परमेश्वर कहते हैं: "जब अय्यूब पहली बार अपनी परीक्षाओं से होकर गुज़रा था, तब उसकी सारी सम्पत्ति और उसके सभी बच्चों को उससे ले लिए गया था, परन्तु उसके परिणामस्वरूप वह नीचे नहीं गिरा या ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो परमेश्वर के विरुद्ध पाप था।…दूसरी परीक्षा में, शैतान ने अय्यूब को तकलीफ देने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, और हालाँकि अय्यूब ने ऐसा दर्द सहा जिसे उसने पहले कभी नहीं सहा था, तौभी उसकी गवाही लोगों को अचरज में डालने के लिए काफी थी। उसने एक बार फिर से शैतान को हराने के लिए अपनी सहनशक्ति, अंगीकार, और परमेश्वर के प्रति अपनी आज्ञाकारिता का उपयोग किया, और उसके आचरण एवं उसकी गवाही को एक बार फिर से परमेश्वर के द्वारा स्वीकृत किया गया एवं उसका समर्थन किया गया। ... परमेश्वर की दृष्टि में, हालाँकि अय्यूब वही पहले का अय्यूब था, फिर भी अय्यूब के विश्वास, उसकी आज्ञाकारिता और परमेश्वर के प्रति उसके भय ने परमेश्वर को सम्पूर्ण संतुष्टि एवं आनन्द पहुंचाया था। इस समय, अय्यूब ने उस खराई को प्राप्त किया था जिसे हासिल करने के लिए परमेश्वर ने उससे अपेक्षा की थी, वह एक ऐसा मनुष्य बन गया था जो परमेश्वर की दृष्टि में 'खरा एवं सीधा' कहलाने के योग्य था। उसकी धार्मिकता के कार्यों ने उसे शैतान पर विजय प्राप्त करने, और परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ता से स्थिर खड़े रहने की अनुमति दी थी। इस प्रकार उसकी धार्मिकता के कार्यों ने भी उसे सिद्ध किया था, और उसके जीवन के मूल्य को ऊंचा किए जाने, और किसी भी समय से सर्वोपरि होने की अनुमति दी, और उसे सबसे पहले ऐसा मनुष्य बनाया था जिससे आगे से शैतान के द्वारा उस पर हमला और उसकी परीक्षा न हो। क्योंकि अय्यूब धर्मी था, इसलिए शैतान के द्वारा उस पर आरोप लगाया गया था और उसकी परीक्षा ली गई थी; क्योंकि अय्यूब धर्मी था, इसलिए उसे शैतान को सौंप दिया गया था; और क्योंकि अय्यूब धर्मी था, इसलिए उसने शैतान पर विजय प्राप्त की और उसे हराया था, और वह अपनी गवाही में दृढ़ता से स्थिर बना रहा। अब से, अय्यूब एक ऐसा व्यक्ति बन गया था जिसे फिर कभी शैतान के हाथ में नहीं दिया जाएगा, वह सचमुच में परमेश्वर के सिंहासन के सामने आया था, और उसने परमेश्वर की आशीषों के अधीन शैतान की जासूसी या तबाही के बगैर ज्योति में जीवन बिताया था। वह परमेश्वर की दृष्टि में एक सच्चा मनुष्य बन गया था, क्योंकि उसे स्वतन्त्र किया गया था।"
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