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एक फेसबुक वार्तालाप: क्या आप जानते हैं कि पिता की इच्छा पूरी करना क्या है?

नाश्ता करने के बाद, येकी ने अपना कंप्यूटर चालू किया और फेसबुक पर लॉग इन किया। उसने अपनी दोस्त लीना का एकाउंट ढूंढा, और अपनी उंगलियों को कीबोर्ड पर चलाते हुए उसने पूछा, "क्या तुम ऑनलाइन हो? एक सवाल है जिसके बारे में मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ। आज सुबह, जब मैं अपने भक्तिपूर्ण पाठ को पढ़ रही थी, तो मैंने इस पद को पढ़ा, 'उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ' (मत्ती 7:22–23)। मैं प्रभु के वचनों के बारे में बहुत देर से सोच रही हूँ, और मैं थोड़ा भ्रमित हूँ। प्रभु ने ऐसा क्यों कहा कि उनके नाम से उपदेश देते हैं, दुष्टात्माओं को निकालते हैं, और अद्भुत कर्म करते हैं, उन्हें न केवल परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं है, बल्कि प्रभु ने वास्तव में उन्हें कुकर्म करने वाला भी कहा है? यह सब क्या है? मुझे एहसास है कि, अतीत में, इन लोगों की तरह, मैं भी हवा और बारिश झेलते हुए सुसमाचार फैलाने के लिए यात्रा करती थी, उत्साहपूर्वक प्रभु के लिए स्वयं को खपाती थी, और मेरी कमाई का दसवां हिस्सा दशमांश के रूप में देती थी। मुझे लगा कि यह परमेश्वर की इच्छा पूरी करना है इससे मैं अंततः प्रभु की स्वीकृति प्राप्त करुँगी। लेकिन अब, मैं इन सवालों को लेकर वास्तव में निश्चित नहीं हूँ, मुझे नहीं पता कि मुझे इस मुद्दे को कैसे समझना चाहिए।"

कुछ ही समय में, कंप्यूटर से सूचना आने का स्वर सुनाई दिया, येकी ने देखा कि लीना ने एक संदेश भेजा था। उसने जल्दी से उसे खोला। उसमे लिखा था, "मैं अभी-अभी ऑनलाइन आई और तुम्हारा संदेश देखा। तुमने एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल पूछा है जो कि सीधा इससे सम्बन्धित है कि हमें प्रभु की स्वीकृति मिल सकती है या नहीं और क्या हम राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन, इस बारे में मेरी समझ बहुत सीमित है, इसलिए यहाँ मैं तुम्हें केवल अपने विचारों के बारे में थोड़ा-बहुत बता सकती हूँ, और फिर हम उन पर चर्चा कर सकते हैं।

"बहुत से प्रभु के विश्वासी भाई-बहन ऐसा मानते हैं कि अगर प्रभु के लिए स्वयं को खपाने के लिए सब कुछ त्याग दें, पीड़ा भोगें, प्रभु के सुसमाचार को फैलाने के लिए एक कीमत अदा करें, और इन चीजों को अंत तक बनाए रखें, तो वे प्रभु की स्वीकृति प्राप्त करेंगे और जब प्रभु वापस आयेंगे, तो वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए आरोहित कर लिए जायेंगे। लेकिन क्या यह दृष्टिकोण प्रभु की इच्छा के अनुकूल है? याद करो कि फरीसियों ने सुसमाचार का प्रसार करने के लिए पृथ्वी के सुदूर कोनों तक यात्रा की; ठंडी, गर्मी, किसी भी मौसम की परवाह न करते हुए मन्दिर में परमेश्वर की सेवा की, और कई भले काम किए। क्या उन्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त हुई? ऐसा लगता तो नहीं है! हम सभी जानते हैं कि भले ही फरीसी बड़ी पीड़ा भोगते हुए और परमेश्वर के सुसमाचार के प्रचार के लिए बड़ी कीमत चुकाते थे दिखाई देते थे लेकिन जब परमेश्वर मानवजाति को छुड़ाने का काम करने के लिए प्रभु यीशु के रूप में देहधारी हुए, तो उन्होंने अपने स्वयं के विचारों और कल्पनाओं को दृढ़ता से थामे रखते हुए परमेश्वर का विरोध किया और उनकी निंदा की, और यहाँ तक कि प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के लिए जनता को उकसाया ताकि वे अपने पद और आय की रक्षा कर सकें। यह साबित करता है कि भले ही कोई व्यक्ति पीड़ा भोगता हुआ, मूल्य चुकाता हुआ, और भले कर्म करता हुआ दिखाई पड़ता हो, लेकिन यह ये नहीं दर्शाता है कि वो परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है, और न ही यह दर्शाता है कि वो परमेश्वर को जानता है या उनकी आज्ञा का पालन करता है!

