मनुष्यों में, लोगों को तीन प्रकार से वर्गीकृत करता हूं। पहले प्रकार के लोग अविश्वासी हैं, ये वे हैं जो धार्मिक विश्वास-रहित हैं उन्हें अविश्वासी कहते हैं। अविश्वासियों की बहुत बड़ी संख्या केवल धन में विश्वास रखती है। वे केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं, वे भौतिकवादी हैं और उनका विश्वास केवल भौतिक संसार में है। वे न तो जीवन-मरण चक्र में और न ही देवताओं और भूत-प्रेतों की कथाओं में विश्वास रखते हैं। मैं उन्हें अविश्वासियों के रुप में वर्गीकृत करता हूँ, और वे पहला प्रकार हैं। दूसरा प्रकार अविश्वासियों से अलग विभिन्न मतों के मानने वाले लोगों का है। मनुष्यों के बीच, मैं इन विश्वासी लोगों को अनेक मुख्य प्रकारों में विभाजित करता हूं: पहले यहूदी हैं, दूसरे कैथोलिक हैं, तीसरे ईसाई हैं, चौथे मुस्लिम और पांचवें बौद्ध हैं, ये पांच प्रकार हैं। ये विश्वासी लोगों के विभिन्न प्रकार हैं। तीसरे प्रकार के वे लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जो आपसे संबंधित हैं। ये ऐसे प्रकार के विश्वासी हैं जो आज परमेश्वर को मानते हैं। ये लोग दो प्रकार में विभाजित किये जाते हैं: परमेश्वर के चुने हुए लोग और सेवकाई करने वाले लोग। ठीक है! प्रमुख प्रकारों में स्पष्ट रुप से भिन्नताएं दर्शा दी गई हैं। तो अब तुम अपने मन में मनुष्यों के प्रकारों और स्तरों में स्पष्ट रुप से अंतर कर सकते हो। पहले अविश्वासी हैं। मैं कह चुका हूं कि अविश्वासी कौन हैं। बहुत से अविश्वासी केवल वृद्ध मनुष्य, जो आकाश में है, उसमें विश्वास करते हैं कि वायु, वर्षा और आकाशीय बिजली आकाश में इस वृद्ध मनुष्य द्वारा नियंत्रित की जाती हैं, जिस पर वे फसल बोने और काटने के लिये निर्भर करते हैं—फिर भी परमेश्वर पर विश्वास करने की चर्चा करने पर वे अनिच्छुक बन जाते हैं। क्या इसे परमेश्वर में विश्वास कहा जा सकता है? ऐसे लोग अविश्वासियों में सम्मिलित हैं। जिनका विश्वास परमेश्वर में नहीं बल्कि केवल आकाश के किसी वृद्ध मनुष्य में है, वे सब अविश्वासी हैं वे सब जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते, अविश्वासी हैं दूसरे प्रकार के वे हैं जिनका संबंध पांच बड़े धर्मो से है जो अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। तीसरे प्रकार के वे हैं जो व्यवहारिक परमेश्वर में विश्वास करते हैं जो अंतिम दिनों में देहधारी हुआ है—जो आज परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। और मैंने क्यों सारे मनुष्यों को इन प्रकारों में विभाजित किया है? (क्योंकि उनके गंतव्य और अन्त भिन्न हैं।) यह एक पहलू है। क्योंकि, जब ऐसी विभिन्न जातियां और इस प्रकार के लोग आत्मिक संसार में लौटते हैं, तो उनमें से प्रत्येक भिन्न-भिन्न स्थान पर जाएगा, उनपर जीवन-मृत्यु चक्र के भिन्न-भिन्न नियम लागू होंगे, और यही कारण है कि मैंने मनुष्यों को इन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया है।
अविश्वासियों का जीवन और मृत्यु चक्र (चुने हुए अंश)
