किसी आत्मा के लिये जन्म लेने के बाद जो भूमिका वे निभाते हैं—इस जीवन में उनकी भूमिका क्या है-किस परिवार में वे जन्म लेते हैं और उनका जीवन किस प्रकार का है, इन सबका उनके पिछले जीवन से गहरा संबंध होता है। मनुष्य के संसार में हर प्रकार के लोग आते हैं, और उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएं भिन्न-भिन्न होती हैं, उनके द्वारा किये गए कार्य भिन्न होते हैं। ये कौन से कार्य हैं? कुछ लोग अपना कर्ज़ चुकाने आते हैं: अगर उन्होंने पिछली ज़िंदगी में किसी से बहुत पैसा उधार लिया है तो वे उसे चुकाने आते हैं। कुछ लोग अपना ऋण उगाहने आते हैं। वे अपने विगत जीवन में अनेक घोटालों के शिकार हुए हैं, उन्होंने अपार धन गंवाया है और इसलिए जब वे आत्मिक संसार में आते हैं तो उसके बाद आत्मिक संसार उन्हें न्याय देगा और उन्हें इस जीवन में अपना कर्जा उगाहने का अवसर देगा। कुछ लोग एहसान चुकाने आये हैं: अपने विगत जीवन के दौरान-अपनी मृत्यु से पूर्व-कोई उन पर दयावान था और इस जीवन में उन्हें एक बड़ा अवसर प्रदान किया गया है कि वे जन्म लें और उस एहसान का बदला चुका सकें। जबकि अन्य अपने जीवन का मुआवज़ा वसूल करने के लिए जन्म लेते हैं और वे किसके जीवन का मुआवज़ा वसूलते हैं? विगत जीवन में जिस व्यक्ति ने उसके प्राण लिये थे सारांश में, प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान जीवन अपने विगत जीवन के साथ प्रगाढ़ रुप से जुड़ा है, वह इस प्रकार जुड़ा है कि पृथक नहीं किया जा सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान जीवन उसके पूर्व जीवन से गहन रुप में प्रभावित रहता है। उदाहरण के लिये, सांग ने अपनी मृत्यु से पहले ली के साथ एक बड़ी राशि का घोटाला किया। तो क्या सांग ली का ऋणी बन गया? यदि वह ऋणी है तो क्या यह स्वाभाविक है कि ली अपना ऋण सांग से वसूल करे? और इसलिये, उनकी मृत्यु उपरान्त, उनके मध्य एक ऋण है जिसको चुकता किया जाना है और जब वे पुनर्जन्म लेते हैं और सांग मनुष्य बनता है, कहने का अर्थ यह है कि ली सांग के पुत्र के रुप में पुनः उत्पन्न होकर अपना ऋण वसूल करता है, तो ली अपना ऋण कैसे उगाहता है? जिसमें सांग उसका पिता है। इस जीवन में यही होगा, इस वर्तमान जीवन में, ली का पिता सांग खूब धन अर्जित करता है, और वह धन इसके पुत्र ली द्वारा बर्बाद किया जाता है। चाहे सांग कितना भी धन कमाये, उसका पुत्र ली, उसकी "सहायता" उसे व्यय करने में करता है। सांग चाहे कितना भी धन अर्जित करे, वह कभी काफी नहीं होता, इसी बीच उसका पुत्र ली, किसी न किसी कारण से पिता के धन को विभिन्न तरीकों और साधनों से उड़ाता है। सांग असमंजस्य में हैः "यह क्या हो रहा है? क्यों मेरा पुत्र हमेशा से आवारा रहा है? ऐसा क्यों है कि दूसरे लोगों के पुत्र इतने अच्छे हैं? मेरा पुत्र महत्वकांक्षी क्यों नहीं है। वह धन अर्जित करने में इतना बेकार और अयोग्य क्यों है, मुझे क्यों सदा उसकी सहायता करनी पड़ती है? चूंकि मुझे उसे संभालना हैं मैं संभालूंगा, परन्तु ऐसा क्यों है कि चाहे मैं कितना भी धन उसे दूं, वह सदा और अधिक चाहता है? वह कोई ईमानदारी का काम क्यों नहीं करता? वह क्यों एक आवारागर्द है, खाना-पीना, वेश्यावृत्ति और जुएबाजी करना—इन सभी में लगा रहता है? आखिर ये हो क्या हो रहा है?" फिर सांग कुछ समय तक विचार