जब मूसा ने चट्टान पर प्रहार किया, और यहोवा द्वारा प्रदान किया गया पानी उसमें से बहने लगा, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब दाऊद ने—आनंद से भरे अपने हृदय के साथ—मुझ यहोवा की स्तुति में वीणा बजायी तो यह उसके विश्वास की वजह से ही था। जब अय्यूब ने अपने पशुओं को जो पहाड़ों में भरे रहते थे और सम्पदा के गिने ना जा सकने वाले ढेरों को खो दिया, और उसका शरीर पीड़ादायक फोड़ों से भर गया, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब वह मुझ यहोवा की आवाज़ को सुन सका, और मुझ यहोवा की महिमा को देख सका, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। पतरस अपने विश्वास के कारण ही यीशु मसीह का अनुसरण कर सका था। उसे मेरे वास्ते सलीब पर चढ़ाया जा सका था और वह महिमामयी गवाही दे सका था, तो यह भी उसके विश्वास के कारण ही था। जब यूहन्ना ने मनुष्य के पुत्र की महिमामय छवि को देखा, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब उसने अंत के दिनों के दर्शन को देखा, तो यह सब और भी उसके विश्वास के कारण था। इतने सारे तथाकथित अन्य-जाति राष्ट्रों ने मेरा प्रकाशन प्राप्त कर लिया है, और जान गए हैं कि मैं मनुष्यों के बीच अपना कार्य करने के लिए देह में लौट आया हूँ, यह भी उनके विश्वास के कारण ही है। वे सब जो मेरे कठोर वचनों के द्वारा मार खाते हैं और फिर भी वे उनसे सांत्वना पाते हैं, और बचाए जाते हैं—क्या उन्होंने ऐसा अपने विश्वास के कारण ही नहीं किया है? लोग अपने विश्वास के कारण बहुत कुछ पा चुके हैं और वो हमेशा आशीष नहीं होता। उन्हें शायद उस तरह की प्रसन्नता और आनन्द का अनुभव न हो, जो दाऊद ने अनुभव किया था, या यहोवा के द्वारा प्रदान किया गया वैसा जल प्राप्त न हो, जैसा मूसा ने प्राप्त किया था। उदाहरण के लिए, अय्यूब को उसके विश्वास की वजह से यहोवा द्वारा आशीष प्रदान किया गया था, लेकिन वह विपत्ति से भी पीड़ित हुआ। चाहे तुम्हें आशीष प्राप्त हो, या तुम किसी आपदा से पीड़ित हो, दोनों ही आशीषित घटनाएँ हैं। विश्वास के बिना, तुम यह विजय-कार्य प्राप्त नहीं कर सकते, आज अपनी आँखों से यहोवा के कार्य को देख पाना तो दूर की बात है। तुम देख भी नहीं पाओगे, प्राप्त करना तो दूर की बात है। ये विपत्तियाँ, ये आपदाएँ, और ये समस्त न्याय-यदि ये तुम पर न टूटते, तो क्या तुम आज यहोवा के कार्य को देखने में समर्थ होते? आज, यह विश्वास ही है, जो तुम्हें जीत लिए जाने देता है, और यह तुम्हारा जीता जाना ही है जो तुम्हें यहोवा के प्रत्येक कार्य पर विश्वास करने देता है। यह मात्र विश्वास के कारण ही है कि तुम इस प्रकार की ताड़ना और न्याय पाते हो। इस ताड़ना और न्याय के द्वारा तुम जीते और पूर्ण किए जाते हो। आज, जिस प्रकार की ताड़ना और न्याय तुम पा रहे हो, उसके बिना तुम्हारा विश्वास व्यर्थ होगा, क्योंकि तुम परमेश्वर को नहीं जान पाओगे; इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम उसमें कितना विश्वास करते हो, तुम्हारा विश्वास फिर भी वास्तव में एक निराधार खाली अभिव्यक्ति ही होगी। जब तुम इस प्रकार के विजय कार्य को प्राप्त कर लेते हो, जो तुम्हें पूर्णत: आज्ञाकारी बनाता है, तभी तुम्हारा विश्वास सच्चा और विश्वसनीय बनता है और तुम्हारा हृदय परमेश्वर की ओर फिर जाता है। भले ही तुम "आस्था", इस शब्द के कारण न्याय और शाप झेलो, फिर भी तुम्हारी आस्था सच्ची है, और तुम सबसे वास्तविक और सबसे बहुमूल्य वस्तु प्राप्त करते हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि न्याय के इस मार्ग में ही तुम परमेश्वर की सृष्टि की अन्तिम मंजिल को देखते हो; इस न्याय में ही तुम देखते हो कि सृष्टिकर्ता से प्रेम करना है; इस प्रकार के विजय-कार्य में तुम परमेश्वर के हाथ को देखते हो; इसी विजय-कार्य में तुम मानव जीवन को पूरी तरह समझते हो; इसी विजय-कार्य में तुम मानव-जीवन के सही मार्ग को प्राप्त करते हो, और "मनुष्य" के वास्तविक अर्थ को समझ जाते हो; इसी विजय में तुम सर्वशक्तिमान के धार्मिक स्वभाव और उसके सुन्दर, महिमामय मुखमण्डल को देखते हो; इसी विजय-कार्य में तुम मनुष्य की उत्पत्ति को जान पाते और समस्त मनुष्यजाति के पूरे "अनश्वर इतिहास" को समझते हो; इसी विजय में तुम मनुष्यजाति के पूर्वजों और मनुष्यजाति के भ्रष्टाचार के उद्गम को समझते हो; इसी विजय में तुम आनन्द और आराम के साथ-साथ अनन्त ताड़ना, अनुशासन और उस मनुष्यजाति के लिए सृष्टिकर्त्ता की ओर से फटकार के वचन प्राप्त करते हो, जिसे उसने बनाया है; इसी विजय-कार्य में तुम आशीष प्राप्त करते हो और तुम वे आपदाएँ प्राप्त करते हो, जो मनुष्य को प्राप्त होनी चाहिए...। क्या यह सब तुम्हारे थोड़े से विश्वास के कारण नहीं है? और इन चीज़ों को प्राप्त करने के पश्चात क्या तुम्हारा विश्वास बढ़ा नहीं है? क्या तुमने बहुत कुछ प्राप्त नहीं कर लिया है? तुम ने मात्र परमेश्वर के वचन को ही नहीं सुना और परमेश्वर की बुद्धि को ही नहीं देखा, अपितु तुम ने उसके कार्य के प्रत्येक चरण को भी व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है। हो सकता है तुम कहो कि यदि तुम्हारे पास विश्वास नहीं होता, तो तुम इस प्रकार की ताड़ना और न्याय से पीड़ित न होते। परन्तु तुम्हें जानना चाहिए कि बिना विश्वास के, न केवल तुम इस प्रकार की ताड़ना और सर्वशक्तिमान से इस प्रकार की देखभाल प्राप्त करने में अयोग्य होते, अपितु तुम सृष्टिकर्ता से मिलने के सुअवसर को भी सर्वदा के लिए खो देते। तुम मनुष्यजाति के उद्गम को कभी भी नहीं जान पाते और न ही मानव-जीवन की महत्ता को समझ पाते। चाहे तुम्हारे शरीर की मृत्यु हो जाती, और तुम्हारी आत्मा अलग हो जाती, फिर भी तुम सृष्टिकर्ता के समस्त कार्यों को नहीं समझ पाते, तुम्हें इस बात का ज्ञान तो कभी न हो पाता कि मनुष्यजाति को बनाने के पश्चात सृष्टिकर्ता ने इस पृथ्वी पर कितने महान कार्य किए। उसके द्वारा बनाई गई इस मनुष्यजाति के एक सदस्य के रूप में, क्या तुम इस प्रकार बिना-सोचे समझे अन्धकार में गिरने और अनन्त दण्ड की पीड़ा उठाने के लिए तैयार हो। यदि तुम स्वयं को आज की ताड़ना और न्याय से अलग करते हो, तो अंत में तुम्हें क्या मिलेगा? क्या तुम सोचते हो कि वर्तमान न्याय से एक बार अलग होकर, तुम इस कठिन जीवन से बचने में समर्थ हो जाओगे? क्या यह सत्य नहीं है कि यदि तुम "इस स्थान" को छोड़ते हो, तो जिससे तुम्हारा सामना होगा, वह शैतान के द्वारा दी जाने वाली पीड़ादायक यातना और क्रूर अपशब्द होंगे? क्या तुम असहनीय दिन और रात का सामना कर सकते हो? क्या तुम सोचते हो कि सिर्फ इसलिए कि आज तुम इस न्याय से बच जाते हो, तो तुम भविष्य की उस यातना को सदा के लिए टाल सकते हो? तुम्हारे मार्ग में क्या आएगा? क्या तुम किसी स्वप्न-लोक की आशा करते हो? क्या तुम सोचते हो कि वास्तविकता से तुम्हारे इस तरह से भागने से तुम भविष्य की उस अनन्त ताड़ना से बच सकते हो, जैसा कि तुम आज कर रहे हो? क्या आज के बाद, तुम कभी इस प्रकार का अवसर और इस प्रकार की आशीष पुनः प्राप्त कर पाओगे? क्या तुम उन्हें खोजने के योग्य होगे, जब घोर विपत्ति तुम पर आ पड़ेगी? क्या तुम उन्हें खोजने के योग्य होगे, जब सम्पूर्ण मनुष्यजाति विश्राम में प्रवेश करेगी? तुम्हारा वर्तमान खुशहाल जीवन और तुम्हारा छोटा-सा मैत्रीपूर्ण परिवार—क्या वे तुम्हारी भविष्य की अनन्त मंजिल की जगह ले सकते हैं? यदि तुम सच्चा विश्वास रखते हो, और तुम्हारे विश्वास के कारण यदि तुम्हें बहुत अधिक प्राप्त होता है, तो यह सबकुछ तुम्हें, एक सृजित प्राणी को, प्राप्त होना चाहिए और यह सब तुम्हारे पास पहले ही हो जाना चाहिए था। तुम्हारे विश्वास और तुम्हारे जीवन के लिए इस विजय से अधिक लाभकारी और कुछ नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1)