आइये हम अविश्वासियों के जीवन और मृत्यु के चक्र से आरम्भ करते हैं। किसी मनुष्य की मृत्यु के पश्चात्, आत्मिक संसार का एक दूत उसे ले जाता है। और उनका कौन-सा भाग ले जाया जाता है? उनका शरीर नहीं, बल्कि उनकी आत्मा। जब उनकी आत्मा ले जायी जाती है, तब वे एक स्थान पर आते हैं जो आत्मिक संसार की एक शाखा है, एक ऐसा स्थान जो हाल ही में मरे लोगों की आत्मा को ग्रहण करता है। (टिप्पणी: किसी के भी मरने के बाद पहला स्थान जहाँ वे जाते हैं, आत्मा के लिए अजनबी होता है।) जब उन्हें इस स्थान पर ले जाया जाता है, तो एक अधिकारी पहला निरीक्षण करता है, उनका नाम, पता, आयु और उन्होंने अपने जीवन में क्या किया, इन सबकी पुष्टि करता है। जो कुछ उन्होंने अपने जीवन में किया उसे एक पुस्तक में लिखा जाता है और विशुद्धता के लिए उसकी पुष्टि की जाती है। इन सब निरीक्षण के पश्चात् उस मनुष्य का व्यवहार और कार्य जो उन्होंने जीवन भर किया उसके ज़रिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि क्या वे दंडित किये जायेंगे या फिर से मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे। यह पहला चरण है। क्या यह पहला चरण भयावह है? यह अत्यधिक भयावह नहीं है, क्योंकि इसमें केवल इतना हुआ है कि मनुष्य एक अन्धकारमय अन्जान स्थान में पहुँचा है जो अत्यधिक भयावह नहीं है।
दूसरे चरण में, यदि इस मनुष्य ने जीवनभर बुरे कार्य किये हैं, यदि उसने अनेक दुष्टता के कार्य किये हैं, तब उसे दण्ड देने के स्थान पर दण्ड देने ले जाया जाएगा। यह वो स्थान होगा जहां उन्हें ले जाया जाएगा, यह लोगों को दण्ड देने का नियत स्थान है। किस प्रकार के दण्ड उन्हें दिये जाने हैं यह उनके द्वारा किये गये पापों पर निर्भर करता है। और इस बात पर कि मृत्यु पूर्व उन्होंने कितने दुष्टतापूर्ण कार्य किये—द्वितीय चरण में होने वाली यह पहली स्थिति है। उनकी मृत्यु पूर्व उनके द्वारा किये गये कार्य और दुष्टताएं जो उन्होंने कीं, दण्डस्वरुप जब वे पुनः जन्म लेते हैं—जब वे एक बार फिर से भौतिक संसार में जन्म लेते हैं—कुछ लोग मनुष्य बने रहेंगे, और कुछ पशु बन जायेंगे। कहने का अर्थ है कि आत्मिक संसार में किसी व्यक्ति के लौटने के पश्चात उन्हें उनके दुष्टता के कार्यों के कारण दण्डित किया जाता है, इसके अतिरिक्त क्योंकि उन्होंने दुष्टता के कार्य किये, अपने अगले जन्म में वे मनुष्य नहीं बनते, बल्कि पशु बनते हैं। अब पशुओं की योनि में वे क्या बन सकते थे, उसमें गाय, घोड़े, सूअर, और कुत्ते सम्मिलित हैं। छ लोग आकाश के पक्षी बन सकते हैं या एक बत्तख या कलहंस...। जब वे पशुओं के रुप में पुनर्जन्म ले लेते हैं तो मरने के बाद पहले की तरह, आत्मिक संसार में लौट जाते हैं और मरने से पहले उनके व्यवहार के अनुसार, आत्मिक संसार तय करेगा कि वे मनुष्य के रुप में पुनर्जन्म लेंगे अथवा नहीं। अधिकांश लोग बहुत अधिक दुष्ट कार्य करते हैं, उनके पाप अत्यन्त गंभीर होते हैं, और इसलिये जब उनका जन्म होता है तो वे सात से बारह बार तक पशु बनते हैं। सात से बारह बार, क्या यह एक भयावह स्थिति नहीं है? तुम्हें क्या चीज़ डरा रही है? एक मनुष्य का पशु बनना, यह भयावह है और एक मनुष्य के लिये, एक पशु बनने में सर्वाधिक दुःखदायी बात क्या है? किसी भाषा का ना होना, केवल कुछ साधारण विचार होना, केवल वही कार्य कर पाना जो पशु करते हैं और केवल वहीं खा पाना जो पशु खाते हैं, बौद्धिक क्षमता और शारीरिक क्रियाकलाप एक साधारण पशु के समान होना। सीधे चलने योग्य न होना, मनुष्यों के साथ वार्तालाप न कर पाना, और मनुष्यों के किसी भी व्यवहार और गतिविधियों का पशुओं से कोई सम्बन्ध ना होना। कहने का आशय है कि सब बातों में, पशु होना तुम्हें जीवधारियों में निम्नतम कोटि का बना देता है, और यह मनुष्य होने से कहीं अधिक दुःखदायी होता है। जिन्होंने बहुत अधिक दुष्टता के कार्य किये हैं और बड़े बड़े पापों को अन्जाम दिया है, उनके लिये यह आत्मिक संसार में दण्ड पाने का एक पक्ष है। जब दण्ड की प्रचण्डता की बात होती है तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस प्रकार के पशु बनते हैं। उदाहरण के लिये, क्या एक कुत्ता बनने की अपेक्षा एक सूअर बनना अधिक अच्छा है? क्या एक सूअर एक कुत्ते से अधिक अच्छा जीवन जीता है या बुरा? निश्चय ही अधिक बुरा। यदि लोग गाय या घोड़ा बनते हैं, तो क्या वे एक सूअर की अपेक्षा अधिक अच्छा जीवन जियेंगे या बुरा? (बेहतर।) ऐसा प्रतीत होता है मानो यदि चुनने का अवसर दिया जाये, तो तुम्हारी रुचि होगी। यदि कोई बिल्ली बनता है तो क्या यह अधिक आरामदायक होगा? गाय या घोड़ा बनने की अपेक्षा यह कहीं आरामदायक होगा। यदि तुम्हें पशुओं में से चुनाव करने दिया जाये, तो तुम बिल्ली बनना पसंद करोगे, और वह अधिक आरामदायक है क्योंकि तुम अपना अधिकांश समय निद्रा में गुज़ार सकोगे। गाय या घोड़ा बनना अधिक मेहनत वाला काम है, और इसलिये यदि लोग गाय या घोड़े के रुप में जन्म लेते हैं, तो उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ता है—जो एक कष्टप्रद दण्ड प्रतीत होता है। गाय या घोड़ा बनने की अपेक्षा कुत्ता बनना कुछ अधिक अच्छा है, क्योंकि एक कुत्ते के अपने स्वामी के साथ निकट के संबंध होते हैं। बड़ी बात यह है कि आजकल बहुत से लोग कुत्ता पालते हैं और तीन से पांच वर्ष पश्चात वह उनकी कही हुई कई बातें समझने लगता है। क्योंकि एक कुत्ता अपने मालिक के बहुत से शब्द समझ सकता है, उसे अपने मालिक की अच्छी समझ होती है, और वह अपने आपको अपने स्वामी के मिज़ाज और आवश्यकताओं के अनुरुप ढाल सकता है। इसलिये स्वामी कुत्ते के साथ ज्यादा अच्छा व्यवहार करता है, और कुत्ता ज्यादा अच्छा खाता-पीता है, और जब वह तकलीफ में होता है तो उसकी अधिक अच्छी देखभाल की जाती है। तो क्या कुत्ता एक अधिक खुशी का जीवन व्यतीत नहीं करता? इसलिये कुत्ता होना एक गाय या घोड़ा होने से ज्यादा अच्छा है। अत: मनुष्य को मिले दण्ड की प्रचण्डता निर्धारित करती है कि वे कितनी बार पशु के रूप में जन्म लेंगे और किस प्रकार के पशु के रूप में वे जन्म लेंगे। तुम लोग समझ गए ना?
चूंकि जब वे जीवित थे, उन्होनें बहुत अधिक पाप किये, कुछ लोगों को सात से बारह बार पशु के रूप में जन्म लेने का दण्ड दिया जाएगा। अनेक बार दण्डित होने के पश्चात, जब वे आत्मिक संसार मे लौटते हैं तो उन्हें अन्यत्र ले जाया जाता है। इस स्थान में विभिन्न आत्माएं पहले ही दण्ड पा चुकी होती हैं, और उस श्रेणी की होती हैं जो मनुष्य के रूप में जन्म लेने के लिये तैयार हो रही हैं। यह स्थान प्रत्येक आत्मा को श्रेणीबद्ध करता है कि उसे किस प्रकार के परिवार में उत्पन्न होना है, जन्म लेने के बाद उनकी क्या भूमिका होगी, आदि। उदाहरण के लिए, कुछ लोग जब इस संसार में आते हैं तो गायक बनेंगे, और इसलिये उन्हें गायकों के मध्य रखा जाता है; कुछ लोग इस संसार में आते हैं तो व्यापारी बनेंगे और इसलिये उन्हें व्यापारियों के बीच में रखा जाता है; और यदि किसी को मनुष्य रूप में आने के बाद विज्ञान अनुसंधानकर्ता बनना है तो उन्हें अनुसंधानकर्ताओं के मध्य रखा जाता है। उनको वर्गीकृत किये जाने के पश्चात, प्रत्येक को एक भिन्न समय और नियुक्त तिथि पर भेज दिया जाता है। जैसे कि आजकल लोग ई-मेल भेजते हैं। इसमें जीवन और मृत्यु का एक चक्र पूरा होगा, और यह अत्यन्त नाटकीय होता है। उस दिन से जब कोई व्यक्ति आत्मिक संसार में पहुँचता है और जब तक उसका दण्ड समाप्त होता है, उन्होंने अनेक बार पशु के रुप में जन्म लिया होगा, तथा वे फिर मनुष्य के रुप में जन्म लेने के लिये तैयार होते हैं; यह एक सम्पूर्ण प्रक्रिया है।
