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20 बाइबल छंद क्रोध के बारे में - आपको सिखाते हैं कि अपने क्रोध को कैसे नियंत्रित करें

दोस्तों, क्या आप अक्सर अपना आपा खो देने और दूसरों को चोट पहुँचाने के कारण पछतावा और तिरस्कार महसूस करते हैं? क्या आप हमेशा खुद को नियंत्रित करना चाहते हैं लेकिन बार-बार असफल होते हैं? क्या आप जानना चाहते हैं कि अपने क्रोध को पूरी तरह से कैसे दूर किया जाए? निम्नलिखित बाइबिल छंद और संबंधित सामग्री क्रोध के बारे में आपको रास्ता दिखाएंगे।

20 bible verses about anger, 20 बाइबल छंद क्रोध के बारे में

“क्रोध तो करो, पर पाप मत करो; सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। और न शैतान को अवसर दो” (इफिसियों 4:26-27)

“क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उससे बुराई ही निकलेगी” (भजन संहिता 37:8)

“जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है वह बड़ा समझवाला है, परन्तु जो अधीर होता है, वह मूर्खता को बढ़ाता है” (नीतिवचन 14:29)

“प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। अशोभनीय व्यवहार नहीं करता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुँझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है” (1 कुरिन्थियों 13:4-7)

“कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध भड़क उठता है” (नीतिवचन 15:1)

“जो झट क्रोध करे, वह मूर्खता का काम करेगा, और जो बुरी युक्तियाँ निकालता है, उससे लोग बैर रखते हैं” (नीतिवचन 14:17)

“क्रोध करनेवाला मनुष्य झगड़ा मचाता है और अत्यन्त क्रोध करनेवाला अपराधी भी होता है” (नीतिवचन 29:22)

“क्रोधी मनुष्य का मित्र न होना, और झट क्रोध करनेवाले के संग न चलना” (नीतिवचन 22:24)

“जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको शोभा देता है” (नीतिवचन 19:11)

“अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है” (सभोपदेशक 7:9)

“पर अब तुम भी इन सब को अर्थात् क्रोध, रोष, बैर-भाव, निन्दा, और मुँह से गालियाँ बकना ये सब बातें छोड़ दो” (कुलुस्सियों 3:8)

“क्रोधी पुरुष झगड़ा मचाता है, परन्तु जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है, वह मुकद्दमों को दबा देता है” (नीतिवचन 15:18)

“सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैर-भाव समेत तुम से दूर की जाए” (इफिसियों 4:31)

“परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे 'अरे मूर्ख' वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा” (मत्ती 5:22)

“हे मेरे प्रिय भाइयों, यह बात तुम जान लो, हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो। क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्‍वर के धार्मिकता का निर्वाह नहीं कर सकता है” (याकूब 1:19-20)

“बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूँढ़ और उसी का पीछा कर” (भजन संहिता 34:14)

“मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझसे सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (मत्ती 11:29)

“विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपने मन को वश में रखना, नगर को जीत लेने से उत्तम है” (नीतिवचन 16:32)

“जो बड़ा क्रोधी है, उसे दण्ड उठाने दे; क्योंकि यदि तू उसे बचाए, तो बारम्बार बचाना पड़ेगा” (नीतिवचन 19:19)

“क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं। हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊँची बात को, जो परमेश्वर की पहचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं” (2 कुरिन्थियों 10:4-5)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

एक बार जब मनुष्य को हैसियत मिल जाती है, तो उसे अकसर अपनी मन:स्थिति पर नियंत्रण पाने में कठिनाई महसूस होगी, और इसलिए वह अपना असंतोष व्यक्त करने और अपनी भावनाएँ प्रकट करने के लिए अवसरों का इस्तेमाल करने में आनंद लेता है; वह अकसर बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के क्रोध से आगबबूला हो जाता है, ताकि वह अपनी योग्यता दिखा सके और दूसरे जान सकें कि उसकी हैसियत और पहचान साधारण लोगों से अलग है। निस्संदेह, बिना किसी हैसियत वाले भ्रष्ट लोग भी अकसर नियंत्रण खो देते हैं। उनका क्रोध अकसर उनके निजी हितों को नुकसान पहुँचने के कारण होता है। अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए भ्रष्ट मनुष्य बार-बार अपनी भावनाएँ जाहिर करता है और अपना अहंकारी स्वभाव दिखाता है। मनुष्य पाप के अस्तित्व का बचाव और समर्थन करने के लिए क्रोध से आगबबूला हो जाता है, अपनी भावनाएँ जाहिर करता है, और इन्हीं तरीकों से मनुष्य अपना असंतोष व्यक्त करता है; वे अशुद्धताओं, कुचक्रों और साजिशों से, मनुष्य की भ्रष्टता और बुराई से, और अन्य किसी भी चीज़ से बढ़कर, मनुष्य की निरंकुश महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से लबालब भरे हैं।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II' से उद्धृत

कुछ भी करने से पहले, तुम्हें यह सोचना चाहिए कि क्या यह वास्तव में आवश्यक है। यदि तुमने अभी तक इसके बारे में नहीं सोचा है, तो सुनिश्चित करो कि तुम्हारा मन शांत है। इससे पहले कि तुम कुछ भी करो, इससे पहले कि तुम्हारा क्रोध फूट पड़े, तुम्हें खुद को शांत करना होगा, परमेश्वर का नाम पुकारना होगा, और इस पर विचार करना होगा कि तुम जो कर रहे हो क्या वह उसकी इच्छा के अनुरूप है; यदि तुम जो कर रहे हो, वह परमेश्वर के लिए असंतोषजनक है, तो वह तुम्हारी गर्ममिज़ाजी को थोड़ा-थोड़ा करके कम करने में तुम्हारी मदद करेगा और स्थिति को सुलझाएगा। क्या इससे तुम्हें लाभ होगा? यदि लोग एक साथ होने पर बहुत ज्यादा अड़ियल हो जाते हैं, तो उनके लिए अपने रिश्ते की सबसे शुरुआती स्थिति में वापस आना मुश्किल होगा, इसलिए, जब तुम अपना गुस्सा निकालने वाले होते हो, जब बेतकल्लुफ़ी और गर्ममिज़ाजी फूट निकलने वाली होती हैं, और जब यह बेतकल्लुफ़ी और गर्ममिज़ाजी दूसरों को हानि पहुँचाने वाली होती हैं, तो बेहतर होगा कि तुम कुछ देर के लिए सोचो, और परमेश्वर से और अधिक प्रार्थना करने का ध्यान रखो। चाहे कलीसिया के भाई-बहन हों, या तुम्हारे परिवार के सदस्य—तुम्हें उन सभी के साथ मिलजुल कर रहना होगा। यह न्यूनतम आवश्यकता होती है।

— "अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य-वास्तविकता में प्रवेश के अभ्यास के लिए सबसे मूलभूत सिद्धांत' से उद्धृत

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