कहानी 1: एक बीज, धरती, एक पेड़, धूप, चिड़ियाँ और मनुष्य
आज मैं तुम लोगों के साथ एक नए विषय पर संगति करूँगा। वह विषय क्या है? उसका शीर्षक है : “परमेश्वर सभी चीजों के लिए जीवन का स्रोत है।” क्या यह विषय कुछ ज्यादा बड़ा लगता है? क्या यह तुम लोगों की पहुँच से थोड़ा बाहर है? “परमेश्वर सभी चीजों के लिए जीवन का स्रोत है”—यह विषय लोगों को कुछ हद तक असंबद्ध लग सकता है, परंतु परमेश्वर का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को इसे अवश्य समझना चाहिए, क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति के परमेश्वर के ज्ञान और उसके परमेश्वर को संतुष्ट करने और उसका भय मानने में सक्षम होने से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि मैं इस विषय पर संगति करने जा रहा हूँ। बहुत संभव है कि लोगों को इस विषय की पहले से साधारण समझ हो, या शायद वे किसी स्तर पर इसके बारे में जानते हों। यह ज्ञान या जानकारी कुछ लोगों के मस्तिष्क में समझ की साधारण या उथली मात्रा के साथ हो सकती है। दूसरों के दिलों में कुछ विशेष अनुभव हुए हो सकते हैं, जो उन्हें इस विषय के एक गहरे, व्यक्तिगत संपर्क में ले गए होंगे। लेकिन इस तरह का पूर्व ज्ञान, चाहे वह गहरा हो या सतही, एकतरफा है और पर्याप्त रूप से विशिष्ट नहीं है। तो, यही कारण है कि मैंने इस विषय को संगति के लिए चुना है : तुम लोगों को एक गहरी और ज्यादा विशिष्ट समझ हासिल करने में मदद करने के लिए। इस विषय पर तुम लोगों के साथ संगति करने के लिए मैं एक विशेष पद्धति का इस्तेमाल करूँगा, ऐसी पद्धति जिसे हमने पहले इस्तेमाल नहीं किया है और जो तुम लोगों को थोड़ी असामान्य या असहज लग सकती है। इससे मेरा क्या तात्पर्य है, इसका तुम्हें बाद में पता चल जाएगा। क्या तुम्हें कहानियाँ सुनना पसंद है? (हाँ, पसंद है।) तो कहानियाँ सुनाने का मेरा चुनाव अच्छा है, क्योंकि तुम सबको वे बहुत पसंद हैं। तो आओ, अब हम शुरू करते हैं! तुम्हें नोट्स लेने की जरूरत नहीं है। मैं कहता हूँ कि तुम लोग शांत हो जाओ, और बेचैन न होओ। यदि तुम्हें लगता हो कि अपने परिवेश या आसपास के लोगों के कारण तुम्हारा ध्यान भटक जाएगा, तो तुम अपनी आँखें बंद कर सकते हो। मेरे पास तुम लोगों को सुनाने के लिए एक अद्भुत कहानी है। यह कहानी एक बीज, धरती, एक पेड़, धूप, चिड़ियों और मनुष्य के बारे में है। इसके मुख्य पात्र कौन हैं? (एक बीज, धरती, एक पेड़, धूप, चिड़ियाँ और मनुष्य।) क्या इनमें परमेश्वर है? (नहीं।) फिर भी, मुझे यकीन है कि इस कहानी को सुनने के बाद तुम लोग तरोताज़ा और संतुष्ट महसूस करोगे। तो ठीक है, शांति से सुनो।
