मानवता को पहले जानना चाहिए
स्वभाव को जो सिर्फ है परमेश्वर के पास।
यानी कि, कोई गुनाह न सहना।
न कोई दे सके दखल, न प्रभावित कर सके।
ये सबकी कल्पना से परे है,
न प्रतिरूपित हो सके, न नकल की जा सके।
परमेश्वर किसी को भी नहीं सहेगा
जो उसका खुलकर विरोध करे,
चाहे हों वे सृजे हुये प्राणी या न हों,
चाहे हों चुनिन्दा या दया के पात्र हों।
एक बार वे उसके स्वभाव को जब क्रोधित करें,
या तोड़े उसके धैर्य के सिद्धान्त को,
परमेश्वर प्रकट करेगा अपना स्वभाव,
जो धार्मिक है, और जो सहे न कोई अपमान।
परमेश्वर का है ये स्वभाव
उसके पवित्र और निर्मल सार की वजह से।
वो नफरत करता है पापों से जो विरोध करे।
वो नफरत करता है नाफ़रमानी से,
और शैतान के बुराई द्वारा मानव को भ्रष्ट करने से।
वो तिरस्कार करता है दुष्टता और अंधेरे का।
परमेश्वर किसी को भी नहीं सहेगा
जो उसका खुलकर विरोध करे,
चाहे हों वे सृजे हुये प्राणी या न हों,
चाहे हों चुनिन्दा या दया के पात्र हों।
एक बार वे उसके स्वभाव को जब क्रोधित करें,
या तोड़े उसके धैर्य के सिद्धान्त को,
परमेश्वर प्रकट करेगा अपना स्वभाव,
जो धार्मिक है, और जो सहे न कोई अपमान।
परमेश्वर किसी को भी नहीं सहेगा
जो उसका खुलकर विरोध करे,
चाहे हों वे सृजे हुये प्राणी या न हों,
चाहे हों चुनिन्दा या दया के पात्र हों।
एक बार वे उसके स्वभाव को जब क्रोधित करें,
या तोड़े उसके धैर्य के सिद्धान्त को,
परमेश्वर प्रकट करेगा अपना स्वभाव,
जो धार्मिक है, और जो सहे न कोई अपमान।