बहुत सालों से, लोगों के विश्वास (दुनिया के तीन मुख्य धर्मों में से एक, मसीहियत) का परंपरागत साधन बाइबल पढ़ना ही रहा है; बाइबल से दूर जाना प्रभु में विश्वास करना नहीं है, बाइबल से दूर जाना एक पाखंड और विधर्म है, और यहाँ तक कि जब लोग अन्य पुस्तकें पढ़ते हैं, तो उन पुस्तकों की बुनियाद भी बाइबल की व्याख्या ही होनी चाहिए। कहने का अर्थ है कि, यदि तुम प्रभु में विश्वास करते हो तो तुम्हें बाइबल अवश्य पढ़नी चाहिए, और बाइबल के अलावा तुम्हें ऐसी किसी अन्य पुस्तक की आराधना नहीं करनी चाहिए, जिस में बाइबल शामिल न हो। यदि तुम करते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहे हो। बाइबल के समय से प्रभु में लोगों का विश्वास, बाइबल में विश्वास रहा है। यह कहने के बजाय कि लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, यह कहना बेहतर है कि वे बाइबल में विश्वास करते हैं; यह कहने के बजाय कि उन्होंने बाइबल पढ़नी आरंभ कर दी है, यह कहना बेहतर है कि उन्होंने बाइबल पर विश्वास करना आरंभ कर दिया है; और यह कहने के बजाय कि वे प्रभु के सामने लौट आए हैं, यह कहना बेहतर होगा कि वे बाइबल के सामने लौट आए हैं। इस तरह से, लोग बाइबल की आराधना ऐसे करते हैं मानो वह परमेश्वर हो, मानो वह उनका जीवन-रक्त हो और उसे खोना अपने जीवन को खोने के समान हो। लोग बाइबल को परमेश्वर जितना ही ऊँचा समझते हैं, और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उसे परमेश्वर से भी ऊँचा समझते हैं। यदि लोगों के पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, यदि वे परमेश्वर को महसूस नहीं कर सकते, तो वे जीते रह सकते हैं—परंतु जैसे ही वे बाइबल को खो देते हैं, या बाइबल के प्रसिद्ध अध्याय और उक्तियाँ खो देते हैं, तो यह ऐसा होता है, मानो उन्होंने अपना जीवन खो दिया हो। और इसलिए, जैसे ही लोग प्रभु में विश्वास करते हैं, वैसे ही वे बाइबल पढ़ना और उसे याद करना आरंभ कर देते हैं, और जितना ज़्यादा वे बाइबल को याद कर पाते हैं, उतना ही ज़्यादा यह साबित होता है कि वे प्रभु से प्रेम करते हैं और बड़े विश्वासी हैं। जिन्होंने बाइबल पढ़ी है और जो उसके बारे में दूसरों से चर्चा कर सकते हैं, वे सभी अच्छे भाई और बहन हैं। इन सारे वर्षों में, प्रभु के प्रति लोगों का विश्वास और वफादारी बाइबल की उनकी समझ की सीमा के अनुसार मापी गई है। अधिकतर लोग साधारणत: यह नहीं समझते कि उन्हें परमेश्वर पर विश्वास क्यों करना चाहिए, और न ही वे यह समझते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास कैसे किया जाए, और वे बाइबल के अध्यायों का गूढ़ार्थ निकालने के लिए आँख बंद करके सुराग ढूँढ़ने के अलावा कुछ नहीं करते। लोगों ने कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा का अनुसरण नहीं किया है; शुरुआत से ही उन्होंने हताशापूर्वक बाइबल का अध्ययन और अन्वेषण करने के अलावा और कुछ नहीं किया है, और किसी ने कभी बाइबल के बाहर पवित्र आत्मा का नवीनतम कार्य नहीं पाया है। कोई कभी बाइबल से दूर नहीं गया है, न ही उसने कभी ऐसा करने की हिम्मत की है। लोगों ने इन सभी वर्षों में बाइबल का अध्ययन किया है, वे बहुत-सी व्याख्याओं के साथ सामने आए हैं, और उन्होंने बहुत-सा काम किया है; उनमें भी बाइबल के बारे में कई मतभेद हैं, जिस पर वे अंतहीन बहस करते हैं, इतनी कि आज दो हज़ार से ज़्यादा