परमेश्वर सभी पर शासन करता है और सभी का भरण-पोषण करता है, वह सभी चीजों का परमेश्वर है
इनमें से कुछ चीजों के बारे में बात करने के बाद, क्या तुम लोगों को लगता है कि अभी हमने जिस मुख्य विषय पर चर्चा की है, उसके बारे में तुमने कुछ सीखा है? क्या तुम्हें लगता है कि तुम इसे समझने लगे हो? मुझे विश्वास है कि तुम्हें अब इस बात का अंदाजा होना चाहिए कि मैंने व्यापक विषय के अंतर्गत इन चीजों के बारे में बात करने का फैसला क्यों किया। क्या ऐसा ही है? शायद तुम इस बारे में थोड़ी बात कर सको कि तुम लोग इसे कितना समझते हो। (पूरी मानवजाति का पालन-पोषण उन व्यवस्थाओं द्वारा किया गया है, जो परमेश्वर द्वारा सभी चीजों के लिए निर्धारित की गई हैं। जब परमेश्वर ये व्यवस्थाएँ निर्धारित कर रहा था, तब उसने विभिन्न नस्लों को विभिन्न परिवेश, विभिन्न जीवनशैलियाँ, विभिन्न आहार, और विभिन्न जलवायु और तापमान प्रदान किए। वह इसलिए, ताकि पूरी मानवजाति पृथ्वी पर बस पाए और जीवित रह सके। इससे मैं देख सकता हूँ कि मानवजाति के अस्तित्व के लिए परमेश्वर की योजनाएँ बहुत सटीक है, और मैं उसकी बुद्धि और पूर्णता, और हम मनुष्यों के लिए उसका प्रेम देख सकता हूँ।) (परमेश्वर द्वारा निर्धारित व्यवस्थाएँ और दायरे किसी भी व्यक्ति, घटना या वस्तु द्वारा बदला नहीं जा सकता। यह सब उसके शासन के अधीन है।) सभी चीजों के विकास के लिए परमेश्वर द्वारा निर्धारित व्यवस्थाओं के दृष्टिकोण से देखने पर, क्या संपूर्ण मानवजाति का, उसकी तमाम विविधता में, परमेश्वर द्वारा भरण-पोषण नहीं किया जा रहा है? अगर ये व्यवस्थाएँ नष्ट हो गई होतीं या परमेश्वर ने मनुष्यों के लिए ये व्यवस्थाएँ निर्धारित न की होतीं, तो उनकी क्या संभावनाएँ होतीं? जीवित रहने के लिए अपने मूल परिवेश खो देने पर क्या उनके पास भोजन का कोई स्रोत होता? संभव है कि भोजन के स्रोत एक समस्या बन जाते। अगर लोगों के भोजन के स्रोत खो जाते, अर्थात्, अगर उन्हें खाने के लिए कुछ न मिलता, तो वे कितने दिनों तक जीवित रह पाते? संभवतः वे एक माह भी न जी पाते और उनका जीवित बचे रहना एक समस्या बन जाता। इसलिए परमेश्वर द्वारा लोगों के जीवित रहने, उनके सतत अस्तित्व, प्रजनन और जीवन-निर्वाह के लिए की जाने वाली हर चीज बहुत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर द्वारा अपनी सभी सृजित चीजों के मध्य की जाने वाली हर चीज मानवजाति के जीवित रहने से निकटता से संबंधित और अविभाज्य है। अगर मानवजाति का जीवित रहना एक समस्या बन जाता, तो क्या परमेश्वर का प्रबंधन जारी रह पाता? क्या परमेश्वर का प्रबंधन तब भी अस्तित्व में बना रहता? परमेश्वर का प्रबंधन उस संपूर्ण मानवजाति के अस्तित्व के साथ-साथ रहता है, जिसका वह पालन-पोषण करता है, इसलिए परमेश्वर अपनी सृष्टि की सभी चीजों के लिए जो भी तैयारियाँ करता है और जो कुछ भी वह मनुष्यों के लिए करता है, वह सब उसके लिए जरूरी है, और यह मानवजाति के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। अगर परमेश्वर द्वारा सभी चीजों के लिए निर्धारित व्यवस्थाएँ हटा दी जातीं, अगर ये व्यवस्थाएँ तोड़ी या बाधित की जातीं, तो कोई भी चीज अस्तित्व में न रह पाती, मानवजाति का जीवन-परिवेश मौजूद न रह पाता, न ही उसकी दैनिक जीविका और न स्वयं मानवजाति अस्तित्व में बने रहते। इस कारण से, मानवजाति के उद्धार के लिए परमेश्वर का प्रबंधन भी अस्तित्व में न रहता।
हर चीज, जिसकी हमने चर्चा की है, हर वस्तु, हर मद प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व से घनिष्ठता से जुड़ी है। तुम लोग कह सकते हो, “तुम जिस बारे में बात कर रहे हो, वह बहुत बड़ा है, वह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम देख पाएँ,” और कदाचित् ऐसे लोग हैं जो कहेंगे, “तुम जिस बारे में बात कर रहे हो, उसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है।” लेकिन यह न भूलो कि तुम सभी चीजों के मात्र एक हिस्से के रूप में जी रहे हो; तुम परमेश्वर के शासन के अंतर्गत सभी सृजित चीजों में से एक हो। परमेश्वर द्वारा सृजित चीजें उसके शासन से अलग नहीं की जा सकतीं, और कोई एक भी व्यक्ति स्वयं को उसके शासन से अलग नहीं कर सकता। उसका शासन और पोषण खोने का अर्थ होगा कि लोगों का जीवन, लोगों का दैहिक जीवन लुप्त हो जाएगा। यह परमेश्वर द्वारा मानवजाति के अस्तित्व के लिए परिवेश स्थापित करने का महत्व है। तुम चाहे जिस भी नस्ल के हो या जिस भी भूभाग पर रहते हो, चाहे वह पश्चिम में हो या पूर्व में—तुम जीवित रहने के लिए उस परिवेश से अपने आपको अलग नहीं कर सकते, जिसे परमेश्वर ने मानवजाति के लिए स्थापित किया है, और तुम जीवित रहने के लिए उस परिवेश के पोषण और प्रावधानों से अपने आपको अलग नहीं कर सकते, जिसे उसने मनुष्यों के लिए स्थापित किया है। चाहे तुम्हारी जीविका कुछ भी हो, तुम जीने के लिए जिस पर भी आश्रित हो, और अपने दैहिक जीवन को बनाए रखने के लिए तुम जिस चीज पर भी निर्भर हो, तुम स्वयं को परमेश्वर के शासन और प्रबंधन से अलग नहीं कर सकते। कुछ लोग कहते हैं : “मैं किसान नहीं हूँ, मैं जीविका के लिए फसल नहीं उगाता। मैं अपने भोजन के लिए स्वर्ग पर आश्रित नहीं हूँ, इसलिए मेरा अस्तित्व परमेश्वर द्वारा स्थापित जीवन-परिवेश की वजह से कायम नहीं है। उस प्रकार के परिवेश ने मुझे कुछ नहीं दिया है।” क्या यह सही है? तुम कहते हो कि तुम अपने जीने के लिए फसल नहीं उगाते, लेकिन क्या तुम अनाज नहीं खाते? क्या तुम मांस और अंडे नहीं खाते? और क्या तुम सब्जियाँ और फल नहीं खाते? जो कुछ भी तुम खाते हो, जिन चीजों की भी तुम्हें जरूरत पड़ती है, वे सब उस परमेश्वर द्वारा मानवजाति के लिए स्थापित जीवन-परिवेश से अविभाज्य हैं। और मानवजाति के लिए आवश्यक हर चीज का स्रोत परमेश्वर द्वारा सृजित सभी चीजों से अलग नहीं किया जा सकता, जो अपनी संपूर्णता में तुम्हारे जीवन-परिवेशों का निर्माण करती हैं। जो जल तुम पीते हो, जो कपड़े तुम पहनते हो, और वे सभी चीजें जिन्हें तुम इस्तेमाल करते हो—उनमें से कौन-सी चीज परमेश्वर द्वारा सृजित चीजों से प्राप्त नहीं होती? कुछ लोग कहते हैं : “कुछ चीजें ऐसी हैं, जो परमेश्वर द्वारा सृजित चीजों से प्राप्त नहीं होतीं। देखो, प्लास्टिक उन चीजों में से एक है। यह एक रासायनिक चीज है, एक मानव-निर्मित चीज है।” क्या यह सही है? प्लास्टिक मानव-निर्मित अवश्य है, और वह एक रासायनिक चीज भी है, लेकिन प्लास्टिक के मूल घटक कहाँ से आए? उसके मूल घटक परमेश्वर द्वारा सृजित सामग्रियों से प्राप्त किए गए। जो चीजें तुम देखते हो और जिनका तुम आनंद उठाते हो, हर एक चीज जिसका तुम उपयोग करते हो, वे सब परमेश्वर द्वारा सृजित चीजों से प्राप्त की जाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति की जो भी नस्ल हो, उसकी जो भी जीविका हो, या वह जिस भी प्रकार के जीवन-परिवेश में रहता हो, वह अपने आपको परमेश्वर द्वारा प्रदत्त चीजों से अलग नहीं कर सकता। तो क्या ये चीजें, जिन पर हमने आज चर्चा की है, हमारे विषय “परमेश्वर सभी चीजों के लिए जीवन का स्रोत है” से संबंधित हैं? क्या ये चीजें, जिन पर हमने आज चर्चा की है, इस बड़े विषय के अंतर्गत आती हैं? (हाँ।) आज मैंने जिन चीजों के बारे में बात की है, शायद उनमें से कुछ चीजें थोड़ी अमूर्त हैं और उन पर चर्चा करना थोड़ा कठिन है। फिर भी, मुझे लगता है कि शायद तुम लोगों को अब इसकी बेहतर समझ होगी।
पिछली कुछ बार की संगति में जिन विषयों पर हमने बातचीत की थी, उनकी सीमा और दायरा कहीं व्यापक रहा है, इसलिए उन सभी को पूरी तरह समझने में तुम लोगों को कुछ प्रयास करने पड़ेंगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये विषय ऐसी चीजें हैं, जिन पर परमेश्वर के प्रति लोगों के विश्वास में पहले कभी चर्चा नहीं की गई है। कुछ लोग इन्हें किसी रहस्य की तरह सुनते हैं और कुछ लोग इन्हें एक कहानी की तरह सुनते हैं—कौन-सा दृष्टिकोण सही है? तुम लोग यह सब किस दृष्टिकोण से सुनते हो? (हमने देखा है कि कितने कायदे से परमेश्वर ने अपनी सभी सृजित चीजों को व्यवस्थित किया है और यह कि सभी चीजों की व्यवस्थाएँ हैं, और इन वचनों के जरिये हम परमेश्वर के कर्मों और मानवजाति के उद्धार के लिए दक्षतापूर्वक की गई उसकी व्यवस्थाओं को और भी अधिक समझ सकते हैं।) संगति के इन समयों के दौरान, क्या तुम लोगों ने देखा है कि परमेश्वर के सभी चीजों के प्रबंधन का दायरा कहाँ तक फैला हुआ है? (पूरी मानवजाति पर, हर एक चीज पर।) क्या परमेश्वर एक ही नस्ल का परमेश्वर है? क्या वह एक ही तरह के लोगों का परमेश्वर है? क्या वह मानवजाति के एक छोटे-से हिस्से का ही परमेश्वर है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) चूँकि ऐसा नहीं है, तो अगर परमेश्वर के बारे में तुम्हारी जानकारी के अनुसार वह सिर्फ मानवजाति के एक छोटे-से हिस्से का ही परमेश्वर है, या अगर वह केवल तुम लोगों का ही परमेश्वर है, तो क्या यह दृष्टिकोण सही है? चूँकि परमेश्वर सभी चीजों का प्रबंधन और उन पर शासन करता है, इसलिए लोगों को उसके कर्म, उसकी बुद्धि और उसकी सर्वशक्तिमत्ता देखनी चहिए, जो सभी चीजों पर उसके शासन में प्रकट होती है। यह ऐसी चीज है, जो लोगों को जाननी चाहिए। अगर तुम कहते हो कि परमेश्वर सभी चीजों का प्रबंधन करता है, सभी चीजों पर शासन करता है, और समस्त मानवजाति पर शासन करता है, लेकिन अगर तुम्हें मानवजाति पर उसके शासन की कोई समझ या अंतर्दृष्टि नहीं है, तो क्या तुम वास्तव में यह स्वीकार कर सकते हो कि वह सभी चीजों पर शासन करता है? तुम अपने दिल में सोच सकते हो, “मैं स्वीकार कर सकता हूँ, क्योंकि मैं देखता हूँ कि मेरा जीवन पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा शासित है।” लेकिन क्या परमेश्वर वाकई इतना छोटा है? नहीं, वह इतना छोटा नहीं है! तुम सिर्फ अपने लिए परमेश्वर का उद्धार और अपने में उसका कार्य देखते हो, और केवल इम्हीं चीजों में तुम उसका शासन देखते हो। यह एक बहुत ही छोटा दायरा है, और यह परमेश्वर के बारे में तुम्हारे वास्तविक ज्ञान की संभावनाओं पर हानिकारक प्रभाव डालता है। यह सभी चीजों पर परमेश्वर के शासन के बारे में तुम्हारी वास्तविक जानकारी भी सीमित करता है। अगर तुम परमेश्वर के बारे में अपने ज्ञान को उन चीजों तक, जो परमेश्वर तुम्हें प्रदान करता है, और अपने लिए उसके उद्धार के दायरे तक सीमित करते हो, तो तुम कभी यह समझने में सक्षम नहीं हो पाओगे कि वह हर चीज पर शासन करता है, वह सभी चीजों पर शासन करता है, और सारी मानवजाति पर शासन करता है। जब तुम यह सब समझने में असफल रहते हो, तब क्या तुम सचमुच इस तथ्य को समझ सकते हो कि परमेश्वर तुम्हारे भाग्य पर शासन करता है? नहीं, तुम नहीं समझ सकते। अपने हृदय में तुम उस पहलू को समझने में कभी सक्षम नहीं होगे—तुम बूझने और समझने के इतने उच्च स्तर तक पहुँचने में कभी सक्षम नहीं होगे। तुम समझ रहे हो न, मैं क्या कह रहा हूँ? वास्तव में, मैं जानता हूँ कि इन विषयों को, इस विषयवस्तु को, जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूँ, तुम लोग किस हद तक समझने में सक्षम हो, तो फिर क्यों मैं इस बारे में बात करता रहता हूँ? ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये विषय ऐसी चीजें हैं, जिन्हें परमेश्वर के प्रत्येक अनुयायी को, और हर ऐसे व्यक्ति को समझना चाहिए, जो परमेश्वर द्वारा बचाया जाना चाहता है—इन विषयों को समझना अनिवार्य है। भले ही इस घड़ी तुम उन्हें न समझते हो, लेकिन किसी दिन, जब तुम्हारा जीवन और सत्य के बारे में तुम्हारा अनुभव एक निश्चित स्तर तक पहुँच जाएगा, जब तुम्हारे जीवन-स्वभाव में परिवर्तन एक निश्चित स्तर तक पहुँच जाएगा और तुम एक निश्चित स्तर का आध्यात्मिक कद प्राप्त कर लोगे, केवल तभी ये विषय, जिनके बारे में मैं तुम्हें इस संगति में बता रहा हूँ, सचमुच परमेश्वर को जानने की तुम्हारी खोज में पोषण और संतुष्टि प्रदान करेंगे। इसलिए ये वचन एक नींव डालने के लिए, तुम लोगों को इस बात की भावी समझ हेतु तैयार करने के लिए कि परमेश्वर सभी चीजों पर शासन करता है, और स्वयं परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ के लिए हैं।
लोगों के हृदय में परमेश्वर की समझ जितनी अधिक होती है, उतनी ही उनके हृदय में उसके लिए जगह होती है। उनके हृदय में परमेश्वर का ज्ञान जितना बड़ा होता है, उनके हृदय में परमेश्वर का स्थान उतना ही बड़ा होता है। जिस परमेश्वर को तुम जानते हो, अगर वह खोखला और अस्पष्ट है, तो जिस परमेश्वर में तुम विश्वास करते हो, वह भी खोखला और अस्पष्ट ही होगा। जिस परमेश्वर को तुम जानते हो, वह तुम्हारी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी के दायरे तक ही सीमित होता है, और उसका सच्चे स्वयं परमेश्वर से कुछ लेना-देना नहीं है। इसलिए, परमेश्वर के व्यावहारिक कार्यों को जानना, परमेश्वर की व्यावहारिकता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को जानना, स्वयं परमेश्वर की सच्ची पहचान को जानना, उसके स्वरूप को जानना, सभी सृजित चीजों के बीच अभिव्यक्त उसके कार्यों को जानना—ये चीजें हर उस व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो परमेश्वर को जानने की कोशिश में लगा है। इनका इस बात से सीधा संबंध है कि लोग सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं या नहीं। अगर तुम परमेश्वर के बारे में अपनी समझ केवल शब्दों तक सीमित रखते हो, अगर तुम उसे अपने छोटे-मोटे अनुभवों, परमेश्वर के अनुग्रह के बारे में अपनी समझ या परमेश्वर के लिए अपनी छोटी-मोटी गवाहियों तक ही सीमित रखते हो, तो मैं कहता हूँ कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो, वह सच्चा स्वयं परमेश्वर बिल्कुल नहीं है। इतना ही नहीं, बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो, वह एक काल्पनिक परमेश्वर है, सच्चा परमेश्वर नहीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सच्चा परमेश्वर वह है, जो हर चीज पर शासन करता है, जो हर चीज के मध्य चलता है, और हर चीज का प्रबंधन करता है। वही है, जिसकी मुट्ठी में पूरी मानवजाति और सभी चीजों की नियति है। जिस परमेश्वर के बारे में मैं बात कर रहा हूँ, उसका कार्य और उसके कृत्य लोगों के एक छोटे-से हिस्से तक ही सीमित नहीं हैं। अर्थात्, वे केवल उन लोगों तक ही सीमित नहीं हैं, जो वर्तमान में उसका अनुसरण करते हैं। उसके कर्म सभी चीजों में, सभी चीजों के अस्तित्व में, और सभी वस्तुओं के परिवर्तन की व्यवस्थाओं में अभिव्यक्त होते हैं। अगर तुम परमेश्वर की सभी सृजित चीजों में परमेश्वर का कोई कर्म देख या पहचान नहीं सकते, तो तुम उसके किसी भी कर्म की गवाही नहीं दे सकते। अगर तुम परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते, अगर तुम उस छोटे तथाकथित परमेश्वर की बात करते रहते हो जिसे तुम जानते हो, वह परमेश्वर जो तुम्हारे अपने विचारों तक ही सीमित है और तुम्हारे मस्तिष्क के संकुचित दायरे में रहता है, अगर तुम उसी किस्म के परमेश्वर के बारे में बोलते रहते हो, तो परमेश्वर कभी तुम्हारी आस्था की प्रशंसा नहीं करेगा। जब तुम परमेश्वर के लिए गवाही देते हो, तो अगर तुम ऐसा सिर्फ इस संदर्भ में करते हो कि कैसे तुम परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते हो, कैसे तुम परमेश्वर का अनुशासन और उसकी ताड़ना स्वीकार करते हो, और कैसे तुम उसके लिए अपनी गवाही में उसके आशीषों का आनंद लेते हो, तो यह बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है, और यह उसे कतई संतुष्ट नहीं कर सकता। अगर तुम परमेश्वर के लिए उस तरह गवाही देना चाहते हो जो उसके इरादों के अनुरूप हो, सच्चे स्वयं परमेश्वर के लिए गवाही देना चाहते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के कार्यों से उसके स्वरूप को समझना होगा। तुम्हें हर चीज पर परमेश्वर के नियंत्रण से उसका अधिकार देखना चाहिए, और यह तथ्य देखना चाहिए कि कैसे वह समस्त मानवजाति का भरण-पोषण करता है। अगर तुम केवल यह स्वीकार करते हो कि तुम्हारा दैनिक भरण-पोषण और जीवन की तुम्हारी जरूरत की चीजें परमेश्वर से आती हैं, लेकिन तुम यह तथ्य नहीं देख पाते कि परमेश्वर ने अपनी सृष्टि की सभी चीजें संपूर्ण मानवजाति के पोषण के लिए ली हैं, और सभी चीजों पर अपने शासन के माध्यम से वह संपूर्ण मानवजाति की अगुआई कर रहा है, तो तुम परमेश्वर के लिए गवाही देने में कभी सक्षम नहीं होगे। यह सब कहने में मेरा क्या उद्देश्य है? यही कि तुम लोग इसे हलके में न लो, कि तुम गलती से ऐसा न समझो कि ये विषय, जिनके बारे में मैंने बात की है, तुम लोगों के व्यक्तिगत जीवन प्रवेश के लिए अप्रासंगिक हैं, और कि तुम लोग इन विषयों को मात्र एक प्रकार के ज्ञान या सिद्धांत के रूप में न लो। अगर तुम लोग मेरी बात उस तरह के रवैये से सुनते हो, तो तुम लोगों को कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। तुम लोग परमेश्वर को जानने का यह महान अवसर खो दोगे।
इन सब चीजों के बारे में बात करने के पीछे मेरा लक्ष्य क्या है? मेरा लक्ष्य है कि लोग परमेश्वर को जानें, और लोग परमेश्वर के व्यावहारिक कार्यों को समझें। जब तुम परमेश्वर को समझ जाते हो और उसके कार्यों को जान जाते हो, केवल तभी तुम्हारे पास उसे जानने का अवसर या संभावना होती है। उदाहरण के लिए, अगर तुम किसी व्यक्ति को समझना चाहते हो, तो तुम उसे कैसे समझोगे? क्या यह उसके बाहरी रूप को देखने से होगा? क्या यह ये देखने से होगा कि वह क्या पहनता है और कैसे तैयार होता है? क्या यह ये देखने से होगा कि वह कैसे चलता है? क्या यह उसके ज्ञान के दायरे को देखने से होगा? (नहीं।) तो तुम किसी व्यक्ति को कैसे समझते हो? तुम उस व्यक्ति का आकलन उसकी बातचीत, उसके व्यवहार, उसके विचारों, और जो चीजें वह अपने बारे में व्यक्त और प्रकट करता है, उनके आधार पर करते हो। इसी तरह से तुम किसी व्यक्ति को जानते हो, समझते हो। इसी प्रकार, अगर तुम लोग परमेश्वर को जानना चाहते हो, अगर तुम उसके व्यावहारिक पक्ष, उसके सच्चे पक्ष को समझना चाहते हो, तो तुम लोगों को उसे उसके कर्मों से और उसके द्वारा की जाने वाली हर व्यावहारिक चीज के माध्यम से जानना चाहिए। यह सबसे अच्छा तरीका है, और यही एकमात्र तरीका है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IX