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परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 405 परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 405
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परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 405

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मैंने पहले कहा है कि "वे सब जो संकेतों और चमत्कारों को देखने की कोशिश करते हैं त्याग दिये जाएँगे; ये वे लोग नहीं हैं जो पूर्ण बनाए जाएँगे।" मैंने बहुत से वचन कहे हैं, फिर भी तुम्हें इस कार्य का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है, और, इस स्तर तक आकर, तुम अभी भी संकेतों और चमत्कारों के बारे में पूछते हो। क्या परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास संकेतों और चमत्कारों को देखने की तलाश है, या यह जीवन प्राप्त करने के उद्देश्य से है? यीशु ने भी बहुत से वचन कहे जिन्हें, आज, अभी भी पूरा होना है। क्या तुम कह सकते हो कि यीशु परमेश्वर नहीं है? परमेश्वर ने गवाही दी कि वह मसीहा और परमेश्वर का प्यारा पुत्र है। क्या तुम इस बात से इनकार कर सकते हो? आज, परमेश्वर केवल वचन कहता है, और यदि तुम पूर्णतः जानने में अक्षम हो, तब तुम अडिग नहीं रह सकते हो। क्या तुम उसमें इसलिए विश्वास करते हो क्योंकि वह परमेश्वर है, या फिर तुम इस आधार पर विश्वास करते हो कि क्या उसके वचन पूरे होते हैं या नहीं? क्या तुम संकेतों और चमत्कारों पर विश्वास करते हो, या तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो? आज वह संकेतों और चमत्कारों को नहीं दिखाता है—क्या वह वास्तव में परमेश्वर है? यदि उसके द्वारा कहे गये वचन पूरे नहीं होते हैं, तो क्या वह वास्तव में परमेश्वर है? क्या परमेश्वर का सार इस बात से निर्धारित होता है कि क्या उसके द्वारा कहे गये वचन पूरे होते हैं या नहीं? ऐसा क्यों है कि सदैव कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास करने से पहले उसके द्वारा कहे गये वचन के पूरे होने की प्रतीक्षा करते हैं? क्या इसका अर्थ यह नहीं कि वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं? वे सब लोग जो ऐसी धारणाओं से सम्पन्न हैं वे लोग हैं जो परमेश्वर का इनकार करते हैं; वे परमेश्वर का आँकलन करने के लिए धारणाओं का उपयोग करते हैं; यदि परमेश्वर के वचन पूरे हो जाते हैं तो वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और यदि वचन पूरे नहीं होते हैं, तो वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं; और वे सदैव संकेतों और चमत्कारों को देखने की तलाश करते रहते हैं। क्या वे आधुनिक समय के फरीसी नहीं हैं? तुम डटे रहने में समर्थ हो या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या तुम वास्तविक परमेश्वर को जानते हो या नहीं—यह अत्यंत महत्वपूर्ण है! परमेश्वर के वचनों की जितनी अधिक वास्तविकता तुममें होती है, परमेश्वर की वास्तविकता का तुम्हारा ज्ञान उतना ही अधिक होता है, और तुम परीक्षाओं के दौरान उतना अधिक अडिग रहने में समर्थ होते हो। तुम जितना अधिक संकेतों और चमत्कारों पर ध्यान देते हो, उतना ही अधिक तुम डटे रहने में असमर्थ होते हो, और उतना ही अधिक परीक्षाओं के बीच तुम गिर जाओगे। संकेत और चमत्कार बुनियाद नहीं हैं; केवल परमेश्वर की वास्तविकता ही जीवन है। कुछ लोग उन प्रभावों को नहीं जानते जो परमेश्वर के कार्य के द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। वे परमेश्वर के कार्य के ज्ञान की तलाश नहीं करते हुए, बदहवास होकर अपना दिन व्यतीत करते हैं। उनकी खोज सदैव परमेश्वर से अपनी अभिलाषाओं को पूरा करवाने की होती है, केवल उसके बाद ही वे अपने विश्वास में गंभीर होते हैं। वे कहते हैं कि यदि परमेश्वर के वचन पूरे होंगे, तो वे जीवन की तलाश करेंगे, किन्तु यह कि यदि उसके वचन पूरे नहीं होते हैं, तब कोई संभावना नहीं है कि वे जीवन की तलाश करेंगे। मनुष्य सोचता है कि परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ संकेतों और चमत्कारों को देखने की तलाश करना, और स्वर्ग तथा तीसरे स्वर्ग तक आरोहण करने की तलाश करना है। ऐसा कोई नहीं है जो कहता हो कि परमेश्वर पर उसका विश्वास वास्तविकता में प्रवेश करने की तलाश करना, जीवन की तलाश करना, परमेश्वर द्वारा जीते जाने की तलाश करना है। ऐसी तलाश का क्या मूल्य है? जो परमेश्वर के ज्ञान और परमेश्वर की संतुष्टि की खोज नहीं करते हैं, ये वे लोग हैं जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं, ये वे लोग हैं जो परमेश्वर की ईशनिंदा करते हैं!

