परमेश्वर अपना कार्य सम्पूर्ण जगत में करता है। वे सब जो उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें अवश्य उसके वचनों को स्वीकार करना, और उसके वचनों को खाना और पीना चाहिए; परमेश्वर द्वारा दिखाए गए संकेतों और चमत्कारों को देख कर कोई भी व्यक्ति परमेश्वर द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। युगों के दौरान, परमेश्वर ने मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए सदैव वचन का उपयोग किया है, इसलिये तुम्हें अपना समस्त ध्यान संकेतों और चमत्कारों पर नहीं लगाना चाहिए, बल्कि परमेश्वर द्वारा तुम्हें पूर्ण बनाए जाने की तलाश में रहना चाहिए। पुराने विधान के व्यवस्था के युग में, परमेश्वर ने कुछ वचन कहे, और अनुग्रह के युग में, यीशु ने भी बहुत से वचन कहे। जब यीशु इन बहुत से वचनों को बोल चुके थे, तब बाद में आए प्रेरितों और पैगम्बरों ने लोगों को यीशु द्वारा निर्धारित की गई व्यवस्था और आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करने के लिए प्रेरित किया, और यीशु के द्वारा कहे गये सिद्धांतों के अनुसार उन्हें अनुभव के लिए प्रेरित किया। अंतिम दिनों का परमेश्वर मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए मुख्यतः वचनों का उपयोग करता है। वह मनुष्यों का दमन करने, या उन्हें मनाने के लिये संकेतों और चमत्कारों का उपयोग नहीं करता है; इससे परमेश्वर की सामर्थ्य को स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। यदि परमेश्वर केवल संकेतों और चमत्कारों को दिखाता, तो परमेश्वर की वास्तविकता को प्रकट करना लगभग असंभव होता, और इस तरह मनुष्य को पूर्ण बनाना भी असंभव हो जाता। परमेश्वर संकेतों और चमत्कारों के द्वारा मनुष्य को पूर्ण नहीं बनाता है किन्तु वचन का उपयोग मनुष्यों को सींचने और उनकी चरवाही करने के लिए करता है, जिसके बाद मनुष्य की पूर्ण आज्ञाकारिता प्राप्त होती है और मनुष्य का परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त होता है। यही उसके द्वारा किये गए कार्य और बोले गये वचनों का उद्देश्य है। परमेश्वर मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिए संकेतों एवं चमत्कारों को दिखाने की विधि का उपयोग नहीं करता है—वह मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करता है, और कार्य की कई भिन्न विधियों का उपयोग करता है। चाहे यह शुद्धिकरण, व्यवहार, काँट-छाँट, या वचनों का प्रावधान हो, मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिए, और मनुष्य को परमेश्वर के कार्य, उसकी बुद्धि और चमत्कारिकता का और अधिक ज्ञान देने के लिए परमेश्वर कई भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से बोलता है। अंत के दिनों में जब परमेश्वर युग का समापन करता है, उस समय जब मनुष्य को पूर्ण बना दिया जाता है, तब वह संकेतों और चमत्कारों को देखने के योग्य हो जाएगा। जब तुम्हें परमेश्वर का ज्ञान हो जाता है और तुम इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर क्या करता है, उसकी आज्ञापालन करने में सक्षम हो जाते हो, तब तुम संकेतों और चमत्कारों को देखोगे, क्यों कि तुम्हारी परमेश्वर की वास्तविकता के बारे में कोई धारणाएँ नहीं होंगी। अभी इस समय तुम भ्रष्ट हो और परमेश्वर की पूर्ण आज्ञाकारिता में अक्षम हो—क्या तुम संकेतों और चमत्कारों को देखने के लिए अर्ह हो? परमेश्वर संकेतों और चमत्कारों को उस समय दिखाता है जब वह मनुष्यों को दण्ड देता है, और तब भी दिखाता है जब युग बदलता है, और इसके अलावा, जब युग का समापन होता है। जब परमेश्वर का कार्य सामान्य रूप से किया जा रहा हो, तो वह संकेतों और चमत्कारों नहीं दिखाता है। संकेतों और चमत्कारों को दिखाना अत्यधिक आसान है, किन्तु वह परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत नहीं है, और न ही यह मनुष्यों के प्रबंधन का परमेश्वर का लक्ष्य है। यदि मनुष्य ने संकेतों और चमत्कारों को देखा होता, और यदि परमेश्वर की आत्मिक देह मनुष्य पर प्रकट होना होता, तो क्या सभी लोग परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते? मैं पहले कह चुका हूँ कि पूर्व दिशा से जीतने वालों का एक समूह प्राप्त किया जाता है, ऐसे जीतने वाले जो महान क्लेश से गुजर कर आते हैं। ऐसे वचनों का क्या अर्थ है? उनका अर्थ है कि न्याय और ताड़ना, और व्यवहार और काँट-छाँट, और सभी प्रकार के शुद्धिकरण से गुजरने के बाद केवल ये प्राप्त कर लिए गए लोग ही वास्तव में आज्ञापालन करते थे। ऐसे व्यक्तियों का विश्वास अस्पष्ट और अमूर्त नहीं है, बल्कि वास्तविक है। उन्होंने किन्हीं भी संकेतों और चमत्कारों, या अचम्भों को नहीं देखा है; वे गूढ़ अक्षरों और सिद्धान्तों, या गहन अंर्तदृष्टि की बातें नहीं करते हैं; इसके बजाय उनके पास वास्तविकता और परमेश्वर के वचन, और परमेश्वर की वास्तविकता का सच्चा ज्ञान है। क्या ऐसा समूह परमेश्वर की सामर्थ्य को स्पष्ट करने में अधिक सक्षम नहीं है? अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर का कार्य वास्तविक कार्य है। यीशु के युग के दौरान, वह मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिए नहीं, बल्कि मनुष्य को छुटकारा दिलाने के लिए आया, और इस लिए उस ने लोगों से अपना अनुसरण करवाने के लिए कुछ अचम्भे प्रदर्शित किए। क्योंकि वह मुख्य रूप में सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा करने आया था, और संकेतों को दिखाना उसकी सेवकाई का हिस्सा नहीं था। इस प्रकार के संकेत और चमत्कार ऐसे कार्य थे जो उसके कार्य को प्रभावशाली बनाने के लिए किये गए थे; वे अतिरिक्त कार्य थे, और संपूर्ण युग के कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे। पुराने विधान के व्यवस्था के युग के दौरान भी परमेश्वर ने कुछ संकेत और चमत्कार दिखाए—किन्तु आज परमेश्वर जो कार्य करता है, वह वास्तविक कार्य हैं, और निश्चित तौर पर अब वह संकेतों और चमत्कारों को नहीं दिखाएगा। जैसे ही वह संकेतों और चमत्कारों को दिखाएगा, उसका वास्तविक कार्य अस्तव्यस्त हो जाएगा, और वह अब और अधिक कार्य करने में असमर्थ हो जाएगा। यदि परमेश्वर ने मनुष्यों को पूर्ण करने हेतु वचनों का उपयोग करने के लिए कहा, किन्तु संकेतों और चमत्कारों को भी दिखाया, तब क्या यह स्पष्ट किया जा सकता था कि मनुष्य वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करता है अथवा नहीं? इस प्रकार, परमेश्वर इस तरह की चीजें नहीं करता है। मनुष्य के भीतर धर्म की अतिशय बातें हैं; मनुष्य के भीतर से सभी धार्मिक धारणाओं और अलौकिक बातों को बाहर निकालने, और मनुष्य को परमेश्वर की वास्तविकता का ज्ञान कराने के लिए परमेश्वर अंत के दिनों में आया है। वह परमेश्वर की उस छवि को दूर करने आया है जो अमूर्त और काल्पनिक है—एक ऐसी छवि, दूसरे शब्दों में, जिसका बिल्कुल भी अस्तित्व नहीं है। और इसलिए, अब तुम्हारे लिए जो बहुमूल्य है, वह है वास्तविकता का ज्ञान होना! सत्य सभी बातों पर प्रबल है। आज तुम कितना सत्य धारण करते हो? क्या वह सब जो संकेतों और चमत्कारों को दिखाता है परमेश्वर है? दुष्टात्माएँ भी संकेतों और चमत्कारों को दिखा सकती हैं; तो क्या वे सब परमेश्वर हैं? परमेश्वर पर अपने विश्वास में, मनुष्य जिस चीज की खोज करता है, वह सत्य है, वह जिसका अनुसरण करता है, वह, संकेतों और चमत्कारों के बजाय, जीवन है। वे सब जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन सबका ऐसा ही लक्ष्य होना चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है