करता है: "कहीं ऐसा तो नहीं कि विगत जीवन में मैं उसका ऋणी रहा हूं? अरे हां, हो सकता था कि विगत जीवन में मैं उसका ऋणी रहा हूँ। तब तो ठीक है, मैं वह कर्ज उतार दूंगा। जब तक मैं पूरा चुकता न कर दूं, यह किस्सा समाप्त होने वाला नहीं है!" वह दिन आ सकता है जब ली ने अपना ऋण वसूल कर लिया हो और जब वह चालीस या पचास वर्ष का हो, तो एक दिन ऐसा आयेगा जब उसे अचानक अक्ल आ जाएगी: "अपने जीवन के पूर्वाद्ध में मैंने एक भी भला काम नहीं किया। मैंने अपने पिता के कमाये हुए धन को लुटाया, मुझे एक अच्छा इन्सान होना चाहिये! मैं स्वयं को मज़बूत बनाऊंगा। मैं एक ऐसा व्यक्ति बनूंगा जो ईमानदार हो और अच्छा जीवन जीता हो। और मैं अपने पिता को कभी दुःख नहीं पहुंचाऊंगा!" वो ऐसा क्यों सोचने लगा? वो अचानक एक बेहतर इंसान कैसे बन गया? क्या इसकी कोई वजह है? क्या वजह है? वास्तव में ऐसा इसलिये है क्योंकि उसने अपना ऋण वसूल कर लिया है, कर्ज चुकता हो चुका है। इसमें कारण और प्रभाव है। कहानी बहुत पहले आरम्भ हुई थी, उन दोनों के पैदा होने से भी पहले, और उनकी ये कहानी वर्तमान तक चली आई। और दोनों में से कोई किसी को दोष नहीं दे सकता। सांग ने अपने पुत्र को चाहे जो सिखाया हो, उसके पुत्र ने कभी नहीं सुना, और एक दिन भी ईमानदारी से कार्य नहीं किया—परन्तु जिस दिन कर्ज चुकता हो गया, उसको सिखाने की कोई आवश्यकता नहीं रही; उसका पुत्र स्वाभाविक रुप से समझ गया। यह एक साधारण-सा उदाहरण है और निःसन्देह ऐसे अनेक उदाहरण हैं। और यह लोगों को क्या संदेश देता है? (कि उन्हें अच्छा बनना चाहिये।) उन्हें कोई बुरा काम नहीं करना चाहिये और उनके बुरे कार्य का प्रतिफल मिलेगा। तुम देख सकते हो कि अधिकांश अविश्वासी बहुत दुष्टता करते हैं और उनकी दुष्टता का उन्हें प्रतिफल भी मिला है, ठीक है? परन्तु क्या यह प्रतिफल एकतरफा है? जिन बातों का प्रतिफल मिलता है उनकी पृष्ठभूमि होती है और एक कारण होता है। क्या तुम सोचते हो कि तुम्हारे किसी के साथ बेईमानी करने के बाद कुछ नहीं होगा? क्या तुम सोचते हो कि उनके साथ धन संबंधी धोखाधड़ी करने के पश्चात् तुम्हें कोई परिणाम नहीं भुगतना पड़ेगा जबकि तुमने उसका धन हड़प लिया है? यह तो असंभव होगा: जैसा करोगे वैसा भरोगे-यह पूर्णतया सत्य है! कहने का अर्थ है कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे कौन हैं, या वे विश्वास करते हैं अथवा नहीं कि परमेश्वर है, प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यवहार की जवाबदेही लेनी होगी और अपने कार्यो के परिणामों को भुगतने के लिये तैयार रहना होगा। इस साधारण उदाहरण के संबंध में-सांग को दण्डित किया जाना और ली का ऋण चुकाया जाना—क्या यह उचित है? बिल्कुल उचित है। जब लोग इस प्रकार के कार्य करते हैं तो उसी प्रकार का परिणाम मिलता है। और क्या यह आत्मिक संसार के प्रशासन से अलग कर दिया गया है? यह आत्मिक संसार के प्रशासन से पृथक नहीं किया जा सकता; अविश्वासी होने के बावजूद, जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, उनके अस्तित्व को ऐसी स्वर्गीय आज्ञाओं और आदेशों से होकर गुजरना पड़ता है जिनसे कोई बच नहीं सकता; चाहे मानव संसार में उसका पद कितना भी ऊंचा क्यों न हो, इस सच्चाई से कोई बच नहीं सकता।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X