परमेश्वर का कोप न्याय की समस्त शक्तियों और समस्त सकारात्मक चीज़ों के लिए सुरक्षा-उपाय है (चुने हुए अंश)
अपमान के प्रति परमेश्वर की असहिष्णुता उसका अद्वितीय सार है; परमेश्वर का कोप उसका अद्वितीय स्वभाव है; परमेश्वर का प्रताप उसका अद्वितीय सार है। परमेश्वर के क्रोध के पीछे का सिद्धांत उस पहचान और हैसियत का प्रदर्शन है, जिसे सिर्फ वही धारण करता है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह अद्वितीय स्वयं परमेश्वर के सार का एक प्रतीक भी है। परमेश्वर का स्वभाव उसका अपना अंतर्निहित सार है, जो समय के साथ बिलकुल नहीं बदलता, और न यह भौगोलिक स्थान के बदलने से ही बदलता है। उसका अंतर्निहित स्वभाव उसका स्वाभाविक सार है। वह चाहे जिस किसी पर भी अपना कार्य क्यों न करे, उसका सार नहीं बदलता, और न ही उसका धार्मिक स्वभाव बदलता है। जब कोई परमेश्वर को क्रोधित करता है, तो वह अपना अंतर्निहित स्वभाव प्रस्फुटित करता है; इस समय उसके क्रोध के पीछे का सिद्धांत नहीं बदलता, और न ही उसकी अद्वितीय पहचान और हैसियत बदलती है। वह अपने सार में परिवर्तन के कारण या अपने स्वभाव से विभिन्न तत्त्वों के उत्पन्न होने के कारण क्रोधित नहीं होता, बल्कि इसलिए होता है क्योंकि उसके विरुद्ध मनुष्य का विरोध उसके स्वभाव को ठेस पहुँचाता है। मनुष्य द्वारा परमेश्वर को खुले तौर पर उकसाना परमेश्वर की अपनी पहचान और हैसियत के लिए एक गंभीर चुनौती है। परमेश्वर की नज़र में, जब मनुष्य उसे चुनौती देता है, तब मनुष्य उससे मुकाबला कर रहा होता है और उसके क्रोध की परीक्षा ले रहा होता है। जब मुनष्य परमेश्वर का विरोध करता है, जब मनुष्य परमेश्वर से मुकाबला करता है, जब मनुष्य लगातार उसके क्रोध की परीक्षा लेता है—और यह उस समय होता है, जब पाप अनियंत्रित हो जाता है—तब परमेश्वर का कोप स्वाभाविक रूप से अपने आपको प्रकट और प्रस्तुत करेगा। इसलिए, परमेश्वर के कोप की अभिव्यक्ति इस बात की प्रतीक है कि समस्त बुरी ताकतें अस्तित्व में नहीं रहेंगी, और यह इस बात की प्रतीक है कि सभी विरोधी शक्तियाँ नष्ट कर दी जाएँगी। यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और उसके कोप की अद्वितीयता है। जब परमेश्वर की गरिमा और पवित्रता को चुनौती दी जाती है, जब मनुष्य द्वारा न्याय की ताकतों को रोका जाता है और उनकी अनदेखी की जाती है, तब परमेश्वर अपने कोप को भेजता है। परमेश्वर के सार के कारण पृथ्वी की वे सारी ताकतें, जो परमेश्वर का मुकाबला करती हैं, उसका विरोध करती हैं और उसके साथ संघर्ष करती हैं, बुरी, भ्रष्ट और अन्यायी हैं; वे शैतान से आती हैं और उसी से संबंधित हैं। चूँकि परमेश्वर न्यायी है, प्रकाशमय है, दोषरहित और पवित्र है, इसलिए समस्त बुरी, भ्रष्ट और शैतान से संबंध रखने वाली चीज़ें परमेश्वर का कोप प्रकट होने पर नष्ट हो जाएँगी।
यद्यपि परमेश्वर के कोप का उफान उसके धार्मिक स्वभाव की अभिव्यक्ति का एक पहलू है, किंतु परमेश्वर का क्रोध अपने लक्ष्य के प्रति किसी भी तरह से विवेकशून्य नहीं है, और न ही वह सिद्धांतविहीन है। इसके विपरीत, परमेश्वर क्रोध करने में बिलकुल भी उतावलापन नहीं दिखाता, और न ही वह अपने कोप और प्रताप को हलकेपन से प्रकट करता है। इतना ही नहीं, परमेश्वर का कोप पूरी तरह से नियंत्रित और नपा-तुला होता है; उसकी तुलना मनुष्य के क्रोध से आगबबूला होने या अपना गुस्सा प्रकट करने से बिलकुल नहीं की जा सकती। मनुष्य और परमेश्वर के बीच हुए अनेक वार्तालाप बाइबल में दर्ज हैं। इनमें से कुछ लोगों के कथन सतही, अज्ञानता से भरे और बचकाने थे, किंतु परमेश्वर ने उन्हें मार नहीं गिराया, और न ही उनकी भर्त्सना की। विशेष रूप से, अय्यूब के परीक्षण के दौरान, यहोवा परमेश्वर ने अय्यूब के तीन मित्रों और दूसरे लोगों द्वारा अय्यूब से कही गई बातें सुनने के बाद उनके साथ कैसा बरताव किया था? क्या उसने उनकी भर्त्सना की थी? क्या वह उन पर आगबबूला हो गया था? उसने ऐसा कुछ नहीं किया था! इसके बजाय उसने अय्यूब को उनकी ओर से विनती करने और उनके लिए प्रार्थना करने के लिए कहा, और स्वयं परमेश्वर ने उनकी गलतियों को गंभीरता से नहीं लिया। ये सभी उदाहरण