परमेश्वर देहधारी हुआ, आम इन्सान बना।
इस इंसां ने परमेश्वर के कार्य,
आदेश को स्वयं पर लिया।
उसे ऐसा काम करना था,
ऐसी पीड़ा सहनी थी
जो सह नहीं सकता आम इन्सा कोई।
उसकी पीड़ा दिखाती है इन्सा के लिए परमेश्वर की निष्ठा।
इन्सान को बचाने,
उसे पाप से छुड़ाने,
इस चरण को पूरा करने की कीमत का,
उसने जो सहा अपमान उसका यह प्रतीक है।
इसके मायने हैं कि परमेश्वर क्रूस पर से इन्सान को छुड़ाएगा।
यह है एक कीमत जो लहू और जान से चुकाई गयी,
इसे देना सृजे गये जीव के बस में नहीं।
चूँकि उसके पास है परमेश्वर का स्वरूप और सार,
वो वहन कर सकता ऐसी पीड़ा, ऐसा कार्य।
जो करता है वो,
कोई सृजित जीव कर सकता नहीं।
अनुग्रह के युग में,
परमेश्वर का कार्य है ये,
उसके स्वभाव का प्रकाशन है ये।
Ⅱ
राज्य के युग में परमेश्वर देहधारी हुआ है फिर से,
वैसे ही जैसे हुआ था पहली बार।
अभी भी व्यक्त करता है अपना स्वरूप और वचन,
सारे काम करता है वो जो उसे करने चाहिए।
इन्सान की नाफ़रमानी और अज्ञानता को,
वो सहता, बर्दाश्त भी करता है।
वो सदा अपना स्वभाव उजागर करता है,
साथ ही अपनी इच्छा भी दर्शाता है।
इन्सान के सृजन से अब तक,
परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप
रहा है खुला सभी के लिए,
नहीं छुपाया गया कभी जान कर इसे।
सच तो ये है, इन्सान को परवाह नहीं,
परमेश्वर के काम और इच्छा की।
और इसीलिए, जानता नहीं इन्सान
परमेश्वर के बारे में ज़्यादा कुछ भी।