केवल परमेश्वर, जिसके पास सृष्टिकर्ता की पहचान है, ही अद्वितीय अधिकार रखता है
शैतान की विशेष पहचान के कारण कई लोग उसके विभिन्न पहलुओं की अभिव्यक्तियों में गहन रुचि प्रदर्शित करते हैं। यहाँ तक कि बहुत-से ऐसे मूर्ख लोग भी हैं, जो यह मानते हैं कि परमेश्वर के साथ-साथ शैतान के पास भी अधिकार है, क्योंकि शैतान चमत्कार दिखाने में सक्षम है, और वे चीजें करने में सक्षम है जो मानव-जाति के लिए असंभव हैं। इस तरह, परमेश्वर की आराधना करने के अतिरिक्त मानव-जाति अपने हृदय में शैतान के लिए भी स्थान सुरक्षित रखती है, यहाँ तक कि शैतान की परमेश्वर की तरह आराधना भी करती है। ये लोग दयनीय और घृणित दोनों हैं। वे दयनीय अपनी अज्ञानता के कारण हैं, और घृणित अपने पाखंड और अंतर्निहित रूप से दुष्ट सार के कारण। इस मुकाम पर, मुझे तुम लोगों को यह सूचित करना आवश्यक लगता है कि अधिकार क्या है, किसका प्रतीक है, और क्या दर्शाता है। मोटे तौर पर, स्वयं परमेश्वर अधिकार है, उसका अधिकार परमेश्वर की सर्वोच्चता और सार का प्रतीक है, और स्वयं परमेश्वर का अधिकार परमेश्वर की हैसियत और पहचान दर्शाता है। ऐसी स्थिति में, क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि वह खुद परमेश्वर है? क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि उसने सभी चीजों का सृजन किया, और वह सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है? बेशक, नहीं! क्योंकि वह सभी चीजों का सृजन करने में असमर्थ है; आज तक उसने कभी परमेश्वर द्वारा निर्मित कोई चीज नहीं बनाई, और कभी ऐसी किसी चीज का सृजन नहीं किया जिसमें जीवन हो। चूँकि उसके पास परमेश्वर का अधिकार नहीं है, इसलिए उसके पास कभी परमेश्वर की हैसियत और पहचान नहीं हो सकती, और यह उसके सार से निर्धारित होता है। क्या उसमें परमेश्वर के समान सामर्थ्य है? बेशक, नहीं है! हम शैतान के कार्यों और शैतान द्वारा प्रदर्शित चमत्कारों को क्या कहते हैं? क्या वह सामर्थ्य है? क्या उसे अधिकार कहा जा सकता है? बिल्कुल नही! शैतान बुराई के ज्वार को निर्देशित करता है, और परमेश्वर के कार्य के हर पहलू में विघ्न डालता, बिगाड़ता और गड़बड़ करता है। पिछले हजारों साल से, मनुष्य को मौत की छाया की घाटी की ओर चलवाने के लिए मानव-जाति को भ्रष्ट करने और उसके साथ दुर्व्यवहार करने, और मनुष्य को लालच देकर और गुमराह कर दुष्टता की ओर धकेलने और परमेश्वर को नकारने के अलावा, क्या शैतान ने कुछ भी ऐसा किया है, जो मनुष्य के थोड़े-से भी स्मरण, प्रशंसा या उसके द्वारा सँजोए जाने के योग्य है? अगर शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्य होते, तो क्या उसके द्वारा मानव-जाति भ्रष्ट की जाती? अगर शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्य होते, तो क्या उसके द्वारा मानव-जाति को नुकसान पहुँचाया जाता? अगर शैतान के पास सामर्थ्य और अधिकार होते, तो क्या मानव-जाति परमेश्वर को छोड़कर मृत्यु की ओर मुड़ती? चूँकि शैतान के पास कोई अधिकार या सामर्थ्य नहीं है, इसलिए जो कुछ वह करता है, उसके सार के बारे में हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? कुछ लोग हैं, जो शैतान के सभी कार्यों को मात्र चालबाजी के रूप में परिभाषित करते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि ऐसी परिभाषा ज्यादा उपयुक्त नहीं है। क्या उसके द्वारा मानव-जाति को भ्रष्ट करने के