पाप पर विजय कैसे पाएँ: अंतत: मैंने शुद्धता का पथ पा लिया और मुक्त हो गयी
- त्वरित नेविगेशन मेन्यू
- पापों के बंधन से निकल न पाने में असमर्थता के कारण मैं व्यथित महसूस करती थी
- जब प्रभु लौटेंगे तो क्या वे नए कार्य करेंगे?
- क्या अच्छा व्यवहार दर्शाता है कि हमारे स्वभावों में बदलाव आया है?
- तो परमेश्वर ऐसे मनुष्य का न्याय करता है और उसे शुद्ध करता है
- मैं परमेश्वर की वाणी को पहचान जाती हूँ और खुशी से प्रभु की वापसी का स्वागत करती हूँ
पापों के बंधन से निकल न पाने में असमर्थता के कारण मैं व्यथित महसूस करती थी
मैं एक ईसाई हूँ। प्रभु में विश्वास करना शुरू करने से पहले, एक युवा महिला के नाते मुझमें हमेशा दूसरों से आगे निकलने की बड़ी चाह थी। चूँकि मैं अपनी माँ से अधिक शिक्षित थी इसलिए मैं हमेशा अपनी माँ के सुझावों की अवहेलना करती थी। मेरी माँ भी अपने ही विचारों पर अड़े रहने वालों में से थीं, हमेशा मुझसे अपना कहा मनवाने की कोशिश करती थीं, और इसलिए हम दोनों अक्सर अपनी अलग-अलग राय के कारण लड़ते रहते थे। मेरी माँ के साथ इस अटपटे रिश्ते के कारण मुझे बहुत बुरा लगता था, लेकिन मैं इसे बदलने के लिए मैं कुछ नहीं कर सकती थी। जब मैंने प्रभु पर विश्वास करना शुरू किया, तो मेरे भाई-बहनों ने मुझे संगति देते हुए कहा, "हमें छुटकारा दिलाने के लिए प्रभु यीशु को क्रूस पर चढ़ाया गया था और उन्होंने हमारे पापों को क्षमा कर दिया ताकि हम उनकी प्रचुर कृपा का आनंद ले सकें। प्रभु हमसे प्रेम करते हैं और हमें सिखाते हैं कि हम अपने पड़ोसियों से खुद की तरह प्यार करना चाहिए। इसलिए, हमें अन्य लोगों से प्यार करना सीखना चाहिए…।" प्रभु यीशु के प्रेम ने मुझे बहुत प्रेरित किया और मैं प्रभु की शिक्षाओं के अनुसार अभ्यास करते हुए अपने परिवार और अपने आसपास के लोगों से प्यार करना चाहती थी। इसके बाद, जब भी मैं अपनी माँ से किसी भी बात पर असहमत होती, तो मैं अपनी माँ को पहले बोलने देती थी और पूरी कोशिश करती थी कि उनके साथ बहस न करूँ। यदि मैं उस समय शांति बनाए रखने में खुद को असमर्थ पाकर अपनी माँ से किसी बात पर बहस करना शुरू कर देती थी, तो मैं बाद में उनके पास जाकर अपनी गलती मान लेती थी। कुछ समय बाद, मुझे लगा जैसे मेरे स्वभाव में बहुत सुधार हुआ है, और मेरी माँ के साथ मेरा रिश्ता थोड़ा-बहुत सहज हो गया है।
तब मुझे लगा था कि मेरी माँ के साथ मेरा रिश्ता बेहतर होता जाएगा, लेकिन वैसा नहीं हुआ जैसा कि मैंने सोचा था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं अभी भी अपने गुस्से को काबू में नहीं कर पा रही थी और मैं फिर से अपनी माँ के साथ बहस करने लगी। हालाँकि कभी-कभी मैं उनसे कुछ नहीं कहती थी, फिर भी मैं अंदर ही अंदर असंतुष्ट महसूस कर रही थी। मेरी माँ ने भी मुझे झिड़कते हुए कहा, "अब तो तुम प्रभु पर विश्वास करती हो, फिर अब तक तुम्हारा स्वभाव इतना ख़राब कैसे है?" उनकी बातें सुनकर मुझे बुरा लगा। मुझे लगा कि मेरी सारी मेहनत, वे सारे परिवर्तन जो मैंने अनुभव किए थे, मिट्टी में मिल गए। इसके बारे में सोचूँ तो आखिर ऐसा ही हुआ भी तो था। भले ही मैं बदलना चाहती थी, लेकिन हर समय मैं आपा खोने से खुद को रोक नहीं पाती थी। उस समय, न चाहते हुए भी कुछ सवाल मेरे मन में आए: "मैं अभी भी अपनी माँ के साथ लगातार बहस क्यों कर रही हूँ? मैं प्रभु के वचनों का पालन क्यों नहीं कर पा रही? मैं पाप के बंधन से कैसे मुक्त हो सकती हूँ?"
बाद में, मैंने कलीसिया के अपने भाई-बहनों से इस मामले के बारे में बात की, और उनमें से कुछ ने मुझसे कहा, "आपको आत्म-संयम सीखना होगा। जैसे-जैसे प्रभु के साथ हमारा संबंध घनिष्ठ होता जाता है, हम अपने परिवार-जनों के प्रति अधिक सहिष्णु होते जाते हैं।" कुछ अन्य लोगों ने कहा, "उतार-चढ़ाव का यह पड़ाव पूरी तरह से सामान्य है, लेकिन हमारे बदलाव हमेशा ऊपर की ओर बढ़ते हैं। यह निश्चित है कि हम जितना बदलते हैं, उतने ही बेहतर होते जाते हैं, इसलिए मन में कोई संदेह न रखें। प्रभु का उद्धार पूरी तरह सम्पूर्ण है और वह हमारे जीवन में अपना कार्य शुरू करेंगे ताकि हम नव-निर्मित लोग बनें।" मैंने भी यह सोचकर खुद को सांत्वना दी, "शायद मैं इस पर अच्छे से मेहनत नहीं कर रही। इसके अलावा, मुझे प्रभु में विश्वास करते हुए ज़्यादा समय भी नहीं हुआ है, मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है, इसीलिए मैं अपने गुस्से को काबू में नहीं रख पाती। जब मुझे प्रभु पर विश्वास करते हुए ज़्यादा समय हो जाएगा, तब मैं प्रभु के वचनों को व्यवहार में लाने में सक्षम हो जाऊँगी।" इसके बाद, जब भी मैं अपनी माँ के साथ हमारे मतभेदों पर बहस करती थी, तो मैं खुद को गुस्सा करने से रोकने की पूरी कोशिश करती थी। इस तरह से अभ्यास करने से कभी-कभी कुछ प्रभाव पड़ता था, लेकिन मैं ज़्यादा देर खुद को काबू नहीं कर पाती थी और अपना आपा खो देती थी। अपने दर्द को झेलते हुए मैं बस इतना प्रभु के सामने जाकर प्रार्थना कर सकती थी: "हे प्रभु! मैं कभी भी खुद को गुस्सा करने से नहीं रोक पाती और मैं खुद को संयमित नहीं कर पाती। मुझे नहीं पता क्या करना है। क्या आप कृपा कर मेरी सहायता कर सकते हैं? …"
जब प्रभु लौटेंगे तो क्या वे नए कार्य करेंगे?
खुशनसीबी से मुझे ऑनलाइन बहुत से भाई-बहनों से मिलने का मौका मिला। हम अक्सर साथ में बाइबल पढ़ा करते थे और एक-दूसरे के साथ सभाओं में शामिल होते थे। हम बाइबल के पदों के बारे में अपने ज्ञान और समझ पर एक-दूसरे से चर्चा करते थे। इनमें ख़ासकर, भाई लिन की संगति बहुत रोशन और प्रबुद्ध करने वाली होती थी; मैंने इनसे बहुत लाभ पाया और बहुत से ऐसे सत्यों को समझा जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पायी थी। इन भाई-बहनों के साथ सभा मे भाग लेना मेरे लिए वाकई बहुत आनंददायक था।
एक सभा में, हमने प्रभु यीशु की वापसी के विषय पर चर्चा की। भाई लिन ने हमें बाइबल से दो पद भेजे: "वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा" (इब्रानियों 9:28)। "जिनकी रक्षा परमेश्वर की सामर्थ्य से विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आनेवाले समय में प्रगट होनेवाली है, की जाती है" (1 पतरस 1:5)। फिर उन्होंने हमें यह कहते हुए संगति दी, "हम इन दो पदों से देख सकते हैं कि, जब प्रभु यीशु अंत के दिनों में लौटेंगे, तो वह हमें पाप के बंधनों से बचाने के लिए एक नया कार्य करेंगे, ताकि हम शुद्ध हो सकें और परमेश्वर के सच्चे उद्धार को प्राप्त कर सकें।"
भाई लिन की संगति सुनकर मुझे ऐसा लगा कि मैं उनकी बात को पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर सकती, इसलिए मैंने उसे अपनी राय ज़ाहिर की: "हालाँकि हम अभी भी पाप करने में सक्षम हैं, लेकिन प्रभु यीशु के सूली पर चढ़ाये जाने से हमें छुटकारा मिल गया है, वे अब पापी नहीं समझते। इसके अलावा, जब प्रभु क्रूस पर थे तो उन्होंने कहा, 'पूरा हुआ', जिससे पता चलता है कि परमेश्वर का उद्धार पहले ही पूरा हो चुका है और मानवजाति को बचाने का उनका कार्य समाप्त हो गया है। तो आप यह कैसे कह सकते हैं कि अंत के दिनों में भी परमेश्वर के पास करने के लिए नया कार्य है?"
भाई लिन ने कहा, "बहन, जब प्रभु यीशु ने क्रूस पर 'पूरा हुआ' कहा, तो वास्तव में इससे उनका क्या मतलब था? हम अपनी समझ से चलते हैं और कहते हैं कि, 'पूरा हुआ' कहने से प्रभु यीशु का अर्थ था कि परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो गया है। अगर ऐसा है तो प्रभु द्वारा भविष्यवाणी किए गए ये वचन, 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा' (यूहन्ना 16:12–13)? कैसे पूरे होंगे, साथ ही, प्रभु ने भविष्यवाणी की है कि जब वह अंत के दिनों में वापस आएंगे, तो वह गेहूँ को भूसे से, बकरियों से भेड़ और मूर्ख कुंवारियों से समझदार कुंवारियों को अलग करने का कार्य करेंगे। प्रकाशितवाक्य 14:6 में कहा गया है, 'फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा, जिसके पास पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था।' अगर प्रभु अंत के दिनों में कोई नया कार्य नहीं करेंगे, तो क्या ऐसी भविष्यवाणियाँ व्यर्थ नहीं हो जाएंगी? इसलिए, हमारा यह विश्वास कि प्रभु यीशु का 'पूरा हुआ' कहने का अर्थ था कि मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो गया है, निश्चित रूप से एक ऐसी समझ है जो हमारी अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से उपजती है, वास्तव में, यह परमेश्वर के कार्य के तथ्य के अनुरूप नहीं है।"
मैंने भाई लिन की संगति को सुनते हुए, मैं सोच में पड़ गयी: "बात तो सही है। अगर मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य पहले ही खत्म हो गया होता, तो प्रभु यीशु द्वारा की गई ये भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी? प्रभु विश्वासयोग्य है, उनकी भविष्यवाणियाँ व्यर्थ नहीं जा सकतीं…।"
भाई लिन अपनी संगति जारी रखते हुए कहने लगे, "वास्तव में, जब प्रभु यीशु ने क्रूस पर 'पूरा हुआ' कहा, तो उनका मतलब था कि मानवजाति को छुटकारा दिलाने का परमेश्वर का कार्य पूरा हो गया, यह नहीं कि मानवजाति को बचाने का उनका कार्य पूरी तरह से समाप्त हो गया। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रभु यीशु का कार्य छुटकारे का कार्य था और यह हमें हमारे पापों से मुक्त करने के लिए किया गया था; हालाँकि, यह हमारी पापी प्रकृति और शैतानी स्वभावों को दूर नहीं करता है। इसलिए, हमें कार्य के एक और चरण को करने के लिए परमेश्वर की आवश्यकता है जो हमें पूरी तरह से बदल देगा और शुद्ध कर देगा। आइए अब इस समस्या से निपटने वाले कुछ अंशों को पढ़ें।" भाई लिन ने तब पढ़ा: "जैसा कि मनुष्य इसे देखता है, परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने ने परमेश्वर के देहधारण के कार्य को पहले ही संपन्न कर दिया था, समस्त मानव-जाति को छुटकारा दिला दिया था, और परमेश्वर को अधोलोक की चाबी लेने दी थी। हर कोई सोचता है कि परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से निष्पादित हो चुका है। वस्तुत:, परमेश्वर के दृष्टिकोण से, उसके कार्य का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही निष्पादित हुआ है। उसने मानवजाति को केवल छुटकारा दिलाया था; उसने मानवजाति को जीता नहीं था, मनुष्य के शैतानी चेहरे को बदलने की बात तो छोड़ ही दो। इसीलिए परमेश्वर कहता है, 'यद्यपि मेरे द्वारा धारित देह मृत्यु की पीड़ा से गुज़री, किंतु वह मेरे देहधारण का संपूर्ण लक्ष्य नहीं था। यीशु मेरा प्यारा पुत्र है और उसे मेरे लिए सलीब पर चढ़ा दिया गया, किंतु उसने मेरे कार्य का पूरी तरह से समापन नहीं किया। उसने केवल उसका एक अंश पूरा किया'" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (6)')। "क्योंकि मनुष्य को छुटकारा दिए जाने और उसके पाप क्षमा किए जाने को केवल इतना ही माना जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता और उसके साथ अपराधों के अनुसार व्यवहार नहीं करता। किंतु जब मनुष्य को, जो कि देह में रहता है, पाप से मुक्त नहीं किया गया है, तो वह निरंतर अपना भ्रष्ट शैतानी स्वभाव प्रकट करते हुए केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है, जो मनुष्य जीता है—पाप करने और क्षमा किए जाने का एक अंतहीन चक्र। अधिकतर मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं, ताकि शाम को उन्हें स्वीकार कर सकें। इस प्रकार, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए हमेशा के लिए प्रभावी हो, फिर भी वह मनुष्य को पाप से बचाने में सक्षम नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'देहधारण का रहस्य (4)')।
पढ़ने के बाद, भाई लिन ने अपनी संगति को आगे बढ़ाया। "ये दो अंश बहुत स्पष्ट रूप से बताते हैं, अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु देह में प्रकट हुए और अपना कार्य किया, उन्होंने 'मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है' (मत्ती 4:17), का मार्ग व्यक्त किया और उन्होंने लोगों को कई सत्यों को समझना सिखाया। बाद में, उन्हें सूली पर चढ़ाया गया, जिससे मानवजाति को छुटकारा दिलाने का उनका कार्य पूरा हुआ। जब हम प्रभु पर विश्वास करते हैं, जब तक हम प्रभु के सामने आकर पश्चाताप करते और अपने पापों को स्वीकारते हैं, तब तक हमारे पापों को क्षमा कर दिया जाता है। हालाँकि, हम शैतान के द्वारा इतनी गहराई से भ्रष्ट हो चुके हैं कि घमंड, अहंकार, स्वार्थ, कुटिल, कपटपूर्ण, दुष्टता, लालच और घृणा जैसे शैतानी स्वभाव हमारे जीवन बन गए हैं; हम सभी सांसारिक लोगों के समान ही दौलत, शोहरत पद-प्रतिष्ठा की लालसा करते हैं, हम वैभव और अधमता के जीवन के पीछे भागते हैं, हम पाप के सुखों का आनंद लेते हैं। जब हम दूसरों के साथ जुड़ते हैं, तो हम हमेशा सोचते हैं कि हमारे अपने विचार असाधारण रूप से कुशाग्र हैं और हम हमेशा दूसरों पर हावी होने की, उनसे अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं, हमारे पास अन्य लोगों के लिए कोई सहनशीलता या धैर्य नहीं है। हमें तो अपने दोस्तों और परिवारों के साथ भी मिलजुलकर चलना मुश्किल लगता है। जैसा कि प्रेरित पौलुस ने कहा है: 'क्योंकि मैं जानता हूँ कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती। इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ' (रोमियों 7:18-19)। हम अपने शैतानी स्वभावों के बंधन और जंजीरों के अधीन हैं और हम अक्सर खुद को पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने से रोकने में असमर्थ रहते हैं। अगर हमारे पापों को हज़ारों बार माफ भी कर दिया जाता, तो भी हम ऐसे लोग ही बने रहते जो शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट किए गए हैं। तो क्या हम कह सकते हैं कि मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर का कार्य पूरी तरह से समाप्त हो गया है? यदि परमेश्वर अंत के दिनों में कार्य करने और हमें बचाने के लिए नहीं आए, तो हम जो पूरी तरह से गंदे और घिनौने हैं, कैसे प्रभु के चेहरे को देखने और स्वर्ग के राज्य में उठाए जाने के योग्य होंगे? परमेश्वर के वचन कहते हैं, 'इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ' (लैव्यव्यवस्था 11:45)। परमेश्वर पवित्र है और उसका स्वभाव धर्मी और अलंघनीय है। नतीजतन, परमेश्वर गंदे और भ्रष्ट लोगों को अपने राज्य में नहीं ले जाएंगे। केवल अंत के दिनों में परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को स्वीकार करने से ही, पापों के बंधन और जंजीरों को अच्छी तरह से काटकर और अपने स्वभावों में परिवर्तन को प्राप्त करके, हम परमेश्वर के पूर्ण उद्धार को प्राप्त करने, प्रभु के मुखड़े को देखने और स्वर्ग में प्रवेश करने के योग्य होंगे।"
क्या अच्छा व्यवहार दर्शाता है कि हमारे स्वभावों में बदलाव आया है?
