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परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 52

165 21/07/2020

परमेश्वर के द्वारा अय्यूब को शैतान को सौंपना और परमेश्वर के कार्य के उद्देश्यों के मध्य सम्बन्ध

हालाँकि अधिकांश लोग यह पहचानते हैं कि अय्यूब एक खरा एवं सीधा पुरुष था, और यह कि वह परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, यह पहचान उन्हें परमेश्वर के इरादे की एक बड़ी समझ प्रदान नहीं करता है। ठीक उसी समय अय्यूब के मनुष्यत्व एवं अनुसरण से ईर्ष्या करते हुए, वे परमेश्वर के बारे में निम्नलिखित प्रश्न करते हैं: अय्यूब इतना खरा एवं सीधा था, लोग उससे इतना प्यार करते थे, तो परमेश्वर ने क्यों उसे शैतान को सौंप दिया और उसे इतनी अधिक पीड़ा के आधीन किया? ऐसे प्रश्नों का लोगों के हृदयों में आना लाजिमी है—या उसके बजाए, यह सन्देह वही प्रश्न है जो अनेक लोगों के हृदयों में है। जबकि इसने इतने सारे लोगों को हैरान कर दिया है, तो हमें इस प्रश्न को मेज पर रखना और इसे सही तरह से समझाना होगा।

हर एक कार्य जो परमेश्वर करता है वह आवश्यक है, और वह असाधारण महत्व रखता है, क्योंकि वह सब कुछ जो परमेश्वर मनुष्य में करता है वह उसके प्रबंधन एवं मानवजाति के उद्धार से सम्बन्धित होता है। स्वाभाविक रूप से, वह कार्य जिसे परमेश्वर ने अय्यूब में किया था वह कुछ अलग नहीं है, भले ही अय्यूब परमेश्वर की दृष्टि में खरा एवं सीधा था। दूसरे शब्दों में, इसके बावजूद कि जो कुछ परमेश्वर करता है या वे माध्यम जिनके द्वारा वह इसे करता है, उस कीमत, या उसके उद्देश्य के बावजूद, उसके कार्यों का उद्देश्य बदलता नहीं है। उसका उद्देश्य है कि वह मनुष्य के भीतर परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर की अपेक्षाओं, और मनुष्य के लिए परमेश्वर की इच्छा का काम करे; दूसरे शब्दों में, उसका उद्देश्य है कि मनुष्य के भीतर वह सब कुछ किया जाए जिसके विषय में परमेश्वर विश्वास करता है कि ये उसके चरणों के अनुसार रचनात्मक हैं, उसका उद्देश्य है कि मनुष्य को सक्षम बनाया जाए ताकि वह परमेश्वर के हृदय को समझे और परमेश्वर की हस्ती को बूझे, और उसे अनुमति दिया जाए ताकि वह परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों को माने, और इस प्रकार मनुष्य को अनुमति दिया जाए कि वह परमेश्वर के भय और बुराई के परित्याग को हासिल करे—जो भी वह करता है उसमें यह सब परमेश्वर के उद्देश्य का एक पहलु है। दूसरा पहलु यह है कि, क्योंकि शैतान एक महीन परत है और परमेश्वर के कार्य में एक मोहरा है, इसलिए मनुष्य को अकसर शैतान को दे दिया जाता है; यह वह साधन है जिसे परमेश्वर उपयोग करता है ताकि शैतान की परीक्षाओं एवं हमलों के बीच लोगों को शैतान की दुष्टता, कुरूपता एवं घिनौनेपन को देखने की अनुमति दे, इस प्रकार लोग शैतान से घृणा करने लग जाते हैं और उसे पहचान जाते हैं जो नकारात्मकता है। यह प्रक्रिया उन्हें अनुमति देती है कि वे धीरे धीरे स्वयं को शैतान के नियन्त्रण से, और शैतान के आरोपों, हस्तक्षेप एवं आक्रमणों से स्वतन्त्र करें—जब तक, परमेश्वर के वचन के कारण, परमेश्वर के विषय में उनके ज्ञान एवं आज्ञाकारिता के कारण, और परमेश्वर में उनके विश्वास एवं भय के कारण, वे शैतान के हमलों के ऊपर विजय न पा लें, और शैतान के आरोपों के ऊपर विजय न पा लें; केवल तभी उन्हें पूरी तरह से शैतान के प्रभुत्व से छुड़ा लिया जाएगा। लोगों के छुटकारे का अर्थ है कि शैतान को हरा दिया गया है; इसका अर्थ है कि वे आगे से शैतान के मुंह का भोजन नहीं हैं—उन्हें निगलने के बजाय, शैतान ने उन्हें छोड़ दिया है। यह इसलिए है क्योंकि ऐसे लोग सच्चे हैं, क्योंकि उनके पास विश्वास, आज्ञाकारिता एवं परमेश्वर के प्रति भय है, और क्योंकि उन्होंने शैतान के साथ पूरी तरह से नाता तोड़ लिया है। वे शैतान को लज्जित करते हैं, वे शैतान को डरपोक बना देते हैं, और वे पूरी तरह से शैतान को हरा देते हैं। परमेश्वर का अनुसरण करने में उनकी आस्था ने, और परमेश्वर के भय एवं आज्ञाकारिता ने शैतान को हरा दिया है, और शैतान को पूरी तरह से उन्हें छोड़ देने के लिए मजबूर किया है। केवल ऐसे ही लोगों को सचमुच में परमेश्वर के द्वारा हासिल किया गया है, और मनुष्य को बचाने के लिए यही परमेश्वर का चरम उद्देश्य है। यदि वे उद्धार पाने की इच्छा करते हैं, और यह कामना करते हैं कि उन्हें पूरी तरह से परमेश्वर के द्वारा हासिल किया जाए, तो वे सभी जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उन्हें शैतान की परीक्षाओं और बड़े एवं छोड़े हमलों का सामना करना होगा। ऐसे लोग जो इन परीक्षाओं एवं आक्रमणों से उभरकर निकलेंगे और जो शैतान को पूरी तरह से हराने में समर्थ हैं वे ही ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा बचाया गया है। कहने का तात्पर्य है, वे लोग जिन्हें परमेश्वर के लिए बचाया गया है वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की परीक्षाओं से होकर गुज़रे हैं, शैतान के द्वारा अनगिनित बार जिनकी परीक्षा ली गई और जिन पर आक्रमण किया गया है। ऐसे लोग जिन्हें परमेश्वर के लिए परमेश्वर की समझ के लिए और परमेश्वर की इच्छा के लिए और अपेक्षाओं के लिए बचाया गया है, जो चुपचाप परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों को स्वीकार करते हैं, और वे शैतान के प्रलोभनों के बीच परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को नहीं छोड़ते हैं। ऐसे लोग जिन्हें परमेश्वर के लिए बचाया गया है वे ईमानदारी को धारण करते हैं, वे दयालु हैं, वे प्रेम एवं घृणा के बीच अन्तर करते हैं, उनके पास न्याय का एहसास है और वे न्यायसंगत हैं, और वे परमेश्वर की परवाह करने और वह सब संजोकर रखने के योग्य हैं जो परमेश्वर की और से है। ऐसे लोगों को शैतान के द्वारा बांधा नहीं गया है, उनकी जासूसी नहीं की गई है, उन पर दोष नहीं लगाया गया है, या उनका शोषण नहीं किया गया है, वे पूरी तरह से स्वतन्त्र हैं, उन्हें पूरी तरह से छुड़ाया एवं मुक्त किया गया है। अय्यूब स्वतन्त्रता का मात्र ऐसा ही एक मनुष्य था, और परमेश्वर ने किस लिए उसे शैतान को सौंप दिया था यह निश्चित रूप से उसका महत्व है।

शैतान के द्वारा अय्यूब का शोषण किया गया था, परन्तु उसने अनन्त काल की स्वतन्त्रता भी हासिल की थी, और यह अधिकार हासिल किया था कि उसे फिर कभी शैतान की भ्रष्टता, शोषण, एवं आरोपों के अधीन नहीं किया जाएगा, इसके बजाय वह परमेश्वर के मुख के प्रकाश में आज़ादी से एवं भारमुक्त होकर जीवन बिताएगा, और उसके लिए परमेश्वर की आशीषों के मध्य जीवन बिताएगा। कोई भी इस अधिकार को छीन, या नष्ट नहीं कर सकता है, या इसे प्राप्त नहीं कर सकता है। यह अय्यूब को परमेश्वर के प्रति उसके विश्वास, दृढ़ निश्चय, एवं आज्ञाकारिता के बदले में दिया गया था; अय्यूब ने पृथ्वी पर आनन्द एवं प्रसन्नता को अर्जित करने के लिए, और उस अधिकार एवं पात्रता को अर्जित करने के लिए अपने जीवन की कीमत चुकाई थी, जिसे स्वर्ग के द्वारा नियुक्त एवं पृथ्वी के द्वारा स्वीकार किया गया था, कि वह परमेश्वर के एक सच्चे जीवधारी के रूप में बिना किसी हस्तक्षेप के पृथ्वी पर सृष्टिकर्ता की आराधना करे। साथ ही यह अय्यूब द्वारा सहन की गई परीक्षाओं का सबसे बड़ा परिणाम भी था।

जब लोगों को अभी तक बचाया नहीं गया है, तो शैतान के द्वारा उनके जीवन में अकसर दखल दिया जाता है, और उन्हें नियन्त्रित भी किया जाता है। दूसरे शब्दों में, ऐसे लोग जिन्हें बचाया नहीं गया है वे शैतान के कैदी हैं, उनके पास कोई स्वतन्त्रता नहीं है, उन्हें शैतान के द्वारा छोड़ा नहीं गया है, वे परमेश्वर की आराधना करने के लिए योग्य या पात्र नहीं हैं, शैतान के द्वारा करीब से उनका पीछा किया जाता है और उन पर दुष्टतापूर्वक आक्रमण किया जाता है। ऐसे लोगों के पास कोई खुशी नहीं होती कि वे उसके विषय में बात करें, उनके पास एक सामान्य अस्तित्व के लिए कोई अधिकार नहीं होता है कि वे उसके विषय में बात करें, और इसके अतिरिक्त, उनके पास कोई गरिमा नहीं होती है कि वे उसके विषय में बात करें। यदि तू खड़ा है और परमेश्वर में अपने विश्वास एवं आज्ञाकारिता का उपयोग करते हुए शैतान के साथ युद्ध करे, और हथियार के रूप में परमेश्वर के भय का उपयोग करे कि उससे शैतान के साथ ज़िन्दगी और मौत की जंग लड़े, कुछ इस तरह कि तू शैतान को पूरी तरह से हरा दे और उसे दुम दबाने के लिए मजबूर करे और जब भी वह तुझे देखे तो डर जाए, जिससे वह तेरे विरुद्ध अपने आक्रमणों एवं आरोपों को पूरी तरह से त्याग दे—केवल तभी तू उद्धार पाएगा और स्वतन्त्र होगा। यदि तूने शैतान के साथ पूरी तरह से नाता तोड़ने के लिए दृढ़ संकल्प किया है, परन्तु यदि तू उन हथियारों से पूरी तरह से लैस नहीं होता है जो शैतान को हराने में तेरी सहायता करेंगे, तो तू अभी भी खतरे में होगा; जैसे जैसे समय गुज़रता जाता है, और जब तुझे शैतान के द्वारा इस रीति से प्रताड़ित किया जाता है जिससे तुझमें रत्ती भर भी ताकत नहीं बचती है, फिर भी तू अब भी गवाही देने में असमर्थ है, और तूने अभी भी अपने विरुद्ध शैतान के आरोप एवं आक्रमणों से स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्र नहीं कराया है, तो तेरे पास उद्धार की थोड़ी सी ही आशा होगी। अंत में, जब परमेश्वर के कार्य के समापन की घोषणा की जाती है, तो तू तब भी शैतान के शिकंजे में होगा, अपने आपको स्वतन्त्र करने में असमर्थ होगा, और इस प्रकार तेरे पास कभी भी कोई अवसर या आशा नहीं होगी। तो इसका आशय है कि ऐसे लोग पूरी तरह से शैतान की बंधुवाई में होंगे।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

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