लिए किए जाने वाले दुष्कर्म केवल चालबाजी हैं? शैतान ने जिस बुरी ताकत से अय्यूब के साथ दुर्व्यवहार किया था, और उसके साथ दुर्व्यवहार कर उसे निगल जाने की उसकी तीव्र इच्छा शायद केवल चालबाजी से पूरी नहीं हो सकती थी। बीती बातों पर सोचें तो, अय्यूब के भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के झुंड, जो दूर-दूर तक पहाड़ियों और पहाड़ों पर बिखरे हुए थे, एक ही क्षण में चले गए; अय्यूब की विशाल संपत्ति एक ही पल में गायब हो गई। क्या यह केवल चालबाजी से हासिल किया जा सकता था? शैतान जो कुछ भी करता है, उसकी प्रकृति बिगाड़ना, गड़बड़ी करना, नष्ट करना, नुकसान पहुँचाना, बुराई, दुर्भावना और अंधकार जैसे नकारात्मक शब्दों के साथ मेल खाती और सही बैठती है, इसलिए जो कुछ भी अनुचित और बुरा है, उसका होना शैतान के कार्यों के साथ अटूट रूप से जुड़ा है और शैतान के दुष्ट सार से अविभाज्य है। शैतान चाहे जितना भी “सामर्थ्यवान” हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और योजनाएँ जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानव-जाति के लिए कार्य करना, और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना के काम आना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!
शैतान का असली चेहरा समझने के बाद, बहुत-से लोग अभी भी नहीं समझते कि अधिकार क्या है, इसलिए मैं तुम्हें बताता हूँ! अधिकार को अपने आप में परमेश्वर के सामर्थ्य के रूप में समझाया जा सकता है। पहले, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अधिकार और सामर्थ्य दोनों सकारात्मक हैं। उनका किसी भी नकारात्मक चीज से कोई संबंध नहीं, और वे किसी भी सृजित या गैर-सृजित प्राणियों से संबंधित नहीं हैं। परमेश्वर का सामर्थ्य जीवन और जीवन-शक्ति रखने वाले किसी भी रूप की चीजें बनाने में सक्षम है, और यह परमेश्वर के जीवन द्वारा निर्धारित किया जाता है। परमेश्वर जीवन है, इसलिए वह सभी जीवों का स्रोत है। इसके अलावा, परमेश्वर का अधिकार सभी जीवित प्राणियों से परमेश्वर के प्रत्येक वचन को समर्पण करवा सकता है, अर्थात्, उन्हें परमेश्वर के मुँह से निकले वचनों के अनुसार अस्तित्व में ला सकता है, और परमेश्वर की आज्ञा से जीने और प्रजनन करने दे सकता है, जिसके बाद परमेश्वर सभी जीवित प्राणियों पर शासन और नियंत्रण करता है, और इसमें कभी विचलन नहीं होगा, न अभी, न भविष्य में कभी। किसी व्यक्ति या वस्तु के पास ये चीजें नहीं हैं; केवल सृष्टिकर्ता के पास ही ऐसा सामर्थ्य है और वही इसे धारण करता है, इसलिए इसे अधिकार कहा जाता है। यह सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता है। इसलिए, चाहे वह “अधिकार” शब्द हो या उस अधिकार का सार, दोनों केवल सृष्टिकर्ता के साथ जोड़े जा सकते हैं, क्योंकि ये सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान और सार के प्रतीक हैं, और सृष्टिकर्ता की पहचान और हैसियत दर्शाते हैं; सृष्टिकर्ता के अलावा, किसी व्यक्ति या चीज को “अधिकार” शब्द के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। यह सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार की व्याख्या है।
हालाँकि शैतान ने अय्यूब को ललचाई आँखों से देखा, लेकिन परमेश्वर की अनुमति के बिना उसने अय्यूब के शरीर का एक बाल भी छूने की हिम्मत नहीं की। हालाँकि शैतान अंतर्निहित रूप से दुष्ट और क्रूर है, लेकिन परमेश्वर द्वारा उसे आदेश दिए जाने के बाद, उसके पास परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इस प्रकार, भले ही शैतान जब वह अय्यूब के पास आया, तो वह भेड़ों के बीच भेड़िये की तरह उन्मत्त था, लेकिन उसने परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित सीमाएँ भूलने की हिम्मत नहीं की, परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं की, और जो कुछ भी उसने किया, उसमें शैतान ने परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों और सीमाओं से भटकने की हिम्मत नहीं की—क्या यह एक तथ्य नहीं है? इससे यह देखा जा सकता है कि शैतान यहोवा परमेश्वर के किसी भी वचन का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं करता। शैतान के लिए परमेश्वर के मुख से निकला प्रत्येक वचन एक आदेश और एक स्वर्गिक व्यवस्था है, परमेश्वर के अधिकार की अभिव्यक्ति है—क्योंकि परमेश्वर के प्रत्येक वचन के पीछे परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करने वालों और स्वर्गिक व्यवस्थाओं की अवज्ञा और विरोध करने वालों के लिए परमेश्वर की सजा निहित है। शैतान स्पष्ट रूप से जानता है कि अगर वह परमेश्वर के आदेशों का उल्लंघन करेगा, तो उसे परमेश्वर के अधिकार का उल्लंघन करने और स्वर्गिक व्यवस्थाओं का विरोध करने के परिणाम स्वीकारने होंगे। आखिर वे परिणाम क्या हैं? कहने की जरूरत नहीं कि वे परमेश्वर द्वारा उसे दी जाने वाली सजा हैं। अय्यूब के प्रति शैतान के कार्य उसके द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट किए जाने का केवल एक सूक्ष्म रूप थे, और जब शैतान ये कार्य कर रहा था, तो परमेश्वर ने जो सीमाएँ निर्धारित कीं और जो आदेश उसने शैतान को दिए, वे सब उसके द्वारा की जाने वाली हर चीज के पीछे के सिद्धांतों का एक सूक्ष्म रूप मात्र थे। इसके अलावा, इस मामले में शैतान की भूमिका और स्थिति, परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य में उसकी भूमिका और स्थिति का एक सूक्ष्म रूप मात्र थी, और शैतान द्वारा अय्यूब की परीक्षा में परमेश्वर के प्रति उसकी पूर्ण आज्ञाकारिता केवल इस बात का एक सूक्ष्म रूप थी कि कैसे शैतान ने परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य में परमेश्वर का थोड़ा-सा भी विरोध करने की हिम्मत नहीं की। ये सूक्ष्म रूप तुम लोगों को क्या चेतावनी देते हैं? शैतान समेत सभी चीजों में, कोई भी व्यक्ति या चीज ऐसी नहीं है, जो सृष्टिकर्ता द्वारा निर्धारित स्वर्गिक व्यवस्थाओं और आदेशों का उल्लंघन कर सकती हो, और कोई भी व्यक्ति या चीज ऐसी नहीं है जो इन स्वर्गिक नियमों और आदेशों का उल्लंघन करने की हिम्मत करती हो, क्योंकि कोई भी व्यक्ति या चीज उस सजा को बदल या उससे बच नहीं सकती, जो सृष्टिकर्ता उनकी अवज्ञा करने वालों को देता है। केवल सृष्टिकर्ता ही स्वर्गिक व्यवस्थाएँ और आदेश स्थापित कर सकता है, केवल सृष्टिकर्ता के पास ही उन्हें लागू करने का सामर्थ्य है, और केवल सृष्टिकर्ता के सामर्थ्य का ही किसी भी व्यक्ति या चीज द्वारा उल्लंघन नहीं किया जा सकता। यह सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार है, और यह अधिकार सभी चीजों में सर्वोच्च है, और इसलिए, यह कहना असंभव है कि “परमेश्वर महानतम है और शैतान दूसरे नंबर पर है।” अद्वितीय अधिकार से संपन्न सृष्टिकर्ता के अलावा कोई दूसरा परमेश्वर नहीं है!
