जब परमेश्वर देह में आता है, तो उसका आत्मा किसी मनुष्य पर उतरता है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर का देह को पहन लेता है। वह अपना कार्य पृथ्वी पर करता है, और अपने साथ विभिन्न प्रतिबंधित कदमों को लाने की बजाय, यह कार्य सर्वथा असीमित होता है। पवित्र आत्मा शरीर में रह कर जो कार्य करता है वह तब भी उसके कार्य के प्रभावों के अनुसार निर्धारित होता है और वह इन चीज़ों का उपयोग उस समयावधि का निर्धारण करने के लिए करता है जब तक वह शरीर में रहते हुए कार्य को करेगा। पवित्र आत्मा अपने कार्य के प्रत्येक चरण को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करता है; जब वह कार्य में आगे बढ़ता है तो वह अपने कार्य का परीक्षण करता है; इसमें इतना कुछ अलौकिक नहीं है जो मानवीय कल्पना की सीमाओं को विस्तार दे। यह यहोवा के द्वारा आकाश और पृथ्वी और अन्य सब वस्तुओं से सृजन के कार्य के समान है; उसने साथ-साथ योजना बनाई और कार्य किया। उसने ज्योति को अंधकार से अलग किया, और सुबह और शाम अस्तित्व में आए—इसमें एक दिन लगा। दूसरे दिन उसने आकाश का सृजन किया, उसमें भी एक दिन लगा, और फिर उसने पृथ्वी, समुद्र और उन सब चीज़ों को बनाया जिन्होंने उन्हें आबाद किया, इसमें भी एक दिन और लगा। और यह पूरे छठे दिन से, जब परमेश्वर ने मनुष्य का सृजन किया और उसे पृथ्वी पर सभी चीज़ों का प्रबंधन करने दिया, सातवें दिन तक चला, जब उसने सभी चीज़ों का सृजन करना समाप्त कर दिया था, और विश्राम किया था। परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और उसे पवित्र दिन के रूप में निर्दिष्ट किया। उसने सभी चीज़ों का सृजन करने के बाद, इसे पवित्र दिन ठहराया, उनका सृजन करने से पहले नहीं। यह कार्य भी अनायास ढंग से किया गया था; सभी चीज़ों का सृजन करने से पहले, उसने छः दिनों में संसार का सृजन करना और सातवें दिन विश्राम करना तय नहीं किया था; तथ्य बिलकुल भी इसके समान नहीं हैं। उसने ऐसा नहीं कहा, न ही इसकी योजना बनाई। उसने किसी भी तरह से यह नहीं कहा कि सभी चीज़ों का सृजन छः दिनों में पूरा किया जाएगा और कि वह सातवें दिन विश्राम करेगा; बल्कि उसे जो अच्छा लगा उसके अनुसार उसने सृजन किया। एक बार जब उसने सभी चीज़ों का सृजन समाप्त कर लिया, तो पहले ही छठा दिन हो चुका था। यदि यह पाँचवाँ दिन रहा होता जब उसने सभी चीज़ों का सृजन करना समाप्त किया था, तो वह इस प्रकार छठे दिन को पवित्र के रूप में निर्दिष्ट करता; हालाँकि उसने सभी चीज़ों का सृजन करना छः दिनों में समाप्त किया, और इसलिए सातवाँ दिन पवित्र दिन बन गया, जिसे आज के दिन भी प्रख्यापित किया गया है। इसलिए, उसका वर्तमान कार्य उसी तरीके से सम्पन्न किया जाता है। वह तुम लोगों की परिस्थितियों के अनुसार तुम लोगों की आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है। अर्थात्, पवित्रात्मा लोगों की परिस्थितियों के अनुसार बोलता और कार्य करता है। पवित्रात्मा सब पर निगरानी रखता है और किसी भी समय, किसी भी स्थान में कार्य करता है। जो कुछ मैं करता हूँ, कहता हूँ, तुम लोगों पर रखता हूँ और तुम लोगों को प्रदान करता हूँ, अपवाद के बिना, यह वह है जिसकी तुम लोगों को आवश्यकता है। इसीलिए मैं यह कहता हूँ कि मेरा कोई भी कार्य वास्तविकता से अलग नहीं है; वह सब वास्तविक हैं, क्योंकि तुम सब लोगों को पता है कि "परमेश्वर का आत्मा सब पर निगरानी रखता है।" यदि यह सब समय से पहले तय किया गया होता, तो क्या यह बहुत अधिक स्पष्ट और निश्चित नहीं होता? तुम सोचते हो कि परमेश्वर ने पूरे छः सहस्राब्दि तक कार्य किया और तब मानवजाति को विद्रोही, प्रतिरोधी, धूर्त और चालाक, देह वाला, शैतानी स्वभाव, आँखों की वासना और अपने स्वयं के भोग-विलास वाला होने के रूप में पूर्वनियत किया। नहीं, यह पूर्वनियत नहीं था, बल्कि शैतान की भ्रष्टता के कारण था। कुछ लोग कहेंगे, "क्या शैतान भी परमेश्वर की पकड़ में नहीं था? परमेश्वर ने पूर्वनियत किया था कि शैतान मनुष्य को इस तरह से भ्रष्ट करेगा, और उसके बाद उसने मनुष्यों के बीच अपना कार्य सम्पन्न किया।" क्या परमेश्वर वास्तव में मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए शैतान को पूर्वनियत करेगा? वह तो अत्यधिक उत्सुक था कि मानवजाति सामान्य रूप में मानव जीवन जीये; क्या वह मानवजाति के जीवन को परेशान करेगा? तब क्या शैतान को परास्त करना और मानवजाति को बचाना एक व्यर्थ प्रयास नहीं होगा? मानवजाति की विद्रोहीशीलता किस प्रकार से पूर्वनियत की जा सकती थी? वास्तविकता में यह शैतान के द्वारा परेशान किये जाने के कारण था; यह परमेश्वर के द्वारा कैसे पूर्वनियत किया जा सकता था? वह शैतान जो परमेश्वर की पकड़ में है जिसे तुम लोग समझते हो और वह शैतान जो परमेश्वर की पकड़ में हैं जिसके बारे में मैं बोल रहा हूँ, बहुत भिन्न हैं। तुम लोगों के कथनों के अनुसार कि "परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, और शैतान उसके हाथों के अंतर्गत है", शैतान उसके साथ विश्वासघात नहीं करेगा। क्या तुमने यह नहीं कहा कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है? तुम लोगों का ज्ञान अत्यधिक अमूर्त है, और यह वास्तविकता से हटकर है; इसमें दम नहीं है और यह कार्य नहीं करता है! परमेश्वर सर्वशक्तिमान है; यह बिल्कुल भी गलत नहीं है। प्रधान स्वर्गदूत ने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया, क्योंकि परमेश्वर ने आरंभ में उसे अधिकार का एक भाग दिया। निस्संदेह, यह घटना अनपेक्षित घटना थी, जैसे कि हव्वा का साँप के बहकावे में आना। हालाँकि, इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि शैतान कैसे विश्वासघात करता है, परमेश्वर के विपरीत वह सर्वशक्तिमान नहीं है। जैसा कि तुम लोगों ने कहा है, शैतान शक्तिमान है; वह चाहे जो भी करे, परमेश्वर का अधिकार उसे सदैव पराजित करता है। "परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, और शैतान उसके हाथों के अंतर्गत है," इस कथन का यही वास्तविक अर्थ है। इसलिए, शैतान के साथ उसका युद्ध अवश्य एक बार में एक कदम सम्पन्न होना चाहिए; इसके अलावा, वह शैतान की चालबाजियों के उत्तर में अपने कार्य की योजना बनाता है। कहने का अर्थ है कि युगों के अनुसार, वह लोगों को बचाता है और अपनी बुद्धि एवं सर्वशक्तिमत्ता को प्रकट करता है। इसी तरह, अंत के दिनों का कार्य अनुग्रह के युग से पहले पूर्व नियत नहीं किया गया था; इसे व्यवस्थित ढंग से इस तरह से पूर्वनियत नहीं किया गया था: सबसे पहले, मनुष्य के बाहरी स्वभाव में परिवर्तन करो; दूसरा, मनुष्य को उसकी ताड़ना और परीक्षाएँ प्राप्त करवाओ, तीसरा मनुष्य को मृत्यु का अनुभव करवाओ, चौथा मनुष्य को परमेश्वर से प्रेम करने के समयों का अनुभव करवाओ, और सृजित प्राणी के संकल्प को व्यक्त करवाओ, पाँचवाँ, मनुष्य से परमेश्वर की इच्छा पर विचार करवाओ, और परमेश्वर को पूर्णतः ज्ञात करवाओ, और तब मनुष्य को पूर्ण बनाओ। उसने इन सब चीज़ों की योजना अनुग्रह के युग के दौरान नहीं बनाई; बल्कि उसने वर्तमान युग में इन बातों की योजना बनाना आरंभ किया। शैतान कार्य कर रहा है, जैसे कि परमेश्वर भी कार्य कर रहा है। शैतान अपने भ्रष्ट स्वभाव को व्यक्त करता है, जबकि परमेश्वर प्रत्यक्ष रूप से बोलता है और तात्विक चीज़ों को प्रकट करता है। आज यही कार्य किया जा रहा है, और कार्य करने का यही सिद्धांत बहुत पहले, संसार के सृजन के बाद, उपयोग में लाया गया था।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई