इस चरण में देहधारी परमेश्वर चाहे कठिनाइयाँ सह रहा हो या सेवकाई कर रहा हो, वह ऐसा केवल देहधारण के अर्थ को पूरा करने के लिए करता है, क्योंकि यह परमेश्वर का अंतिम देहधारण है। परमेश्वर केवल दो बार देहधारण कर सकता है। ऐसा तीसरी बार नहीं हो सकता। पहला देहधारण पुरुष था; दूसरा स्त्री, तो मनुष्य के मन में परमेश्वर की देह की छवि पूरी हो चुकी है; इसके अलावा, दोनों देहधारण ने पहले ही परमेश्वर के कार्य को देह में समाप्त कर लिया है। पहली बार, देहधारण के अर्थ को पूरा करने के लिए परमेश्वर के देहधारण ने सामान्य मानवता धारण की। इस बार उसने सामान्य मानवता भी धारण की है, किन्तु इस देहधारण का अर्थ भिन्न है : यह अधिक गहरा है, और उसका कार्य अधिक गहन महत्ता का है। परमेश्वर के पुनः देहधारी होने का कारण देहधारण के अर्थ को पूरा करना है। जब परमेश्वर इस चरण के कार्य को पूरी तरह से समाप्त कर लेगा, तो देहधारण का संपूर्ण अर्थ, अर्थात्, देह में परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाएगा, और फिर देह में करने के लिए और कार्य बाकी नहीं रह जाएगा। अर्थात्, अब से परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए फिर कभी देहधारण नहीं करेगा। केवल मानवजाति को बचाने और पूर्ण करने के लिए ही परमेश्वर देहधारण करता है। दूसरे शब्दों में, कार्य के अलावा किसी और कारण से देह में आना परमेश्वर के लिए किसी भी तरह से सामान्य बात नहीं है। कार्य करने के लिए देह में आ कर, वह शैतान को दिखाता है कि परमेश्वर देह है, एक सामान्य, एक साधारण व्यक्ति है—और फिर भी वह संसार पर विजयी शासन कर सकता है, शैतान को परास्त कर सकता है, मानवजाति को छुटकारा दिला सकता है, मानवजाति को जीत सकता है! शैतान के कार्य का लक्ष्य मानवजाति को भ्रष्ट करना है, जबकि परमेश्वर का लक्ष्य मानवजाति को बचाना है। शैतान मनुष्य को अथाह कुंड में फँसाता है, जबकि परमेश्वर उसे इससे बचाता है। शैतान सभी लोगों से अपनी आराधना करवाता है, जबकि परमेश्वर उन्हें अपने प्रभुत्व के अधीन करता है, क्योंकि वह संपूर्ण सृष्टि का प्रभु है। यह समस्त कार्य परमेश्वर के दो देहधारणों द्वारा पूरा किया जाता है। उसका देह सार रूप में मानवता और दिव्यता का मिलाप है और उसमें सामान्य मानवता है। इसलिए देहधारी परमेश्वर के देह के बिना, परमेश्वर मानवजाति को नहीं बचा सकता, और देह की सामान्य मानवता के बिना, देह में उसका कार्य परिणाम हासिल नहीं कर सकता। परमेश्वर के देहधारण का सार यह है कि उसमें सामान्य मानवता होनी चाहिए; इसके इतर कुछ भी होने पर यह देहधारण करने के परमेश्वर के मूल आशय के विपरीत चला जाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार