सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुंह काला’ परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव करनेवाली एक ईसाई महिला की गवाही है। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर मुख्य पात्र यह समझ पाती है कि परमेश्वर ईमानदार इंसानों से प्रेम करता है और कपटी लोगों से घृणा करता है, और केवल ईमानदार इंसान ही बचाए जा सकते हैं और वे ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। इस प्रकार वे ईमानदार व्यक्ति बनने की साधना शुरू करती है। परन्तु जब रोजमर्रा के जीवन में उसका ऐसी चीज़ों से सामना होता है जिनसे नाम और आन-बान प्रभावित हो सकते हैं, तो वह झूठ बोले बिना और कपटी हुए बिना नहीं रह पाती, और कभी-कभार वह ऐसा हो जाने के बाद अपने झूठ को छिपाने की कोशिश करती है। वह बड़ी बेचैनी महसूस करती है और समझ जाती है कि यह जीवन जीने का एक बहुत ही कठिन और थका देने वाला तरीका है। बाद में, परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन से वह अपने शैतानी स्वभाव को समझ पाती है जिसके कारण वह झूठ बोलती है और छलावा करती है। वह झूठ बोलने के मूल को, स्वभाव को और उसके और परिणामों को देखती है, पश्चाताप करने लगती है और परमेश्वर के समक्ष प्रायश्चित करती है। वह एक ईमानदार इंसान बनने का अभ्यास करती है, भाई-बहनों के सामने खुल कर अपनी कपटी मंशाओं को उजागर करती है और सत्य बोलने और ईमानदार इंसान होने के आनंद का अनुभव करती है।