I
धर्मी सूरज जिस तरह उगता है,
अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर पूरब में,
उसी तरह प्रकट हुआ है;
इंसान ने देखी है सच्ची रोशनी उभरते हुए।
धर्मी और प्रतापी, प्रेमी और दयालु परमेश्वर
दीनता से छिपकर इंसानों के बीच,
सत्य प्रसारित कर रहा, बोल रहा और काम कर रहा है।
सर्वशक्तिमान हमारे रूबरू है।
जिस परमेश्वर की प्यास थी तुम्हें, जिस परमेश्वर का इंतज़ार था मुझे,
आज हकीकत में सामने हमारे वो आ गया है।
हमने सच की तलाश की, हमने धर्मिता की चाह की;
इंसानों के बीच है आज, सच्चाई और धर्मिता।
तुम्हें प्यार है परमेश्वर से, मुझे प्यार है परमेश्वर से;
इंसान भरा है, नई उम्मीदों से।
व्यवहारिक देहधारी परमेश्वर को, मानते हैं लोग, पूजती है दुनिया।
II
सत्य व्यक्त करता है सर्वशक्तिमान परमेश्वर, लेकर आता है न्याय,
और उजागर करता है, परमेश्वर का धर्मी स्वभाव।
न्याय, ताड़ना और वचनों के परीक्षण से
वो जीतता है विजयी लोगों के समूह को, और बनाता है पूर्ण उन्हें।
परमेश्वर के रोषपूर्ण, प्रतापी वचन
इंसान की अधर्मिता का न्याय कर, बनाते हैं निर्मल उसे,
और अंधकार के युग का, विनाश करते हैं पूरी तरह।
सत्य और धर्मिता की, सत्ता है धरती पर।
दुनिया ख़ुश है, लोग आनंद मनाते हैं;
लोगों के मध्य आगमन हुआ है, परमेश्वर के मंदिर का।
दुनिया झूमती है, देश पूजते हैं,
परमेश्वर की इच्छा पूरी हो रही है धरती पर।
दुनिया ख़ुश है, लोग आनंद मनाते हैं;
लोगों के मध्य आगमन हुआ है, परमेश्वर के मंदिर का।
दुनिया झूमती है, देश पूजते हैं,
परमेश्वर की इच्छा पूरी हो रही है धरती पर।
मसीह का राज्य लोगों के मध्य साकार हुआ है।