर्ता की पहचान धारण किए हुए है—साथ ही साथ, पारंपरिक शब्दावली का एक भाग भी है। यदि कोई कहता है कि वे आशा करते हैं कि एक फलाना व्यक्ति बहुतायत से फलवंत होगा और उससे जातियाँ उत्पन्न होंगी और उसके वंश में राजा पैदा होंगे, तब निःसन्देह यह एक प्रकार की अभिलाषा है, यह आशीष या प्रतिज्ञा नहीं है। इसलिए, यह कहने की लोगों की हिम्मत नहीं होगी, "कि मैं तुम्हें ऐसा बनाऊँगा, और तुम ऐसा ऐसा करोगे...," क्योंकि वे जानते हैं कि उनके पास ऐसी सामर्थ्‍य नहीं है; यह उन पर निर्भर नहीं है, अगर वे ऐसी बातें कहें भी तो, उनके शब्द खोखले और बेतुके होंगे, जो उनकी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं से निकले होंगे। यदि किसी को लगे कि वह अपनी अभिलाषा पूरी नहीं कर सकता, तो क्या वह ऐसे बड़बोलेपन वाले अंदाज़ में बात करने की हिम्मत करेगा? हर कोई अपने वंशजों के लिए अभिलाषा करता है और यह आशा करता है कि वे दूसरों से आगे बढ़ेंगे और बड़ी सफलता हासिल करेंगे। "उन में से कोई महाराजा बन जाए तो कितने सौभाग्य की बात होगी! यदि कोई गवर्नर बन जाए तो भी अच्छा होगा, वह बस महत्वपूर्ण व्यक्ति बनना चाहिये!" ये सब लोगों की अभिलाषाएँ हैं, परन्तु लोग अपने वंशजों के लिये केवल आशीषों की अभिलाषा कर सकते हैं, लेकिन अपनी किसी भी प्रतिज्ञा को पूरा या साकार नहीं कर सकते। अपने हृदय में, हर कोई स्पष्ट रूप से जानता है कि उसके पास ऐसी चीज़ों को प्राप्त करने के लिए सामर्थ्‍य नहीं है, क्योंकि उन चीज़ों की हर बात उनके नियंत्रण से बाहर है, तो वे कैसे दूसरों की तक़दीर का फैसला कर सकते हैं? परमेश्वर ऐसे वचनों को इसलिए बोलता है क्योंकि परमेश्वर के पास ऐसा अधिकार है और वह जो भी प्रतिज्ञाएँ मनुष्य से करता है उन्हें पूर्ण और साकार करने के काबिल है और उन आशीषों को फलीभूत करने के योग्य है जिन्हें वह मनुष्य को देता है। मनुष्य परमेश्वर के द्वारा सृजित किया गया था, और किसी को बहुतायत से फलवंत करना परमेश्वर के लिए बच्चों का खेल है; किसी के वंशजों को समृद्ध करने के लिए सिर्फ उसके एक वचन की आवश्यकता होगी। उसे ऐसे कार्य करने के लिए पसीना बहाने, माथापच्ची करने या खुद को उलझन में डालने की कभी आवश्यकता नहीं होगी; यही परमेश्वर का सामर्थ्‍य और परमेश्वर का अधिकार है।

उत्पत्ति 18:18 में "अब्राहम से तो निश्‍चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी" को पढ़ने के बाद, क्या तुम लोग परमेश्वर के अधिकार को महसूस कर सकते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता की असाधारणता का एहसास कर सकते हो? क्या तुम सब सृष्टिकर्ता की सर्वोच्चता का एहसास कर सकते हो? परमेश्वर के वचन निश्चित हैं। परमेश्वर सफलता में अपने आत्मविश्वास के कारण या इसके निरूपण के लिए इन वचनों को नहीं कहता है; बल्कि, उसका इन्हें कहना परमेश्वर के कथनों के अधिकार के प्रमाण हैं और एक आज्ञा है जो परमेश्वर के वचन को पूरा करती