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यूहन्ना 17:3 स्पष्टीकरण: अनन्त जीवन प्राप्त करने का मार्ग

आज का वचन बाइबल से

“और अनन्त जीवन यह है कि वे तुझ एकमात्र सच्‍चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।”

जो कोई भी प्रभु में विश्वास करता है उसके लिए सबसे बड़ी इच्छा अनन्त जीवन प्राप्त करना है। जबकि बहुत से लोग सोच सकते हैं कि केवल प्रभु में विश्वास करना ही अनंत जीवन प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है, वास्तव में, यह इतना आसान नहीं है। प्रभु यीशु हमें बताते हैं कि अनन्त जीवन का एकमात्र मार्ग एक सच्चे परमेश्वर को जानना और देह में मसीह को जानना है। तो, हम देहधारी मसीह को कैसे जानें और अनन्त जीवन का मार्ग कैसे प्राप्त करें? इस पृष्ठ को पढ़ें, और आपको रास्ता पता चल जाएगा!

यह अंश हमें बताता है कि अनन्त जीवन का रहस्य परमेश्वर को जानने, मसीह को जानने में निहित है। वास्तव में, मसीह को जानना परमेश्वर को जानने का विशिष्ट तरीका है। मसीह परमेश्वर की आत्मा का देहधारण, स्वयं परमेश्वर का देहधारण और एक सच्चा परमेश्वर है। इस प्रकार, देहधारी मसीह को जानना अनंत जीवन का मार्ग है। तो, हम देहधारी मसीह को कैसे जान सकते हैं और अनन्त जीवन के मार्ग पर चल सकते हैं? परमेश्वर कहते हैं, “जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)परमेश्वर का वचन यह स्पष्ट करता है कि देहधारी परमेश्वर को कैसे समझा जाए। मसीह सत्य, मार्ग और जीवन है। मसीह की दिव्यता मुख्य रूप से सत्य को व्यक्त करने और स्वयं परमेश्वर के कार्य को करने के माध्यम से प्रकट होती है। इसलिए, देहधारी परमेश्वर को जानना उसके बाहरी रूप, जन्म परिवार, या सामाजिक स्थिति और शक्ति पर आधारित नहीं है, बल्कि इस पर आधारित है कि क्या उसके पास परमेश्वर का सार है और क्या वह सत्य व्यक्त कर सकता है और परमेश्वर का कार्य कर सकता है। यही प्रमुख कारक है l जब तक वह सत्य को व्यक्त कर सकता है, परमेश्वर के स्वभाव को व्यक्त कर सकता है, परमेश्वर के पास क्या है और वह क्या है, और मानवता को छुड़ाने और बचाने का कार्य कर सकता है, इसकी परवाह किए बिना कि उसकी मानवता कितनी सामान्य है, उसकी पृष्ठभूमि कितनी विनम्र है, या वह किसी भी सामाजिक विचारधारा, स्थिति या शक्ति, को रखता है या नहीं। तो वह वास्तव में देहधारी मसीह है, एक सच्चा परमेश्वर है। यह एक निर्विवाद तथ्य है l इसलिए, देहधारी मसीह को जानने के लिए, हमें उन्हें उनके कार्य और वचनों के माध्यम से समझना होगा। ठीक अनुग्रह के युग की तरह, जब यीशु काम करने के लिए आए, तो उनका जन्म एक साधारण बढ़ई के परिवार में हुआ था, उन्हें चरनी में रखा गया था और उनका रूप साधारण था। उनके पास कोई रुतबा या शक्ति नहीं थी l हालाँकि, वह सत्य व्यक्त कर सकते थे, लोगों को पश्चाताप का मार्ग प्रदान कर सकते थे और पापों को क्षमा कर सकते थे। जो लोग सत्य से प्रेम करते थे, जैसे पतरस, यूहन्ना और सामरी स्त्री, उन्होंने यीशु के कार्यों और उनके द्वारा व्यक्त सत्य में परमेश्वर के अधिकार और शक्ति को देखा। फिर उन्होंने उन्हें आने वाले मसीहा के रूप में पहचाना और उनका अनुसरण किया, उद्धार प्राप्त किया और अनन्त जीवन की आशा रखी। दूसरी ओर, यहूदी धार्मिक नेता - मुख्य पुजारी, शास्त्री और फरीसी - जो सत्य से घृणा करते थे और रुतबे का पीछा करते थे, उन्होंने यीशु की सामान्य उपस्थिति और शक्ति की कमी के कारण उसकी उपेक्षा की। इस बात की परवाह किए बिना कि यीशु ने कितना सत्य व्यक्त किया या कितने चमत्कार किए, उन्होंने आँखें मूँद लीं और उसके साथ एक सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार किया। उन्होंने यीशु का विरोध और निंदा भी की, अंततः रोमन अधिकारियों के साथ मिलकर उसे क्रूस पर चढ़ाने की साजिश रची, जो सत्य व्यक्त करने में सक्षम थे। उन्होंने एक जघन्य पाप किया, परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया और परमेश्वर के अभिशाप और दंड को भोगा। यह परमेश्वर को वास्तव में जाने बिना उस पर विश्वास करने और फिर भी उसका विरोध करने और उसकी निंदा करने का परिणाम है।

प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों के अनुसार, वह अंत के दिनों में वापस आएंगे और मनुष्य के पुत्र के रूप में अवतार लेंगे। यीशु ने एक बार कहा था, “इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा(मत्ती 24:44)। “क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा(मत्ती 24:27)। “जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा(मत्ती 24:37)। यहाँ, शब्द "मनुष्य का पुत्र" का तात्पर्य परमेश्वर की आत्मा के शरीर धारण करने और मनुष्य का पुत्र बनने से है, जो कि परमेश्वर का देहधारण है। इसलिए, अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए अंतिम दिनों के देहधारी मसीह को खोजना और जानना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। जैसे परमेश्वर कहते हैं, “अंत के दिनों का मसीह जीवन लाता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लाता है। यह सत्य वह मार्ग है, जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यही एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। जो लोग नियमों से, शब्दों से नियंत्रित होते हैं, और इतिहास की जंजीरों में जकड़े हुए हैं, वे न तो कभी जीवन प्राप्त कर पाएँगे और न ही जीवन का अनंत मार्ग प्राप्त कर पाएँगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनके पास सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के जल के बजाय बस मैला पानी ही है, जिससे वे हजारों सालों से चिपके हुए हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

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