छोटा-सा बीज धरती पर गिरा। भारी बारिश हुई और उस बीज से एक कोमल अंकुर फूटा, जबकि उसकी जड़ें धीरे-धीरे नीचे मिट्टी में विलीन हो गईं। समय के साथ वह प्रचंड हवाओं और कठोर बारिश का सामना करते हुए चंद्रमा के बढ़ने और घटने के साथ ऋतुओं के परिवर्तन को देखते हुए लंबा हो गया। गर्मियों में धरती पानी का उपहार लेकर आई, ताकि अंकुर मौसम की चिलचिलाती गर्मी सहन कर सके। और धरती के कारण अंकुर गर्मी से विह्वल नहीं हुआ, और इस प्रकार गर्मियों की सबसे खराब तपन बीत गई। जब जाड़ा आया, तो धरती ने उस अंकुर को अपने गर्म आगोश में लपेट लिया और धरती और अंकुर ने एक-दूसरे को कसकर जकड़े रखा। धरती ने अंकुर को गर्माहट दी, और इस प्रकार वह मौसम की सबसे कड़कड़ाती ठंड से जीवित बच गया, और उसे शीतकालीन आँधियों और बर्फीले तूफानों से कोई नुकसान नहीं हुआ। धरती का आश्रय पाकर अंकुर बहादुरी और ख़ुशी से बढ़ा। धरती का निःस्वार्थ पोषण पाकर वह स्वस्थ और सशक्त बना। बारिश में गाते हुए और हवा में नाचते-झूमते हुए वह आनंद से बढ़ा। अंकुर एवं धरती एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं ...
कई साल बीत गए, और वह अंकुर एक विशाल पेड़ में बदल गया। अनगिनत पत्तों वाली मोटी शाखाओं के साथ वह धरती पर मज़बूती से खड़ा था। उसकी जड़ें पहले की तरह धरती में धँसी थीं और अब मिट्टी में और गहरे चली गई थीं। धरती, जिसने कभी नन्हे अंकुर की सुरक्षा की थी, अब एक शक्तिशाली पेड़ की आधारशिला थी।
पेड़ पर सूरज की रोशनी की एक किरण चमक उठी। पेड़ ने अपने शरीर को लहराया, बाँहें बाहर की ओर तानकर फैलाईं और सूरज की रोशनी से भरी हवा में गहरी साँस ली। नीचे ज़मीन ने भी पेड़ के साथ साँस ली, और धरती ने महसूस किया जैसे वह फिर से नई हो गई हो। तभी शाखाओं के बीच से एक ताज़ी हवा का झोंका आया, और पेड़ ऊर्जा से लहराते हुए खुशी से सिहर उठा। पेड़ और सूरज की रोशनी एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं ...
लोग पेड़ की ठंडी छांव में बैठकर स्फूर्तिदायक एवं सुगंधित हवा का आनंद लेने लगे। उस हवा ने उनके दिलों एवं फेफड़ों को साफ़ किया, और इससे उनके भीतर का खून साफ़ हो गया, और उनके शरीर अब सुस्त और बेबस नहीं रहे। लोग और पेड़ एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं ...
चहकती नन्ही चिड़ियों का एक समूह पेड़ की शाखाओं पर उतरा। शायद वे किसी शत्रु से बचने के लिए या प्रजनन अथवा अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए वहाँ उतरे थे, या शायद वे सिर्फ थोड़ा आराम कर रहे थे। चिड़ियाँ और पेड़ एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं ...
पेड़ की मुड़ी और उलझी हुई जड़ें धरती में गहरी धँस गईं। अपने तने से उसने हवा और वर्षा से धरती को आश्रय दिया, और अपने पैरों के नीचे धरती की रक्षा करने के लिए उसने अपने विशाल अंग फैला लिए। पेड़ ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि धरती उसकी माँ है। वे एक-दूसरे को मजबूत करते हैं और एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं, और वे कभी अलग नहीं होंगे ...