क्या अब तुम लोग समझते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करना क्या होता है? क्या संकेतों और चमत्कारों को देखना परमेश्वर पर विश्वास करना है? क्या यह स्वर्ग पर आरोहण करना है? परमेश्वर पर विश्वास आसान नहीं है। आज, इस प्रकार के धार्मिक अभ्यासों को निकाल दिया जाना चाहिए; परमेश्वर के चमत्कारों के प्रकटीकरण का अनुसरण करना, परमेश्वर की चंगाई और उसका दुष्टात्माओं को निकालना, परमेश्वर द्वारा शांति और प्रचुर अनुग्रह प्रदान किए जाने की तलाश करना, और देह के लिए संभावना और आराम प्राप्त करने की तलाश करना—ये धार्मिक अभ्यास हैं, और ऐसे धार्मिक अभ्यास विश्वास के अस्पष्ट और अमूर्त रूप हैं। आज, परमेश्वर में वास्तविक विश्वास क्या है? यह परमेश्वर के वचन को अपने जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना, और परमेश्वर का सच्चा प्यार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के वचन से परमेश्वर को जानना है। स्पष्ट करने के लिए: यह परमेश्वर में विश्वास है जिसकी वजह से तुम परमरेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकते हो, उससे प्रेम कर सकते हो, और उस कर्तव्य को कर सकते हो जो एक परमेश्वर के प्राणी द्वारा की जानी चाहिए। यही परमेश्वर पर विश्वास करने का लक्ष्य है। तुम्हें परमेश्वर के प्रेम का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए है, या यह ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए कि परमेश्वर कितने आदर के योग्य हैं, कैसे अपने सृजन किए गए प्राणियों में परमेश्वर उद्धार का कार्य करता है और उन्हें पूर्ण बनाता है—यह वह न्यूनतम है जो तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास में धारण करना चाहिए। परमेश्वर पर विश्वास मुख्यतः देह के जीवन से परमेश्वर से प्रेम करने वाले जीवन में बदलना है, प्राकृतिकता के भीतर जीवन से परमेश्वर के अस्तित्व के भीतर जीवन में बदलना है, यह शैतान के अधिकार क्षेत्र से बाहर आना और परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में जीवन जीना है, यह परमेश्वर की आज्ञाकारिता को, और न कि देह की आज्ञाकारिता को, प्राप्त करने में समर्थ होना है, यह परमेश्वर को तुम्हारा संपूर्ण हृदय प्राप्त करने की अनुमति देना है, परमेश्वर को तुम्हें पूर्ण बनाने और तुम्हें भ्रष्ट शैतानिक स्वभाव से मुक्त करने की अनुमति देना है। परमेश्वर में विश्वास मुख्यतः इस वजह से है ताकि परमेश्वर की सामर्थ्य और महिमा तुममें प्रकट हो सके, ताकि तुम परमेश्वर की इच्छा पर चल सको, और परमेश्वर की योजना को संपन्न कर सको, और शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दे सको। परमेश्वर पर विश्वास संकेतों और चमत्कारों को देखने के उद्देश्य से नहीं होना चाहिए, न ही यह तुम्हारी व्यक्तिगत देह के वास्ते होना चाहिए। यह परमेश्वर को जानने की तलाश के लिए, और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने, और पतरस के समान, मृत्यु तक परमेश्वर का आज्ञापालन करने में सक्षम होने के लिए, होना चाहिए। यही वह सब है जो मुख्यतः प्राप्त करने के लिए है। परमेश्वर के वचन को खाना और पीना परमेश्वर को जानने के उद्देश्य से और परमेश्वर को संतुष्ट करने के उद्देश्य से है। परमेश्वर के वचन को खाना और पीना तुम्हें परमेश्वर का और अधिक ज्ञान देता है, केवल उसके बाद ही तुम उसका आज्ञा पालन कर सकते हो। केवल यदि तुम परमेश्वर को जानते हो तभी तुम उससे प्रेम कर सकते हो, और इस लक्ष्य को प्राप्त करना ही वह एकमात्र लक्ष्य है जो परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में मनुष्य को रखना चाहिए। यदि, परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास में, तुम सदैव संकेतों और चमत्कारों की देखने का प्रयास करते रहते हो, तब परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास का यह दृष्टिकोण गलत है। परमेश्वर पर विश्वास मुख्य रूप में परमेश्वर के वचन को जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना है। केवल उसके मुख से निकले वचनों को अभ्यास में लाना और उन्हें अपने स्वयं के भीतर पूरा करना, परमेश्वर के लक्ष्य की प्राप्ति है। परमेश्वर पर विश्वास करने में, मनुष्य को परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में समर्थ होने की, और परमेश्वर के प्रति संपूर्ण आज्ञाकारिता की तलाश करनी चाहिए। यदि तुम बिना कोई शिकायत किए परमेश्वर का आज्ञापालन कर सकते हो, परमेश्वर की अभिलाषाओं का विचार कर सकते हो, पतरस के समान हैसियत प्राप्त कर सकते हो, और परमेश्वर द्वारा कही गई पतरस की शैली को धारण कर सकते हो, तो यह तब होगा जब तुमने परमेश्वर पर विश्वास में सफलता प्राप्त कर ली है, और यह इस बात की द्योतक होगी कि तुम परमेश्वर द्वारा जीत लिए गए हो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है

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