देहधारी परमेश्वर की होती है आलोचना,
निंदा, और उपहास।
शैतान उसका पीछा करते हैं।
धार्मिक जगत ने ठुकराया है उसे।
उसकी चोट की भरपाई नहीं कर सकता कोई।
इन्सान द्वारा उग्र विरोध,
पीछा करना, लगाना लांछन और झूठे आरोप,
डालते हैं परमेश्वर के देह को खतरे में।
कौन उसके दर्द को समझकर कम कर सकता है?
परमेश्वर धीरज से बचाता भ्रष्ट इन्सान को,
चोट खाए दिल से प्रेम करता है इन्सान को।
सबसे कष्टमय है ये,
सबसे कष्टमय काम है ये।
सबसे कष्टमय है ये,
सबसे कष्टमय काम है ये।
देह में परमेश्वर के काम की शुरुआत से,
प्रेम को उजागर किया गया है।
वो अपना सबकुछ देता है इन्सान को,
उसके काम का सार प्रेम है।
साढ़े तैंतीस साल तक, यीशु धरा पर रहा,
दर्द से छुटकारा तब तक न पा सका
जब तक क्रूसित हो, फिर से जी न उठा,
और इन्सां के बीच चालीस दिनों तक रहा।
मनुष्य संग जीवन के कठिन साल बीते,
पर मनुष्य की मंज़िल का सोच के,
परमेश्वर का दिल,
अब तक वैसे ही झेले।
लोग इस दर्द को जान और सह नहीं सकते, नहीं सकते।
देह में परमेश्वर के काम की शुरुआत से,
प्रेम को उजागर किया गया है।
वो अपना सबकुछ देता है इन्सान को,
उसके काम का सार प्रेम है।
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