और इस तरह, यह कहानी समाप्त होती है। मैंने जो कहानी सुनाई, वह एक बीज, धरती, एक पेड़, धूप, चिड़ियों और मनुष्य के बारे में थी। इसमें केवल कुछ ही दृश्य थे। इसने तुम लोगों के पास कौन-सी भावनाएँ छोड़ीं? जब मैं इस तरह से बोलता हूँ, तो क्या तुम लोग समझते हो कि मैं क्या कह रहा हूँ? (हम समझते हैं।) कृपया अपनी भावनाओं के बारे में बताओ। इस कहानी को सुनने के बाद तुम लोगों ने क्या महसूस किया? मैं पहले तुम लोगों को बताऊँगा कि कहानी के सभी पात्रों को देखा और छुआ जा सकता है; ये वास्तविक चीज़ें हैं, कोई रूपक नहीं हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग मेरी बात पर विचार करो। मेरी कहानी में कुछ भी गूढ़ नहीं था, और इसके मुख्य बिंदु कहानी के कुछ वाक्यों में व्यक्त किए जा सकते हैं। (हमने जो कहानी सुनी, वह एक सुंदर तसवीर चित्रित करती है। एक बीज में जीवन आता है और जैसे-जैसे वह बढ़ता है, साल की चार ऋतुओं का अनुभव करता है : बसंत, ग्रीष्म, पतझड़ और शीत। धरती अंकुरित बीज का एक माँ की तरह पालन-पोषण करती है। शीत ऋतु में वह अंकुर को गर्माहट देती है, ताकि वह ठंड से बच सके। जब अंकुर बड़ा होकर पेड़ बन जाता है, तो धूप की एक किरण उसकी शाखाओं को स्पर्श करती है, जिससे उसे बहुत आनंद मिलता है। मैं देखता हूँ कि परमेश्वर की सृष्टि की सभी चीज़ों के मध्य धरती भी जीवित है और वह तथा पेड़ एक-दूसरे पर निर्भर हैं। मैं उस गर्माहट को भी देखता हूँ, जो सूरज की रोशनी पेड़ को प्रदान करती है, और मैं एक पूर्ण सामंजस्य की तसवीर में चिड़िया जैसे सामान्य जीवों को भी पेड़ और मनुष्यों के साथ आते देखता हूँ। कहानी सुनकर मेरे दिल में ये भावनाएँ आईं; मुझे एहसास होता है कि ये सभी चीज़ें वास्तव में जीवित हैं।) बढ़िया कहा! क्या किसी के पास इसमें जोड़ने को कुछ है? (एक बीज के अंकुरित होने और बड़ा होकर विशाल पेड़ बनने की इस कहानी में मुझे परमेश्वर की सृष्टि का आश्चर्य दिखाई देता है। मैं देखता हूँ कि परमेश्वर ने सभी चीज़ों को एक-दूसरे के कारण सुदृढ़ और परस्पर निर्भर बनाया है, और सभी चीज़ें एक-दूसरे से जुड़ी हैं तथा एक-दूसरे की सेवा करती हैं। मैं परमेश्वर की बुद्धिमत्ता, उसका चमत्कार देखता हूँ और यह भी देखता हूँ कि परमेश्वर सभी चीज़ों के जीवन का स्रोत है।)
मैंने अभी जिन चीज़ों की बात की, उन्हें तुम लोग पहले देख चुके हो। जैसे बीज—वे उगकर पेड़ बन जाते हैं, और भले ही तुम इसकी प्रक्रिया का हर विवरण देखने में सक्षम न हो पाओ, फिर भी तुम जानते हो कि ऐसा होता है, है ना? तुम धरती एवं सूरज की रोशनी के बारे में भी जानते हो? पेड़ पर बैठे पक्षियों की तसवीर हर किसी ने देखी है, है ना? और पेड़ की छाया में खुद को ठंडक पहुँचाते लोगों की तसवीर—इसे भी तुम सबने देखा है, है ना? (हाँ, देखा है।) तो, ये सभी चीज़ें एक ही तसवीर में होने पर वह तसवीर किस चीज़ का एहसास देती है? (सामंजस्य का।) क्या उस छवि की प्रत्येक चीज़ परमेश्वर से आती है? (हाँ।) चूँकि वे परमेश्वर से आती हैं, इसलिए परमेश्वर इन सब विभिन्न चीज़ों के सांसारिक अस्तित्व का मूल्य एवं महत्व जानता है। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों की सृष्टि की थी, जब उसने हर चीज़ की योजना बनाई और उसकी सृष्टि की, तो उसने इरादे के साथ ऐसा किया; और जब उसने उन चीज़ों को बनाया, तो हर चीज़ में प्राण डाले। जो परिवेश उसने मानव-जाति के अस्तित्व के लिए बनाया, जिसका वर्णन अभी हमारी कहानी में हुआ, वह ऐसा है, जिसमें बीज और धरती एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं, जिसमें धरती बीजों का पोषण कर सकती है और बीज धरती से बँधे हैं। यह संबंध परमेश्वर ने एकदम शुरू में ही निर्धारित कर दिया था। पेड़, सूरज की रोशनी, चिड़ियों और मनुष्यों का दृश्य परमेश्वर द्वारा मानव-जाति के लिए बनाए गए जीवंत वातावरण का चित्रण है। पहली बात, पेड़ धरती को नहीं छोड़ सकते, न वे सूरज की रोशनी के बिना रह सकते हैं। तो पेड़ को बनाने में परमेश्वर का क्या मकसद था? क्या हम कह सकते हैं कि यह सिर्फ़ धरती के लिए है? क्या हम कह सकते हैं कि यह सिर्फ़ चिड़ियों के लिए है? क्या हम कह सकते हैं कि यह सिर्फ़ लोगों के लिए है? (नहीं।) उनके बीच क्या संबंध है? उनके बीच पारस्परिक सुदृढ़ीकरण, अन्योन्याश्रय और अविभाज्यता का संबंध है। दूसरे वचनों में, धरती, पेड़, सूरज की रोशनी, चिड़ियाँ और मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं और एक-दूसरे का पोषण करते हैं। पेड़ धरती की रक्षा करता है और धरती पेड़ का पोषण करती है; सूरज की रोशनी पेड़ के लिए आपूर्ति करती है, जबकि पेड़ सूरज की रोशनी से ताजी हवा प्राप्त करता है और धरती पर चिलचिलाती धूप की तपन कम करता है। अंत में इससे कौन लाभान्वित होता है? मानव-जाति, है कि नहीं? परमेश्वर द्वारा निर्मित जिस परिवेश में मानव-जाति रहती है, यह उसके अंतर्निहित सिद्धांतों में से एक है; यह दर्शाता है कि परमेश्वर का शुरू से क्या इरादा रहा था। हालाँकि यह एक साधारण-सी तसवीर है, फिर भी हम इसमें परमेश्वर की बुद्धि और उसके इरादे को देख सकते हैं। मनुष्य धरती या पेड़ों के बिना नहीं रह सकता, चिड़ियों एवं सूर्य के प्रकाश के बिना तो बिलकुल भी नहीं रह सकता। ठीक है ना? हालाँकि यह सिर्फ एक कहानी है, फिर भी यह परमेश्वर द्वारा स्वर्ग, धरती और सभी चीज़ों की रचना और परिवेश के उसके उपहार, जिसमें मनुष्य रह सकता है, के सूक्ष्म दर्शन का चित्रण करती है।