है। यहाँ पर दो अभिव्यक्तियाँ हैं जिन पर तुम लोगों को ध्यान देना चाहिए। जब परमेश्वर कहता है, "अब्राहम से तो निश्‍चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी," तो क्या इन वचनों में अस्पष्टता का कोई तत्व है? क्या चिंता की कोई बात है? क्या इस में भय की कोई बात है? परमेश्वर के द्वारा बोले गए कथनों में "निश्चय होगा" और "होगा" जैसे वचनों के कारण, इन तत्वों का, जो खास तौर से मनुष्यों के गुण हैं और अक्सर उन में प्रदर्शित होते हैं, सृष्टिकर्ता से कभी कोई संबंध नहीं रहा है। किसी को शुभकामना देते समय कोई इन शब्दों का इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं करेगा, किसी में यह हिम्मत नहीं होगी कि ऐसी निश्चितता के साथ किसी दूसरे को एक महान और सामर्थी जाति बनने की आशीष दे या प्रतिज्ञा करे कि पृथ्वी की सारी जातियाँ उसमें आशीष पाएँगी। परमेश्वर के वचन जितने अधिक निश्चितहोते हैं, उतना ही अधिक वे किसी चीज़ को साबित करते हैं—और वह चीज़ क्या है? वे साबित करते हैं कि परमेश्वर के पास ऐसा अधिकार है, कि उसका अधिकार इन कामों को पूरा कर सकता है और उनका पूरा होना अनिवार्य है। परमेश्वर, उन सब बातों के विषय में अपने हृदय में निश्चित था जिनके द्वारा उसने अब्राहम को आशीष दी थी, उसे लेकर उसमें ज़रा-भी संदेह नहीं था। इसके अलावा, ये सारी बातें उसके वचन के अनुसार पूरी हो जाएंगी और कोई भी ताकत उनके पूरा होने को बदलने, बाधित करने, कमज़ोर करने या उलट-पुलट करने में सक्षम नहीं होगी। चाहे जो कुछ भी हो जाए, परमेश्वर के वचनों को पूरा होने से और उनकी कार्यसिद्धि को कोई भी निष्फल नहीं कर सकता है। यही सृष्टिकर्ता के मुँह से बोले गए वचनों की सामर्थ्‍य है और सृष्टिकर्ता का अधिकार है जो मनुष्य के इनकार को सह नहीं सकता है! इन वचनों को पढ़ने के बाद भी, क्या तुम लोगों के मन में संदेह है? इन वचनों को परमेश्वर के मुँह से कहा गया था और परमेश्वर के वचनों में सामर्थ्‍य, प्रताप और अधिकार है। ऐसी शक्ति और अधिकार को और तथ्यों के पूरा होने की अनिवार्यता को, किसी भी सृजित प्राणी और गैर-सृजित प्राणी द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है, और न ही कोई सृजित प्राणी और गैर-सृजित प्राणी उससे बढ़कर उत्कृष्ट हो सकता है। केवल सृष्टिकर्ता ही मानवजाति के साथ ऐसे अंदाज़ और लहज़े में बात कर सकता है और तथ्यों ने साबित किया है कि उसकी प्रतिज्ञाएँ खोखले वचन या बेकार की डींगें नहीं हैं, बल्कि अद्वितीय अधिकार का प्रदर्शन हैं जिससे कोई व्यक्ति, घटना, या वस्तु बढ़कर नहीं हो सकती है।

परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों और मनुष्य द्वारा बोले गए शब्दों में क्या अंतर है? जब तुम परमेश्वर के द्वारा बोले गए वचनों को पढ़ते हो तो तुम परमेश्वर के वचनों की शक्ति और परमेश्वर के वचनों के अधिकार को महसूस करते हो। जब तुम लोगों को ऐसे शब्द बोलते हुए सुनते हो तो तुमको कैसा लगता है? क्या तुम्हें महसूस होता है कि वे बहुत अधिक अभिमानी और डींगें हाँकने वाले हैं, और दिखावा करते हैं? क्योंकि उनके पास ऐसी सामर्थ्‍य नहीं होती, उनके पास ऐसा अधिकार भी नहीं होता, और इस प्रकार वे ऐसी चीज़ों को प्राप्त करने में पूरी तरह असमर्थ होते हैं। उनका अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति बहुत निश्चित होना केवल उनकी टिप्पणियों की लापरवाही को दर्शाता है। यदि कोई ऐसे शब्दों को कहता है तो वे निःसन्देह अभिमानी और अति-आत्मविश्वासी होंगे और अपने आपको प्रधान स्वर्गदूत के स्वभाव के आदर्श उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहे होंगे। ये वचन परमेश्वर के मुँह से बोले गये हैं; क्या तुम इनमें अभिमान की कोई बात पाते हो? क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर के वचन महज़ एक मज़ाक हैं? परमेश्वर के वचन अधिकार हैं, परमेश्वर के वचन तथ्य हैं और उसके मुँह से वचन के निकलने से पहले ही, अर्थात, जब परमेश्वर कुछ करने का निर्णय ले रहा होता है तो वह काम पहले ही पूरा किया जा चुका होता है। ऐसा कहा जा सकता है कि जो कुछ परमेश्वर ने अब्राहम से कहा था, वह एक वाचा थी जिसे परमेश्वर ने अब्राहम के साथ बाँधा था और परमेश्वर के द्वारा अब्राहम से की गई प्रतिज्ञा थी। यह प्रतिज्ञा एक प्रमाणित तथ्य था, और ये तथ्य परमेश्वर की योजना के अनुसार, परमेश्वर के विचारों में धीरे-धीरे पूरा किये गए। अतः, परमेश्वर द्वारा ऐसी बातों को कहने का यह मतलब नहीं है कि उसका स्वभाव अभिमानी है, क्योंकि परमेश्वर ऐसी चीज़ों को पूरा करने में सक्षम है। उसके पास ऐसी सामर्थ्‍य और अधिकार है, और ऐसे कार्यों को पूरा करने में पूर्णतया सक्षम है और उनका पूर्ण होना पूरी तरह उसकी योग्यता के दायरे में है। जब परमेश्वर के मुख से ऐसे वचन बोले जाते हैं तो वे परमेश्वर के सच्चे स्वभाव का प्रकाशन एवं प्रकटीकरण होते हैं, वे परमेश्वर के सार एवं अधिकार का पूर्ण प्रकाशन एवं अभिव्यक्ति होते हैं और ऐसा कुछ भी नहीं है जो सृष्टिकर्ता की पहचान के प्रमाण के रूप में अधिक सही और उचित होता हो। ऐसे कथनों का ढंग, लहज़ा और वचन सृष्टिकर्ता की पहचान के ही चिह्न हैं और वे परमेश्वर की अपनी पहचान के प्रकटीकरण से पूरी तरह से मेल खाते हैं; उनमें कोई झूठा दिखावा या अशुद्धता नहीं है; वे पूरी तरह से और सर्वथा सृष्टिकर्ता के अधिकार और सार का पूर्ण प्रदर्शन हैं। जहाँ तक जीवधारियों की बात है, उनके पास न तो यह अधिकार है और न ही यह सार और परमेश्वर के द्वारा दी गयी शक्ति तो उनके पास बिलकुल भी नहीं है। यदि मनुष्य ऐसा आचरण नहीं करता है तो यह निश्चित रूप से उसके दूषित स्वभाव का प्रदर्शन होगा और यह मनुष्य के अभिमान और अनियंत्रित महत्‍वाकांक्षाओं का हस्तक्षेप करने वाला प्रभाव होगा तथा उस दुष्ट, शैतान की नीच इच्छाओं का खुलासा होगा, जो लोगों को धोखा देना और बहकाना चाहता है जिससे