अलग-अलग संप्रदाय बन गए हैं। वे सभी कुछ विशेष व्याख्याओं, या बाइबल के अधिक गंभीर रहस्यों का पता लगाना चाहते हैं, और वे उसकी छानबीन करना चाहते हैं, और उसमें इस्राएल में यहोवा के कार्य की पृष्ठभूमि का या यहूदिया में यीशु के कार्य की पृष्ठभूमि का या और अधिक रहस्यों का पता लगाना चाहते हैं, जिनके बारे में कोई नहीं जानता। बाइबल के प्रति लोगों का दृष्टिकोण जूनून और विश्वास का है, और उनमें से कोई भी बाइबल की अंदर की कहानी या सार के बारे में पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो सकता। इसलिए आज भी जब बाइबल की बात आती है, तो लोगों को अभी भी आश्चर्य का एक अवर्णनीय एहसास होता है, और वे उससे और भी अधिक अभिभूत हैं, और उस पर और भी अधिक विश्वास करते हैं। आज, हर कोई बाइबल में अंत के दिनों के कार्य की भविष्यवाणियाँ ढूँढ़ना चाहता है, वह यह खोजना चाहता है कि अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर क्या कार्य करता है, और अंत के दिनों के क्या लक्षण हैं। इस तरह से, बाइबल की उनकी आराधना और अधिक उत्कट हो जाती है, और जितनी ज़्यादा वह अंत के दिनों के नज़दीक आती है, उतना ही ज़्यादा अंधविश्वास वे बाइबल की भविष्यवाणियों पर करने लगते हैं, विशेषकर उन पर, जो अंत के दिनों के बारे में हैं। बाइबल पर ऐसे अंधे विश्वास के साथ, बाइबल पर ऐसे भरोसे के साथ, उनमें पवित्र आत्मा के कार्य को खोजने की कोई इच्छा नहीं होती। अपनी धारणाओं के अनुसार, लोग सोचते हैं कि केवल बाइबल ही पवित्र आत्मा के कार्य को ला सकती है; केवल बाइबल में ही वे परमेश्वर के पदचिह्न खोज सकते हैं; केवल बाइबल में ही परमेश्वर के कार्य के रहस्य छिपे हुए हैं; केवल बाइबल—न कि अन्य पुस्तकें या लोग—परमेश्वर की हर चीज़ और उसके कार्य की संपूर्णता को स्पष्ट कर सकती है; बाइबल स्वर्ग के कार्य को पृथ्वी पर ला सकती है; और बाइबल युगों का आरंभ और अंत दोनों कर सकती है। इन धारणाओं के कारण लोगों का पवित्र आत्मा के कार्य को खोजने की ओर कोई झुकाव नहीं होता। अतः अतीत में बाइबल लोगों के लिए चाहे जितनी मददगार रही हो, वह परमेश्वर के नवीनतम कार्य के लिए एक बाधा बन गई है। बाइबल के बिना ही लोग अन्यत्र परमेश्वर के पदचिह्न खोज सकते हैं, किंतु आज उसके कदम बाइबल द्वारा रोक लिए गए हैं, और उसके नवीनतम कार्य को बढ़ाना दोगुना कठिन और एक दु:साध्य संघर्ष बन गया है। यह सब बाइबल के प्रसिद्ध अध्यायों एवं उक्तियों, और साथ ही बाइबल की विभिन्न भविष्यवाणियों की वजह से है। बाइबल लोगों के मन में एक आदर्श बन चुकी है, वह उनके मस्तिष्क में एक पहेली बन चुकी है, और वे यह विश्वास करने में सर्वथा असमर्थ हैं कि परमेश्वर बाइबल के बाहर भी काम कर सकता है, वे यह विश्वास करने में असमर्थ हैं कि लोग बाइबल के बाहर भी परमेश्वर को पा सकते हैं, और यह विश्वास करने में तो वे बिलकुल ही असमर्थ हैं कि परमेश्वर अंतिम कार्य के दौरान बाइबल से प्रस्थान कर सकता है और नए सिरे से शुरुआत कर सकता है। यह लोगों के लिए अचिंत्य है; वे इस पर विश्वास नहीं कर सकते, और न ही वे इसकी कल्पना कर सकते हैं। लोगों द्वारा परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने में बाइबल एक बहुत बड़ी बाधा बन गई है, और उसने परमेश्वर के लिए इस नए कार्य का विस्तार करना कठिन बना दिया है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1)