"फिर आज परमेश्वर के विश्वासियों के बीच, मतलब हमारे बीच देखो। हालाँकि हममें से बहुत से लोग अपने घरों और करियर, श्रम और काम का त्याग करते हैं, तूफ़ान, बारिश को झेलते हुए यात्रा करते हैं, बहुत दर्द सहते हैं, क्या हम वास्तव में परमेश्वर के हृदय के अनुसार हैं और इन चीजों को परमेश्वर के प्यार की खातिर करते हैं? कुछ लोगों का मानना है कि यदि वे प्रभु के लिए काम करते हैं, तो वे उन्हें शांति एवं आनंद प्रदान करेंगे, यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके परिवार सुरक्षित और खुशहाल हों। चूँकि उनका इरादा आशीष पाना है, इसलिए जब वे कठिनाइयों, परीक्षणों और आपदाओं का सामना करते हैं, तो वे प्रभु को गलत समझते हैं, उन्हें दोष देते हैं, गंभीर मामलों में तो वे उन्हें छोड़ भी देते हैं या धोखा भी दे देते हैं। कुछ अन्य लोग भी हैं, जो परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते हुए, अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपनी शारीरिक इच्छाओं, झूठ और धोखे का इस्तेमाल भी करते हैं, अपने भाई-बहनों के सामने केवल खुद के अच्छे पहलुओं के बारे में बोलते हैं, और कभी भी अपनी सच्ची स्थिति किसी को नहीं बताते हैं, स्वयं की झूठी, भ्रामक और धोखे में डालने वाली छवि पेश करते हैं। कुछ अन्य लोग अपने लिए एक छवि और पद बनाने के लिए काम करते हैं और उपदेश देते हैं। दूसरे उन्हें सम्मानित भाव से देखें इसके लिए वे उन्हें प्रेरित करने का प्रयास करते हैं, इसका परिणाम ये होता है कि वे दूसरों को खुद के सामने लाते हैं, और भाई-बहन उनकी आराधना करते हैं जबकि उनके दिलों में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं होती... ऐसे लोग परमेश्वर की इच्छानुसार कैसे हो सकते हैं? हमारे भीतर इतनी अशुद्धियाँ हैं, फिर भी हम परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने का दावा करते हैं। क्या यह पाखंड नहीं है? क्या यह परमेश्वर को धोखा देने और निन्दा करना नहीं है? इसलिए, प्रभु यीशु ने कहा, 'उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ' (मत्ती 7:22–23)। इसके माध्यम से प्रभु अपनी इच्छा हमें स्पष्ट रूप से अपनी इच्छा बताते हैं, कि वे स्वयं को खपाने और ऐसी कीमत चुकाने के ढोंग से घृणा करते हैं जो सभी प्रकार के गलत इरादों और अशुद्धियों को वहन करता है।"

