2008 में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी "स्थिरता" की आड़ में पागलों की तरह धार्मिक आस्थाओं का दमन करना शुरू कर देती है। बड़ी संख्या में ईसाइयों को जेल में डाल दिया जाता है और यातनाएँ दी जाती हैं, बहुत से लोगों को अपना घर-बार छोड़कर कहीं छिपने पर मजबूर होना पड़ता है, उनके पास वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं होता। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी एक बुजुर्ग भाई, झांग झिझोंग को सुसमाचार साझा करने और कलीसिया के सदस्यों को पनाह देने के जुर्म में गिरफ़्तार करने के लिए ज़ोर-शोर से ढूँढती है। पूरा परिवार सीसीपी की गिरफ्तारी से बचने के लिए भागने पर मजबूर हो जाता है। जब झांग झिझोंग उनके हाथ नहीं लगता, तो सीसीपी के अधिकारी उसके घर की तलाशी लेकर पूछताछ के लिए उसके भाई और बच्चों को गिरफ़्तार कर लेते हैं। वे उसके पेंशन फंड को भी रुकवा देते हैं, जिससे उसकी आजीविका का एकमात्र ज़रिया भी छिन जाता है। उसके हालात पहले से भी ज़्यादा भयानक और कठिन हो जाते हैं, क्योंकि रहने की कोई स्थायी जगह न होने के कारण, वह अपने नन्हे पोते के साथ इधर-उधर भागता-फिरता है। फिर 2010 में, सीसीपी देश भर में ईसाइयों को ढूँढकर गिरफ़्तार करने के लिए जनगणना के बहाने का इस्तेमाल करती है। चूँकि झांग झिझोंग के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं बचता, इसलिए वो और उसका पोता सर्द मौसम में एक पहाड़ की गुफा में छिपने पर मजबूर हो जाते हैं। वो सीसीपी की अमानवीय तलाश और अत्याचार से कैसे बचते हैं? यह जानने के लिए देखें रंगमंच नाटक "बुजुर्ग और नन्हा बालक"।