मुख्य किरदार ने बचपन से ही ईसाई आस्था में अपने माता-पिता का अनुसरण किया था और शादी के बाद वह अपने पति के साथ कलीसिया में काम करने लगी थी। पिछले कुछ वर्षों में उसने देखा है कि वह हमेशा प्रभु से अपने पाप कबूल करने के लिए प्रार्थना करती रहती है, मगर खुद को पाप करने से रोक नहीं पाती, और प्रभु के वचनों का पालन नहीं कर पाती है। अपने पति के साथ भी वह सहिष्णुता या सब्र नहीं रखती। वह परमेश्वर के वचनों में से इस वचन पर गौर करती है: "पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:44)। परमेश्वर पवित्र है और कोई भी अपवित्र इंसान प्रभु को नहीं देख सकता, इसलिए वह सोच में पड़ जाती है : क्या उसके जैसा पाप में जीने वाला इंसान स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है? यह उसके लिए दुखदायी होता है, और वह हर पल प्रभु से प्रार्थना करती रहती है। आखिरकार वह इस उलझन से कैसे उबर पाती है, और उसे कैसे मिलता है शुद्ध होने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का रास्ता? आइए, साथ मिल कर सुनें उसकी कहानी।
परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर आ गया है! क्या आप इसमें प्रवेश करना चाहते हैं?
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