कि वे परमेश्वर को धोखा दे बैठें। ऐसी भाषा के द्वारा जो प्रकट किया जाता है, उसे परमेश्वर किस ढंग से देखता है? परमेश्वर कहेगा कि तुम उसका स्थान हड़पना चाहते हो और तुम उसका रूप धारण करना और उसका स्थान लेना चाहते हो। जब तुम परमेश्वर के बोले गए वचनों के लहज़े का अनुकरण करते हो, तो तुम्हारा इरादा होता है कि लोगों के हृदयों से परमेश्वर के स्थान को हटा दो और मानवजाति के जीवन के उस स्थान पर अवैध कब्ज़ा कर लो जो न्यायसंगत रूप से परमेश्वर का है। सीधे और सरल रूप में, यह शैतान है; यह प्रधान स्वर्गदूत के वंशजों के कार्य हैं; जो स्वर्ग के लिए असहनीय है! तुम लोगों के बीच में, क्या कोई है जिसने कभी लोगों को गुमराह करने और धोखा देने के इरादे से, किसी निश्चित तरीके से, कुछ बातों को कहने में परमेश्वर का अनुकरण किया हो और उन्हें यह एहसास दिलाया हो मानो इस व्यक्ति के शब्दों और कार्यों में परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्‍य है, मानो इस व्‍यक्ति का सार एवं पहचान अद्वितीय हो और यहाँ तक कि मानो इस व्यक्ति के बोलने का लहज़ा भी परमेश्वर के समान हो? क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा कुछ किया है? क्या तुम लोगों ने कभी अपनी बातों में, ऐसी भाव-भंगिमाओं के साथ परमेश्वर के लहज़े का अनुकरण किया है जो शायद परमेश्वर के स्वभाव को दर्शाते हों, जो तुम्हारे अनुमान से शक्ति और अधिकार हो? क्या तुम में से अधिकतर लोग अक्सर इस तरह से काम करते हैं या काम करने की योजना बनाते हैं? अब, जब तुम लोग सचमुच में सृष्टिकर्ता के अधिकार को देखते, एहसास करते और जानते हो और पीछे मुड़कर देखते हो कि तुम लोग क्या किया करते थे और खुद की किस बात को उजागर करते थे, तो क्या तुम लोग घृणा महसूस करते हो? क्या तुम लोग अपनी नीचता और निर्लज्जता का एहसास करते हो? ऐसे लोगों के स्वभाव और सार का विश्लेषण करने के बाद, क्या ऐसा कहा जा सकता है कि वे नरक की शापित संतानें हैं। क्या ऐसा कहा जा सकता है कि हर कोई जो ऐसा करता है वह अपने आपको लज्जित करता है? क्या तुम लोग इस प्रकृति की गम्भीरता को पहचानते हो? यह आखिर कितना गम्भीर है? इस प्रकार का कार्य करने वाले लोगों का इरादा परमेश्वर का अनुकरण करना होता है। वे परमेश्वर बनना चाहते हैं और लोगों से परमेश्वर के रूप में अपनी आराधना करवाना चाहते हैं। वे लोगों के हृदयों से परमेश्वर के स्थान को हटा देना चाहते हैं और ऐसे परमेश्वर से छुटकारा पाना चाहते हैं जो लोगों के बीच कार्य करता है। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि लोगों को नियंत्रित करने, लोगों को निगलने, और उनकी संपत्ति को हड़पने के मकसद को पूरा कर सकें। हर किसी के पास ऐसी अवचेतन इच्छा और महत्वाकांक्षा होती है और हर कोई ऐसे दूषित शैतानी सार में और ऐसी शैतानी प्रकृति में जीवन बिताता है जिसमें वे परमेश्वर के शत्रु होते हैं, परमेश्वर को धोखा देते हैं और खुद परमेश्वर बनना चाहते हैं। परमेश्वर के अधिकार के विषय पर मेरी सहभागिता के बाद, क्या तुम लोग अभी भी परमेश्वर का रूप धारण करने की इच्छा और आकांक्षा करते हो या परमेश्वर की नकल करना चाहते हो? क्या तुम लोग अभी भी परमेश्‍वर होने की इच्छा रखते हो? क्या तुम सब अभी भी परमेश्वर बनना चाहते हो? मनुष्य के द्वारा परमेश्वर के अधिकार की नकल नहीं की जा सकती है और मनुष्य के द्वारा परमेश्वर की पहचान और हैसियत का जाली रूप धारण नहीं किया जा सकता है। यद्यपि तुम परमेश्वर के बोलने के अंदाज़ की नकल करने में सक्षम हो, किन्तु तुम परमेश्वर के सार की नकल नहीं कर सकते। भले ही तुम परमेश्वर के स्थान पर खड़े होने और उसका जाली रूप लेने में सक्षम हो, किन्तु तुम कभी वह सब कुछ नहीं कर पाओगे जो परमेश्वर करने की इच्छा रखता है, तुम कभी सभी चीज़ों पर शासन नहीं कर पाओगे और न ही उनको आज्ञा दे पाओगे। परमेश्वर की नज़रों में, तुम हमेशा एक छोटे से जीव बने रहोगे, तुम्हारी क्षमताएं और योग्ताएँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, तुम्हारे पास कितनी भी प्रतिभाएं क्यों न हों, तो भी तुम पूरी तरह से सृष्टिकर्ता के शासन के अधीन हो। यद्यपि तुम कुछ बड़बोलेपन के शब्द बोलने में सक्षम हो, लेकिन इससे न तो यह पता चलता है कि तुम्हारे पास सृष्टिकर्ता का सार है और न ही यह दर्शाता है कि तुम्हारे पास सृष्टिकर्ता का अधिकार है। परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्‍य स्वयं परमेश्वर का सार है। उन्हें सीखा, या बाहर से जोड़ा नहीं गया था, बल्कि वे स्वयं परमेश्वर का अंतर्निहित सार हैं। इस प्रकार सृष्टिकर्ता और जीवधारियों के मध्य के संबंध को कभी भी पलटा नहीं जा सकता है। जीवधारियों में से एक होने के नाते, मनुष्य को अपनी स्थिति को बना कर रखना होगा और शुद्ध अंतःकरण से व्यवहार करना होगा। सृष्टिकर्ता के द्वारा तुम्हें जो कुछ सौंपा गया है, कर्तव्यनिष्ठा के साथ उसकी सुरक्षा करो। अनुचित ढंग से आचरण मत करो, या ऐसे काम न करो जो तुम्हारी क्षमता के दायरे से बाहर हों या जो परमेश्वर के लिए घृणित हों। महान या अद्भुत व्यक्ति बनने की चेष्टा मत करो, दूसरों से श्रेष्ठ होने की कोशिश मत करो, न ही परमेश्वर बनने की कोशिश करो। लोगों को ऐसा बनने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। महान या अद्भुत व्यक्ति बनने की कोशिश करना बेतुका है। परमेश्वर बनने की कोशिश करना और भी अधिक लज्जाजनक है; यह घृणित है और नीचता भरा है। जो काम तारीफ़ के काबिल है और जिसे प्राणियों को सब चीज़ों से ऊपर मानना चाहिए, वह है एक सच्चा जीवधारी बनना; यही वह एकमात्र लक्ष्य है जिसे पूरा करने का निरंतर प्रयास सब लोगों को करना चाहिए।

परमेश्वर का वचन” खंड अंत के दिनों में सभी मनुष्यों के लिए परमेश्वर के वचन को साझा करता है, जिससे ईसाईयों को परमेश्वर के बारे में अधिक जानने में मदद मिलती है।

उत्तर यहाँ दें