परमेश्वर ने मानव-जाति के लिए स्वर्ग एवं धरती और सभी चीज़ों की सृष्टि की, और साथ ही रहने के लिए परिवेश का भी निर्माण किया। पहली बात, हमारी कहानी का मुख्य बिंदु है सभी चीज़ों का पारस्परिक सुदृढ़ीकरण, अन्योन्याश्र और सह-अस्तित्व। इस सिद्धांत के अंतर्गत मानव-जाति के अस्तित्व का परिवेश सुरक्षित किया गया है; वह अस्तित्व में रह सकता है और निरंतर बना रह सकता है। इसके कारण मानव-जाति फल-फूल सकती है और प्रजनन कर सकती है। हमने जो तसवीर देखी थी, उसमें एक पेड़, धरती, सूरज की रोशनी, चिड़ियाँ और लोग एक-साथ थे। क्या उस तसवीर में परमेश्वर था? किसी ने उसे नहीं देखा। पर उसने दृश्य में चीज़ों के बीच पारस्परिक सुदृढ़ीकरण और अन्योन्याश्रय का नियम अवश्य देखा; इस नियम में व्यक्ति परमेश्वर के अस्तित्व और संप्रभुता को देख सकता है। परमेश्वर सभी चीज़ों का जीवन और अस्तित्व बनाए रखने के लिए ऐसे सिद्धांत और ऐसे नियम का उपयोग करता है। इस तरह से वह सभी चीज़ों और मानव-जाति को पोषण प्रदान करता है। क्या यह कहानी हमारे मुख्य विषय से जुड़ी है? ऊपरी तौर पर ऐसा नहीं लगता, पर वास्तव में, वह नियम, जिसके द्वारा परमेश्वर ने सभी चीजों को बनाया, और उन पर उसकी प्रभुता उसके सभी चीज़ों के लिए जीवन का स्रोत होने से घनिष्ठता से जुड़े हैं। ये तथ्य अविभाज्य हैं। अब तुम लोग कुछ सीखने लगे हो!
परमेश्वर उन नियमों का स्वामी है, जो सभी चीज़ों के संचालन को नियंत्रित करते हैं; वह उन नियमों का स्वामी है, जो सभी प्राणियों के अस्तित्व को नियंत्रित करते हैं; वह सभी चीज़ों को नियंत्रित करता है और उन्हें इस तरह रखता है कि वे एक-दूसरे को मजबूत भी करें और परस्पर निर्भर भी बनाएँ, ताकि वे नष्ट या विलुप्त न हों। केवल इसी तरह मनुष्य जीवित रह सकते हैं; केवल इसी तरह वे परमेश्वर के मार्गदर्शन में ऐसे परिवेश में रह सकते हैं। परमेश्वर संचालन के इन नियमों का संप्रभु है, और कोई भी इनमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता, न कोई इन्हें बदल ही सकता है। केवल स्वयं परमेश्वर ही इन नियमों को जानता है और केवल वही इनका प्रबंध करता है। पेड़ कब अंकुरित होंगे; बारिश कब होगी; धरती कितना जल एवं कितने पोषक तत्त्व पौधों को देगी; किस मौसम में पत्ते गिरेंगे; किस मौसम में पेड़ों पर फल लगेंगे; कितने पोषक तत्त्व सूर्य का प्रकाश पेड़ों को देगा; सूर्य के प्रकाश द्वारा पोषित किए जाने के बाद पेड़ उच्छ्वास के रूप में क्या छोड़ेंगे—इन सभी चीज़ों को परमेश्वर ने पहले ही तब निश्चित कर दिया था, जब उसने सभी चीज़ों को बनाया था, उन नियमों के रूप में जिन्हें कोई नहीं तोड़ सकता। परमेश्वर द्वारा बनाई हुई चीज़ें—चाहे वे जीवित हों या मनुष्य की दृष्टि में निर्जीव, उसके हाथ में रहती हैं, जहाँ वह उन्हें नियंत्रित करता है और उन पर शासन करता है। इन नियमों को कोई बदल या तोड़ नहीं सकता। दूसरे शब्दों में, जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों का निर्माण किया था, तब उसने पूर्वनिर्धारित किया कि धरती के बिना पेड़ अपनी जड़ें नीचे नहीं फैला सकता, अंकुरित नहीं हो सकता