जिस किसी ने भी बाइबल पढ़ी है, वह जानता है कि जब प्रभु यीशु का जन्म हुआ था, तो बहुत-सी चीज़ें घटित हुई थीं। उन घटनाओं में से सबसे बड़ी थी शैतानों के राजा द्वारा उसका शिकार किया जाना, जो इतनी चरम घटना थी कि उस क्षेत्र के दो वर्ष या उससे कम उम्र के सभी बच्चों की हत्या कर दी गई थी। यह स्पष्ट है कि मनुष्यों के बीच देह धारण कर परमेश्वर ने बड़ा जोखिम उठाया था; और मानवजाति को बचाने के अपने प्रबंधन को पूरा करने के लिए उसने जो बड़ी कीमत चुकाई, वह भी स्पष्ट है। परमेश्वर द्वारा देह में मानवजाति के बीच किए गए अपने कार्य से रखी गई बड़ी आशाएँ भी स्पष्ट हैं। जब परमेश्वर का देह मानवजाति के बीच अपना कार्य करने में सक्षम हुआ, तो उसे कैसा लगा? लोगों को इसे थोड़ा-बहुत समझने में सक्षम होना चाहिए, है न? कम से कम, परमेश्वर प्रसन्न था, क्योंकि वह मानवजाति के बीच अपना नया कार्य आरंभ कर सकता था। जब प्रभु यीशु का बपतिस्मा हुआ और उसने आधिकारिक रूप से अपनी सेवकाई पूरी करने का अपना कार्य आरंभ किया, तो परमेश्वर का हृदय आनंद से अभिभूत हो गया, क्योंकि इतने वर्षों की प्रतीक्षा और तैयारी के बाद वह अंततः एक सामान्य मनुष्य की देह धारण कर सका था और मांस और रक्त से बने मनुष्य के रूप में, जिसे लोग देख और छू सकते थे, अपना नया कार्य आरंभ कर सका था। अंततः वह मनुष्य की पहचान के माध्यम से लोगों के साथ आमने-सामने और दिल से बात कर सकता था। अंततः परमेश्वर मानवीय भाषा में, मानवीय तरीके से, मानवजाति के साथ रूबरू हो सकता था; वह मानवजाति का भरण-पोषण कर सकता था, उन्हें प्रबुद्ध कर सकता था, और मानवीय भाषा का उपयोग कर उनकी सहायता कर सकता था; वह उनके साथ एक ही मेज़ पर बैठकर भोजन कर सकता था और उसी जगह पर उनके साथ रह सकता था। वह मनुष्यों को देख भी सकता था, चीज़ों को देख सकता था, और हर चीज़ को उसी तरह से देख सकता था जैसे मनुष्य देखते हैं, और वह भी अपनी आँखों से। परमेश्वर के लिए, यह पहले से ही देह में अपने कार्य की उसकी पहली विजय थी। यह भी कहा जा सकता है कि यह एक महान कार्य की पूर्णता थी—निस्संदेह परमेश्वर इससे सबसे अधिक प्रसन्न था। तबसे परमेश्वर ने मानवजाति के बीच अपने कार्य में पहली बार एक प्रकार का सुकून महसूस किया। घटित होने वाली ये सभी घटनाएँ बहुत व्यावहारिक और स्वाभाविक थीं, और जो सुकून परमेश्वर ने महसूस किया, वह भी बहुत ही वास्तविक था। मानवजाति के लिए, हर बार जब भी परमेश्वर के कार्य का एक नया चरण पूरा होता है, और हर बार जब परमेश्वर संतुष्ट महसूस करता है, तो ऐसा तब होता है, जब मनुष्य परमेश्वर और उद्धार के निकट आ सकता है। परमेश्वर के लिए यह उसके नए कार्य की शुरुआत भी है, अपनी प्रबंधन-योजना में आगे बढ़ना भी है, और इसके अतिरिक्त, ये वे अवसर भी होते हैं, जब उसके इरादे पूर्णता की ओर अग्रसर होते हैं। मानवजाति के लिए, ऐसे अवसर का आगमन सौभाग्यशाली और बहुत अच्छा है; उन सबके लिए जो परमेश्वर के उद्धार की प्रतीक्षा करते हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण और आनंदमय समाचार है। जब परमेश्वर कार्य का एक नया चरण कार्यान्वित करता है, तब वह एक नई शुरुआत करता है, और जब इस नए कार्य और नई शुरुआत का सूत्रपात और प्रस्तुति मानवजाति के बीच की जाती है, तो ऐसा तब होता है जब इस कार्य के चरण का परिणाम पहले से ही निर्धारित और पूरा कर लिया जाता है, और उसका अंतिम परिणाम और फल परमेश्वर द्वारा पहले ही देख लिया गया होता है। साथ ही, ऐसा तब होता है, जब ये परिणाम परमेश्वर को संतुष्टि महसूस कराते हैं, और निस्संदेह ऐसा तब होता