क्या तुम लोगों को अब परमेश्वर के अधिकार का नया ज्ञान है? पहले, क्या अभी-अभी उल्लिखित परमेश्वर के अधिकार और मनुष्य के सामर्थ्य के बीच कोई अंतर है? क्या अंतर है? कुछ लोगों का कहना है कि दोनों में कोई तुलना नहीं है। यह सही है! हालाँकि लोग कहते हैं कि दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है, लेकिन मनुष्य के विचारों और धारणाओं में, मनुष्य का सामर्थ्य अक्सर अधिकार के साथ भ्रमित किया जाता है, और दोनों की अक्सर साथ-साथ तुलना की जाती है। यहाँ क्या हो रहा है? क्या लोग अनजाने में एक को दूसरे के साथ प्रतिस्थापित करने की गलती नहीं कर रहे? ये दोनों असंबद्ध हैं, और इनके बीच कोई तुलना नहीं है, फिर भी लोग बाज नहीं आते। इसका समाधान कैसे किया जाना चाहिए? अगर तुम वास्तव में समाधान खोजना चाहते हो, तो एकमात्र तरीका परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार को समझना और जानना है। सृष्टिकर्ता के अधिकार को समझने और जानने के बाद तुम मनुष्य के सामर्थ्य और परमेश्वर के अधिकार का एक-साथ उल्लेख नहीं करोगे।
मनुष्य के सामर्थ्य से क्या तात्पर्य है? सीधे तौर पर कहें तो, यह एक क्षमता या कौशल है जो मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को अधिकतम सीमा तक फैलने या पूरा होने में सक्षम बनाता है। क्या इसे अधिकार माना जा सकता है? मनुष्य की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ चाहे जितनी भी बड़ी या आकर्षक हों, यह नहीं कहा जा सकता कि उस व्यक्ति के पास अधिकार है; ज्यादा से ज्यादा, यह घमंड और सफलता मनुष्यों के बीच शैतान के मसखरेपन का एक प्रदर्शन मात्र है; ज्यादा से ज्यादा यह एक प्रहसन है, जिसमें शैतान परमेश्वर होने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए खुद को अपना ही पूर्वज बना लेता है।
अब तुम परमेश्वर के अधिकार को कैसे देखते हो? अब जबकि इन वचनों पर संगति हो गई है, तुम्हें परमेश्वर के अधिकार का एक नया ज्ञान होना चाहिए। इसलिए मैं तुम लोगों से पूछता हूँ : परमेश्वर का अधिकार किसका प्रतीक है? क्या यह स्वयं परमेश्वर की पहचान का प्रतीक है? क्या यह स्वयं परमेश्वर के सामर्थ्य का प्रतीक है? क्या यह स्वयं परमेश्वर की अद्वितीय हैसियत का प्रतीक है? सभी चीजों के बीच, तुमने परमेश्वर का अधिकार किसमें देखा है? तुमने इसे कैसे देखा? मनुष्य द्वारा अनुभव की जाने वाली चार ऋतुओं के संदर्भ में, क्या कोई बसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु के बीच अंतःपरिवर्तन की व्यवस्था बदल सकता है? बसंत ऋतु में पेड़ों पर कलियाँ उगती और खिलती हैं; गर्मियों में वे पत्तियों से ढक जाते हैं; शरद ऋतु में उन पर फल लगते हैं, और सर्दियों में पत्ते गिर जाते हैं। क्या कोई इस व्यवस्था को बदल सकता है? क्या यह परमेश्वर के अधिकार का एक पहलू दर्शाता है? परमेश्वर ने कहा “उजियाला हो,” और उजियाला हो गया। क्या यह उजियाला अभी भी मौजूद है? यह किसके कारण मौजूद है? बेशक, यह परमेश्वर के वचनों के कारण, और परमेश्वर के अधिकार