और बढ़ नहीं सकता; कि यदि धरती पर कोई पेड़ न होता, तो वह सूख जाती; कि पेड़ को चिड़ियों का आशियाना भी होना चाहिए, और एक ऐसी जगह, जहाँ वे हवाओं से बचने के लिए आश्रय ले सकें। क्या कोई पेड़ धरती के बिना जी सकता है? बिलकुल नहीं। क्या वह सूरज या बारिश के बिना जी सकता है? वह इनके बिना भी नहीं जी सकता। ये सब चीज़ें मानव-जाति के लिए, उसके अस्तित्व के लिए हैं। पेड़ से मनुष्य ताजी हवा प्राप्त करता है, और वह धरती पर रहता है, जिसकी पेड़ों द्वारा रक्षा की जाती है। मनुष्य सूर्य की रोशनी और विभिन्न प्राणियों के बिना नहीं रह सकता। हालाँकि ये संबंध जटिल हैं, फिर भी तुम्हें यह याद रखना चाहिए कि परमेश्वर ने उन नियमों को बनाया है, जो सभी चीज़ों का नियंत्रण करते हैं, ताकि वे एक-दूसरे को मजबूत करें, एक-दूसरे पर निर्भर रहें, और एक-साथ मौजूद रहें। दूसरे शब्दों में, उसके द्वारा बनाई गई हर-एक चीज़ का मूल्य और महत्व है। यदि परमेश्वर ने कोई चीज़ बिना किसी महत्व के बनाई होती, तो परमेश्वर उसे लुप्त होने देता। यह उन तरीकों में से एक है, जिसे परमेश्वर सभी चीज़ों को पोषण प्रदान करने में इस्तेमाल करता है। इस कहानी में “पोषण प्रदान करता है” शब्द क्या बताते हैं? क्या परमेश्वर प्रतिदिन पेड़ को पानी देता है? क्या पेड़ को साँस लेने के लिए परमेश्वर की मदद की आवश्यकता पड़ती है? (नहीं।) यहाँ “पोषण प्रदान करता है” से तात्पर्य परमेश्वर द्वारा सभी चीज़ों के निर्माण के बाद उनके प्रबंधन से है; उनका नियंत्रण करने वाले नियम स्थापित करने के बाद परमेश्वर द्वारा उनका प्रबंधन करना पर्याप्त है। धरती में बोए जाने के बाद बीज अपने आप उगता है। उसके उगने की सभी स्थितियाँ परमेश्वर द्वारा रची गई थीं। परमेश्वर ने धूप, जल, मिट्टी, हवा और आसपास का परिवेश बनाया; उसने वायु, ठंड, बर्फ, वर्षा एवं चार ऋतुओं को बनाया। ये वे स्थितियाँ हैं, जो पेड़ के उगने के लिए आवश्यक हैं और उन्हें परमेश्वर ने तैयार किया। तो, क्या परमेश्वर इस जीवनदायी परिवेश का स्रोत है? (हाँ।) क्या परमेश्वर को प्रतिदिन पेड़ों के हर एक पत्ते को गिनना पड़ता है? नहीं! न परमेश्वर को साँस लेने में पेड़ की मदद करने या यह कहकर सूर्य की रोशनी को जगाने की ज़रूरत पड़ती है कि “यह पेड़ों पर चमकने का समय है।” उसे ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। नियमानुसार चमकने का समय होने पर सूर्य की रोशनी अपने आप चमकती है; वह पेड़ पर प्रकट होकर चमकने लगती है और पेड़ को जब ज़रूरत होती है, वह उसे सोख लेता है, और जब आवश्यकता नहीं होती, तो भी वह नियमों के अंतर्गत जीता है। शायद तुम लोग इस घटना का स्पष्ट रूप से वर्णन न कर पाओ, लेकिन फिर भी यह एक तथ्य है, जिसे हर कोई देख सकता है और स्वीकार कर सकता है। तुम्हें बस यह पहचानना है कि हर चीज़ के अस्तित्व को नियंत्रित करने वाले नियम परमेश्वर से आते हैं, और यह जानना है कि उनकी वृद्धि और उनका जीवन परमेश्वर के प्रभुत्व में है।