भाई लिन की संगति सुनने के बाद, मैंने मन में सोचा, "हम वास्तव में अभी पाप में जी रहे हैं और खुद को इससे निकालने में असमर्थ हैं, और यह एक ऐसी चीज है जिसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता है। लेकिन हम थोड़ा बदल गए हैं…।" इसलिए, मैंने भाई लिन से कहा, "भाई, आपने अभी जो संगति की है, वह सत्य है। अब हम निश्चित रूप से अक्सर पाप करते हैं और हमने पाप के बंधनों को नहीं तोड़ा है। लेकिन प्रभु पर विश्वास करना शुरू करने के बाद से हम थोड़ा बदल गए हैं। उदाहरण के लिए, कलीसिया के मेरे कुछ भाई-बहन, विनम्र जीवन जीते हैं और कभी किसी से बहस नहीं करते हैं। कुछ विश्वासियों का प्रभु पर विश्वास करने से पहले उनके जीवनसाथी के साथ बुरा संबंध था, लेकिन बाद में, उनके रिश्तों में सुधार हुआ। कुछ ऐसे भी हैं जो हमेशा झगड़ों में पड़ते थे या दूसरे लोगों का अपमान करते थे, लेकिन जब से वे प्रभु को मानने लगे हैं, वे सहनशील और धैर्यवान हो गए हैं—क्या इससे बदलाव नहीं आता है? मुझे लगता है कि जब तक हम वास्तव में प्रभु पर भरोसा करते हैं और उनके वचनों के अनुसार काम करते हैं, तब तक हम पाप के बंधनों को थोड़ा-थोड़ा करके तोड़ सकते हैं और शुद्ध किए जा सकते हैं। जब प्रभु आएंगे, तब हम स्वर्ग में आरोहित किए जा सकते हैं।" एक-एक करके, दूसरे भाई-बहन मेरे विचार से सहमत थे।
भाई लिन ने धैर्य के साथ कहा, "बहुत से लोग प्रभु पर विश्वास शुरू करने के बाद, व्यवहार में कुछ परिवर्तन का अनुभव करते हैं। उदाहरण के लिए, वे अब झगड़ों में नहीं पड़ते हैं या अन्य लोगों का अपमान नहीं करते हैं, वे दूसरों के प्रति प्रेमपूर्ण, सहनशील और धैर्यवान हो सकते हैं, ज़रूरतमंद लोगों को दान दे सकते हैं और खुद को परमेश्वर को समर्पित भी कर सकते हैं, आदि। लेकिन बाहर के इन स्पष्ट रूप से अच्छे व्यवहारों का होना यह नहीं दर्शाता है कि हम पाप के बंधन से बाहर निकल रहे हैं या हमारे स्वभाव बदल रहे हैं। क्योंकि हमारा पापी स्वभाव अनसुलझा है, हम अभी भी परमेश्वर को धोखा देने, उनका विरोध करने के खतरे में निरंतर हैं।" यह कहते हुए, भाई लिन ने तब हमारे लिए इन वचनों को पढ़ा: "महज व्यवाहारिक बदलाव देर तक नहीं टिकते हैं; अगर लोगों के जीवन-स्वभाव में कोई बदलाव नहीं होता है, तो देर-सबेर उनके पतित पक्ष स्वयं को दिखाएंगे। क्योंकि उनके व्यवहार में परिवर्तन का स्रोत उत्साह है। पवित्र आत्मा द्वारा उस समय किये गए कुछ कार्य का साथ पाकर, उनके लिए उत्साही बनना या अस्थायी दयालुता दिखाना बहुत आसान होता है। जैसा कि अविश्वासी लोग कहते हैं, 'एक अच्छा कर्म करना आसान है; मुश्किल तो यह है कि जीवन भर अच्छे कर्म किए जाएँ।' लोग आजीवन अच्छे कर्म करने में असमर्थ होते हैं। एक व्यक्ति का व्यवहार जीवन द्वारा निर्देशित होता है; जैसा भी उसका जीवन है, उसका व्यवहार भी वैसा ही होता है, और केवल जो स्वाभाविक रूप से प्रकट होता है वही जीवन का, साथ ही व्यक्ति की प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है। जो चीजें नकली हैं, वे टिक नहीं सकतीं। ... अच्छी तरह से व्यवहार करना परमेश्वर के प्रति समर्पित होने के समान नहीं है, और यह मसीह के अनुरूप होने के बराबर तो और भी नहीं है। व्यवहार में परिवर्तन सिद्धांत पर आधारित होते हैं, और उत्साह से पैदा होते हैं; वे परमेश्वर के सच्चे ज्ञान पर या सत्य पर आधारित नहीं होते हैं, पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन पर आश्रित होना तो दूर की बात है। यद्यपि ऐसे मौके होते हैं जब लोग जो भी करते हैं, उसमें से कुछ पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित होता है, यह जीवन की अभिव्यक्ति नहीं है, और यह बात परमेश्वर को जानने के समान तो और भी नहीं है; चाहे किसी व्यक्ति का व्यवहार कितना भी अच्छा हो, वह इसे साबित नहीं करता कि वे परमेश्वर के प्रति समर्पित हैं, या वे सत्य का अभ्यास करते हैं" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'बाहरी परिवर्तन और स्वभाव में परिवर्तन के बीच अंतर')।
भाई लिन ने अपनी संगति जारी रखते हुए कहा, "यह अंश हमें बताता है कि अच्छा व्यवहार लोगों के उत्साह और दयालुता के साथ पवित्र आत्मा द्वारा किए गए कार्य से आता है। कुछ समय के लिए देह-सुख को त्यागकर, हम अच्छे व्यवहार का अभ्यास करने में सक्षम होते हैं, लेकिन यह ये नहीं दर्शाता है कि हमने सत्य को अपना जीवन बना लिया है, और न ही यह दर्शाता है कि हमारे स्वभाव बदल गए हैं। यदि हमारी पापी प्रकृति का समाधान नहीं हुआ, तो अच्छे व्यवहार के माध्यम से, हम कुछ समय के लिए तो खुद को संयमित कर सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है हम अनिवार्य रूप से उन्हीं अपराधों को दोहराते हैं, जो हमने अतीत में किए थे, इस हद तक की हम किसी भी समय परमेश्वर के खिलाफ काम करने, परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करने में सक्षम हो जाते हैं। हम फिर सच्चा उद्धार पाने का मौका खो देते हैं। हमारे जीवन में, हम सभी मान सकते हैं कि आमतौर पर, हम अन्य लोगों के साथ सहिष्णुता और धैर्य को अमल मे ला सकते हैं, हम उनके साथ बहस में पड़ने से बच सकते हैं, लेकिन जब अन्य लोग हमारे हितों पर आघात करना शुरू करते हैं, तो हम काफी उपद्रव मचा सकते हैं, उनसे बहस कर सकते हैं, और हम उनके कटु दुश्मन भी बन सकते हैं। कई भाई-बहन बाहर से तो कुछ अच्छे व्यवहार वाले मालूम पड़ते हैं, लेकिन जैसे ही कोई मानव निर्मित या प्राकृतिक आपदा आती है, उनके परिवार के साथ कुछ बुरा होता है, तब वे परमेश्वर को दोष देते हैं, उन्हें गलत समझते हैं, वे परमेश्वर से इनकार करने और विश्वासघात करने की हद तक भी जा सकते हैं। कलीसिया के कुछ अगुआ और सहकर्मी बाहर से विनम्र और धैर्यवान दिखाई पड़ सकते हैं, लेकिन उनकी प्रकृति अहंकारी होती है और जब वे काम करते हैं, धर्मोपदेश देते हैं, तो वे परमेश्वर को ऊंचा नहीं उठाते, वे प्रभु के वचनों का अभ्यास करने या अनुभव करने में लोगों की अगुआई नहीं करते हैं, लेकिन इसके बजाय वे हर अवसर पर दिखावा करते हैं, हमेशा प्रभु के लिए जो दुख उन्होंने उठाया है, उस अनुभव के बारे में बात करते हैं ताकि अन्य लोग उन्हें उच्च सम्मान से देखें और उनका आदर करें। कुछ लोग कलीसिया के भीतर सत्ता और पद के लिए भी संघर्ष करते हैं और वे कलीसिया के धन का दुरुपयोग करते हैं। यीशु के समय के फरीसी बहुत ही पवित्र तरीके से जीते थे, वे दूसरों के प्रति प्रेम रखते थे, और वे जरूरतमंदों को दान भी देते थे और खुद को परमेश्वर के लिए समर्पित भी करते थे—यहाँ तक कि उनके कपड़ों पर बने लटकन भी शास्त्र के लेखनों से ढके थे। हालाँकि, जब प्रभु यीशु अपने कार्य को करने के लिए आए, तो उन्होंने उनका जमकर विरोध और निंदा की। यहाँ तक कि उन्होंने रोमन अधिकारियों के साथ मिलकर उन्हें क्रूस पर चढ़ा दिया। इससे पता चलता है कि, हमारा व्यवहार चाहे कितना ही अच्छा क्यों न हो, लेकिन यह नहीं दर्शाता कि हम परमेश्वर को जानते हैं या उनकी आज्ञा मानते हैं, या हम परमेश्वर के साथ संगत हैं, यह तो और भी नहीं दर्शाता कि हम शुद्ध किए गए हैं। इसलिए, बाहरी व्यवहार में परिवर्तन, स्वभाव में बदलाव के तुल्य नहीं है। प्रभु की कुछ शिक्षाओं को बाहरी रूप से अभ्यास करने की हमारी क्षमता यह प्रदर्शित नहीं करती है कि हमने पाप के बंधन को तोड़ दिया है।"
भाई लिन की संगति सुनने के बाद, मैंने पाया कि मैं इससे अपने पूरे दिल से सहमत थी। मैंने कहा, "भाई, आपकी संगति उससे पूरी तरह मेल खाती है जो हम वास्तव में हैं! हालाँकि हमारा बाहरी व्यवहार कुछ हद तक बदल गया है, लेकिन हमारी पापी प्रकृति अभी भी हमारे भीतर हावी है, इसलिए हमारा अच्छा व्यवहार कभी भी लंबे समय तक नहीं टिक सकता है। उदाहरण के लिए, मैंने हमेशा अपनी माँ के साथ बहस करने से खुद को रोकने की बहुत कोशिश की, बाहर से भले ही मैं कुछ हद तक धैर्यवान दिखाई देती थी, फिर भी अपने दिल में मुझे ऐसा महसूस नहीं हुआ, और मैं न चाहते हुए भी उनके साथ बहस करने लगती थी। इससे पता चलता है कि मैं अभी भी अपनी पापी प्रकृति के नियंत्रण में हूँ और मुझे शुद्ध नहीं किया गया है। जब हम दूसरे लोगों को देखते हैं, तो हम केवल देखते हैं कि बाहर क्या है; लेकिन परमेश्वर की अपेक्षा बस ये नहीं है की हम बाहर की चीजों को बदलें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर की अपेक्षा है कि हमारा अंदरूनी जीवन एक बदलाव से गुज़रे।"
तभी, अन्य बहनों में से एक ने कहा, "हाँ, यह सच है कि हमने अभी-अभी अपने बाहरी व्यवहार को बदला है और हमारा जीवन बिल्कुल भी नहीं बदला है। जब भी मैं अपने सहकर्मी से असहमत होती हूँ, मैं उससे अपने पूरे दिल से नफरत करती हूँ, और मैं उससे बिलकुल भी संबंध नहीं रखना चाहती। हालाँकि मुझे पता है कि प्रभु हमें सहनशील और धैर्यवान होना सिखाते हैं, और मैं शायद एक या दो बार खुद को संयमित कर भी लेती हूँ, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, मैं अपने आप को रोक ही नहीं पाती। ऐसा लगता है जैसे, यदि हम केवल अपने बाहरी व्यवहार को बदलते हैं लेकिन हमारे जीवन स्वभावों में परिवर्तन नहीं होते हैं, तो हम बहुत लंबे समय तक प्रभु के वचनों को रखने में असमर्थ रहते हैं और हम अभी भी अक्सर पाप कर सकते हैं।" फिर अन्य भाई-बहनों ने बारी-बारी से प्रभु में उनके कई वर्षों के विश्वास के दौरान पाप के बंधन के अधीन होने के अपने दर्द के बारे में बात की।
चर्चा खत्म होने के बाद, भाई लिन ने आगे कहा: "भाइयो और बहनो, प्रभु यीशु द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य ने हमें हमारे पापों से मुक्त कर दिया, लेकिन हमारी पापी प्रकृति अभी भी हमारे भीतर अनसुलझी है। नतीजतन, हम चाहे कितना भी बाइबल पढ़ लें, हम कितना ही पापस्वीकार करें, पश्चाताप करें या हम अपने आप को काबू में करने की कोशिश करें, हम अभी भी पाप के बंधन से मुक्त होने में असमर्थ हैं। परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को जानते हैं और अंत के दिनों में, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम के साथ देह में लौट आए हैं ताकि परमेश्वर के भवन में शुरू होने वाले न्याय के कार्य को निष्पादित कर सकें जिससे हम पाप को पूरी तरह से मिटाने और शुद्ध होने में सक्षम हो जाएँ। यह इन बाइबल की भविष्यवाणियों को ठीक से पूरा करता है: 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा' (यूहन्ना 16:12–13)। 'यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:47-48)। 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)। केवल अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करने के द्वारा, परमेश्वर के वचनों के न्याय व ताड़ना का अनुभव करके और अपने भ्रष्ट स्वभावों को बदलकर ही हम सच्चे उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।"
इस बिंदु पर, अन्य भाई-बहन और मैं चकित थे, हमने उत्सुकता से पूछा, "क्या प्रभु यीशु लौट आए हैं? क्या यह सही हो सकता है? यह तो सोच के परे है!" मैंने कहा, "मुझे लगता है कि इस सभा के दौरान हमने जो वचन पढ़े हैं, वे कोई सामान्य वचन नहीं हैं, बल्कि वे वास्तव में परमेश्वर के वचन हैं। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था, कि मैं कभी प्रभु की वापसी का स्वागत कर पाऊंगी—मैं कितनी धन्य हूँ! भाई लिन, परमेश्वर के वचनों और आपकी संगति को सुनने के बाद, अब मैं समझ गयी हूँ कि प्रभु यीशु द्वारा किए गए छुटकारे के कार्य ने हमें हमारे पापों से मुक्त किया। लेकिन हमारे भीतर की पापी प्रकृति का समाधान नहीं हुआ, इसलिए भले ही हम अच्छे कर्म करते दिखाई देते हैं, फिर भी हम परमेश्वर का लगातार विरोध और पाप करने में सक्षम हैं। अगर परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए अपना कार्य नहीं किया, तो हम अपनी शक्ति के माध्यम से पाप के बंधन और जंजीर को तोड़ने में असमर्थ ठहरेंगे। पहले मैं सोचती थी कि जब तक मैं हमेशा प्रभु के मार्ग पर बनी रहती हूँ तब तक मैं शुद्ध की जाऊंगी, लेकिन अब मैं समझती हूँ कि यह सच नहीं है। आपने अभी कहा कि प्रभु यीशु अंत के दिनों में लौट आए हैं और मनुष्य को पूरी तरह से बदलने और शुद्ध करने के लिए न्याय का कार्य कर रहे हैं। फिर परमेश्वर मनुष्य को शुद्ध करने और बदलने के लिए यह कार्य कैसे करते हैं? क्या आप हमारे साथ इस बारे में थोड़ी और संगति कर सकते हैं?"
तो परमेश्वर ऐसे मनुष्य का न्याय करता है और उसे शुद्ध करता है
भाई लिन ने हँसते हुए कहा, "बहन, आपने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है! जहां तक इसकी बात है कि, परमेश्वर मनुष्य को शुद्ध करने के लिए अंत के दिनों में अपने न्याय के कार्य को कैसे करते हैं, इसके लिए आइये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को एक साथ पढ़ें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, 'अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है'" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है')।
पढ़ने के बाद, भाई लिन ने संगति देते हुए कहा, "अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुख्य रूप से मनुष्य का न्याय और उसे शुद्ध करने के लिए सत्य को व्यक्त करते हैं। ये सत्य केवल हमारे व्यवहारों पर लक्षित नहीं हैं, जैसे कि हम कितने विनम्र दिखाई देते हैं, कितने सहनशील और धैर्यवान हैं, कैसे हम अन्य लोगों के साथ बहस में नहीं पड़ते हैं और हम दूसरों के साथ कैसे मिलजुलकर रहते हैं, आदि। इसके बजाय, सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारे पाप की जड़ को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करते हैं, जो हमारे भीतर छिपे हुए शैतानी स्वभाव और हमारी प्रकृति का सार हैं, जैसे कि अहंकार, दंभ, स्वार्थ, घृणित होना, कुटिलता, धोखा, लालच और दुष्टता आदि। हम मानते थे कि यदि हमारा बाहरी व्यवहार थोड़ा बदल गया है और हम प्रभु की शिक्षाओं को व्यवहार में लाने में सक्षम हो गए हैं, तो इसका मतलब है कि हम अच्छे लोग हैं। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के माध्यम से, हमने देखा है कि हम शैतान द्वारा कितनी गहराई से भ्रष्ट हैं, हम जो कुछ भी करते और कहते हैं उसमें हम अपने शैतानी भ्रष्ट स्वभावों को व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, अपनी अभिमानी प्रकृति कि प्रभुता के तहत, हम यह जानते हुए भी कि प्रभु हमसे विनम्र और धैर्यवान होने कि अपेक्षा करते है, फिर भी हम हमेशा ऊंचे बनना चाहते हैं और अपने संबंधों में अन्य लोगों को नीचा दिखाना चाहते हैं, सब कुछ में हम अपनी ही चलाना चाहते हैं। अपनी स्वार्थी प्रकृति कि प्रभुता के तहत, अन्य लोगों के साथ अपने व्यवहार में हम हमेशा निजी उद्देश्यों के अनुसार बोलते और कार्य करते हैं, ताकि हम खुद को लाभ पहुंचा सकें। जब हम परमेश्वर के लिए काम करते हैं और अपने आप को खपाते हैं, तो यह इसलिए नहीं होता क्योंकि हम परमेश्वर से प्यार करते हैं या क्योंकि हम उन्हें संतुष्ट करना चाहते हैं, बल्कि यह इसलिए होता है कि हम परमेश्वर के साथ एक सौदा और बदले में स्वर्ग के राज्य का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। हमारी प्रकृति दुष्ट है, हम भौतिक सुखों का लालच करते हैं; यद्यपि हम जानते हैं कि प्रभु कि अपेक्षा है कि हम अपने आप को सांसारिक लोगों से अलग करें, फिर भी हम प्रलोभन का सामना करने में असमर्थ रहते हैं, हम दुनिया की बुरी प्रवृत्तियों का पालन करते हैं, हम दौलत-शोहरत, पद-प्रतिष्ठा की खोज में निकल जाते हैं, और हम पाप के सुखों की लालसा करते हैं। ये तो कुछ उदाहरण भर हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के माध्यम से, अंत में हमने देखा है कि हम जो कुछ भी कहते और करते हैं, उसमें हम अपने शैतानी भ्रष्ट स्वभावों को व्यक्त करते हैं, हम शैतान द्वारा इतने भ्रष्ट हैं कि हम मानव रहे ही नहीं, हममें एक मानव सच्ची सादृश्यता नहीं बची है। साथ ही, हम परमेश्वर के नया और प्रकाशन के वचनों से ये भी समझते हैं कि परमेश्वर ईमानदार लोगों से प्रेम करते हैं और उन लोगों को आशीर्वाद देते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, परमेश्वर कि आज्ञा का पालन करते हैं और उनसे प्रेम करते हैं, और वह उन लोगों से नफरत करते हैं जो धोखेबाज़ हैं। यदि कोई अपने स्वभाव में बदलाव कि कोशिश नहीं करता है, बल्कि इसके बजाय वह हमेशा अपने भ्रष्ट स्वभावों के बीच रहता है, परमेश्वर का विरोध करता है, तो वह व्यक्ति निश्चय ही परमेश्वर द्वारा घृणा, अस्वीकार और दंडित किया जाएगा। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना हमें शैतान के हाथों हुए हमारे भ्रष्टाचार की सच्चाई को देखने में सक्षम बनाते हैं, वे हमें परमेश्वर के धर्मी और पवित्र स्वभाव को जानने में सक्षम बनाते हैं। परमेश्वर के प्रति श्रद्धा का भाव धीरे-धीरे हमारे दिल में जगता है और हम अपने भ्रष्ट स्वभावों से वास्तव में घृणा करने लगते हैं, और हम शैतान के भ्रष्ट स्वभावों के अनुसार फिर कभी नहीं जीने का संकल्प लेते हैं। इसके बजाय, हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य और आचरण करने, सत्य का दिल से अनुसरण करने कि कामना करते हैं, हम एक सच्चे मनुष्य की तरह जीने कि कामना करते हैं। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के माध्यम से, धीरे-धीरे हम अपने देह-सुख को त्यागने और परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने में सक्षम हो जाते हैं, हम अधिक से अधिक सत्य को समझने लगते हैं, जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण और हमारे मूल्य धीरे-धीरे बदल जाते हैं; जब हम समस्याओं का सामना करते हैं, तब हम परमेश्वर की इच्छा खोजने, उनके वचनों के अनुसार जीने ने सक्षम हो जाते हैं और थोड़ा-थोड़ा करके हम परमेश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और आज्ञाकारिता उत्पन्न करते हैं। अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य का यह परिणाम है। इसका अनुभव करने से, हम इस बात की सराहना करते हैं कि अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय और ताड़ना वास्तव में हमें सबसे बड़ी सुरक्षा प्रदान करते हैं, वे हमारे प्रति परमेश्वर का जो गहन प्रेम है उससे परिपूर्ण हैं।"
मुझे महसूस हुआ कि भाई लिन ने हमारे लिए जो वचन पढ़े थे, वे उत्कृष्ट थे—वे आधिकारिक और शक्तिशाली थे, मैंने पहले कभी वैसा कुछ नहीं सुना था। भाई लिन ने बहुत स्पष्ट रूप से संगति भी की। उत्साह से मैंने कहा, "प्रभु का धन्यवाद! तो प्रभु वापस लौट आए हैं और मनुष्य का न्याय करने और उसे शुद्ध करने के अपने वचनों का उपयोग कर रहे हैं। अपने वचनों के माध्यम से, वह हमारे भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करते हैं और हमें अपने स्वयं के भ्रष्टाचार को जानने देते हैं। फिर, सत्य का अनुसरण करने के माध्यम से, हमारे भ्रष्ट स्वभाव बदल जाते हैं, जिसके बाद हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीने में समर्थ हो जाते हैं, हम ऐसे लोग बन जाते हैं जो परमेश्वर के प्रति श्रद्धालू और आज्ञाकारी हैं। यह बहुत ही सार्थक कार्य है!"
भाई लिन ने खुशी से कहा, "इन चीजों को समझने में हमें राह दिखाने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद!" बाद में, जब पहले ही काफी देर हो चुकी थी, तो हमने अपनी सभा समाप्त की और अपनी अगली सभा का समय तय कर लिया। मैं भाई लिन की संगति के लिए बहुत उत्सुक थी, और मैं वास्तव में उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अधिक वचनों को पढ़ते हुए सुनना चाहती थी।
मैं परमेश्वर की वाणी को पहचान जाती हूँ और खुशी से प्रभु की वापसी का स्वागत करती हूँ
जब हमारी अगली सभा का दिन आया, तो भाई लिन ने हमें व्यवस्था और अनुग्रह के युग में परमेश्वर द्वारा अलग-अलग नाम लेने का महत्व, परमेश्वर के देहधारण का रहस्य, मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के तीन चरण के कार्य, मानवजाति के लिए अंतिम मंज़िल और उसके अंत जैसी बातों पर संगति प्रदान की। यह सब सुनने के बाद, मैं बहुत उत्साहित थी। मैंने खुशी से कहा, "हालाँकि मैंने पहले कलीसिया में कई उपदेशों को सुना है, लेकिन मैंने इतने सारे सत्यों को कभी नहीं समझा। अब जब मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ रही हूँ, तो मेरे मन में जो भ्रम थे, वह दूर हो गया है, मुझे अब बाइबल के कई सत्य समझ में आ गए हैं और मेरी आत्मा को बहुत पोषण मिला है। ये वचन वास्तव में परमेश्वर की वाणी हैं!"
भाई लिन ने खुशी के साथ कहा, "परमेश्वर का धन्यवाद, क्योंकि उनकी भेड़ों ने उनकी वाणी सुनी है। यह परमेश्वर की कृपा ही है कि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को परमेश्वर की वाणी के रूप में पहचानने में सक्षम हैं और उनके सम्मुख आते हैं। अब, जो लोग वास्तव में सभी संप्रदायों के भीतर परमेश्वर को मानते हैं, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामने एक-एक करके आ रहे हैं और मेम्ने के भोज में भाग ले रहे हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के माध्यम से, जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, अपने जीवन स्वभाव में अलग-अलग हद तक परिवर्तन देख रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट पर भाई-बहनों की कई गवाहियाँ हैं कि कैसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के न्याय का अनुभव करने से उनके भ्रष्ट स्वभाव बदल गए हैं।" भाई लिन ने तब मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की वेबसाइट के साथ-साथ उनके मोबाइल फोन ऐप भी दिखाए। यहाँ विषयों की इतनी समृद्ध प्रचुरता है: अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन हैं, परमेश्वर के वचनों के पाठ के वीडियो, परमेश्वर की प्रशंसा में भजन, सुसमाचार आधारित फिल्मों के साथ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के अनुभव और गवाहियाँ हैं विभिन्न विविध कार्यक्रम, लघु रेखाचित्र, गायन और नृत्य वीडियो, और बहुत कुछ है। वहाँ सब कुछ है जो कोई व्यक्ति चाह सकता है। मुझे रोमांच महसूस हुआ। परमेश्वर बहुत पहले अवतरित होकर दुनिया में आ गए हैं और उन्होंने इतने सारे वचन व्यक्त किए हैं—यह वास्तव में बहुत मूल्यवान है! उस समय, मुझे परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता का अनुभव हुआ। भाइयों और बहनों के माध्यम से मुझ तक सुसमाचार पहुंचाने, मुझे उनकी वाणी सुनने का सौभाग्य देने, पाप में जीने के कारण को समझने में मुझे सक्षम करने और शुद्ध किए जाने का मार्ग पाने देने के लिए मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया।
बाद में, कुछ सभाओं और जाँच-पड़ताल के बाद, मैं पूरी तरह से निश्चित हो गयी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटे हुए प्रभु यीशु हैं, और मैंने ख़ुशी से परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार किया। परमेश्वर का धन्यवाद!
हमारे "परमेश्वर के लौटने की गवाहियाँ" पृष्ठ पर या नीचे दी गई संबंधित सामग्री से अधिक जानें।