परमेश्वर का अंतिम कार्य सिर्फ़ सज़ा देना नहीं है,
काम है उसका इंसान को मंज़िल तक पहुँचाना,
और जो कुछ भी किया परमेश्वर ने,
हर किसी से उसकी पहचान पाना।
परमेश्वर चाहता है हर इंसान देखे
जो कुछ किया उसने वह है सही,
और जो कुछ किया उसने वह है
उसके स्वभाव की अभिव्यक्ति।
बनाया नहीं इंसान ने इंसान को,
न ही प्रकृति ने बनाया इंसान को।
बल्कि बस परमेश्वर ही है जो हर जीवित आत्मा और हर चीज़ को देता है पोषण।
परमेश्वर के बिना मानव जाति का होगा नाश,
होगी वह तबाही से त्रस्त,
कोई नहीं देखेगा इस हरियाले विश्व को दुबारा।
कोई नहीं देखेगा सूरज और चाँद की ख़ूबसूरती।
मानव जाति करेगी सामना सिर्फ़ सर्द रातों
और मौत की निष्ठुर घाटियों का।
परमेश्वर ही इंसान का मात्र उद्धार और उम्मीद है,
वही है जिसपर निर्भर मानव जाति का अस्तित्व।
बिन परमेश्वर इंसान आगे बढ़ न सकेगा।
बिन परमेश्वर इंसान सिर्फ़ तड़पेगा
प्रेतों के हर एक रूप से कुचला जाएगा,
फिर भी कोई सुनता नहीं उसकी।
जो कार्य किया परमेश्वर ने, ले सकता नहीं है उसकी जगह कोई।
उसकी बस एक ही उम्मीद है
कि इंसान उसका कर्ज़ चुकाए करके कार्य अच्छे, अच्छे कार्य।
जो कार्य किया परमेश्वर ने, ले सकता नहीं है उसकी जगह कोई।
उसकी बस एक ही उम्मीद है
कि इंसान उसका कर्ज़ चुकाए करके कार्य अच्छे, अच्छे कार्य।
उसकी बस एक ही उम्मीद है
कि इंसान उसका कर्ज़ चुकाए करके कार्य अच्छे, अच्छे कार्य।