अब, क्या इस कहानी में उस चीज़ का इस्तेमाल किया गया है, जिसे लोग “रूपक” कहते हैं? क्या यह मानवीकरण है? (नहीं।) मैंने एक सच्ची कहानी सुनाई है। हर तरह की जीवित चीज़, हर चीज़ जिसमें जीवन है, परमेश्वर द्वारा शासित है; निर्माण के समय हर चीज़ में परमेश्वर द्वारा प्राण डाले गए थे; हर जीवित चीज़ का जीवन परमेश्वर से आता है और वह उस क्रम और व्यवस्थाओं का अनुसरण करता है, जो उसे निर्देशित करती हैं। मनुष्य को इसे बदलने की ज़रूरत नहीं, न इसे मनुष्य की मदद की ज़रूरत है; यह उन तरीकों में से एक है, जिससे परमेश्वर सभी चीज़ों को पोषण प्रदान करता है। तुम लोग समझे, या नहीं? क्या तुम्हें लगता है कि लोगों को इसे पहचानना ज़रूरी है? (हाँ।) तो, क्या इस कहानी का जीवविज्ञान से कुछ लेना-देना है? क्या यह किसी रूप में ज्ञान के किसी क्षेत्र या ज्ञानार्जन की किसी शाखा से संबंधित है? हम जीवविज्ञान पर चर्चा नहीं कर रहे हैं, और हम निश्चित रूप से जैविक अनुसंधान नहीं कर रहे हैं। हमारी बात का मुख्य विचार क्या है? (परमेश्वर सभी चीजों के लिए जीवन का स्रोत है।) तुम लोगों ने सृष्टि के भीतर क्या देखा है? क्या तुमने पेड़ देखे हैं? क्या तुमने धरती देखी है? (हाँ।) तुम लोगों ने सूर्य की रोशनी देखी है, है न? क्या तुमने पेड़ों पर बैठी चिड़ियाँ देखी हैं? (देखी हैं।) क्या मानव-जाति ऐसे परिवेश में रहते हुए प्रसन्न है? (प्रसन्न है।) कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर मनुष्यों के घर, उनके जीवन के परिवेश की रक्षा करने के लिए सभी चीज़ों का—स्वयं द्वारा रचित चीज़ों का—इस्तेमाल करता है। इस तरह से परमेश्वर मनुष्य और सभी चीज़ों को पोषण प्रदान करता है।
तुम लोगों को इस बातचीत की शैली, संगति करने का मेरा ढंग कैसा लगा? (यह समझने में सरल है और इसमें वास्तविक जीवन के कई उदाहरण हैं।) ये कोई खोखले वचन नहीं हैं, जो मैं बोल रहा हूँ, ठीक है ना? क्या लोगों को यह समझने के लिए इस कहानी की ज़रूरत है कि परमेश्वर सभी प्राणियों के लिए जीवन का स्रोत है? (हाँ।) अगर ऐसा है, तो हम अपनी अगली कहानी पर चलते हैं। अगली कहानी विषयवस्तु में थोड़ी भिन्न है और उसका केंद्र-बिंदु भी थोड़ा भिन्न है। इस कहानी में आने वाली हर चीज़ ऐसी है, जिसे लोग परमेश्वर की सृष्टि में अपनी आँखों से देख सकते हैं। अब मैं अपना अगला वृत्तांत शुरू करूँगा। कृपया चुपचाप सुनना और देखना कि तुम मेरा मतलब निकाल पाते हो या नहीं। कहानी सुनाने के बाद मैं तुम लोगों से यह जानने के लिए कुछ प्रश्न पूछूँगा कि तुम लोगों ने कितना कुछ सीखा है? इस कहानी के पात्र हैं एक बड़ा पर्वत, एक छोटी जलधारा, एक प्रचंड हवा और एक विशाल लहर।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII