इस दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिये, नायिका को इस जगत की रीत पर चलना पड़ा, शोहरत और हैसियत पाने के लिये भाग-दौड़ और कड़ी मेहनत करने लगी। उनका जीवन सूना और पीड़ादायी हो गया। जब से वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को मानने लगी, तब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में उन्हें जीवन की सार्थकता दिखने लगी और वे प्रसन्न रहने लगी। वे परमेश्वर का अनुसरण करती और अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी करती। मगर चूँकि उनके दिल पर अभी भी शोहरत और हैसियत की चाह काबिज़ थी, अपने काम-काज में वे अक्सर अपने विचार थोपने लगी, मनमाने और तानाशाही तौर-तरीके से काम करने लगी। इस वजह से भाई-बहनों ने उनकी काट-छाँट की और सवाल उठाए। पहले तो उन्होंने बहस की और गलती नहीं मानी। लेकिन परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से उन्हें अपने दूषण की सच्चाई का पता चला। चूँकि वे परमेश्वर के इरादों को समझ नहीं पाई, उन्होंने परमेश्वर को गलत समझ लिया और मान लिया कि परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएंगे। ऐसे समय में, परमेश्वर के वचनों ने उन्हें धीरे-धीरे करके प्रबुद्ध किया, राह दिखाई और इस बात को समझाया कि परमेश्वर नेक इरादों से इंसान को बचाना चाहते हैं, और इस तरह उन्हें इंसान के लिये परमेश्वर के सच्चे प्यार का अनुभव हुआ।
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