के कारण मौजूद है। क्या परमेश्वर द्वारा सृजित हवा अभी भी मौजूद है? क्या मनुष्य जिस हवा में साँस लेता है, वह परमेश्वर से आती है? क्या कोई परमेश्वर से आने वाली चीजें छीन सकता है? क्या कोई उनका सार और कार्य बदल सकता है? क्या कोई परमेश्वर द्वारा नियत रात और दिन, और परमेश्वर द्वारा आदेशित रात और दिन की व्यवस्था नष्ट कर सकता है? क्या शैतान ऐसा कर सकता है? अगर तुम रात को नहीं सोते, और रात को दिन मान लेते हो, तब भी रात ही होती है; तुम अपनी दिनचर्या बदल सकते हो, लेकिन तुम रात और दिन के बीच अंतःपरिवर्तन की व्यवस्था बदलने में असमर्थ हो—यह तथ्य किसी भी व्यक्ति द्वारा अपरिवर्तनीय है, है न? क्या कोई शेर से बैल की तरह भूमि जुतवाने में सक्षम है? क्या कोई हाथी को गधे में बदलने में सक्षम है? क्या कोई मुर्गी को बाज की तरह हवा में उड़वाने में सक्षम है? क्या कोई भेड़िये को भेड़ की तरह घास खाने के लिए मजबूर कर सकता है? (नहीं।) क्या कोई पानी में रहने वाली मछली को सूखी जमीन पर जीवित रखने में सक्षम है? यह मनुष्यों द्वारा नहीं किया जा सकता। क्यों नहीं किया जा सकता? इसलिए कि परमेश्वर ने मछलियों को पानी में रहने की आज्ञा दी है, इसलिए वे पानी में रहती हैं। जमीन पर वे जीवित नहीं रह पाएँगी और मर जाएँगी; वे परमेश्वर की आज्ञा की सीमाओं का उल्लंघन करने में असमर्थ हैं। सभी चीजों के अस्तित्व की एक व्यवस्था और सीमा होती है, और उनमें से प्रत्येक की अपनी सहज प्रवृत्ति होती है। वे सृष्टिकर्ता द्वारा नियत की गई हैं, और किसी भी मनुष्य द्वारा अपरिवर्तनीय और अलंघ्य हैं। उदाहरण के लिए, शेर हमेशा मनुष्य के समुदायों से दूर, जंगल में रहेगा, और वह कभी उतना विनम्र और वफादार नहीं हो सकता, जितना कि मनुष्य के साथ रहने और उसके लिए काम करने वाला बैल होता है। हालाँकि हाथी और गधे दोनों जानवर हैं और दोनों के चार पैर होते हैं, और वे जीव हैं जो हवा में साँस लेते हैं, फिर भी वे अलग प्रजातियाँ हैं, क्योंकि उन्हें परमेश्वर द्वारा विभिन्न किस्मों में विभाजित किया गया था, उनमें से प्रत्येक की अपनी सहज प्रवृत्ति होती है, इसलिए वे कभी आपस में बदले नहीं जा सकेंगे। हालाँकि बाज की ही तरह मुर्गे के भी दो पैर और पंख होते हैं, लेकिन वह कभी हवा में नहीं उड़ पाएगा; ज्यादा से ज्यादा वह केवल पेड़ तक उड़ सकता है—यह उसकी सहज प्रवृत्ति से निर्धारित होता है। कहने की जरूरत नहीं कि यह सब परमेश्वर के अधिकार की आज्ञाओं के कारण है।
मानव-जाति के विकास में आज उसके विज्ञान को फलता-फूलता कहा जा सकता है, और मनुष्य की वैज्ञानिक खोज की उपलब्धियाँ प्रभावशाली कही जा सकती हैं। कहना होगा कि मनुष्य की क्षमता लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन एक वैज्ञानिक खोज ऐसी है जिसे करने में मनुष्य असमर्थ रहा है : मनुष्य ने हवाई जहाज, विमान-वाहक और परमाणु बम बना लिए हैं, वह अंतरिक्ष में पहुँच गया है, चंद्रमा पर चला है, उसने इंटरनेट का आविष्कार किया, और एक हाई-टेक जीवन-शैली जीने लगा है, फिर भी वह एक