भ्रष्ट एवं अबोध मानवजाति के साथ परमेश्वर के मौलिक रवैये को दर्शाते हैं। इसलिए, परमेश्वर के कोप का प्रस्फुटन किसी भी तरह से उसकी मन:स्थिति की अभिव्यक्ति नहीं है, न ही वह उसके द्वारा अपनी भावनाएँ जाहिर करने का तरीका है। मनुष्य की गलतफहमी के विपरीत, परमेश्वर का कोप पूरी तरह से गुस्से का फूट पड़ना नहीं है। परमेश्वर अपने कोप को इसलिए नहीं प्रकट करता कि वह अपनी मन:स्थिति पर काबू पाने में असमर्थ है या कि उसका क्रोध चरम पर पहुँच गया है और उसे बाहर निकालना आवश्यक है। इसके विपरीत, उसका कोप उसके धार्मिक स्वभाव का प्रदर्शन और उसकी वास्तविक अभिव्यक्ति है, और यह उसके पवित्र सार का सांकेतिक प्रकटन है। परमेश्वर कोप है, और वह अपमानित किया जाना सहन नहीं करता—इसका तात्पर्य यह नहीं है कि परमेश्वर का क्रोध कारणों के बीच अंतर नहीं करता या वह सिद्धांतविहीन है; क्रोध के सिद्धांतविहीन, बेतरतीब विस्फोट पर तो एकमात्र अधिकार भ्रष्ट मनुष्य का है, उस प्रकार का क्रोध, कारणों के बीच अंतर नहीं करता। एक बार जब मनुष्य को हैसियत मिल जाती है, तो उसे अकसर अपनी मन:स्थिति पर नियंत्रण पाने में कठिनाई महसूस होगी, और इसलिए वह अपना असंतोष व्यक्त करने और अपनी भावनाएँ प्रकट करने के लिए अवसरों का इस्तेमाल करने में आनंद लेता है; वह अकसर बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के क्रोध से आगबबूला हो जाता है, ताकि वह अपनी योग्यता दिखा सके और दूसरे जान सकें कि उसकी हैसियत और पहचान साधारण लोगों से अलग है। निस्संदेह, बिना किसी हैसियत वाले भ्रष्ट लोग भी अकसर नियंत्रण खो देते हैं। उनका क्रोध अकसर उनके निजी हितों को नुकसान पहुँचने के कारण होता है। अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए भ्रष्ट मनुष्य बार-बार अपनी भावनाएँ जाहिर करता है और अपना अहंकारी स्वभाव दिखाता है। मनुष्य पाप के अस्तित्व का बचाव और समर्थन करने के लिए क्रोध से आगबबूला हो जाता है, अपनी भावनाएँ जाहिर करता है, और इन्हीं तरीकों से मनुष्य अपना असंतोष व्यक्त करता है; वे अशुद्धताओं, कुचक्रों और साजिशों से, मनुष्य की भ्रष्टता और बुराई से, और अन्य किसी भी चीज़ से बढ़कर, मनुष्य की निरंकुश महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से लबालब भरे हैं। जब न्याय दुष्टता से टकराता है, तो मनुष्य न्याय के अस्तित्व का बचाव या समर्थन करने के लिए क्रोध से आगबबूला नहीं होता; इसके विपरीत, जब न्याय की शक्तियों को धमकाया, सताया और उन पर आक्रमण किया जाता है, तब मनुष्य का स्वभाव नज़रअंदाज़ करने, टालने या मुँह फेरने वाला होता है। लेकिन दुष्ट शक्तियों से सामना होने पर मनुष्य का रवैया समझौतापरक, झुकने और मक्खन लगाने वाला होता है। इसलिए, मनुष्य का क्रोध निकालना दुष्ट शक्तियों के लिए बच निकलने का मार्ग है, और देहयुक्त मनुष्य के अनियंत्रित और रोके न जा सकने वाले बुरे आचरण की अभिव्यक्ति है। किंतु जब परमेश्वर अपने कोप को भेजता है, तो सारी बुरी शक्तियों को रोका जाएगा, मनुष्य को हानि पहुँचाने वाले सारे पापों पर अंकुश लगाया जाएगा, परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने वाली सभी विरोधी ताकतों को प्रकट, अलग और शापित किया जाएगा, परमेश्वर का विरोध करने वाले शैतान के सभी सहयोगियों को दंडित किया जाएगा और उन्हें जड़ से उखाड़ दिया जाएगा। उनके स्थान पर, परमेश्वर का कार्य बाधाओं से मुक्त होकर आगे बढ़ेगा, परमेश्वर की प्रबंधन योजना निर्धारित समय के अनुसार कदम-दर-कदम विकसित होती रहेगी, और परमेश्वर के चुने हुए लोग शैतान की बाधा और छल से मुक्त होंगे, और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोग स्वस्थ और शांतिपूर्ण माहौल के बीच परमेश्वर की अगुआई और आपूर्ति का आनंद लेंगे। परमेश्वर का कोप एक सुरक्षा-उपाय है, जो सभी दुष्ट ताकतों को बहुगुणित होने और अनियंत्रित होकर बढ़ने से रोकता है, और यह ऐसा सुरक्षा-उपाय भी है, जो समस्त न्यायोचित और सकारात्मक चीज़ों के अस्तित्व और प्रसार की रक्षा करता है, और शाश्वत रूप से उन्हें दमन और विनाश से बचाता है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II