है, जब उसका हृदय प्रसन्न होता है। परमेश्वर आश्वस्त महसूस करता है, क्योंकि अपनी नज़रों में उसने पहले ही उन लोगों को देख और निर्धारित कर लिया है जिनकी उसे तलाश है, और वह पहले ही इस समूह को प्राप्त कर चुका है, ऐसा समूह जो उसके कार्य को सफल करने और उसे संतुष्टि प्रदान करने में सक्षम है। इस प्रकार, वह अपनी चिंताएँ एक ओर रख देता है और प्रसन्नता महसूस करता है। दूसरे शब्दों में, जब परमेश्वर का देह मनुष्यों के बीच एक नया कार्य आरंभ करने में समर्थ होता है, और वह उस कार्य को बिना किसी बाधा के करना आरंभ कर देता है जो उसे करना चाहिए, और जब उसे महसूस होता है कि सब-कुछ पूरा किया जा चुका है, तो अंत उसकी नज़र में पहले से ही होता है। इस कारण से वह संतुष्ट होता है और उसका हृदय प्रसन्न होता है। परमेश्वर की प्रसन्नता किस प्रकार व्यक्त होती है? क्या तुम लोग सोच सकते हो कि इसका क्या उत्तर हो सकता है? क्या परमेश्वर रोए? क्या परमेश्वर रो सकता है? क्या परमेश्वर ताली बजा सकता है? क्या परमेश्वर नृत्य कर सकता है? क्या परमेश्वर गाना गा सकता है? यदि हाँ, तो वह कौन-सा गीत गाएगा? निस्संदेह परमेश्वर एक सुंदर और द्रवित कर देने वाला गीत गा सकता है, ऐसा गीत जो उसके हृदय के आनंद और प्रसन्नता को व्यक्त कर सकता हो। वह उसे मनुष्य के लिए गा सकता है, अपने लिए गा सकता है, और सभी चीज़ों के लिए गा सकता है। परमेश्वर की प्रसन्नता किसी भी तरीके से व्यक्त हो सकती है—यह सब सामान्य है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनंद और दुःख हैं, और उसकी विभिन्न भावनाएँ विभिन्न तरीकों से व्यक्त हो सकती हैं। यह उसका अधिकार है, और इससे अधिक कुछ भी सामान्य और उचित नहीं हो सकता। लोगों को इस बारे में कुछ और नहीं सोचना चाहिए। तुम लोगों को परमेश्वर से यह कहते हुए कि उसे यह नहीं करना चाहिए या वह नहीं करना चाहिए, उसे इस तरह से कार्य नहीं करना चाहिए या उस तरह से कार्य नहीं करना चाहिए, परमेश्वर पर "वशीकरण मंत्र" का उपयोग करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, और इस प्रकार उसकी खुशी या कोई भी अन्य भावना सीमित नहीं करनी चाहिए। लोगों के विचार में परमेश्वर प्रसन्न नहीं हो सकता, आँसू नहीं बहा सकता, रो नहीं सकता—वह कोई मनोभाव व्यक्त नहीं कर सकता। इन दो संगतियों के दौरान हमने जो बातचीत की है, उससे मैं यह विश्वास करता हूँ कि तुम लोग परमेश्वर को अब इस तरह से नहीं देखोगे, बल्कि परमेश्वर को कुछ स्वतंत्रता और राहत लेने दोगे। यह एक बहुत अच्छी बात है। भविष्य में यदि तुम लोग परमेश्वर की उदासी के बारे में सुनकर सचमुच उसकी उदासी महसूस कर पाओ, और उसकी प्रसन्नता के बारे में सुनकर तुम लोग सचमुच उसकी प्रसन्नता महसूस कर पाओ, तो कम से कम तुम लोग स्पष्ट रूप से यह जानने और समझने में समर्थ होगे कि परमेश्वर को क्या चीज़ प्रसन्न करती है और क्या चीज़ उदास करती है। जब तुम परमेश्वर के उदास होने पर उदास महसूस कर पाओ और उसके प्रसन्न होने पर प्रसन्न महसूस कर पाओ, तो उसने तुम्हारे हृदय को पूरी तरह से प्राप्त कर लिया होगा और अब उसके और तुम्हारे बीच में कोई बाधा नहीं होगी। तुम परमेश्वर को अब मानवीय कल्पनाओं, धारणाओं और ज्ञान से विवश करने की कोशिश नहीं करोगे। उस समय परमेश्वर तुम्हारे हृदय में जीवित और जीवंत होगा। वह तुम्हारे जीवन का परमेश्वर होगा और तुम्हारी हर चीज़ का स्वामी होगा। क्या तुम लोगों की इस प्रकार की आकांक्षा है? क्या तुम आश्वस्त हो कि तुम इसे हासिल कर सकते हो?
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III