प्रभु यीशु ने कहा था, "मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है" (मत्ती 19:26)।
प्रभु यीशु ने कहा, "आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं। जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं" (यूहन्ना 6:63)।
“हे यहोवा के पवित्र लोगो, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयों को किसी बात की घटी नहीं होती! जवान सिंहों को तो घटी होती और वे भूखे भी रह जाते हैं, परन्तु यहोवा के खोजियों को किसी भली वस्तु की घटी न होगी।” भजन संहिता 34:9-10
बड़ी विपत्तियाँ आ रही हैं, और अनुग्रह का द्वार बंद होने वाला है; प्रभु के पदचिन्हों को खोजने और अंतिम दिनों के सन्दूक में प्रवेश करने के लिए जल्दी करो
क्या आपने बाढ़ से विश्व के विनाश की कहानी सुनी है? उस समय, लोग अत्यंत भ्रष्ट, दुष्ट और भ्रष्ट थे, और परमेश्वर की आराधना नहीं करते थे। भले ही उन्होंने नूह से यह चेतावनी सुनी कि परमेश्वर जलप्रलय से संसार को नष्ट कर देगा, उन्होंने उस पर विश्वास करने से इनकार कर दिया, बल्कि नूह का उपहास किया। हालाँकि, जब उन्होंने अपने चारों ओर बाढ़ को देखा, तो अनुग्रह का द्वार बंद हो गया। इस प्रकार, उन्होंने परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका खो दिया और बाढ़ से नष्ट हो गए। केवल नूह ने सन्दूक बनाने और सुसमाचार फैलाने के लिए परमेश्वर की आज्ञाओं को सुना। अंत में, उसका आठ लोगों का परिवार जहाज में घुस गया और आपदा से बच गया।
प्रभु यीशु ने एक बार भविष्यवाणी की थी, "जैसा नूह के दिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा" (लूका 17:26)।
आइए आज के लोगों को देखें। वे भ्रष्ट भी हैं और भ्रष्टता में जीते हैं: दुनिया की प्रवृत्तियों का पालन करते हुए और केवल खाने, पीने और आनंदित होने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जाहिर है, आज के लोग नूह के समय के लोगों से भी बदतर हैं। नूह के दिन फिर से प्रकट हो गए हैं और यहोवा पहले ही लौट चुका है। वह मनुष्य को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है, ताकि मनुष्य आपदाओं से बच सके और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सके। लेकिन वास्तव में, कुछ ही लोग सक्रिय रूप से परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की तलाश करते हैं। इसके अलावा, अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की खबर सुनकर, कुछ लोग न केवल इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं बल्कि इसका विरोध और निंदा करते हैं। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव को बढ़ा दिया है। क्रमिक आपदाओं का घटित होना मानवजाति के प्रति परमेश्वर का क्रोध है। एक ओर, यह सुझाव देता है कि अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य पूरा होने वाला है, और यह कि अनुग्रह का द्वार बंद होने वाला है; दूसरी ओर, आपदाएं परमेश्वर के अनुस्मारक और उपदेश हैं कि दिल और आत्मा वाले लोगों को अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की तलाश करने के लिए जल्दी करनापरमेश्वर मनुष्य-जाति के भविष्य पर विलाप करता है, वह मनुष्य-जाति के पतन पर शोक करता है, और उसे पीड़ा होती है कि मनुष्य-जाति, कदम-दर-कदम, क्षय और ऐसे मार्ग की ओर बढ़ रही है, जहाँ से वापसी संभव नहीं है। किसी ने कभी नहीं सोचा है कि ऐसी मनुष्य-जाति जिसने परमेश्वर का हृदय तोड़ दिया है और दुष्ट की तलाश करने के लिए उसका त्याग कर दिया है, किस ओर जा रही है। ठीक इसी कारण से कोई परमेश्वर के कोप को महसूस नहीं करता, कोई परमेश्वर को खुश करने का तरीका नहीं खोजता या परमेश्वर के करीब आने की कोशिश नहीं करता, और इससे भी अधिक, कोई परमेश्वर के दुःख और दर्द को समझने की कोशिश नहीं करता। परमेश्वर की वाणी सुनने के बाद भी मनुष्य अपने रास्ते पर चलता रहता है, परमेश्वर से दूर जाने, परमेश्वर के अनुग्रह और देखभाल से बचने, उसके सत्य से कतराने में लगा रहता है, अपने आप को परमेश्वर के दुश्मन, शैतान को बेचना पसंद करता है। और किसने इस बात पर कोई विचार किया है—क्या मनुष्य को अपनी जिदपर अड़े रहना चाहिए—कि परमेश्वर इस मानव-जाति के साथ कैसा व्यवहार करेगा, जिसने उसे मुड़कर एक नज़र देखे बिना ही खारिज कर दिया? कोई नहीं जानता कि परमेश्वर के बार-बार के अनुस्मारकों और आग्रहों का कारण यह है कि उसने अपने हाथों में एक अभूतपूर्व आपदा तैयार की है, एक ऐसी आपदा, जो मनुष्य की देह और आत्मा के लिए असहनीय होगी। यह आपदा केवल देह का ही नहीं, बल्कि आत्मा का भी दंड है। तुम्हें यह जानने की आवश्यकता है: जब परमेश्वर की योजना निष्फल होती है और जब उसके अनुस्मारकों और आग्रहों का कोई प्रतिदान नहीं मिलता, तो वह किस प्रकार का क्रोध प्रकट करेगा? यह ऐसा होगा, जिसे पहले किसी सृजित प्राणी ने कभी अनुभव किया या सुना नहीं होगा। और इसलिए मैं कहता हूँ, यह आपदा बेमिसाल है और कभी दोहराई नहीं जाएगी। क्योंकि परमेश्वर की योजना मनुष्य-जाति का केवल एक बार सृजन करने और उसे केवल एक बार बचाने की है। यह पहली बार है, और यही अंतिम बार भी है। इसलिए, जिन श्रमसाध्य इरादों और उत्साहपूर्ण प्रत्याशा से परमेश्वर इस बार इंसान को बचाता है, उसे कोई नहीं समझ सकता। चाहिए और परमेश्वर के अंतिम उद्धार को स्वीकार करना चाहिए ताकि आपदाओं में परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हो सके। जो लोग न तो परमेश्वर से पश्चाताप करते हैं और न ही अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की तलाश करते हैं, वे केवल नूह के समय के लोगों की तरह बड़ी आपदाओं में बह जाएंगे, जो पछतावे से भरे होंगे।
परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर मनुष्य-जाति के भविष्य पर विलाप करता है, वह मनुष्य-जाति के पतन पर शोक करता है, और उसे पीड़ा होती है कि मनुष्य-जाति, कदम-दर-कदम, क्षय और ऐसे मार्ग की ओर बढ़ रही है, जहाँ से वापसी संभव नहीं है। किसी ने कभी नहीं सोचा है कि ऐसी मनुष्य-जाति जिसने परमेश्वर का हृदय तोड़ दिया है और दुष्ट की तलाश करने के लिए उसका त्याग कर दिया है, किस ओर जा रही है। ठीक इसी कारण से कोई परमेश्वर के कोप को महसूस नहीं करता, कोई परमेश्वर को खुश करने का तरीका नहीं खोजता या परमेश्वर के करीब आने की कोशिश नहीं करता, और इससे भी अधिक, कोई परमेश्वर के दुःख और दर्द को समझने की कोशिश नहीं करता। परमेश्वर की वाणी सुनने के बाद भी मनुष्य अपने रास्ते पर चलता रहता है, परमेश्वर से दूर जाने, परमेश्वर के अनुग्रह और देखभाल से बचने, उसके सत्य से कतराने में लगा रहता है, अपने आप को परमेश्वर के दुश्मन, शैतान को बेचना पसंद करता है। और किसने इस बात पर कोई विचार किया है—क्या मनुष्य को अपनी जिदपर अड़े रहना चाहिए—कि परमेश्वर इस मानव-जाति के साथ कैसा व्यवहार करेगा, जिसने उसे मुड़कर एक नज़र देखे बिना ही खारिज कर दिया? कोई नहीं जानता कि परमेश्वर के बार-बार के अनुस्मारकों और आग्रहों का कारण यह है कि उसने अपने हाथों में एक अभूतपूर्व आपदा तैयार की है, एक ऐसी आपदा, जो मनुष्य की देह और आत्मा के लिए असहनीय होगी। यह आपदा केवल देह का ही नहीं, बल्कि आत्मा का भी दंड है। तुम्हें यह जानने की आवश्यकता है : जब परमेश्वर की योजना निष्फल होती है और जब उसके अनुस्मारकों और आग्रहों का कोई प्रतिदान नहीं मिलता, तो वह किस प्रकार का क्रोध प्रकट करेगा? यह ऐसा होगा, जिसे पहले किसी सृजित प्राणी ने कभी अनुभव किया या सुना नहीं होगा। और इसलिए मैं कहता हूँ, यह आपदा बेमिसाल है और कभी दोहराई नहीं जाएगी। क्योंकि परमेश्वर की योजना मनुष्य-जाति का केवल एक बार सृजन करने और उसे केवल एक बार बचाने की है। यह पहली बार है, और यही अंतिम बार भी है। इसलिए, जिन श्रमसाध्य इरादों और उत्साहपूर्ण प्रत्याशा से परमेश्वर इस बार इंसान को बचाता है, उसे कोई नहीं समझ सकता।"
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