धार्मिक दुनिया के पादरी और एल्डर्स अक्सर विश्वासियों को यह उपदेश देते हैं कि प्रभु यीशु को हर किसी के पापों के लिए सूली पर चढ़ा दिया गया था और मनुष्य को पापों से छुटकारा मिल चुका है। वे ये उपदेश देते हैं कि अगर कोई प्रभु यीशु से विचलित होकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता है, तो ऐसा करना प्रभु यीशु को धोखा देने और धर्म-त्याग करने के समान है। क्या सच्चाई वाकई ऐसी ही है? उस समय जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने आये थे, तब क्या मंदिर से अलग होकर प्रभु यीशु के अनुयायी बनने वालों पर भी यहूदी फरीसियों ने परमेश्वर यहोवा को धोखा देने का दोष नहीं लगाया था? इसलिए क्या परमेश्वर के नये कार्य को स्वीकार करना धर्म-त्याग और परमेश्वर को धोखा देना है? या यह मेमने के पदचिन्हों के साथ तालमेल बैठाना और परमेश्वर से उद्धार प्राप्त करना है? इस लघु वीडियो में हम इन बातों की मिलकर खोज करेंगे।
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