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परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 36 परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 36
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परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 36

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जैसे ही राज्य का युग आरंभ हुआ, परमेश्वर ने अपने वचन जारी करने आरंभ कर दिए। भविष्य में ये वचन उत्तरोत्तर पूरे होते जाएँगे, और उस समय, मनुष्य जीवन में बढ़ेगा। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करने के लिए परमेश्वर द्वारा वचन का उपयोग अधिक वास्तविक और अधिक आवश्यक है, और मनुष्य के विश्वास को पूर्ण बनाने के उद्देश्य से वह अपना कार्य करने के लिए वचन के अलावा किसी चीज का उपयोग नहीं करता, क्योंकि आज वचन का युग है, और इसे मनुष्य के विश्वास, संकल्प और सहयोग की आवश्यकता है। अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सेवा और भरण-पोषण करने के लिए अपने वचन का उपयोग करना है। केवल जब देहधारी परमेश्वर अपने वचनों को बोलने का कार्य समाप्त कर लेगा, तभी वे पूरे होने शुरू होंगे। उसके बोलने के दौरान उसके वचन पूरे नहीं होंगे, क्योंकि जब वह देह के चरण में है, तो उसके वचन पूरे नहीं हो सकते। ऐसा इसलिए है, ताकि मनुष्य देख सके कि परमेश्वर देह है, और पवित्रात्मा नहीं, ताकि मनुष्य अपनी आँखों से परमेश्वर की वास्तविकता देख सके। जिस दिन उसका कार्य पूरा हो जाएगा, जब उसके द्वारा पृथ्वी पर जो शब्द कहे जाने चाहिए, वे कह दिए जाएँगे, तब उसके वचन पूरे होने आरंभ हो जाएँगे। अभी परमेश्वर के वचनों के पूरा होने का युग नहीं है, क्योंकि उसने अभी अपने वचन बोलना समाप्त नहीं किया है। इसलिए, जब तुम देखते हो कि परमेश्वर पृथ्वी पर अभी भी अपने वचन बोल रहा है, तो उसके वचनों के पूरे होने की प्रतीक्षा मत करो; जब परमेश्वर अपने वचन बोलना बंद कर देगा, और जब पृथ्वी पर उसका कार्य पूरा हो जाएगा, तभी उसके वचन पूरे होने शुरू होंगे। पृथ्वी पर वह जो वचन बोलता है, उनमें एक लिहाज से जीवन का पोषण है, और दूसरे लिहाज से भविष्यवाणी—उन चीजों की भविष्यवाणी, जो अभी आनी हैं, उन चीजों की भविष्यवाणी, जो की जाएँगी, और उन चीजों की भविष्यवाणी, जिन्हें अभी संपन्न किया जाना है। यीशु के वचनों में भी भविष्यवाणी थी। एक लिहाज से उसने जीवन का भरण-पोषण किया, और दूसरे लिहाज से उसने भविष्यवाणी कीं। आज वचनों और तथ्यों को साथ-साथ पूरा करने की बात नहीं है, क्योंकि जो मनुष्य द्वारा अपनी आँखों से देखा जा सकता है और जो परमेश्वर के द्वारा किया जाता है, उसके बीच बहुत बड़ा अंतर है। केवल इतना ही कहा जा सकता है कि एक बार जब परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाएगा, तो उसके वचन पूरे हो जाएँगे, और तथ्य वचनों के बाद आएँगे। अंत के दिनों के दौरान देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर वचन की सेवकाई करता है, और वचन की सेवकाई करने में वह केवल वचन बोलता है और अन्य बातों की परवाह नहीं करता। एक बार जब परमेश्वर का कार्य बदल जाएगा, तो उसके वचन पूरे होने शुरू हो जाएँगे। आज वचन पहले तुम्हें पूर्ण बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं; जब वह समस्त ब्रह्मांड में महिमा प्राप्त कर लेगा, उसका कार्य पूरा हो जाएगा, वे सभी वचन जो बोले जाने चाहिए, बोले जा चुके होंगे, और सभी वचन तथ्य बन चुके होंगे। अंत के दिनों में परमेश्वर पृथ्वी पर वचन की सेवकाई करने के लिए आया है, ताकि मानवजाति उसे जान सके, और ताकि मानवजाति देख सके कि परमेश्वर क्या है, और उसके वचनों से उसकी बुद्धि और उसके सभी अद्भुत कर्म देख सके। राज्य के युग के दौरान परमेश्वर समस्त मानवजाति को जीतने के लिए मुख्य रूप से वचन का उपयोग करता है। भविष्य में उसके वचन हर धर्म, क्षेत्र, देश और संप्रदाय पर भी आएँगे; परमेश्वर वचनों का उपयोग जीतने के लिए और सभी मनुष्यों को यह दिखाने के लिए करता है कि उसके वचन अधिकार और शक्ति वहन करते हैं—और इसलिए आज तुम केवल परमेश्वर के वचन का सामना करते हो।

परमेश्वर द्वारा इस युग में बोले गए वचन, व्यवस्था के युग के दौरान बोले गए वचनों से भिन्न हैं, और इसलिए, वे अनुग्रह के युग के दौरान बोले गए वचनों से भी भिन्न हैं। अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने वचन का कार्य नहीं किया, बल्कि केवल यह वर्णन किया कि समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए वह सलीब पर चढ़ाया जाएगा। बाइबल में केवल यह वर्णन किया गया है कि यीशु को सलीब पर क्यों चढ़ाया जाना था, और सलीब पर उसने कौन-कौन सी तकलीफें सहीं, और कैसे मनुष्य को परमेश्वर के लिए सलीब पर चढ़ना चाहिए। उस युग के दौरान परमेश्वर द्वारा किया गया समस्त कार्य सलीब पर चढ़ने के आसपास केंद्रित था। राज्य के युग के दौरान देहधारी परमेश्वर उन सभी लोगों को जीतने के लिए वचन बोलता है, जो उस पर विश्वास करते हैं। यह "वचन का देह में प्रकट होना" है; परमेश्वर अंत के दिनों में इस कार्य को करने के लिए आया है, अर्थात् वह वचन के देह में प्रकट होने के वास्तविक अर्थ को संपन्न करने के लिए आया है। वह केवल वचन बोलता है, और तथ्यों का आगमन शायद ही कभी होता है। वचन के देह में प्रकट होने का यही मूल सार है, और जब देहधारी परमेश्वर अपने वचन बोलता है, तो यही वचन का देह में प्रकट होना और वचन का देह में आना है। "आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था, और वचन देह बन गया।" यह (वचन के देह में प्रकट होने का कार्य) वह कार्य है, जिसे परमेश्वर अंत के दिनों में संपन्न करेगा, और यह उसकी संपूर्ण प्रबंधन योजना का अंतिम अध्याय है, और इसलिए परमेश्वर को पृथ्वी पर आना है और अपने वचनों को देह में प्रकट करना है। वह जो आज किया जाता है, वह जिसे भविष्य में किया जाएगा, वह जिसे परमेश्वर द्वारा संपन्न किया जाएगा, मनुष्य का अंतिम गंतव्य, वे जिन्हें बचाया जाएगा, वे जिन्हें नष्ट किया जाएगा, आदि-आदि—यह समस्त कार्य, जिसे अंत में हासिल किया जाना चाहिए, सब स्पष्ट रूप से कहा गया है, और यह सब वचन के देह में प्रकट होने के वास्तविक अर्थ को संपन्न करने के लिए है। प्रशासनिक आदेश और संविधान, जिन्हें पहले जारी किया गया था, वे जिन्हें नष्ट किया जाएगा, वे जो विश्राम में प्रवेश करेंगे—ये सभी वचन पूरे होने चाहिए। यही वह कार्य है, जिसे देहधारी परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों में मुख्य रूप से संपन्न किया जाता है। वह लोगों को समझवाता है कि परमेश्वर द्वारा पूर्व-नियत लोग कहाँ के हैं और जो परमेश्वर द्वारा पूर्व-नियत नहीं हैं वे कहाँ के हैं, उसके लोगों और पुत्रों का वर्गीकरण कैसे किया जाएगा, इस्राएल का क्या होगा, मिस्र का क्या होगा—भविष्य में, इन वचनों में से प्रत्येक वचन संपन्न होगा। परमेश्वर के कार्य की गति तेज हो रही है। परमेश्वर मनुष्यों पर यह प्रकट करने के लिए वचनों को साधन के रूप में उपयोग करता है कि हर युग में क्या किया जाना है, अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर द्वारा क्या किया जाना है, और उसकी सेवकाई, जो की जानी है, और ये सब वचन, वचन के देह में प्रकट होने के वास्तविक अर्थ को संपन्न करने के उद्देश्य से हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है

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