चूँकि मानव को परमेश्वर ने बनाया, उसकी रहनुमाई वो करेगा;
चूँकि वो उसे बचाता है,
वो उसे पूरी तरह हासिल करेगा और बचायेगा;
चूँकि वो करता है रहनुमाई मानव की,
उसे सही मंज़िल तक भी वो लाएगा।
चूँकि मानवों को सृजा था परमेश्वर ने,
और उनका प्रबंधन भी वही करता है,
उनके भविष्य और नियति की ज़िम्मेदारी
भी लेनी होगी उसे अपने कांधों पे।
यही है वो कार्य जो सृष्टिकर्ता करता है।
हाँ, सच है कि मानवजाति के भविष्य की आशा को दूर करके ही
विजय कार्य हासिल किया जाता है,
फिर भी परमेश्वर ने बनाई जो मंज़िल मनुष्यों के लिए,
उस तक उन्हें पहुंचाया जायेगा, अंत में।
चूँकि परमेश्वर मानव को ढालता है,
इसलिए तो उसके पास एक मंज़िल है,
और एक भविष्य जो सुनिश्चित है, और एक भविष्य जो सुनिश्चित है।
बजाय उस मंज़िल के जो उसे प्रदान की जानी है,
जिसकी इच्छा और अनुसरण मनुष्य करता है, वे हैं वो चाहतें,
जो होती हैं देह की असंयत लालसाओं को पाने की कोशिश में।
दूसरी ओर, परमेश्वर ने तैयार किया है मनुष्य के लिए जो,
वे आशीषें और वायदे हैं जो मिलेंगे मनुष्य को जब शुद्ध हो जायेगा वो।
दुनिया की सृष्टि के बाद मानव के लिए,
परमेश्वर ने की थी इसकी तैयारी।
उन आशीषों और वायदों पर नहीं पड़ी है मनुष्य की देह या,
उसके चुनाव, कल्पना और धारणा की काली छाया।
मंज़िल की तैयारी नहीं की गयी है किसी एक इंसान के लिए,
पर है ये विश्राम का स्थान पूरी मानवजाति के लिए।
यही है सबसे उपयुक्त मंज़िल,
है सबसे उपयुक्त मंज़िल मानवजाति के लिए,
है सबसे उपयुक्त मंज़िल मानवजाति के लिए।