अंत के दिनों में देहधारण करता है परमेश्वर, इंसान को बचाने की ख़ातिर,
क्योंकि इंसान को चाहता है परमेश्वर।
अपने प्यार से प्रेरित होकर, आज का काम करता है वो।
और ये होता है प्यार की बुनियाद पर।
दूषित-बिखरे इंसान को बचाने की ख़ातिर देहधारण करता है,
अपमान सहता है परमेश्वर।
ऐसे दर्द सहता है परमेश्वर।
क्योंकि बारंबार दिखाता है अपना अथाह प्यार परमेश्वर।
उसके वचन ही करते हैं चंगा, दिलाते हैं जोश इंसान को।
करते हैं न्याय, उजागर, वादा और देते हैं शाप इंसान को।
वचन उसके चाहे कुछ भी कहें, मगर आता है सब ये उसके प्यार से।
यही है सार उसके काम का।
क्यों करीब से उसका अनुसरण करते हैं इतने जन?
क्यों ऊर्जा से भरपूर हैं इतने जन?
परमेश्वर का प्यार और उद्धार उन सबने देखा है।
एकदम सही समय चुनता है परमेश्वर। विलम्ब नहीं करता कभी।
हो जाए गुम कोई रूह, नहीं चाहता ये परमेश्वर।
इंसान को परवाह नहीं भविष्य उसका क्या होगा।
इंसान जानता नहीं कैसे संजोये अपने जीवन को।
मगर जानता है परमेश्वर। वो ही चाहता है इंसान को।
इंसान को लगता है वो बेहद चाहता है ख़ुद को।
किस तरह का प्यार है ये मगर?
परमेश्वर का प्यार ही सच्चा है तुम्हें अहसास होगा।
गर देहधारण न करता परमेश्वर,
राह न दिखाता, साथ न रहता इंसान के परमेश्वर,
तो परमेश्वर के प्यार को जानना उनके लिये मुश्किल होता।
हो जाए गुम कोई रूह, नहीं चाहता ये परमेश्वर।
इंसान को परवाह नहीं भविष्य उसका क्या होगा।
इंसान जानता नहीं कैसे संजोये अपने जीवन को।
मगर जानता है परमेश्वर। वो ही चाहता है इंसान को।
हाँ, जानता है, परमेश्वर ही चाहता है इंसान को।
परमेश्वर ही चाहता है इंसान को। परमेश्वर ही चाहता है इंसान को।