इस बारे में लीना की समझ को पढ़कर येकी बहुत प्रेरित हुई। स्वयं के भीतर कई अशुद्धियाँ और गलत इरादे पाले हुए, प्रभु के लिए स्वयं को खपाते हुए, कीमत चुकाते हुए और बड़ी पीड़ा भोगते हुए प्रतीत होना—यही हमारी वास्तविक स्थिति है! उसने अपने बारे में सोचा कि कैसे उसने उत्साहपूर्वक प्रभु के लिए स्वयं को खपाया, बहुत दर्द सहा लेकिन उसने ऐसा प्रभु की आशीष पाने के लिए किया, ताकि प्रभु उसके परिवार को सुरक्षित रखें और उसके करियर की राह आसान हो। जब उसकी इच्छा के विरूद्ध चीज़ें हुईं, या उसके परिवार ने मुसीबतों का सामना किया, तो उसने अपनी चुकाई कीमत को प्रभु के साथ स्थिति के बारे में वाद-विवाद करने के लिए पूँजी के रूप में इस्तेमाल किया, प्रभु पर दोष लगाया और उनकी खिलाफत की। इस तरह कीमत चुकाना और खपाना निश्चित रूप से कभी प्रभु की स्वीकृति नहीं पायेगा! हम जो बाह्य रूप से कीमत चुकाते हैं, प्रभु ने उसकी निंदा नहीं की, बल्कि हमारे दिलों में जो गलत इरादे हैं उनकी निंदा की। प्रभु की इन्हीं चीज़ों से घृणा है।

थोड़ी देर सोचने के बाद, येकी ने लीना को एक संदेश भेजा, "जब मैंने तुम्हारा जवाब पढ़ा, तो मैं बहुत प्रेरित हुई। अब जाकर आख़िरकार मैं समझ पायी हूँ कि प्रभु के लिए प्रचार करना और काम करना केवल उनका घृणा और शाप क्यों लाया। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे भीतर बहुत सारे गलत इरादे और अशुद्धियां हैं। जब हम अपने भीतर इरादे और अशुद्धियाँ लेकर परमेश्वर की सेवा करते हैं, तो परमेश्वर इससे घृणा करते हैं, यह उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं होता है। तो फिर, हमें प्रभु की स्वीकृति पाने के लिए कैसे अभ्यास करना चाहिए?

लीना ने उत्तर दिया, "आओ इस सवाल के संबंध में बाइबल की कई आयतों को पढ़ें। प्रभु यीशु ने कहा, 'जो मुझ से, हे प्रभु! हे प्रभु! कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है' (मत्ती 7:21)। 'यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे' (यूहन्ना 8:31) 'यदि कोई मुझ से प्रेम रखेगा तो वह मेरे वचन को मानेगा… जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता' (यूहन्ना 14:23–24) 'तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है' (मत्ती 22:37–38)। प्रभु के वचनों से हम देखते हैं कि केवल वे ही जो पिता की इच्छा पूरी करते हैं, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। वास्तव में पिता की इच्छा पूरी करने का अर्थ है, प्रभु के वचनों का अभ्यास करना, प्रभु की आज्ञाओं का पालन करना, प्रभु की अपेक्षानुसार काम करना, स्वयं को खपाना और परमेश्वर के प्रेम का अनुसरण करना और सभी चीजों में परमेश्वर को संतुष्ट करना। जो लोग वास्तव में पिता की इच्छा को पूरा करते हैं, भले ही परमेश्वर का कार्य और वचन उनकी अपनी धारणाओं के अनुसार हो या न हो, वे परमेश्वर का पूर्ण रूप से पालन कर सकते हैं, परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास कर सकते हैं, जो परमेश्वर उन्हें सौंपते हैं उसे पूरा करने के लिए अपनी निष्ठा को अर्पित कर सकते हैं और अपने व्यक्तिगत हितों के परमेश्वर से सिफारिश नहीं करते हैं। परमेश्वर के साथ सौदेबाज़ी करने का प्रयास नहीं करते हैं और उनकी गवाही देने के लिए अपने जीवन को भी जोखिम में डाल सकते हैं। इस तरह के लोग परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हैं, यही वे लोग हैं जो परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करते हैं।

यह वैसा ही है जैसे परमेश्वर ने अब्राहम से अपने प्यारे बेटे को बलिदान के रूप में चढ़ाने को कहा, भले ही यह अपेक्षा अब्राहम की धारणाओं के अनुरूप नहीं थी, फिर भी उसने परमेश्वर के वचनों का पालन किया, बहस नहीं की, और ईमानदारी से इसहाक को परमेश्वर को लौटाने के लिए अर्पित किया। अब्राहम के पास परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता थी। अय्यूब की तरह भी, जो न केवल वो व्यक्ति था जो परमेश्वर से डरता था बल्कि अपने रोजमर्रा के जीवन में बुराई से भी दूर रहता था। जब उसके परीक्षणों के दौरान उसके धन और बच्चों को उससे ले लिया गया, जब उसने परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझा, तब भी परमेश्वर को दोष देने के बजाय वो अपने जन्म के दिन को कोसता था, और उसने इतना होने पर भी परमेश्वर के पवित्र नाम का महिमामंडन किया। अय्यूब की परमेश्वर की आराधना में कोई सौदेबाज़ी या विनिमय नहीं था। चाहे परमेश्वर जो भी दें या जो भी ले लें, अय्यूब परमेश्वर की शिक्षाओं—परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना—इसे पूरा करते रहने में सक्षम था। पतरस भी था, जिसने प्रभु यीशु का आजीवन पालन किया और प्रभु ने उसे जो सौंपा था उसे पूरा किया, "हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है? … मेरी भेड़ों की रखवाली कर" (यूहन्ना 21:16)। उसने प्रभु यीशु के वचनों को याद रखा, परमेश्वर के प्रेम का अनुसरण किया, सभी बातों में परमेश्वर को संतुष्ट किया, कड़ाई से प्रभु की इच्छा और अपेक्षाओं के अनुसार कलीसिया की चरवाही का काम किया, और अंत में मृत्यु तक आज्ञापालन करते और परमेश्वर से चरम प्रेम करते हुए, क्रूस पर उल्टा लटका दिया गया। ये सभी लोग ऐसे थे जो वास्तव में परमेश्वर का भय मानते थे और उनकी आज्ञा मानते थे। ऐसे लोग ही होते हैं जो वास्तव में पिता की इच्छा को पूरा करते हैं। इसलिए, पिता की इच्छा को पूरा करना, परमेश्वर के लिए त्याग करते और स्वयं को खपाते हुए प्रतीत होने को संदर्भित नहीं करता है। इसका मतलब है, सभी चीजों में परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना, परमेश्वर के प्रेम का अनुसरण करना, उनको संतुष्ट करना, और परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता और वफादारी रखना। यही वो है जिसका हमें अभ्यास करना चाहिए, साथ ही जिसमें प्रवेश करना चाहिए।"

येकी अपने कंप्यूटर स्क्रीन को देखती रही, लंबे समय तक सोच-विचार में डूबी रही। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके इतने वर्षों के विश्वास के बावजूद, आज जाकर उसे पता चलेगा कि पिता की इच्छा का क्या मतलब है। वह सत्य के इस पहलू को समझने में सक्षम होने पर खुश थी, लेकिन उसने यह भी माना कि प्रभु के लिए उसके काम में बहुत सारी अशुद्धियाँ थीं। वह अपने गलत इरादों को हटा देना, अय्यूब और पतरस के उदाहरणों का पालन करना, सभी चीजों में परमेश्वर की इच्छा की तलाश करना, परमेश्वर के वचन के अनुसार अभ्यास करना चाहती है। वह परमेश्वर की आज्ञाकारिता और प्रेम का अनुसरण करना चाहती है, और ऐसा व्यक्ति बनना चाहती है जो पिता की इच्छा पूरी करता हो। जब उसके मन में यह विचार आया तो उसने लीना के लिए एक बड़ा सा मुस्कुराता हुआ स्माइली भेज दिया…

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