जीवित, साँस लेने वाली चीज बनाने में असमर्थ है। हर जीवित प्राणी की सहज प्रवृत्ति और वे व्यवस्थाएँ जिनके द्वारा वे जीते हैं, और हर किस्म के जीवित प्राणियों के जीवन और मृत्यु का चक्र—ये सब मनुष्य के विज्ञान के सामर्थ्य से परे हैं और उसके द्वारा नियंत्रित नहीं किए जा सकते। इस जगह, कहना होगा कि मनुष्य के विज्ञान ने चाहे जितनी भी महान ऊँचाइयाँ प्राप्त कर ली हों, उनकी तुलना सृष्टिकर्ता के किसी भी विचार के साथ नहीं की जा सकती और वह सृष्टिकर्ता के सृजन की चमत्कारिकता और उसके अधिकार की शक्ति को समझने में असमर्थ है। पृथ्वी पर इतने सारे महासागर हैं, लेकिन उन्होंने कभी अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया और अपनी इच्छा से भूमि पर नहीं आए, और ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने उनमें से प्रत्येक के लिए सीमाएँ निर्धारित की हैं; वे वहीं ठहर गए, जहाँ ठहरने की उसने उन्हें आज्ञा दी, और परमेश्वर की अनुमति के बिना वे आजादी से यहाँ-वहाँ नहीं जा सकते। परमेश्वर की अनुमति के बिना वे एक-दूसरे का अतिक्रमण नहीं कर सकते, और केवल तभी हिल सकते हैं जब परमेश्वर हिलने को कहता है, और वे कहाँ जाएँगे और ठहरेंगे, यह परमेश्वर के अधिकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
साफ कहें तो, “परमेश्वर के अधिकार” का अर्थ है कि यह परमेश्वर पर निर्भर है। परमेश्वर को यह तय करने का अधिकार है कि कोई चीज कैसे करनी है, और उसे उस तरह किया जाता है, जिस तरह से वह चाहता है। सब चीजों की व्यवस्था परमेश्वर पर निर्भर है, मनुष्य पर नहीं; न ही उसे मनुष्य द्वारा बदला जा सकता है। उसे मनुष्य की इच्छा से नहीं हिलाया जा सकता, बल्कि परमेश्वर के विचारों, परमेश्वर की बुद्धि और परमेश्वर के प्रारब्ध द्वारा बदला जाता है; यह एक ऐसा तथ्य है जिससे कोई भी व्यक्ति इनकार नहीं कर सकता। स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजें, ब्रह्मांड, तारों भरा आकाश, वर्ष के चार मौसम, जो भी मनुष्य के लिए दृश्यमान और अदृश्य हैं—वे सभी थोड़ी-सी भी त्रुटि के बिना, परमेश्वर के अधिकार के तहत, परमेश्वर के प्रारब्ध के अनुसार, परमेश्वर की आज्ञाओं के मुताबिक, और सृष्टि की शुरुआत की व्यवस्थाओं के अनुसार अस्तित्व में हैं, कार्यरत हैं, और बदलते हैं। कोई भी व्यक्ति या चीज उनकी व्यवस्थाएँ नहीं बदल सकती, या वह अंतर्निहित क्रम नहीं बदल सकती जिसके द्वारा वे कार्य करते हैं; वे परमेश्वर के अधिकार के कारण अस्तित्व में आए, और परमेश्वर के अधिकार के कारण नष्ट होते हैं। यही परमेश्वर का अधिकार है। अब जबकि इतना कहा जा चुका है, क्या तुम महसूस कर सकते हो कि परमेश्वर का अधिकार परमेश्वर की पहचान और हैसियत का प्रतीक है? क्या परमेश्वर का अधिकार किसी भी सृजित या गैर-सृजित प्राणी के पास हो सकता है? क्या किसी व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ द्वारा इसका अनुकरण, प्रतिरूपण, या प्रतिस्थापन किया जा सकता है?
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I