ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

चौथा भाग : परमेश्वर द्वारा विभिन्न नस्लों के बीच सीमाएँ खींचना

चौथे, परमेश्वर ने विभिन्न नस्लों के बीच सीमाएँ खींचीं। पृथ्वी पर गोरे लोग, काले लोग, भूरे लोग और पीले लोग हैं। ये विभिन्न प्रकार के लोग हैं। परमेश्वर ने इन विभिन्न प्रकार के लोगों के जीवन के लिए भी दायरा तय किया है, और अनजाने ही ये लोग परमेश्वर के प्रबंधन के अधीन जीवित रहने के अपने अनुकूल परिवेश के भीतर रहते हैं। कोई भी इसके बाहर कदम नहीं रख सकता। उदाहरण के लिए, गोरे लोगों की बात करते हैं। इनमें से अधिकतर लोग किस भौगोलिक इलाके में रहते हैं? वे अधिकांशतः यूरोप और अमेरिका में रहते हैं। काले लोग मुख्यतः जिस भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं, वह अफ्रीका है। भूरे लोग मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया में थाइलैंड, भारत, म्यांमार, वियतनाम और लाओस जैसे देशों में रहते हैं। पीले लोग मुख्य रूप से एशिया में, अर्थात् चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में रहते हैं। परमेश्वर ने इन विभिन्न प्रकार की सभी नस्लों को उचित रूप से विभाजित किया है, ताकि ये विभिन्न नस्लें संसार के विभिन्न भागों में फैल जाएँ। संसार के इन विभिन्न भागों में परमेश्वर ने बहुत पहले ही मनुष्यों की प्रत्येक अलग नस्ल के जीवित रहने के लिए उपयुक्त परिवेश तैयार किया है। जीवित रहने के इन परिवेशों के अंतर्गत परमेश्वर ने उनके लिए विविध रंगों और बनावट की जमीन तैयार की। दूसरे शब्दों में, गोरे लोगों के शरीरों की रचना करने वाले घटक काले लोगों के शरीरों की रचना करने वाले घटकों के समान नहीं होते, और वे अन्य नस्लों के लोगों के शरीरों की रचना करने वाले घटकों से भी अलग होते हैं। जब परमेश्वर ने सभी चीजों की रचना की, तब उसने पहले ही उस नस्ल के अस्तित्व के लिए एक परिवेश तैयार कर लिया था। ऐसा करने का उसका उद्देश्य यह था कि जब उस प्रकार के लोग अपने वंश की वृद्धि शुरू करें, और जब उनकी संख्या बढ़ने लगे, तो उन्हें एक दायरे के भीतर स्थिर किया जा सके। मनुष्यों की रचना करने से पहले ही परमेश्वर ने इन सारी बातों पर विचार कर लिया था—वह यूरोप और अमेरिका को गोरे लोगों के विकसित होने और जीवित रहने के लिए आरक्षित कर देगा। इसलिए जब परमेश्वर पृथ्वी का निर्माण कर रहा था, तब उसके पास पहले से ही एक योजना थी, भूमि के उस हिस्से में जो कुछ उसने रखा, उसे रखने, और वहाँ उसने जिसका पालन-पोषण किया, उसका पालन-पोषण करने में उसका एक उद्देश्य और प्रयोजन था। उदाहरण के लिए, उस भूमि पर कौन-से पर्वत, कितने मैदान, कितने जल-स्रोत, किस प्रकार के पशु-पक्षी, कौन-सी मछलियाँ और कौन-से पेड़-पौधे होंगे, परमेश्वर ने उन्हें बहुत पहले ही तैयार कर लिया था। किसी निर्दिष्ट प्रकार के मनुष्यों, किसी निर्दिष्ट नस्ल के अस्तित्व के लिए परिवेश तैयार करते समय परमेश्वर को अनेक मुद्दों पर हर दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता थी : भौगोलिक परिवेश, जमीन की बनावट, पशु-पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ, विभिन्न प्रकार की मछलियों के आकार, मछलियों के शरीरों की रचना करने वाले घटक, पानी की गुणवत्ता में अंतर, और साथ ही विभिन्न प्रकार के सभी पेड़-पौधे...। परमेश्वर ने यह बहुत पहले ही तैयार कर लिया था। उस प्रकार का परिवेश जीवित रहने के लिए ऐसा परिवेश है, जिसे परमेश्वर ने गोरे लोगों के लिए सृजित और तैयार किया और जो स्वभावतः उनका है। क्या तुम लोगों ने देखा है कि जब परमेश्वर ने सभी चीजों की रचना की, तो उसने इस पर बहुत ज्यादा सोच-विचार किया और एक योजना के साथ कार्य किया? (हाँ, हमने देखा है कि विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए परमेश्वर के बहुत सुचिंतित विचार थे। विभिन्न प्रकार के मनुष्यों के जीवित रहने के लिए जो परिवेश उसने निर्मित किया, उसमें किस प्रकार के पशु-पक्षी और मछलियाँ रहेंगी, कितने पर्वत और मैदान होंगे, इस पर उसने बहुत सावधानी और सूक्ष्मता से विचार किया था।) उदाहरण के लिए, गोरे लोगों को लो। गोरे लोग मुख्य रूप से कौन-से आहार खाते हैं? जो आहार गोरे लोग खाते हैं, वे उन आहारों से बिलकुल अलग हैं जो एशिया के लोग खाते हैं। जो मुख्य आहार गोरे लोग खाते हैं, उनमें मुख्यतः मांस, अंडे, दूध और मुर्गी शामिल हैं। अनाज, जैसे रोटी और चावल, सामान्यतः पूरक आहार हैं, जिन्हें थाली के किनारे रखा जाता है। यहाँ तक कि सब्जी का सलाद खाते हुए भी वे उसमें कुछ भुने हुए मांस या चिकन के टुकड़े डालते हैं, और गेहूँ-आधारित आहार में भी वे पनीर, अंडे और मांस शामिल कर लेते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि उनके मुख्य आहार गेहूँ-आधारित आहार या चावल नहीं हैं; वे बड़ी मात्रा में मांस और पनीर खाते हैं। वे प्रायः बर्फीला पानी पीते हैं, क्योंकि जो खाना वे खाते हैं, उसमें कैलोरी की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसलिए गोरे लोग असाधारण रूप से तगड़े होते हैं। यह उनकी आजीविका का स्रोत और परमेश्वर द्वारा उनके जीने के लिए तैयार किया गया परिवेश है, जिससे वे इस तरह की जीवनशैली अपना सकते हैं, जो अन्य नस्लों के लोगों की जीवनशैलियों से अलग है। इस जीवनशैली में कुछ सही या गलत नहीं है—यह कुदरती, परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित और परमेश्वर के शासन और उसकी व्यवस्थाओं से उत्पन्न है। इस नस्ल के लोगों की यह जीवनशैली और जीविका के ये स्रोत उनकी नस्ल के कारण, और परमेश्वर द्वारा उनके लिए तैयार किए गए जीवन-परिवेश के कारण हैं। तुम कह सकते हो कि परमेश्वर द्वारा गोरे लोगों के लिए तैयार किया गया जीवन-परिवेश और उन्हें उस परिवेश से प्राप्त होने वाली दैनिक जीविका समृद्ध और भरपूर है।

परमेश्वर ने दूसरी नस्लों के अस्तित्व के लिए भी आवश्यक परिवेश तैयार किया। दुनिया में काले लोग भी हैं—काले लोग कहाँ रहते हैं? वे मुख्य रूप से मध्य और दक्षिण अफ्रीका में रहते हैं। उस प्रकार के परिवेश में जीने के लिए परमेश्वर ने उनके लिए क्या तैयार किया? उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन, सभी प्रकार के पशु-पक्षी, साथ ही मरुस्थल, और सभी प्रकार के पेड़-पौधे, जो उनके आस-पास रहते हैं। उनके पास जल के स्रोत, अपनी जीविका और भोजन है। परमेश्वर उनके प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं था। चाहे उन्होंने कभी कुछ भी किया हो, उनका अस्तित्व कभी कोई समस्या नहीं रहा है। वे भी संसार के एक हिस्से में बसते हैं।

अब बात करते हैं पीले लोगों की। पीले लोग मुख्य रूप से पृथ्वी के पूर्व में रहते हैं। पूर्व और पश्चिम के परिवेशों और भौगोलिक स्थितियों के बीच क्या अंतर हैं? पूर्व में अधिकांश भूमि उपजाऊ है, और पदार्थों और खनिज भंडारों से समृद्ध है। अर्थात्, भूमि के ऊपर और भूमि के नीचे सब प्रकार के संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। और लोगों के इस समूह के लिए, इस नस्ल के लिए परमेश्वर ने तदनुरूप जमीन, जलवायु और विभिन्न भौगोलिक परिवेश भी तैयार किए, जो उनके लिए उपयुक्त हैं। हालाँकि इस भौगोलिक परिवेश और पश्चिम के परिवेश के बीच बहुत अंतर हैं, फिर भी लोगों के लिए आवश्यक भोजन, उनकी जीविका और जीवित रहने के संसाधन भी परमेश्वर द्वारा तैयार किए गए। यह पश्चिम में गोरे लोगों के जीवन-परिवेश से अलग परिवेश है। लेकिन वह एक चीज कौन-सी है, जो मुझे तुम लोगों को बताने की आवश्यकता है? पूर्वी नस्ल के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत बड़ी है, इसलिए परमेश्वर ने पृथ्वी के उस हिस्से में बहुत सारे ऐसे तत्त्व जोड़ दिए, जो पश्चिम से भिन्न हैं। वहाँ उसने कई विभिन्न भूदृश्य और सभी प्रकार की भरपूर सामग्रियाँ जोड़ीं। वहाँ प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं; भूभाग भी विभिन्न और वैविध्यपूर्ण हैं, जो पूर्वी नस्ल के लोगों की विशाल संख्या का पालन-पोषण करने के लिए पर्याप्त हैं। पूर्व की जो चीज उसे पश्चिम से अलग करती है, वह है—दक्षिण से उत्तर तक और पूर्व से पश्चिम तक—उसकी जलवायु पश्चिम से बेहतर है। चार ऋतुएँ स्पष्ट रूप से भिन्न हैं, तापमान अनुकूल हैं, प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं, और प्राकृतिक दृश्य और भूभाग के प्रकार पश्चिम से बहुत बेहतर हैं। परमेश्वर ने ऐसा क्यों किया? परमेश्वर ने गोरे और पीले लोगों के बीच एक बहुत ही तर्कसंगत संतुलन बनाया। इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि गोरे लोगों के खान-पान के हर पहलू, उनके द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली चीजें, और उनके आनंद के लिए उपलब्ध कराई गई चीजें उन चीजों से कहीं बेहतर हैं, जिनका आनंद लेने में पीले लोग सक्षम हैं। लेकिन परमेश्वर किसी भी नस्ल के प्रति पक्षपाती नहीं है। परमेश्वर ने पीले लोगों को कहीं अधिक खूबसूरत और बेहतर जीवन-परिवेश दिया। यही संतुलन है।

परमेश्वर ने पूर्वनियत कर दिया है कि किस प्रकार के लोग दुनिया के किस भाग में रहने चाहिए; क्या मनुष्य इन सीमाओं के बाहर जा सकते हैं? (नहीं, वे नहीं जा सकते।) कितनी अद्भुत चीज है! अगर विभिन्न युगों या असाधारण समय के दौरान युद्ध या अतिक्रमण भी हो जाएँ, तो भी ये युद्ध और अतिक्रमण अस्तित्व के उन परिवेशों को बिलकुल नष्ट नहीं कर सकते, जिन्हें परमेश्वर ने प्रत्येक नस्ल के लिए पूर्वनिर्धारित किया हुआ है। अर्थात्, परमेश्वर ने संसार के एक निश्चित भाग में एक प्रकार के लोगों को बसाया है और वे उन सीमाओं के बाहर नहीं जा सकते। अगर लोगों में अपने क्षेत्रों को बदलने या फैलाने की किसी प्रकार की महत्वाकांक्षा भी हो, तो भी, परमेश्वर की अनुमति के बिना इसे हासिल कर पाना बहुत मुश्किल होगा। उनके लिए सफल होना बहुत ही कठिन होगा। उदाहरण के लिए, गोरे लोग अपने क्षेत्र का विस्तार करना चाहते थे और उन्होंने कुछ अन्य देशों में उपनिवेश बनाए। जर्मनों ने कुछ देशों पर आक्रमण किया, और ब्रिटेन ने एक बार भारत पर कब्जा कर लिया। परिणाम क्या हुआ? अंत में वे विफल हो गए। हम उनकी इस विफलता से क्या समझते हैं? जो कुछ परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित कर रखा है, उसे नष्ट करने की अनुमति नहीं है। इसलिए, ब्रिटेन के विस्तार में तुमने चाहे कितना भी वेग देखा हो, अंततः उन्हें पीछे हटना पड़ा और उस जमीन को छोड़ना पड़ा, जो अभी भी भारत थी। उस जमीन पर रहने वाले लोग अभी भी भारतीय हैं, अंग्रेज नहीं, क्योंकि परमेश्वर ऐसा नहीं होने देगा। इतिहास या राजनीति पर शोध करने वालों में से कुछ लोगों ने इस विषय पर शोध-प्रबंध प्रस्तुत किए हैं। वे ब्रिटेन की असफलता के कारण बताते हुए कहते हैं कि ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि किसी जाति-विशेष पर विजय नहीं पाई जा सकती, या इसका कोई अन्य मानवीय कारण हो सकता है...। ये वास्तविक कारण नहीं हैं। वास्तविक कारण है परमेश्वर—वह ऐसा नहीं होने देगा! परमेश्वर एक जाति को एक निश्चित भूभाग में रहने देता है और उन्हें वहाँ बसाता है, और अगर परमेश्वर उन्हें वहाँ से जाने की अनुमति नहीं देता, तो वे कभी नहीं जा पाएँगे। अगर परमेश्वर उनके लिए एक निश्चित क्षेत्र आवंटित करता है, तो वे उस क्षेत्र के भीतर ही रहेंगे। मनुष्य इन निश्चित क्षेत्रों से मुक्त या आजाद नहीं हो सकते। यह निश्चित है। अतिक्रमणकारियों की ताकतें कितनी भी बड़ी हों या अतिक्रमित लोग कितने भी कमजोर हों, आक्रमणकारियों की सफलता अंततः परमेश्वर को तय करनी है। यह उसके द्वारा पहले से ही पूर्वनिर्धारित है और कोई इसे बदल नहीं सकता।

ऊपर बताया गया है कि कैसे परमेश्वर ने विभिन्न नस्लों का विभाजन किया है। परमेश्वर ने नस्लों के विभाजन के लिए कौन-सा कार्य किया है? पहले तो उसने लोगों के लिए विभिन्न भूभाग आवंटित करते हुए व्यापक भौगोलिक परिवेश तैयार किया, जिसके बाद पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग वहाँ जीवित रहे। यह तय हो चुका है—उनके जीवित रहने के लिए निश्चित क्षेत्र तय हो चुका है। और उनके जीवन, उनका खाना-पीना, उनकी जीविका—परमेश्वर ने यह सब बहुत पहले ही तय कर दिया था। और जब परमेश्वर सभी चीजों की रचना कर रहा था, तब उसने विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए विभिन्न तैयारियाँ कीं : जमीन के विभिन्न संयोजन, विभिन्न जलवायु, विभिन्न पेड़-पौधे, और विभिन्न भौगोलिक परिवेश हैं। यहाँ तक कि विभिन्न स्थानों में विभिन्न ही पशु-पक्षी हैं, विभिन्न प्रकार के पानी में उनकी अपनी विशेष प्रकार की मछलियाँ और जलोत्पाद हैं। यहाँ तक कि कीड़े-मकोड़ों की किस्में भी परमेश्वर द्वारा निर्धारित की गई हैं। उदाहरण के लिए, जो चीजें अमेरिकी महाद्वीप में उगती हैं, वे सब बहुत विशाल, बहुत ऊँची और बहुत मजबूत होती हैं। पर्वतीय जंगल में पेड़ों की जड़ें बहुत उथली होती हैं, लेकिन वे बहुत ऊँचाई तक बढ़ते हैं। वे सौ मीटर या उससे भी अधिक ऊँचे हो सकते हैं, लेकिन एशिया के जंगलों में पेड़ बहुधा इतने ऊँचे नहीं होते। उदाहरण के लिए घीकुँवार के पौधे लो। जापान में वे बहुत सँकरे और बहुत पतले होते हैं, लेकिन अमेरिका में घीकुँवार के पौधे बहुत बड़े होते हैं। यहाँ एक अंतर है। दोनों पौधे एक ही हैं, नाम भी समान है, लेकिन अमेरिकी महाद्वीप में यह विशेष रूप से बड़ा होता है। इन विभिन्न पहलुओं के अंतर शायद लोग देख या महसूस न कर सकें, लेकिन जब परमेश्वर सभी चीजों की रचना कर रहा था, तब उसने उनकी रूपरेखा निरूपित की और विभिन्न नस्लों के लिए विभिन्न भौगोलिक परिवेश, विभिन्न भूभाग और विभिन्न जीव तैयार किए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर ने विभिन्न प्रकार के लोगों का सृजन किया, और वह जानता है कि उनमें से प्रत्येक की जरूरतें और जीवनशैलियाँ क्या हैं।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX

उत्तर यहाँ दें