परमेश्वर इस पृथ्वी पर जिस कार्य को करने के लिए आता है, वह केवल युग की अगुआई करना, नए युग का आरंभ करना और पुराने युग को समाप्त करना है। वह पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन जीने, स्वयं मानव-जगत के जीवन के सुख-दुःख का अनुभव करने, या किसी व्यक्ति-विशेष को अपने हाथ से पूर्ण बनाने या किसी व्यक्ति-विशेष को व्यक्तिगत रूप से बढ़ते हुए देखने के लिए नहीं आया है। यह उसका कार्य नहीं है; उसका कार्य केवल एक नए युग का आरंभ करना और पुराने युग को समाप्त करना है। अर्थात्, वह व्यक्तिगत रूप से एक युग का आरंभ करेगा, व्यक्तिगत रूप से दूसरे युग का अंत करेगा, और व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करके शैतान को पराजित करेगा। हर बार जब वह व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है, तो यह ऐसा होता है मानो वह युद्ध के मैदान में कदम रख रहा हो। सबसे पहले, वह विश्व को जीतता है और देह में रहते हुए शैतान पर विजय प्राप्त करता है; वह सारी महिमा का मालिक हो जाता है और दो हज़ार वर्षों के कार्य की समग्रता पर से पर्दा उठाता है, और उसे ऐसा बना देता है कि पृथ्वी के सभी मनुष्यों के पास चलने के लिए एक सही मार्ग और जीने के लिए एक शांतिपूर्ण और आनंदमय जीवन हो। किंतु, परमेश्वर लंबे समय तक मनुष्य के साथ पृथ्वी पर नहीं रह सकता, क्योंकि परमेश्वर तो परमेश्वर है, और अंततः मनुष्य के समान नहीं है। वह एक सामान्य मनुष्य का जीवनकाल नहीं जी सकता, अर्थात्, वह पृथ्वी पर एक ऐसे मनुष्य के रूप में नहीं रह सकता, जो साधारण के अलावा कुछ नहीं है, क्योंकि उसके पास अपने मानव-जीवन को बनाए रखने के लिए एक सामान्य मनुष्य की सामान्य मनुष्यता का केवल एक अल्पतम अंश ही है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर पृथ्वी पर कैसे एक परिवार शुरू कर सकता है, कैसे आजीविका अपना सकता है, और कैसे बच्चों की परवरिश कर सकता है? क्या यह उसके लिए अपमानजनक नहीं होगा? वह सिर्फ सामान्य तरीके से कार्य करने के उद्देश्य से सामान्य मानवता से संपन्न है, न कि एक सामान्य मनुष्य के समान अपना परिवार और आजीविका रखने में समर्थ होने के लिए। उसकी सामान्य समझ, सामान्य मन और उसके देह के सामान्य भोजन और वस्त्र यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं कि उसमें एक सामान्य मानवता है; यह साबित करने के लिए कि वह सामान्य मानवता से सुसज्जित है, उसे परिवार या आजीविका रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह पूरी तरह से अनावश्यक होगा! परमेश्वर का पृथ्वी पर आना वचन का देह बनना है; वह मनुष्य को मात्र अपने वचन को समझने और अपने वचन को देखने दे रहा है, अर्थात्, मनुष्य को देह द्वारा किए गए कार्य को देखने दे रहा है। उसका यह इरादा नहीं है कि लोग उसके देह के साथ एक निश्चित तरीके से व्यवहार करें, बल्कि केवल यह है कि मनुष्य अंत तक आज्ञाकारी बने रहें, अर्थात्, उसके मुँह से निकलने वाले सभी वचनों का पालन करें, और उसके द्वारा किए जाने वाले समस्त कार्य के प्रति समर्पित हो जाएँ। वह मात्र देह में कार्य कर रहा है; जानबूझकर मनुष्य से यह नहीं कह रहा कि वे उसके देह की महानता या पवित्रता की सराहना करें, बल्कि वह मनुष्य को अपने कार्य की बुद्धि और वह समस्त अधिकार दिखा रहा है, जिसका वह प्रयोग करता है। इसलिए, भले ही उसके पास उत्कृष्ट मानवता है, फिर भी वह कोई घोषणा नहीं करता, और केवल उस कार्य पर ध्यान केंद्रित करता है, जो उसे करना चाहिए। तुम लोगों को जानना चाहिए कि ऐसा क्यों है कि परमेश्वर देह बना और फिर भी वह अपनी सामान्य मानवता का प्रचार नहीं करता या उसकी गवाही नहीं देता, बल्कि इसके बजाय केवल उस कार्य को करता है, जिसे वह करना चाहता है। इसलिए, जो कुछ तुम लोग देहधारी परमेश्वर में देख सकते हो, वह उसका दिव्य स्वरूप है; इसका कारण यह है कि वह अपने मानवीय स्वरूप का ढिंढोरा नहीं पीटता, जिससे कि मनुष्य उसका अनुकरण करे। केवल जब मनुष्य लोगों की अगुआई करता है, तभी वह अपने मानवीय स्वरूप के बारे में बोलता है, ताकि वह उनकी प्रशंसा और समर्पण बेहतर ढंग से पा सके और इसके फलस्वरूप दूसरों की अगुआई प्राप्त कर सके। इसके विपरीत, परमेश्वर केवल अपने कार्य (अर्थात् मनुष्य के लिए अप्राप्य कार्य) के माध्यम से ही मनुष्य पर विजय प्राप्त करता है; मनुष्य द्वारा उसकी प्रशंसा किए जाने या मनुष्य से अपनी आराधना करवाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। जो कुछ भी वह करता है, वह अपने प्रति मनुष्य में आदर की भावना या अपनी अगाधता का भाव भरना है। मनुष्य को प्रभावित करने की परमेश्वर को कोई आवश्यकता नहीं है; वह तुम लोगों से बस इतना ही चाहता है कि जब एक बार तुम लोग उसके स्वभाव को देख लो, तो उसका आदर करो। परमेश्वर जो कार्य करता है, वह उसका अपना कार्य है; उसे उसके बजाय मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता, न ही उसे मनुष्य द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। केवल स्वयं परमेश्वर ही अपना कार्य कर सकता है और मनुष्य की नए जीवन में अगुआई करने के लिए उसे नए युग में ले जा सकता है। जो कार्य वह करता है, वह मनुष्य को एक नया जीवन धारण करने और नए युग में प्रवेश करने में सक्षम बनाने के लिए है। शेष कार्य उन लोगों को सौंप दिया जाता है, जो सामान्य मानवता वाले हैं और जिनकी दूसरों के द्वारा प्रशंसा की जाती है। इसलिए, अनुग्रह के युग में उसने दो हज़ार वर्षों के कार्य को देह में अपने तेंतीस वर्षों में से मात्र साढ़े तीन वर्षों में पूरा कर दिया। जब परमेश्वर अपना कार्य करने के लिए पृथ्वी पर आता है, तो वह हमेशा दो हजार वर्षों के या एक समस्त युग के कार्य को कुछ ही वर्षों के लघुतम समय के भीतर पूरा कर देता है। वह विलंब नहीं करता, और वह रुकता नहीं है; वह बस कई वर्षों के काम को घनीभूत कर देता है, ताकि वह मात्र कुछ थोड़े-से वर्षों में ही पूरा हो जाए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जिस कार्य को वह व्यक्तिगत रूप से करता है, वह पूर्णत: एक नया मार्ग प्रशस्त करने और एक नए युग की अगुआई करने के लिए होता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (2)