शैतान एक बार फिर अय्यूब को प्रलोभित करता है (अय्यूब के पूरे शरीर में दर्दनाक फोड़े निकल आते हैं) (I)
1. परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन
अय्यूब 2:3 यहोवा ने शैतान से पूछा, “क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? यद्यपि तू ने मुझे बिना कारण उसका सत्यानाश करने को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है।”
अय्यूब 2:6 यहोवा ने शैतान से कहा, “सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना।”
2. शैतान द्वारा कहे गए वचन
अय्यूब 2:4-5 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, “खाल के बदले खाल; परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। इसलिये केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियाँ और मांस छू, तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।”
3. अय्यूब परीक्षा से कैसे निपटता है
अय्यूब 2:9-10 तब उसकी स्त्री उससे कहने लगी, “क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।” उसने उससे कहा, “तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” इन सब बातों में भी अय्यूब ने अपने मुँह से कोई पाप नहीं किया।
अय्यूब 3:3-4 वह दिन जल जाए जिसमें मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिसमें कहा गया, “बेटे का गर्भ रहा।” वह दिन अन्धियारा हो जाए! ऊपर से ईश्वर उसकी सुधि न ले, और न उसमें प्रकाश हो।
परमेश्वर के मार्ग के प्रति अय्यूब का प्रेम अन्य सभी से बढ़कर है
परमेश्वर और शैतान के बीच कहे गए वचनों को पवित्र शास्त्र इस प्रकार अंकित करते हैं : “यहोवा ने शैतान से पूछा, ‘क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है कि पृथ्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? यद्यपि तू ने मुझे बिना कारण उसका सत्यानाश करने को उभारा, तौभी वह अब तक अपनी खराई पर बना है’” (अय्यूब 2:3)। इस संवाद में, परमेश्वर वही प्रश्न शैतान के सामने दोहराता है। यह ऐसा प्रश्न है जो हमें प्रथम परीक्षण के दौरान अय्यूब द्वारा जो प्रदर्शित किया और जिया गया था उसके बारे में यहोवा परमेश्वर का सकारात्मक आँकलन दिखाता है, और यह वह आँकलन है जो शैतान के प्रलोभन से होकर गुज़रने से पहले के अय्यूब के बारे में परमेश्वर के आँकलन से भिन्न नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि उसके ऊपर प्रलोभन के आने से पहले, परमेश्वर की नज़रों में अय्यूब पूर्ण था, और इसलिए परमेश्वर ने उसकी और उसके परिवार की रक्षा की थी, और उसे धन्य किया था; वह परमेश्वर की नज़रों में धन्य किए जाने योग्य था। प्रलोभन के पश्चात्, अय्यूब ने अपने होठों से पाप नहीं किया क्योंकि उसने अपनी संपत्ति और अपने बच्चों को गँवा दिया था, बल्कि यहोवा के नाम की निरंतर स्तुति ही करता रहा। उसके वास्तविक आचरण ने परमेश्वर से उसकी वाहवाही करवाई, और इसके कारण, परमेश्वर ने उसे पूरे अंक दिए। क्योंकि अय्यूब की नज़रों में, उसकी संतान या उसकी संपत्ति उससे परमेश्वर का त्याग करवाने के लिए पर्याप्त नहीं थे। दूसरे शब्दों में, उसके हृदय में परमेश्वर के स्थान को उसके बच्चों या संपत्ति के किसी टुकड़े से बदला नहीं जा सकता था। अय्यूब के प्रथम प्रलोभन के दौरान, उसने परमेश्वर को दिखाया कि उसके प्रति उसका प्रेम और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग के प्रति उसका प्रेम अन्य सभी से बढ़कर था। यह मात्र इतना ही है कि इस परीक्षण ने अय्यूब को यहोवा परमेश्वर से पुरस्कार प्राप्त करने और उसके द्वारा उसकी संपत्ति तथा बच्चों को छीन लिए जाने का अनुभव प्रदान किया था।
अय्यूब के लिए, यह एक सच्चा अनुभव था जिसने उसकी आत्मा को धोकर स्वच्छ कर दिया था, यह जीवन का एक बपतिस्मा था जिसने उसके अस्तित्व को परिपूर्ण किया था, और, इससे भी अधिक, यह एक आलीशान भोज था जिसने परमेश्वर के प्रति उसके समर्पण और उसके भय को कसौटी पर कसा था। इस प्रलोभन ने अय्यूब की स्थिति एक धनवान व्यक्ति से एक ऐसे व्यक्ति में बदल दी जिसके पास कुछ भी नहीं था, और इसने उसे मनुष्यजाति के प्रति शैतान के दुर्व्यवहार का अनुभव भी प्राप्त करने दिया था। उसकी अभावग्रस्तता ने उसे शैतान से घृणा करने को नहीं उकसाया; बल्कि, शैतान की नीच करतूतों में उसने शैतान की कुरूपता और घिनौनापन, और साथ ही परमेश्वर के प्रति शैतान की शत्रुता और विश्वासघात को भी देखा, और इसने उसे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर सदैव डटे रहने के लिए बेहतर ढंग से प्रोत्साहित किया। उसने शपथ ली कि वह संपत्ति, बच्चों या कुटुंबियों जैसे बाहरी कारकों की वजह से कभी परमेश्वर को नहीं त्यागेगा और परमेश्वर के मार्ग की तरफ़ पीठ नहीं फेरेगा, न ही वह कभी शैतान, संपत्ति, या किसी व्यक्ति का दास होगा; यहोवा परमेश्वर के अलावा, कोई भी उसका प्रभु, या उसका परमेश्वर नहीं हो सकता है। ऐसी थीं अय्यूब की आकांक्षाएँ। दूसरी ओर, अय्यूब ने कुछ अर्जित भी किया था : परमेश्वर द्वारा उसे दिए गए परीक्षणों के बीच उसने प्रचुर धन-संपत्ति प्राप्त की थी।
पिछले कई दशकों के अपने जीवन के दौरान, अय्यूब ने यहोवा के कर्म देखे थे और अपने लिए यहोवा परमेश्वर के आशीष प्राप्त किए थे। वे ऐसे आशीष थे जिन्होंने उसे अत्यंत असहज और ऋणी महसूस करते छोड़ दिया था, क्योंकि वह मानता था कि उसने परमेश्वर के लिए कुछ भी नहीं किया था, फिर भी उसे इतने बड़े आशीष वसीयत में दिए गए थे और उसने इतने अधिक अनुग्रह का आनंद लिया था। इस कारण से, वह प्रायः अपने हृदय में प्रार्थना करता था, यह आशा करते हुए कि वह परमेश्वर का ऋण चुका पाएगा, यह आशा करते हुए कि उसे परमेश्वर के कर्मों और महानता की गवाही देने का अवसर मिलेगा, और यह आशा करते हुए कि परमेश्वर उसके समर्पण की परीक्षा लेगा, और, इससे बढ़कर, यह भी कि उसके विश्वास को शुद्ध किया जा सकता था, जब तक कि उसका समर्पण और उसका विश्वास परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर लेते हैं। फिर, जब परीक्षण अय्यूब के ऊपर आ पड़ा, तो उसने मान लिया कि परमेश्वर ने उसकी प्रार्थनाएँ सुन ली हैं। अय्यूब ने यह अवसर किसी भी अन्य चीज़ से बढ़कर सँजोया, और इस प्रकार उसने इसे हल्के ढंग से बरतने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि उसकी जीवन भर की सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई हो सकती थी। इस अवसर के आगमन का अर्थ था कि उसके समर्पण और परमेश्वर के प्रति भय की परीक्षा ली जा सकती थी, और उन्हें शुद्ध किया जा सकता था। इतना ही नहीं, इसका अर्थ था कि अय्यूब के पास परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का एक अवसर था, जो उसे इस प्रकार परमेश्वर के और क़रीब ला रहा था। परीक्षण के दौरान ऐसे विश्वास और अनुसरण ने उसे और अधिक पूर्ण होने दिया और परमेश्वर के इरादे की और अधिक समझ लेने दी। अय्यूब परमेश्वर के आशीषों और अनुग्रहों के लिए और अधिक कृतज्ञ हो गया, अपने हृदय में उसने परमेश्वर के कर्मों पर और अधिक स्तुति की झ़ड़ी लगा दी, और वह परमेश्वर के प्रति और अधिक भयभीत और श्रद्धालु था, और परमेश्वर की सुंदरता, महानता तथा पवित्रता के लिए और अधिक लालायित था। इस समय, यद्यपि परमेश्वर की नज़रों में अय्यूब अब भी वह व्यक्ति था जो परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर रहता था, फिर भी उसके अनुभवों को मानते हुए अय्यूब की आस्था और ज्ञान बहुत तेज़ी से कई गुना बढ़ गया था : उसकी आस्था बढ़ चुकी थी, उसके समर्पण को पाँव रखने की जगह मिल गई थी, और परमेश्वर के प्रति उसका भय और अधिक गहरा हो चुका था। यद्यपि इस परीक्षण ने अय्यूब की आत्मा और जीवन को रूपांतरित कर दिया, फिर भी ऐसे रूपांतरण ने अय्यूब को संतुष्ट नहीं किया, न ही इसने उसकी आगे की प्रगति को धीमा किया। साथ ही साथ, इस परीक्षण से उसने जो प्राप्त किया था उसका हिसाब लगाते हुए, और स्वयं अपनी कमियों पर विचार करते हुए, उसने ख़ामोशी से प्रार्थना की, अगले परीक्षण के अपने ऊपर आने की प्रतीक्षा करने लगा, क्योंकि वह अपनी आस्था, समर्पण और परमेश्वर के प्रति भय को परमेश्वर के अगले परीक्षण के दौरान ऊँचा उठाने के लिए लालायित था।
परमेश्वर मनुष्य के अंतर्तम विचारों और मनुष्य जो कहता और करता है उस सबका अवलोकन करता है। अय्यूब के विचार यहोवा परमेश्वर के कानों तक पहुँच गए, और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थनाएँ सुन लीं, और इस तरह, जैसा अपेक्षित था, अय्यूब के लिए परमेश्वर का अगला परीक्षण आ गया।
अत्यधिक पीड़ा के बीच, अय्यूब मनुष्यजाति के लिए परमेश्वर की परवाह का सच में अहसास करता है
शैतान से यहोवा परमेश्वर के प्रश्नों के उपरांत, शैतान गुपचुप खुश था। ऐसा इसलिए था क्योंकि शैतान जानता था कि उसे एक बार फिर उस मनुष्य पर हमला करने की अनुमति दी जाएगी जो परमेश्वर की नज़रों में पूर्ण था—शैतान के लिए, यह एक दुर्लभ अवसर था। शैतान अय्यूब के दृढ़ विश्वास को पूरी तरह कमज़ोर करने के लिए इस अवसर का उपयोग करना चाहता था, ताकि वह परमेश्वर में अपना विश्वास गँवा दे और इस प्रकार अब और परमेश्वर का भय न माने या यहोवा के नाम को धन्य न करे। यह शैतान को एक अवसर देता : स्थान या समय कोई भी हो, वह अय्यूब को अपनी आज्ञा के प्रति उपकृत खिलौना बना पाएगा। शैतान ने अपने दुष्ट इरादे तो कोई निशान छोड़े बिना छिपा लिए, परंतु वह अपनी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति को काबू में नहीं रख सका। इस सच्चाई का संकेत यहोवा परमेश्वर के वचनों के इसके उत्तर में दिया गया है, जैसा पवित्र शास्त्र में दर्ज है : “शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, ‘खाल के बदले खाल; परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। इसलिये केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियाँ और मांस छू, तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा’” (अय्यूब 2:4-5)। यह असंभव है कि परमेश्वर और शैतान के बीच इस वार्तालाप से शैतान के विद्वेष का तात्विक ज्ञान और समझ प्राप्त न हो। शैतान की इन भ्रामक बातों को सुनने के बाद, वे सब जो सत्य से प्रेम और बुराई से घृणा करते हैं शैतान की नीचता और निर्लज्जता से निस्संदेह और अधिक नफ़रत करेंगे, शैतान की भ्रांतियों से संत्रस्त और जुगुप्सा महसूस करेंगे, और साथ ही, वे अय्यूब के लिए अथाह प्रार्थनाएँ और सच्ची कामनाएँ करेंगे, विनती करते हुए कि यह खरा मनुष्य पूर्णता प्राप्त कर सके, मन्नत मानते हुए कि परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने वाला यह मनुष्य सदा के लिए शैतान के प्रलोभनों पर विजय पाए, और परमेश्वर के मार्गदर्शन और उसकी आशीषों के बीच, प्रकाश में जीवन बिताए; इस तरह, ऐसे लोग यह भी कामना करेंगे कि अय्यूब के धार्मिक कर्म सदैव उन लोगों को प्रेरित और प्रोत्साहित कर सकें जो परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करते हैं। हालाँकि शैतान का द्वेषपूर्ण इरादा इस उद्घोषणा में देखा जा सकता है, किंतु फिर भी परमेश्वर ने शैतान की “विनती” प्रसन्नचित्त होकर मान ली—परंतु उसने एक शर्त भी रख दी : “सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना” (अय्यूब 2:6)। चूँकि, इस बार, शैतान ने अय्यूब के माँस और हड्डियों को नुक़सान पहुँचाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाने की माँग की थी, इसलिए परमेश्वर ने कहा, “केवल उसका प्राण छोड़ देना।” इन वचनों का अर्थ यह है कि उसने अय्यूब की देह शैतान को दे दी, परंतु अय्यूब का जीवन परमेश्वर ने रख लिया। शैतान अय्यूब का जीवन नहीं ले सकता था, परंतु इसके अलावा शैतान अय्यूब के विरुद्ध कोई भी उपाय या रीति उपयोग में ला सकता था।
परमेश्वर की अनुमति प्राप्त करने के बाद, शैतान अय्यूब पर झपटा और उसकी चमड़ी को पीड़ा पहुँचाने के लिए उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया, उसके पूरे शरीर पर पीड़ादायक फोड़े पैदा कर दिए, और अय्यूब ने अपनी चमड़ी पर पीड़ा महसूस की। अय्यूब ने यहोवा परमेश्वर की चमत्कारिकता और पवित्रता की स्तुति की, जिसने शैतान को उसके ढीठपन में और भी अधिक जघन्य बना दिया। क्योंकि वह मनुष्य को पीड़ा पहुँचाने का आनंद महसूस कर चुका था, इसलिए शैतान ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और अय्यूब का माँस खरोंच दिया, जिससे उसके पीड़ादायक फोड़े और तीखे हो गए। अय्यूब ने तत्काल अपनी देह पर ऐसी पीड़ा और यंत्रणा महसूस की जिसका कोई सानी नहीं था, और वह अपने हाथों से स्वयं को सिर से पाँव तक मसलने के सिवा और कुछ नहीं कर सका, मानो यह उसके शरीर की इस पीड़ा के द्वारा उसकी आत्मा को पहुँचाए गए इस आघात से उसे राहत दिलाएगा। उसे अहसास हुआ कि परमेश्वर उसकी बगल में खड़े होकर उसे देख रहा था, और उसने अपने को मज़बूत बनाने का भरसक प्रयत्न किया। वह एक बार फिर भूमि पर घुटनों के बल बैठ गया, और कहा : “तू मनुष्य के हृदय के भीतर झाँकता है, तू उसकी दुर्दशा देखता है; उसकी कमज़ोरी तुझे चिंतित क्यों करती है? यहोवा परमेश्वर के नाम की स्तुति हो।” शैतान ने अय्यूब का असहनीय दर्द देखा, परंतु उसने अय्यूब को यहोवा परमेश्वर का नाम त्यागते नहीं देखा। इसलिए उसके टुकड़े-टुकड़े करने को अधीर होकर उसने अय्यूब की हड्डियों में पीड़ा पहुँचाने के लिए जल्दी से अपना आगे हाथ बढाया। तत्क्षण, अय्यूब ने अभूतपूर्व यंत्रणा महसूस की; यह ऐसा था मानो उसका माँस हड्डियों से चीरकर अलग कर दिया गया था, और मानो उसकी हड्डियों को टुकड़े-टुकड़े करके अलग किया जा रहा था। इस अत्यंत दुखदायी पीड़ा ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया कि इससे तो मर जाना बेहतर होता...। इस यंत्रणा को सहने की उसकी क्षमता अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थी...। वह चीखना चाहता था, वह दर्द को कम करने की कोशिश में अपने शरीर की चमड़ी को चीरकर निकाल देना चाहता था—फिर भी उसने अपनी चीखें रोक लीं, और अपने शरीर की चमड़ी को नहीं चीरा, क्योंकि वह शैतान को अपनी कमज़ोरी देखने देना नहीं चाहता था। और इसलिए अय्यूब एक बार फिर घुटनों के बल बैठा, परंतु इस बार उसने यहोवा परमेश्वर की उपस्थिति महसूस नहीं की। वह जानता था कि यहोवा परमेश्वर अक़्सर उसके सामने, और उसके पीछे, और उसके दोनों तरफ होता था। परंतु उसकी पीड़ा के दौरान, परमेश्वर ने एक बार भी नहीं देखा; उसने अपना चेहरा ढँक लिया था और वह छिपा हुआ था, क्योंकि मनुष्य के उसके सृजन का उसका अभिप्राय मनुष्य के ऊपर पीड़ा बरपाना नहीं था। इस समय, अय्यूब रो रहा था, और इस शारीरिक यंत्रणा को सहने का भरसक प्रयास कर रहा था, फिर भी वह परमेश्वर को धन्यवाद देने से अपने आपको अब और रोक नहीं सका : “मनुष्य पहले धक्के में ही गिर जाता है, वह कमज़ोर और शक्तिहीन है, वह कच्चा और अज्ञानी है—तू उसके प्रति इतना चिंतित और नरमदिल होना क्यों चाहेगा? तू मुझे मारता है, पर ऐसा करने से तुझे तकलीफ़ होती है। मनुष्य में क्या है जो तेरी देखभाल और चिंता के लायक है?” अय्यूब की प्रार्थनाएँ परमेश्वर के कानों तक पहुँच गईं, और परमेश्वर ख़ामोश था, कोई भी आवाज़ किए बिना बस देख रहा था...। हर उपलब्ध चाल आज़माने और उसका कोई फायदा नहीं होने पर, शैतान चुपचाप चला गया, किंतु इससे परमेश्वर द्वारा अय्यूब की परीक्षाओं का अंत नहीं हुआ। चूँकि अय्यूब में प्रकट की गई परमेश्वर की सामर्थ्य सार्वजनिक नहीं की गई थी, इसलिए अय्यूब की कहानी शैतान के पीछे हटने के साथ समाप्त नहीं हुई। अन्य पात्रों के प्रवेश करने के साथ, अभी और भी दर्शनीय दृश्य आने बाकी थे।
अय्यूब द्वारा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का एक और आविर्भाव सभी चीजों में उसके द्वारा परमेश्ववर के नाम का गुणगान करना है
अय्यूब ने शैतान के विध्वंस झेले थे, किंतु फिर भी उसने यहोवा परमेश्वर का नाम नहीं तजा। उसकी पत्नी पहली थी जो बाहर आई और, मनुष्य की आँखों को दिखाई दे सकने वाले रूप में शैतान की भूमिका निभाते हुए, उसने अय्यूब पर आक्रमण किया। मूल पाठ इसका वर्णन इस प्रकार करता है : “तब उसकी स्त्री उससे कहने लगी, ‘क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा’” (अय्यूब 2:9)। ये वे शब्द थे जो मनुष्य के छद्मभेष में शैतान के द्वारा कहे गए थे। वे एक आक्रमण, और एक आरोप, और साथ ही फुसलावा, एक प्रलोभन, और कलंक भी थे। अय्यूब की देह पर आक्रमण करने में विफल होने पर, फिर शैतान ने उसकी सत्यनिष्ठा पर सीधा हमला किया, वह इसका उपयोग अय्यूब से उसकी सत्यनिष्ठा छुड़वाने, परमेश्वर का त्याग करवाने, और जीते नहीं रहने देने के लिए करना चाहता था। इसलिए शैतान भी अय्यूब को उकसाने के लिए ऐसे वचनों का उपयोग करना चाहता था : यदि अय्यूब यहोवा का नाम त्याग देता, तो उसे ऐसी यंत्रणा सहने की आवश्यकता नहीं होती, वह अपने को देह की यंत्रणा से मुक्त कर सकता था। अपनी पत्नी की सलाह का सामना करने पर, अय्यूब ने यह कहकर उसे झिड़का, “तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” (अय्यूब 2:10)। अय्यूब लंबे समय से इन वचनों को जानता था, परंतु इस समय उनके बारे में अय्यूब के ज्ञान का सत्य सिद्ध हो गया था।
जब उसकी पत्नी ने उसे परमेश्वर को कोसने और मर जाने की सलाह दी, तो उसका आशय था : “तेरा परमेश्वर तुझसे ऐसा ही बर्ताव करता है, तो तू उसे कोसता क्यों नहीं? अभी भी जीवित रहकर तू क्या कर रहा है? तेरा परमेश्वर तेरे प्रति इतना अनुचित है, फिर भी तू कहता है कि ‘यहोवा का नाम धन्य है’। जब तू उसके नाम को धन्य कहता है तो वह तेरे ऊपर आपदा कैसे ला सकता है? जल्दी कर और उसका नाम त्याग दे, और अब से उसका अनुसरण मत करना। इसके बाद, तेरी परेशानियाँ समाप्त हो जाएँगी।” इसी पल, वह गवाही उत्पन्न हुई जो परमेश्वर अय्यूब में देखना चाहता था। कोई साधारण मनुष्य ऐसी गवाही नहीं दे सकता था, न ही हम इसके बारे में बाइबल की किसी अन्य कहानी में पढ़ते हैं—परंतु परमेश्वर ने अय्यूब द्वारा ये वचन कहे जाने के बहुत पहले ही यह देख लिया था। परमेश्वर ने तो इस अवसर का उपयोग बस अय्यूब को सबके सामने यह साबित करने देने के लिए करना चाहा था कि परमेश्वर सही था। अपनी पत्नी की सलाह का सामना करने पर, अय्यूब ने न केवल अपनी सत्यनिष्ठा को नहीं छोड़ा या परमेश्वर को नहीं त्यागा, बल्कि उसने अपनी पत्नी से यह भी कहा : “क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” क्या ये वचन बहुत महत्व रखते हैं? यहाँ, केवल एक ही तथ्य इन वचनों का महत्व सिद्ध करने में सक्षम है। इन वचनों का महत्व यह है कि उन्हें परमेश्वर द्वारा अपने हृदय में स्वीकार किया गया है, ये वे वचन हैं जो परमेश्वर द्वारा वांछित थे, ये वे वचन हैं जिन्हें परमेश्वर सुनना चाहता था, और ये वे परिणाम हैं जिन्हें परमेश्वर देखने को लालायित था; ये वचन अय्यूब की गवाही के तत्व भी हैं। इसमें, अय्यूब की पूर्णता, खरापन, परमेश्वर का भय, और बुराई से दूर रहना प्रमाणित हुए थे। अय्यूब की अनमोलता इसमें निहित है कि जब उसे प्रलोभित किया गया था, और यहाँ तक कि जब उसका पूरा शरीर दुःखदायी फोड़ों से ढँक गया था, जब उसने अत्यधिक यंत्रणा सही थी, और जब उसकी पत्नी और कुटुंबियों ने उसे सलाह दी थी, तब भी उसने ऐसे वचन कहे थे। इसे दूसरे ढँग से कहें, तो अपने हृदय में वह मानता था कि, चाहे जो भी प्रलोभन हों, या दारुण दुःख या यंत्रणा चाहे जितनी भी कष्टदायी हो, यहाँ तक कि उसके ऊपर यदि चाहे मृत्यु ही आनी हो, तब भी वह परमेश्वर को नहीं त्यागेगा या परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग नहीं ठुकराएगा। तो, तुम देखो, कि परमेश्वर उसके हृदय में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता था, और उसके हृदय में केवल परमेश्वर ही था। यही कारण है कि हम पवित्र शास्त्र में उसके बारे में ऐसे विवरण पढ़ते हैं : इन सब बातों में भी अय्यूब ने अपने मुँह से कोई पाप नहीं किया। उसने न केवल अपने होंठों से पाप नहीं किया, बल्कि अपने हृदय में उसने परमेश्वर के बारे में कोई शिकायत भी नहीं की। उसने परमेश्वर के बारे में ठेस पहुँचाने वाले वचन नहीं कहे, न ही उसने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया। न केवल उसके मुँह ने परमेश्वर के नाम को धन्य किया, बल्कि अपने हृदय में भी उसने परमेश्वर के नाम को धन्य किया; उसका मुँह और हृदय एक जैसे थे। यह परमेश्वर द्वारा देखा गया सच्चा अय्यूब था, और बिल्कुल यही वह कारण था कि क्यों परमेश्वर ने अय्यूब को सँजोकर रखा था।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II