और चूँकि परमेश्वर देहधारी हो जाता है, इसलिए वह अपनी देह की पहचान में कार्य करता है;
चूँकि वह देह में आता है,
इसलिए वह अपनी देह में उस कार्य को समाप्त करता है जो उसे करना चाहिए।
चाहे वह परमेश्वर का आत्मा हो या वह मसीह हो, दोनों परमेश्वर स्वयं हैं,
तथा वह उस कार्य को करता है जो उसे करना चाहिए है
तथा उस सेवकाई को करता है जो उसे करनी चाहिए।
इस बात की परवाह किए बिना कि वह कैसे अपना कार्य संचालित करता है,
वह इस प्रकार कार्य नहीं करेगा जो परमेश्वर की अवज्ञा करता हो।
चाहे वह मनुष्य से कुछ भी माँगे,
कोई भी माँग मनुष्य द्वारा प्राप्य से बढ़कर नहीं होती है।
वह जो कुछ भी करता है वह परमेश्वर की इच्छापूर्ति करना है
तथा उसकी प्रबंधन व्यवस्था के वास्ते है।
मसीह की दिव्यता सभी मनुष्यों से ऊपर है,
इसलिए सभी सृजे गए प्राणियों में वह सर्वोच्च अधिकारी है।
यह अधिकार उसकी दिव्यता,
अर्थात्, परमेश्वर स्वयं का स्वभाव तथा अस्तित्व है,
जो उसकी पहचान निर्धारित करता है।
इसलिए, चाहे उसकी मानवता कितनी ही साधारण हो,
यह बात अखंडनीय है कि उसके पास स्वयं परमेश्वर की पहचान है;
चाहे वह किसी भी दृष्टिकोण से बोले
तथा वह किसी भी प्रकार से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करें,
किन्तु यह नहीं कहा जा सकता है कि वह स्वयं परमेश्वर नहीं है।