परमेश्वर मनुष्य को जीवित रहने के लिए एक स्थिर परिवेश देने हेतु सभी चीजों के बीच के संबंधों को संतुलित करता है
परमेश्वर सभी चीजों में अपने कर्म प्रकट करता है और सभी चीजों में वह उनकी व्यवस्थाओं को नियंत्रित करता है और उन पर शासन करता है। हमने अभी-अभी बात की कि कैसे परमेश्वर सभी चीजों की व्यवस्थाओं पर शासन करता है, और साथ ही, कैसे वह उन व्यवस्थाओं के तहत संपूर्ण मानवजाति के जीवन-निर्वाह की व्यवस्था और उसका पालन-पोषण करता है। यह एक पहलू है। आगे हम दूसरे पहलू पर बात करने जा रहे हैं, जो सभी चीजों पर परमेश्वर के नियंत्रण का एक तरीका है। मैं बता रहा हूँ कि सभी चीजों की रचना करने के बाद परमेश्वर ने किस तरह उन चीजों के बीच संबंधों को संतुलित किया। यह भी तुम लोगों के लिए एक बड़ा विषय है। सभी चीजों के मध्य संबंधों को संतुलित करना—क्या यह ऐसी चीज है, जिसे लोग कर सकते हों? नहीं, मनुष्य ऐसा कमाल करने में सक्षम नहीं हैं। लोग केवल विध्वंस करने में ही सक्षम हैं। वे सभी चीजों के मध्य संबंधों को संतुलित नहीं कर सकते; वे उनका प्रबंधन नहीं कर सकते, और इतना बड़ा अधिकार और सामर्थ्य मानवजाति की समझ के परे है। केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही इस प्रकार का कार्य करने का सामर्थ्य है। लेकिन इस प्रकार का कार्य करने में परमेश्वर का क्या उद्देश्य है—यह किसलिए है? यह भी मानवजाति के अस्तित्व से निकटता से जुड़ा है। हर एक चीज, जो परमेश्वर करना चाहता है, आवश्यक है—ऐसा कुछ नहीं है जो वह करे या न करे। मानवजाति के अस्तित्व की सुरक्षा और लोगों को जीवित रहने हेतु अनुकूल परिवेश प्रदान करने के लिए कुछ अपरिहार्य और महत्वपूर्ण चीजें हैं, जो उसे अवश्य करनी चाहिए।
“परमेश्वर सभी चीजों को संतुलित करता है,” वाक्यांश के शाब्दिक अर्थ से यह एक बहुत ही व्यापक विषय लगता है। पहले, यह लोगों को यह धारणा प्रदान करता है कि “सभी चीजों को संतुलित करना” सभी चीजों पर परमेश्वर की महारत भी दर्शाता है। इस “संतुलन” शब्द का क्या अर्थ है? पहले तो “संतुलन” किसी चीज को डगमगाने न देने को संदर्भित करता है। यह चीजों को तोलने के लिए तराजू का इस्तेमाल करने जैसा है। तराजू को संतुलित करने के लिए दोनों पलड़ों पर वजन समान होना चाहिए। परमेश्वर ने कई विभिन्न प्रकार की चीजों का सृजन किया : चीजें जो स्थिर हैं, चीजें जो गतिमान हैं, चीजें जो जीवित हैं, चीजें जो साँस लेती हैं, साथ ही चीजें जो साँस नहीं लेतीं। क्या इन सभी चीजों के बीच परस्पर निर्भरता, परस्पर जुड़ाव का ऐसा संबंध स्थापित करना आसान है, जिसमें वे एक-दूसरे को सुदृढ़ और नियंत्रित दोनों कर सकें? इस सबके भीतर निश्चित रूप से कुछ सिद्धांत हैं, लेकिन वे बहुत जटिल हैं, है न? परमेश्वर के लिए यह कठिन नहीं है, लेकिन लोगों के अध्ययन के लिए यह एक बहुत ही जटिल मामला है। “संतुलन” एक बहुत ही सरल शब्द है लेकिन अगर लोगों को इसका अध्ययन करना होता, अगर लोगों को स्वयं संतुलन बनाने की आवश्यकता होती, तो भले ही सभी प्रकार के शिक्षाविद—मानव-जीवविज्ञानी, खगोलविद्, भौतिकशास्त्री, रसायनशास्त्री, यहाँ तक कि इतिहासकार भी इस पर कार्य कर रहे होते—इस शोध का अंतिम परिणाम क्या होता? इसका परिणाम कुछ नहीं होता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर की समस्त सृष्टि बहुत अद्भुत है, और मनुष्य कभी इसके रहस्य नहीं खोल सकेगा। जब परमेश्वर ने सभी चीजों की रचना की, तो उसने उनके बीच सिद्धांत स्थापित किए, उसने पारस्परिक संयम, अनुपूरकता और पोषण के लिए जीवित रहने की विभिन्न पद्धतियाँ स्थापित कीं। ये विभिन्न पद्धतियाँ बहुत पेचीदा हैं, और वे निश्चित रूप से सरल और एकतरफा नहीं हैं। जब लोग अपने दिमाग का उपयोग करते हैं, तो जो ज्ञान वे प्राप्त करते हैं, सभी चीजों पर परमेश्वर के नियंत्रण के पीछे के सिद्धांतों की पुष्टि या खोज करने के लिए जिन घटनाओं का वे अवलोकन करते हैं, उन चीजों को खोज पाना अत्यंत कठिन होता है, और कोई परिणाम प्राप्त करना भी बहुत कठिन होता है। लोगों के लिए कोई भी परिणाम प्राप्त करना बहुत कठिन है; परमेश्वर की सृष्टि की सभी चीजों को नियंत्रित करने के लिए इंसानी सोच और ज्ञान पर भरोसा करते हुए अपना संतुलन बनाए रखना लोगों के लिए बहुत कठिन है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अगर लोग सभी चीजों के अस्तित्व के सिद्धांत नहीं जानते, तो वे यह नहीं जान पाएँगे कि इस प्रकार के संतुलन को सुरक्षित कैसे रखा जाए। इसलिए अगर लोगों को सभी चीजों का प्रबंधन और नियंत्रण करना पड़ता, तो ज्यादा संभावना इस बात की होती कि वे इस संतुलन को नष्ट कर देते। जैसे ही संतुलन नष्ट होता, मानवजाति के जीवित रहने के परिवेश नष्ट हो जाते, और जब ऐसा होता, तो मानवजाति के अस्तित्व पर संकट आ जाता। इससे एक आपदा आ जाती। जब मानवजाति आपदा के बीच जी रही हो, तो उसका भविष्य क्या होगा? इसके परिणाम का अनुमान लगाना बहुत कठिन होगा, और इस बारे में निश्चितता के साथ भविष्यवाणी करना असंभव होगा।
तो परमेश्वर कैसे सभी चीजों के मध्य संबंध संतुलित करता है? पहले, संसार में कुछ स्थान ऐसे हैं जो पूरे साल बर्फ और हिम से ढके होते हैं, जबकि कुछ अन्य स्थानों पर चारों मौसम बसंत के समान होते हैं और शीत ऋतु कभी नहीं आती, और ऐसे स्थानों पर तुम कभी इतने बर्फ के टुकड़े या हिमकण नहीं देखोगे। यहाँ, हम बृहत्तर जलवायु के बारे में बात कर रहे हैं, और यह उदाहरण उन तरीकों में से एक है, जिनसे परमेश्वर सभी चीजों के बीच संबंध संतुलित करता है। दूसरा तरीका यह है : पर्वतों की एक शृंखला प्रचुर वनस्पतियों से आच्छादित है, जहाँ की जमीन पर सभी प्रकार के पौधों का गलीचा बिछा हुआ है, और जंगल के झुंड इतने घने हैं कि उनके बीच से गुजरने पर तुम ऊपर सूरज भी नहीं देख सकते। लेकिन पर्वतों की एक अन्य शृंखला को देखें, तो वहाँ घास की एक पत्ती तक नहीं उगती, बस परत-दर-परत बंजर, बिखरे हुए पर्वत हैं। बाहर से दिखने में, ये दोनों ही प्रकार मूल रूप से पर्वतों में परिणत धूल की परतों के विशाल अंबार हैं, लेकिन एक घने जंगल से आच्छादित है, जबकि दूसरा उपज से विहीन है, जहाँ घास की एक पत्ती तक नहीं उगती। यह दूसरा तरीका है जिससे परमेश्वर सभी चीजों के बीच संबंध संतुलित करता है। तीसरा तरीका यह है : एक ओर देखने पर तुम्हें अंतहीन घास के मैदान दिखाई दे सकते हैं, लहराते हरे रंग के मैदान। दूसरी ओर देखने पर तुम, जहाँ तक नजर जाती है, एक मरुस्थल देख सकते हो, बंजर, जहाँ साँय-साँय करती हवा के साथ उड़ती रेत के बीच कोई भी जीवित चीज नहीं दिखती, जल का कोई स्रोत तो बिलकुल भी नहीं। चौथा तरीका यह है : एक तरफ सब-कुछ उस महाजलराशि, समुद्र से ढका हुआ है, जबकि दूसरी तरफ तुम्हें किसी ताजे स्रोत-जल की एक बूँद भी बहुत मुश्किल से दिखाई पड़ती है। पाँचवाँ तरीका यह है : यहाँ की जमीन पर बार-बार रिमझिम बारिश होती है और जलवायु धुंध से भरी और नम रहती है, जबकि वहाँ की जमीन पर प्रचंड सूरज अक्सर आकाश में लटका रहता है, और वर्षा की एक बूँद का भी गिरना एक विरल घटना होती है। छठा तरीका यह है : एक जगह पठार है, जहाँ हवा दुर्लभ है और मनुष्य के लिए साँस लेना मुश्किल, जबकि दूसरी जगह दलदल और तराइयाँ हैं, जो विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षियों के आवास के रूप में काम आते हैं। ये विभिन्न प्रकार की जलवायु हैं, या ये ऐसी जलवायु या परिवेश हैं, जो विभिन्न भौगोलिक परिवेशों के अनुरूप हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर मानवजाति के आधारभूत जीवन-परिवेशों को बड़े पैमाने के परिवेश के संदर्भ में, जलवायु से लेकर भौगोलिक परिवेश तक और मिट्टी के विभिन्न घटकों से लेकर जलस्रोतों की संख्या तक संतुलित करता है, ताकि उन परिवेशों में हवा, तापमान और आर्द्रता का संतुलन प्राप्त किया जा सके, जिनमें लोग जीवित रहते हैं। इन विषम भौगोलिक परिवेशों के कारण लोगों के पास स्थिर वायु होती है और विभिन्न मौसमों का तापमान और आर्द्रता स्थिर बनी रहती है। यह लोगों को हमेशा की तरह जीने के लिए जरूरी उस तरह के परिवेश में रहने देता है। पहले, बड़े पैमाने के परिवेश को संतुलित किया जाना चाहिए। यह विभिन्न भौगोलिक स्थानों और संरचनाओं के उपयोग के माध्यम से और साथ ही विभिन्न जलवायुओं के बीच परिवर्तन के माध्यम से किया जाता है, जो उन्हें एक-दूसरे को सीमित और नियंत्रित करने देता है, ताकि परमेश्वर द्वारा अपेक्षित और मानवजाति के लिए आवश्यक संतुलन प्राप्त किया जा सके। यह बड़े पैमाने के परिवेश के परिप्रेक्ष्य से बोलना है।
अब हम सूक्ष्म चीजों के बारे में बात करेंगे, जैसे कि वनस्पतियाँ। उनके बीच संतुलन कैसे प्राप्त किया जाता है? अर्थात्, वनस्पतियों को संतुलित जीवन-परिवेश के भीतर जीवित रहने में सक्षम कैसे बनाया जा सकता है? इसका उत्तर है, विभिन्न प्रकार के पौधों के जीवित रहने हेतु आवश्यक परिवेश की रक्षा करने के लिए उनके जीवन-काल, वृद्धि-दरों और प्रजनन-दरों का प्रबंधन करके। छोटी घास को एक उदाहरण के रूप में लेते हैं—बसंत ऋतु में कोपल निकलती है, ग्रीष्म ऋतु में फूल उगता है, और शरद ऋतु में फल आता है। फल भूमि पर गिर जाता है। अगले वर्ष उस फल से बीज अंकुरित होता है और उन्हीं व्यवस्थाओं के अनुसार बढ़ता रहता है। घास का जीवन-काल बहुत छोटा होता है; हर बीज जमीन पर गिरता है, जड़ें फूटती हैं और वह अंकुरित होता है, खिलता है और फल उत्पन्न करता है, और यह पूरी प्रक्रिया केवल तीन ऋतुओं—बसंत, ग्रीष्म और पतझड़ के बाद पूरी हो जाती है। सभी प्रकार के वृक्षों का भी अपना जीवन-काल और अंकुरित होने और फलने का अलग-अलग समय होता है। कुछ वृक्ष 30 से 50 सालों के बाद ही मर जाते हैं—यह उनका जीवन-काल है। लेकिन उनका फल जमीन पर गिरता है, जो उसके बाद जड़ पकड़ता और अंकुरित होता है, खिलता है और फल उत्पन्न करता है, और 30 से 50 और सालों तक जीवित रहता है। यह उसकी पुनरावृत्ति की दर है। एक पुराना पेड़ मरता है और नया पेड़ उगता है; इसीलिए तुम जंगल में हमेशा पेड़ों को बढ़ते हुए देखते हो। लेकिन उनके भी जन्म और मृत्यु का अपना सामान्य चक्र और प्रक्रियाएँ हैं। कुछ वृक्ष हजार वर्ष से भी अधिक जी सकते हैं, यहाँ तक कि कुछ तीन हजार वर्ष तक भी जी सकते हैं। सामान्य रूप से कहें तो, चाहे वह पौधा किस भी प्रकार का हो या उसका कितना भी लंबा जीवनकाल हो, परमेश्वर इस आधार पर उसके संतुलन का प्रबंधन करता है कि वह कितने लंबे समय तक जीवित रहता है, प्रजनन करने की उसकी क्षमता, गति और आवृत्ति क्या है, और वह कितनी मात्रा में संतति उत्पन्न करता है। यह घास से लेकर वृक्ष तक पौधों को एक संतुलित पारिस्थितिक परिवेश के भीतर पनपने और फलने-फूलने देता है। इसलिए जब पृथ्वी पर तुम कोई जंगल देखते हो, तो उसके भीतर विकसित होने वाले वृक्ष और घास, दोनों ही अपनी व्यवस्थाओं के अनुसार निरंतर प्रजनन कर रहे और बढ़ रहे होते हैं। उन्हें मानवजाति के किसी अतिरिक्त श्रम या सहायता की जरूरत नहीं पड़ती। चूँकि उनके पास इस प्रकार का संतुलन है, इसीलिए वे जीवित रहने के अपने परिवेश को बनाए रखने में सक्षम हैं। चूँकि उनके पास जीवित रहने के लिए एक उपयुक्त परिवेश है, इसीलिए संसार के जंगल और घास के मैदान पृथ्वी पर निरंतर जीवित रह पाते हैं। उनका अस्तित्व पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों का पालन-पोषण करने के साथ-साथ जंगलों और घास के मैदानों में निवास करने वाले सभी प्रकार के जीवों—पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों और सभी प्रकार के अति सूक्ष्म जीवों का भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी पालन-पोषण करता है।
परमेश्वर सभी प्रकार के पशुओं के बीच भी संतुलन का नियंत्रण करता है। इस संतुलन का नियंत्रण वह कैसे करता है? यह पौधों के समान ही है—वह प्रजनन की उनकी क्षमता, मात्रा और बारंबारता, और पशु-जगत में उनके द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाओं के आधार पर उनके संतुलन का प्रबंधन और उनकी संख्या का निर्धारण करता है। उदाहरण के लिए, शेर जेबरों को खाते हैं, इसलिए अगर शेरों की संख्या जेबरों की संख्या से ज्यादा हो जाए, तो जेबरों की नियति क्या होगी? वे विलुप्त हो जाएँगे। और अगर जेबरे शेरों की तुलना में बहुत कम बच्चे पैदा करें, तो उनकी क्या नियति होगी? वे भी विलुप्त हो जाएँगे। इसलिए, जेबरों की संख्या शेरों की संख्या से कहीं अधिक होनी चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जेबरे सिर्फ अपने लिए ही अस्तित्व में नहीं हैं; बल्कि वे शेरों के लिए भी अस्तित्व में हैं। तुम इसे इस तरह भी कह सकते हो : प्रत्येक जेबरा जेबरों की समग्रता का एक भाग है, लेकिन वह शेरों का आहार भी है। शेरों के प्रजनन की गति कभी जेबरों के प्रजनन की गति से तेज नहीं हो सकती, इसलिए उनकी संख्या कभी जेबरों की संख्या से अधिक नहीं हो सकती। सिर्फ इसी तरह से शेरों के आहार के स्रोत की गारंटी दी जा सकती है। और इसलिए, शेर हालाँकि जेबरों के प्राकृतिक शत्रु हैं, फिर भी लोग अक्सर उन्हें फुरसत में एक ही इलाके में आराम करते देखते हैं। शेरों द्वारा शिकार किए जाने और खाए जाने के कारण जेबरे कभी संख्या में कम या विलुप्त नहीं होंगे, और शेर “राजा” की अपनी हैसियत के कारण कभी अपनी संख्या नहीं बढ़ाएँगे। यह ऐसा संतुलन है, जो परमेश्वर ने बहुत पहले स्थापित कर दिया था। अर्थात्, परमेश्वर ने सभी जानवरों के मध्य संतुलन की व्यवस्थाएँ स्थापित कर दी थीं, ताकि वे इस प्रकार का संतुलन प्राप्त कर सकें, और यह ऐसी चीज है जिसे लोग अक्सर देखते हैं। क्या सिर्फ शेर ही जेबरों के प्राकृतिक शत्रु हैं? नहीं, मगरमच्छ भी जेबरों को खाते हैं। जेबरा एक बहुत ही असहाय किस्म का जानवर प्रतीत होता है। उनमें शेरों की-सी क्रूरता नहीं होती, और जब वे इस भयंकर शत्रु शेर का सामना करते हैं, तो वे केवल भाग ही सकते हैं। वे इतने शक्तिहीन होते हैं कि उसका प्रतिरोध भी नहीं कर सकते। जब वे शेर से तेज नहीं दौड़ सकते, तो वे उसे खुद को खाने ही दे सकते हैं। ऐसा पशु-जगत में अक्सर देखा जा सकता है। इस प्रकार की चीज देखकर तुम लोगों के मन में क्या भावनाएँ और विचार आते हैं? क्या तुम्हें जेबरे पर तरस आता है? क्या तुम्हें शेर से घृणा होती है? जेबरे कितने सुंदर दिखाई देते हैं! लेकिन शेर उन पर हमेशा लालच से नजर गड़ाए रहते हैं। और मूर्खतावश जेबरे दूर नहीं भागते। वे शेर को पेड़ की ठंडी छाया में बैठे अपना इंतजार करते देखते रहते हैं। वह किसी भी क्षण आकर उन्हें खा सकता है। वे अपने दिल में यह बात जानते हैं, लेकिन फिर भी उस जगह को छोड़ते। यह एक अद्भुत बात है, ऐसी अद्भुत बात जो परमेश्वर के पूर्वनिर्धारण और उसके शासन को दर्शाती है। तुम्हें जेबरे पर तरस आता है, लेकिन तुम उसे बचाने में असमर्थ हो, और तुम्हें शेर से घृणा होती है, लेकिन तुम उसे नष्ट नहीं कर सकते। जेबरा वह भोजन है, जिसे परमेश्वर ने शेर के लिए तैयार किया है, लेकिन शेर चाहे जितने भी जेबरों को खा लें, जेबरों का सफाया नहीं होगा। शेरों द्वारा पैदा किए जाने वाले बच्चों की संख्या बहुत कम होती है, और वे बहुत धीरे-धीरे प्रजनन करते हैं, इसलिए वे चाहे जितने भी जेबरों को खा लें, उनकी संख्या जेबरों से अधिक नहीं होगी। इसमें संतुलन है।
इस प्रकार का संतुलन बनाए रखने में परमेश्वर का क्या लक्ष्य है? यह लोगों के जीवन-परिवेश के साथ-साथ मानवजाति के जीवित रहने से भी संबंधित है। अगर जेबरे, या शेर का ऐसा ही कोई अन्य शिकार—हिरन या अन्य पशु—बहुत धीमे प्रजनन करें और शेरों की संख्या तेजी से बढ़ जाए, तो मनुष्यों को किस प्रकार के खतरे का सामना करना पड़ेगा? शेरों का अपने शिकार को खाना एक सामान्य घटना है, लेकिन शेर का किसी व्यक्ति को खाना त्रासदी है। यह त्रासदी कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे परमेश्वर ने पूर्वनियत किया हो, यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो उसके शासन के अंतर्गत होती हो, और यह उसके द्वारा मानवजाति पर लाई गई त्रासदी तो बिल्कुल भी नहीं है। बल्कि यह ऐसी त्रासदी है, जिसे लोग स्वयं अपने ऊपर लाते हैं। इसलिए परमेश्वर की नजर में, सभी प्राणियों के मध्य संतुलन मानवजाति के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे पौधे हों या पशु, कोई भी अपना उचित संतुलन नहीं खो सकता। पौधे, पशु, पर्वत और झीलें—परमेश्वर ने मानवजाति के लिए एक नियमित पारिस्थितिक परिवेश तैयार किया है। लोगों के पास इस प्रकार का पारिस्थितिक परिवेश—एक संतुलित परिवेश—होने पर ही उनका जीवन सुरक्षित होता है। अगर वृक्षों या घास की प्रजनन करने की क्षमता खराब होती या उनकी प्रजनन की गति बहुत धीमी होती, तो क्या जमीन अपनी नमी न खो देती? अगर जमीन अपनी नमी खो देती, तो क्या वह फिर भी उर्वर होती? अगर जमीन अपनी वनस्पतियाँ और नमी खो देती, तो उसका बहुत जल्दी क्षरण हो जाता, और उसके स्थान पर रेत बन जाती। जब जमीन खराब हो जाती, तो लोगों का जीवन-परिवेश भी नष्ट हो जाता। और तब इस विनाश के साथ कई आपदाएँ आतीं। इस प्रकार के पारिस्थितिक संतुलन के बिना, इस प्रकार के पारिस्थितिक परिवेश के बिना, सभी चीजों के मध्य असंतुलन के कारण लोगों को बार-बार आपदाएँ सहनी पड़तीं। उदाहरण के लिए, जब ऐसा परिवेशगत असंतुलन होता है, जिसके कारण मेंढकों के पारिस्थितिक परिवेश का विनाश होने लगता है, तो वे सभी एक-साथ इकट्ठे हो जाते हैं, उनकी संख्या तेजी से बढ़ने लगती है, यहाँ तक कि शहरों में लोगों को ढेर सारे मेंढक गलियाँ पार करते हुए भी दिखते हैं। अगर बड़ी संख्या में मेंढक लोगों के जीवन-परिवेश पर कब्जा कर लें, तो इसे क्या कहा जाएगा? आपदा। इसे आपदा क्यों कहा जाएगा? ये छोटे जीव, जो मानवजाति के लिए फायदेमंद होते हैं, लोगों के लिए तब उपयोगी होते हैं, जब वे उस स्थान में रहते हैं जो उनके लिए उपयुक्त है; वे लोगों के जीवन-परिवेश का संतुलन बनाए रख सकते हैं। लेकिन अगर वे एक आपदा बन जाएँ, तो वे लोगों के जीवन की व्यवस्था को प्रभावित करेंगे। वे सभी चीजें और वे सभी तत्त्व, जो मेंढक अपने साथ अपने शरीर पर लाते हैं, लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। यहाँ तक कि वे लोगों के शारीरिक अंगों पर वार भी कर सकते हैं—यह आपदाओं का एक प्रकार है। एक अन्य प्रकार की आपदा, जिसका मनुष्यों ने अक्सर अनुभव किया है, भारी संख्या में टिड्डियों का प्रकट होना है। क्या यह एक आपदा नहीं है? हाँ, यह वास्तव में एक भयावह आपदा है। मनुष्य चाहे कितने भी समर्थ हों—लोग हवाई जहाज, तोपें और परमाणु बम बना सकते हैं—लेकिन जब टिड्डियाँ आक्रमण करती हैं, तो उनके पास क्या समाधान होता है? क्या वे उन पर तोप दाग सकते हैं? क्या वे उन्हें मशीनगनों से मार सकते हैं? नहीं मार सकते। तो क्या वे उन्हें भगाने के लिए उन पर कीटनाशकों का छिड़काव कर सकते हैं? यह भी कोई आसान काम नहीं। ये छोटी-छोटी टिड्डियाँ क्या करने आती हैं? वे खास तौर से फसलें और अनाज खाती हैं। जहाँ कहीं टिड्डियाँ जाती हैं, वहाँ की फसलें पूर्णतया नष्ट हो जाती हैं। टिड्डियों का आक्रमण होने पर वह अनाज, जिस पर किसान पूरे साल के लिए निर्भर होते हैं, टिड्डियों द्वारा पलक झपकते ही पूरा का पूरा चट किया जा सकता है। मनुष्य के लिए टिड्डियों का आना सिर्फ खीज का ही कारण नहीं होता—वह एक आपदा होती है। तो हम जानते हैं कि बड़ी संख्या में टिड्डियों का प्रकट होना एक प्रकार की आपदा है, लेकिन चूहों के बारे में क्या खयाल है? अगर चूहे खाने के लिए शिकारी पक्षी न हों, तो वे बहुत तेजी से बढ़ जाएँगे, तुम्हारी कल्पना से भी ज्यादा तेजी से। और अगर चूहे अनियंत्रित रूप से बढ़ते जाएँ, तो क्या मनुष्य अच्छा जीवन जी सकते हैं? मनुष्यों को किस प्रकार की स्थिति का सामना करना पड़ेगा? (महामारी का।) लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि महामारी ही इसका इकलौता परिणाम होगा? चूहे सब-कुछ खा जाएँगे, यहाँ तक कि वे लकड़ी तक कुतर डालेंगे। किसी घर में सिर्फ दो ही चूहे हों, तो वे भी वहाँ रहने वाले सभी लोगों के लिए मुसीबत बन जाते हैं। कभी वे तेल चुराकर पी जाते हैं, तो कभी रोटी या अनाज खा जाते हैं। और जो चीजें वे नहीं खाते, उन्हें भी कुतरकर बरबाद कर देते हैं। वे कपड़े, जूते, फर्नीचर—सब-कुछ कुतर जाते हैं। कभी-कभी वे अलमारी पर चढ़ जाते हैं—क्या बरतनों पर चूहों के चढ़ जाने के बाद उन्हें फिर से प्रयोग में लाया जा सकता है? उन्हें कीटाणुमुक्त करने के बाद भी तुम्हें तसल्ली नहीं होती, इसलिए तुम उन्हें फेंक ही देते हो। ये वे परेशानियाँ हैं, जो चूहे लोगों के लिए लाते हैं। हालाँकि चूहे छोटे जीव होते हैं, लेकिन लोगों के पास उनसे निपटने का कोई तरीका नहीं होता, उन्हें बस उनका उत्पात सहना पड़ता है। गंभीर विघ्न फैलाने के लिए चूहे का एक जोड़ा ही पर्याप्त है, उनके पूरे झुंड का तो फिर कहना ही क्या। अगर उनकी संख्या बढ़ जाए और वे आपदा बन जाएँ, तो नतीजे अकल्पनीय होंगे। चींटियों जैसे नन्हे प्राणी भी आपदा बन सकते हैं। अगर ऐसा हो जाए, तो उनके द्वारा मानवजाति को पहुँचाए जाने वाले नुकसान की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। चीटियाँ घरों को इतनी अधिक क्षति पहुँचा सकती हैं कि वे ढह जाते हैं। उनकी ताकत नजरअंदाज नहीं की जानी चाहिए। अगर विभिन्न प्रकार के पक्षी आपदा पैदा कर दें, तो क्या यह भयावह नहीं होगा? (हाँ।) दूसरे शब्दों में, जब भी जानवर या अन्य प्राणी, चाहे वे किसी भी प्रकार के हों, अपना संतुलन खो देते हैं, तो वे एक असामान्य और अनियमित दायरे के भीतर बढ़ते, प्रजनन करते और रहते हैं। यह मनुष्य के लिए अकल्पनीय परिणाम लेकर आएगा। यह न केवल लोगों के अस्तित्व और जीवन को प्रभावित करेगा, बल्कि यह मानवजाति के लिए आपदा भी लाएगा, यहाँ तक कि लोगों को पूर्ण विनाश और विलुप्त होने की नियति भी भुगतनी पड़ सकती है।
जब परमेश्वर ने सभी चीजों की सृष्टि की, तो उसने उन्हें संतुलित करने के लिए, पहाड़ों और झीलों, पौधों और सभी प्रकार के पशुओं, पक्षियों, कीड़ों-मकोड़ों के निवास की स्थितियाँ संतुलित करने के लिए सभी प्रकार की पद्धतियों और तरीकों का उपयोग किया। उसका लक्ष्य सभी प्रकार के प्राणियों को उन व्यवस्थाओं के अंतर्गत जीने और वंश-वृद्धि करने देना था, जिन्हें उसने स्थापित किया था। सृष्टि की कोई भी चीज इन व्यवस्थाओं के बाहर नहीं जा सकती, और व्यवस्थाएँ तोड़ी नहीं जा सकतीं। केवल इस प्रकार के आधारभूत परिवेश के अंतर्गत ही मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुरक्षित रूप से जीवित रह सकते हैं और वंश-वृद्धि कर सकते हैं। अगर कोई प्राणी परमेश्वर द्वारा स्थापित मात्रा या दायरे से बाहर जाता है, या वह उसके द्वारा निर्दिष्ट वृद्धि-दर, प्रजनन-आवृत्ति या संख्या पार कर जाता है, तो मानवजाति का जीवन-परिवेश विभिन्न मात्राओं में विनाश भुगतेगा। और साथ ही, मानवजाति का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। अगर किसी एक प्रकार का प्राणी संख्या में बहुत अधिक हो जाता है, तो वह लोगों का भोजन छीन लेगा, उनके जल-स्रोत नष्ट कर देगा, और उनके निवास-स्थान बरबाद कर देगा। इस तरह, मनुष्य का प्रजनन या उसके अस्तित्व की स्थिति तुरंत प्रभावित होगी। उदाहरण के लिए, पानी सभी चीजों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर चूहे, चींटियाँ, टिड्डियाँ और मेंढक या दूसरी तरह के जानवर बहुत ज्यादा होंगे, तो वे बहुत सारा पानी पी जाएँगे। जब वे ज्यादा मात्रा में जल पिएँगे, तो पेयजल के स्रोतों और जलीय क्षेत्रों के निश्चित दायरे में लोगों के पीने का पानी और जल-स्रोत कम हो जाएँगे और उन्हें जल की कमी अनुभव होगी। अगर सभी प्रकार के जानवरों की संख्या बढ़ जाने के कारण लोगों के पीने का पानी नष्ट, दूषित या खत्म हो जाता है, तो उस प्रकार के कठोर जीवन-परिवेश के अंतर्गत मानवजाति का अस्तित्व गंभीर रूप से खतरे में पड़ जाएगा। अगर केवल एक या फिर अनेक प्रकार के प्राणी अपनी उपयुक्त संख्या से आगे बढ़ जाते हैं, तो मानवजाति के अस्तित्व के स्थान के भीतर की हवा, तापमान, आर्द्रता, यहाँ तक कि हवा की संरचना भी विभिन्न मात्राओं में विषाक्त और नष्ट हो जाएगी। इन परिस्थितियों में मनुष्यों का अस्तित्व और उसकी नियति भी इन पारिस्थितिक कारकों से उत्पन्न खतरों में पड़ जाएगी। इसलिए, अगर ये संतुलन बिगड़ जाते हैं, तो वह हवा जिसमें लोग साँस लेते हैं, खराब हो जाएगी, वह जल जो वे पीते हैं, दूषित हो जाएगा, और वह तापमान जिसकी उन्हें जरूरत है, वह भी विभिन्न मात्राओं में परिवर्तित और प्रभावित होगा। अगर ऐसा होता है, तो वे जीवन-परिवेश, जो स्वभावतः मानवजाति के हैं, बहुत बड़े प्रभावों और चुनौतियों के अधीन हो जाएँगे। मनुष्यों के आधारभूत जीवन-परिवेशों के नष्ट हो जाने के इस प्रकार के परिदृश्य में मानवजाति की नियति और भविष्य की संभावनाएँ क्या होंगी? यह एक बहुत गंभीर समस्या है! चूँकि परमेश्वर जानता है कि किस कारण से सृष्टि की प्रत्येक चीज मानवजाति के लिए अस्तित्व में है, उसके द्वारा सृजित हर प्रकार की चीज की क्या भूमिका है, हर चीज लोगों पर कैसा प्रभाव डालती है, और वह मानवजाति को कितना लाभ पहुँचाती है, चूँकि परमेश्वर के हृदय में इस सबके लिए एक योजना है और वह स्वयं द्वारा सृजित सभी चीजों के हर पहलू का प्रबंधन करता है, इसलिए हर चीज जो वह करता है, मनुष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी है। इसलिए अब से जब तुम परमेश्वर द्वारा सृजित चीजों के मध्य कोई पारिस्थितिक घटना घटित होते देखो या परमेश्वर द्वारा सृजित चीजों के मध्य किसी प्राकृतिक नियम को कार्य करते देखो, तो परमेश्वर द्वारा सृजित किसी भी चीज की अनिवार्यता के बारे में कोई संदेह मत करना। अब तुम सभी चीजों के बारे में परमेश्वर की व्यवस्थाओं पर और मानवजाति का पोषण करने के उसके विभिन्न तरीकों पर मनमानी आलोचना करने के लिए अज्ञानता भरे शब्दों का उपयोग नहीं करोगे। न ही तुम परमेश्वर की सृष्टि की सभी चीजों के लिए उसकी व्यवस्थाओं पर मनमाने ढंग से निष्कर्ष नहीं निकालोगे। क्या ऐसा ही नहीं है?
यह सब क्या है, जिसके बारे में हम अभी बात करते रहे हैं? एक पल के लिए इसके बारे में सोचो। हर उस चीज में, जो परमेश्वर करता है, उसका अपना इरादा होता है। भले ही मनुष्य की नजर में उसका इरादा गूढ़ होता है, फिर भी वह हमेशा अटूट और सशक्त रूप से मानवजाति के जीवन से संबंधित होता है। यह बिलकुल अपरिहार्य है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर ने कभी ऐसा कोई काम नहीं किया है, जो व्यर्थ हो। हर चीज जो वह करता है, उसके पीछे के सिद्धांतों में उसकी योजना और बुद्धि शामिल होती है। उस योजना के पीछे का लक्ष्य और इरादा मनुष्य की सुरक्षा करना, और आपदा, अन्य प्राणियों के उत्पातों और परमेश्वर की सृष्टि की किसी भी चीज की वजह से होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान को टालने में मानवजाति की सहायता करना है। तो क्या यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर के कर्म, जिन्हें हमने इस विषय के अंतर्गत देखा है, एक अन्य तरीका निर्मित करते हैं, जिससे परमेश्वर मनुष्य का पोषण करता है? क्या हम कह सकते हैं कि इन कर्मों द्वारा परमेश्वर मानवजाति का भरण-पोषण और उसकी चरवाही कर रहा है? (हाँ।) क्या इस विषय और हमारी संगति के शीर्षक : “परमेश्वर सभी चीजों के लिए जीवन का स्रोत है,” के बीच एक मजबूत संबंध है? (हाँ।) इनके बीच एक मजबूत संबंध है, और यह विषय उसका एक पहलू है। इन विषयों के बारे में बात करने से पहले, लोगों में परमेश्वर, स्वयं परमेश्वर और उसके कर्मों की केवल कुछ अस्पष्ट कल्पनाएँ थीं—उनमें सच्ची समझ की कमी थी। हालाँकि, जब लोगों को उसके कर्मों और उन चीजों के बारे में बताया जाता है, जो उसने की हैं, तो वे, जो कुछ परमेश्वर करता है, उसके सिद्धांतों को समझ-बूझ सकते हैं और उनकी समझ हासिल कर सकते हैं और उनकी पहुँच के भीतर आ सकते हैं। हालाँकि परमेश्वर जब भी सभी चीजों की सृष्टि करने और उन पर शासन करने जैसी कोई चीज करता है, तो उसके हृदय में अत्यंत जटिल सिद्धांत, उसूल और नियम होते हैं, लेकिन अगर तुम लोगों को संगति में बस उनके एक भाग के बारे में जानने दिया जाए, तो क्या तुम लोग अपने हृदय में यह समझने में सक्षम नहीं होगे कि ये परमेश्वर के कर्म हैं, और ये जितने हो सकते हैं, उतने व्यावहारिक हैं? (हाँ।) तो परमेश्वर के बारे में तुम्हारी वर्तमान समझ किस रूप में पहले से अलग है? यह अपने सार में अलग है। पहले तुम्हारी समझ बहुत खोखली और अस्पष्ट थी, लेकिन अब तुम्हारी समझ में परमेश्वर के कर्मों और उसके स्वरूप से मेल खाने वाले बहुत सारे ठोस प्रमाण शामिल हैं। इसलिए, जो कुछ मैंने कहा है, वह सब परमेश्वर के बारे में तुम लोगों की समझ के लिए अद्भुत शैक्षिक सामग्री है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX