प्रभु यीशु ने कहा था, "यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर* भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, ‘यहाँ से सरककर वहाँ चला जा’, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अनहोनी न होगी"(मत्ती 17:20)।
जैसे की आपदाएँ बारंबार होती हैं, हम शरणस्थान में कैसे प्रवेश कर सकते हैं?
2,000 साल पहले, प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि अंत के दिनों में सभी प्रकार की विनाशकारी आपदाएँ होंगी: "क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा" (मत्ती 24:21)। आज दुनियाँ भर में आपदाएं बढ़ रही हैं। भूकंप, अकाल, युद्ध और बाढ़ एक के बाद एक होती हैं, और वैश्विक महामारी का प्रकोप अभी भी जारी है। आपदाओं की स्थिति में हमें अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता स्वाभाविक रूप से होती है, लेकिन हम शक्तिहीन हैं। कृपया यह मत भूलें: परमेश्वर ही हमारा शरणस्थान है और कठिनायों में हमारा एकमात्र सहारा है। यह ठीक वैसा ही है जैसा पवित्रशास्त्र कहता है: "परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक" (भजन संहिता 46:1)।
वास्तव में, इन आपदाओं का होना इस बात का संकेत है कि प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियां पूरी हो चुकी हैं। न्याय और शुद्धिकरण के कार्य के एक चरण को करने के लिए प्रभु पहले ही लौट चुके हैं और लाखों वचन व्यक्त कर चुके हैं। वह हमें पूरी तरह से भ्रष्टाचार से मुक्त करने का इरादा रखता है, ताकि हम शुद्ध हो सकें और इस तरह आपदाओं से बच सकें और स्वर्ग के राज्य में लाए जा सकें। तो हम अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त करने और शरण में प्रवेश करने के लिए प्रभु की वापसी का स्वागत कैसे कर सकते हैं?
प्रभु यीशु ने कहा, "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। और प्रकाशितवाक्य में कई स्थानों पर इसकी भविष्यवाणी की गई है: "जिसके कान हों, वह सुन ले कि पवित्र आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य अध्याय 2, 3)
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि 'परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।' और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है!"
परमेश्वर के वचनों से, हम देख सकते हैं की प्रभु की वापसी का स्वागत करने में सबसे महत्वपूर्ण हैं, परमेश्वर की वाणी सुनने पर ध्यान देनाl जब हम गवाही सुनते हैं की प्रभु वापस आ चुके हैं और वचनों को व्यक्त किए है, यह देखने के लिए की क्या यह सत्य और परमेश्वर की वाणी है हमें इन वचनों को सुनना और ख़ोज करना चाहिएl जब हम इन वचनों को परमेश्वर की वाणी के रूप में पहचान लेते हैं, हमें उसे अवश्य स्वीकार और पालन करना चाहिएl यह प्रभु की वापसी का स्वागत करना हैl
दोस्तों, इसे देखकर, क्या आप लौटे हुए प्रभु के वचनों को पढ़ना चाहते हैं ताकि आप फिर से प्रभु के साथ पुनर्मिलन कर सकें और इस प्रकार परमेश्वर के अंतिम उद्धार को प्राप्त कर शरणस्थान में प्रवेश कर सकें? हमसे व्हाट्सएप पर संपर्क करने के लिए क्लिक करें और हम आपके साथ ऑनलाइन संवाद करेंगे।
"तब मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया; और यहोवा ने रात भर प्रचण्ड पुरवाई चलाई, और समुद्र को दो भाग करके जल ऐसा हटा दिया, जिससे कि उसके बीच सूखी भूमि हो गई" (निर्गमन 14:21)।
यह पद हमें एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखाता है: जब मूसा इस्राएलियों को मिस्त्र से बाहर ले गए, तो मिस्र के सैनिकों द्वारा उनका पीछा किया गयाl बाद में, वे उनके आगे लाल समुद्र और उनके पीछे मिस्री सेना के बीच पकड़े गएl ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे समाप्त हो गए होंl हालाँकि, मूसा को परमेश्वर पर विश्वास था और उसने उसके वचनों को सुनाl उसने लाठी को समुद्र की ओर बढ़ाया, और लाल समुद्र अलग को गया और सुखी भूमि में बदल गया l अंत में, उसने इस्राएलियों को खतरे से बाहर निकाला।
यह तथ्य हमें न सिर्फ़ परमेश्वर के सामर्थ्य को देखने की अनुमति देता है, बल्कि परमेश्वर में हमें सच्चा विश्वास रखने के महत्त्व का भी एहसास कराता है! हाल ही में, विभिन्न आपदाएं लगातार हो रही हैं, और महामारी अवशेष अनियंत्रित है, जिसके समाप्त होने के कोई संकेत नहीं हैं l हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ा हैl कई विश्वासी बेरोजगारी, जीवन के दबाव और बीमारी की पीड़ा के खतरे को झेल रहे हैं। लेकिन परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमें डरने की आवश्यकता नहीं है। जब तक हमारे पास सच्चा विश्वास है, हम परमेश्वर का मार्गदर्शन और उनके कर्मों को देख सकते हैं! परमेश्वर की इच्छा को बेहतर से समझने के लिए आइए परमेश्वर के वचनों के एक अंश को पढ़ें!
परमेश्वर कहते हैं: "अपने अनुभव में, तुम परमेश्वर के वचनों के द्वारा चाहे जिस भी प्रकार के शोधन से गुज़रो, संक्षेप में, परमेश्वर को मानवजाति से जिसकी अपेक्षा है वह है, परमेश्वर में उनका विश्वास और प्रेम। इस तरह से, जिसे वो पूर्ण बनाता है वह है लोगों का विश्वास, प्रेम और अभिलाषाएँ। परमेश्वर लोगों पर पूर्णता का कार्य करता है, जिसे वे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते; इन परिस्थितयों में तुम्हारे विश्वास की आवश्यकता होती है। लोगों के विश्वास की आवश्यकता तब होती है जब किसी चीज को नग्न आँखों से नहीं देखा जा सकता है, और तुम्हारे विश्वास की तब आवश्यकता होती है जब तुम अपनी स्वयं की धारणाओं को नहीं छोड़ पाते हो। जब तुम परमेश्वर के कार्यों के बारे में स्पष्ट नहीं होते हो, तो आवश्यकता होती है कि तुम विश्वास बनाए रखो और तुम दृढ़ रवैया रखो और गवाह बनो। जब अय्यूब इस स्थिति तक पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, यह केवल तुम्हारे विश्वास के भीतर से ही है कि तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ होगे, और जब तुम्हारे पास विश्वास है तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनायेगा। विश्वास के बिना, वह ऐसा नहीं कर सकता है। परमेश्वर तुम्हें वह सब प्रदान करेगा जिसको प्राप्त करने की तुम आशा करते हो। यदि तुम्हारे पास विश्वास नहीं है, तो तुम्हें पूर्ण नहीं बनाया जा सकता है और तुम परमेश्वर के कार्यों को देखने में असमर्थ होगे, उसकी सर्वसामर्थ्य को तो बिल्कुल भी नहीं देख पाओगे। जब तुम्हारे पास यह विश्वास होता है कि तुम अपने व्यवहारिक अनुभव में उसके कार्यों को देख सकते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे सामने प्रकट होगा और भीतर से वह तुम्हें प्रबुद्ध करेगा और तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। उस विश्वास के बिना, परमेश्वर ऐसा करने में असमर्थ होगा। यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास खो चुके हो, तो तुम कैसे उसके कार्य का अनुभव कर पाओगे? इसलिए, केवल जब तुम्हारे पास विश्वास है और तुम परमेश्वर पर संदेह नहीं करते हो, चाहे वो जो भी करे, अगर तुम उस पर सच्चा विश्वास करो, केवल तभी वह तुम्हारे अनुभवों में तुम्हें प्रबुद्ध और रोशन कर देता है, और केवल तभी तुम उसके कार्यों को देख पाओगे। ये सभी चीजें विश्वास के माध्यम से ही प्राप्त की जाती हैं। विश्वास केवल शुद्धिकरण के माध्यम से ही आता है, और शुद्धिकरण की अनुपस्थिति में विश्वास विकसित नहीं हो सकता है। 'विश्वास' यह शब्द किस चीज को संदर्भित करता है? विश्वास सच्चा भरोसा है और ईमानदार हृदय है जो मनुष्यों के पास होना चाहिए जब वे किसी चीज़ को देख या छू नहीं सकते हों, जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों के विचारों के अनुरूप नहीं होता हो, जब यह मनुष्यों की पहुँच से बाहर हो। इसी विश्वास के बारे में मैं बातें करता हूँ।"
हम परमेश्वर के वचनों से समझ सकते हैं कि चाहे हम किसी भी प्रकार की परीक्षाओं का अनुभव करें, और चाहे हम कितनी भी बड़ी कठिनाइयों का सामना करें, परमेश्वर आशा करता है कि हम परमेश्वर के वचनों पर विश्वास कर सकते हैं, परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, और वास्तव में उस पर निर्भर रहे। केवल इस तरह से हम अनुभव में परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता और संप्रभुता को देखेंगे, और परमेश्वर के कार्यों को देखेंगे।
उदाहरण के लिए, जब शैतान के हमले और प्रलोभन अय्यूब पर आए, तो उसकी सारी संपत्ति छीन ली गई, उसके बच्चों पर विपत्ति आ गई, और उसका पूरा शरीर घावों से ढँक गया। हालाँकि, जो कुछ भी हुआ उसके हृदय में परमेश्वर एक स्थान था; उन्होंने परमेश्वर के प्रति अपने सच्चे विश्वास और श्रद्धा को बनाए रखा। वह यह मानने के लिए तैयार था कि परमेश्वर ने दिया या परमेश्वर ने ले लिया, और अंत में परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया, और उसको और भी अधिक आशीर्वाद दिया।
आइए एक और उदाहरण देखें। जब इब्राहीम एक सदी का था, तब परमेश्वर ने उसे एक पुत्र-इसहाक देने का वादा किया था। परन्तु जैसे-जैसे इसहाक बड़ा हो रहा था, परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा कि उसे एक बलिदान के रूप में पेश करना होगा। ऐसे बहुत से लोग हैं जो शायद यह महसूस करते हैं कि परमेश्वर का इस तरह से कार्य करना मानवीय धारणाओं से बहुत अधिक दूर है। हालांकि, इब्राहीम वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम था—यहां तक कि जब इसका अर्थ उस चीज़ से अलग होना था जिसे उसने सबसे अधिक क़ीमती बनाया था, तब भी उसने इसहाक को परमेश्वर को वापस देने की पेशकश की। अंततः, अब्राहम के सच्चे विश्वास और परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता ने उसकी स्वीकृति और आशीषों को जीत लिया। परमेश्वर ने उसे कई राष्ट्रों का पूर्वज बनने की अनुमति दी।
विश्वासियों के रूप में, जब कष्ट आते हैं, तो हम सभी अक्सर दुखी और असहाय महसूस करते हैं, लेकिन कृपया विश्वास करें: जब तक हमें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है, हम परमेश्वर का मार्गदर्शन को प्राप्त करेंगे, ताकि हमें अनुसरण करने और शांति प्राप्त करने का मार्ग मिल सके। और परमेश्वर से खुशी!
यदि आप एक कठिन परिस्थिति का सामना कर रहे हैं और अधिक सत्य को समझना चाहते हैं, तो कृपया हमसे संपर्क करें। हमारे उपदेशक आपके साथ संवाद करेंगे और आपके साथ परमेश्वर के और अधिक वचन साझा करेंगे, जिससे आपको दुख से गुजरते समय परमेश्वर में विश्वास रखने में मदद मिलेगी।
तेरे निकट हजार, और तेरी दाहिनी ओर दस हजार गिरेंगे; परन्तु वह तेरे पास न आएगा। (भजन संहिता 91:7)
प्रभु यीशु ने कहा था, "मत डर; केवल विश्वास रख" (मरकुस 5:36)।
"जिस समय मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूँगा" (भजन संहिता 56:3)।
परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर आ गया है! क्या आप इसमें प्रवेश करना चाहते हैं?
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