और क्या वे जिन्होंने दण्ड भोग लिया है और जिन्हें अब पशु के रुप में जन्म नहीं लेना है, शीघ्र ही भौतिक संसार में भेजे जायेंगे कि मनुष्य बनें? या उन्हें मनुष्यों के मध्य आने के लिये कितना समय और लगेगा? वह बारम्बारता क्या है जिसके अनुसार ये लोग मनुष्य बनते हैं? इसके कुछ लौकिक प्रतिबंध हैं। आत्मिक जगत में जो कुछ भी होता है उसके कुछ उचित लौकिक प्रतिबंध और नियम हैं जिन्हें यदि मैं संख्याओं के साथ स्पष्ट करुं, तो तुम समझ सकोगे। उनके लिये जिन्हें अल्पावधि में जन्म दिया गया है, जब वे मरते हैं तो मनुष्य के रुप में उनका पुनर्जन्म तैयार किया जाएगा। लघुत्तम समयावधि तीन दिनों की होती है। कुछ लोगों के लिये यह तीन माह, कुछ लोगों के लिये यह तीन वर्ष, कुछ लोगों के लिये यह तीस वर्ष, कुछ लोगों के लिये यह तीन सौ वर्ष, कुछ के लिये तो यह तीन हजार वर्षो तक भी होती है आदि। तो इन लौकिक नियमों के विषय में क्या कहा जा सकता है, और उनकी क्या विशिष्टताएं हैं? इस भौतिक संसार में जो मनुष्यों का संसार है, आत्मा का आना आवश्यकता पर आधारित होता है: यह उस भूमिका के अनुसार होता है जिसे इस आत्मा को इस संसार में निभाना है। जब लोग साधारण व्यक्ति के रुप में जन्म लेते हैं तो उनमें से अधिकांश अतिशीघ्र जन्म लेते हैं, कि मनुष्य के संसार को ऐसे साधारण लोगों की महती आवश्यकता होती है और इसलिए तीन दिन के पश्चात वे एक ऐसे परिवार में भेज दिए जाते हैं जो उनके मरने से पहले के परिवार से सर्वथा भिन्न होता है। परन्तु कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें इस संसार में विशेष भूमिका निभानी होती है। "विशेष" का अर्थ है कि उनकी इस मनुष्यों के संसार में बड़ी मांग नहीं है; ऐसी भूमिका के लिये अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं होती और इसलिए उनके पुनर्जन्म में तीन सौ वर्ष का अन्तराल हो सकता है। कहने का तात्पर्य है कि यह आत्मा तीन सौ वर्ष या तीन हजार वर्ष में एक बार आयेगी। ऐसा क्यों है? क्योंकि तीन सौ वर्ष या तीन हज़ार वर्ष तक संसार में ऐसी भूमिका की आवश्यकता नहीं होती है और इसलिये उन्हें आत्मिक संसार के किसी स्थान में रखा जाता है। उदाहरण के लिये कनफ्यूशियस को लें, चीन की संस्कृति पर उसका गहरा प्रभाव था। संभवतः तुम सब उसे जानते हो, उस समय उसके आगमन ने संस्कृति, ज्ञान, परम्परा और लोगों की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। परन्तु ऐसे मनुष्य की हर एक युग में आवश्यकता नहीं होती है, इसलिये उसे पुन: जन्म लेने के लिये आत्मिक संसार में ही तीन सौ या तीन हजार वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। क्योंकि संसार को ऐसे किसी व्यक्ति की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए उसे खाली रहकर प्रतीक्षा करनी पड़ी, क्योंकि उसके जैसे व्यक्ति के लिये बहुत कम भूमिका थी, उसके करने के लिये कुछ काम न था, इसलिये उसे बिना किसी कार्य के अधिकतर समय आत्मिक संसार में ही कहीं रखा गया ताकि मनुष्य के संसार में जब उसकी आवश्यकता पड़े तो उसे भेज दिया जाए। अधिकतर लोगों के बार-बार जन्म लेने के आत्मिक जगत के लौकिक नियम इस प्रकार के हैं। चाहे कोई साधारण है या विशेष, आत्मिक संसार में लोगों के जन्मे लेने की प्रक्रिया के लिये उचित नियम और सही रीति है और ये नियम और अभ्यास परमेश्वर की ओर से आते हैं, उन्हें परमेश्वर द्वारा भेजा जाता है उनका निर्णय या नियन्त्रण आत्मिक संसार के किसी दूत या जीव द्वारा नहीं होता।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X