सृष्टिकर्ता का अधिकार समय, स्थान या भूगोल द्वारा सीमित नहीं है, और सृष्टिकर्ता का अधिकार गणना से परे है
आओ, हम उत्पत्ति 22:17-18 देखें। यह यहोवा परमेश्वर द्वारा बोला गया एक और अंश है, जिसमें उसने अब्राहम से कहा, “इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूँगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूँगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी : क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।” यहोवा परमेश्वर ने अब्राहम को कई बार आशीष दिया कि उसकी संतानों की संख्या बढ़ेगी—लेकिन वह किस हद तक बढ़ेगी? जिस हद तक पवित्रशास्त्र में कहा गया है : “आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान।” कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर चाहता था कि अब्राहम को आकाश के तारों के समान असंख्य और समुद्र-तट की बालू के कणों के समान प्रचुर मात्रा में संतानें मिलें। परमेश्वर ने कल्पना का उपयोग करते हुए बात की, और इस कल्पना से यह देखना कठिन नहीं कि परमेश्वर अब्राहम को केवल एक, दो या केवल हजारों वंशज प्रदान नहीं करेगा, बल्कि एक बेशुमार संख्या में वंशज प्रदान करेगा, जो कि बहुत सारे जाति-समूह बन जाएँगे, क्योंकि परमेश्वर ने अब्राहम से वादा किया था कि वह कई जाति-समूहों का पिता होगा। अब, क्या यह संख्या मनुष्य द्वारा निर्धारित की गई थी या परमेश्वर द्वारा? क्या मनुष्य तय कर सकता है कि उसके कितने वंशज होंगे? क्या यह उस पर निर्भर है? मनुष्य पर तो यही निर्भर नहीं कि उसके कई वंशज होंगे भी या नहीं, “आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान” की तो बात ही छोड़ो। कौन नहीं चाहता कि उसकी संतान तारों के समान असंख्य हो? दुर्भाग्य से, चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं जैसी तुम चाहते हो। आदमी कितना भी कुशल या सक्षम क्यों न हो, यह उस पर निर्भर नहीं है; कोई भी उससे बाहर नहीं जा सकता, जो परमेश्वर द्वारा ठहराया गया है। वह तुम्हें जितना देता है, उतना ही तुम्हारे पास होगा : अगर परमेश्वर तुम्हें थोड़ा देता है, तो तुम्हारे पास ढेर सारा कभी नहीं होगा, और अगर परमेश्वर तुम्हें ढेर सारा देता है, तो इस बात से नाराज होने का कोई फायदा नहीं कि तुम्हारे पास कितना है। क्या बात ऐसी ही नहीं है? यह सब परमेश्वर पर निर्भर है, मनुष्य पर नहीं! मनुष्य परमेश्वर द्वारा शासित है, और कोई भी इससे मुक्त नहीं है!
जब परमेश्वर ने कहा, “मैं तेरे वंश को अनगिनत करूँगा,” तो यह एक वाचा थी, जिसे परमेश्वर ने अब्राहम के साथ बाँधा था, और इंद्रधनुष की वाचा की तरह, यह अनंत काल तक पूरी की जाएगी, और यह परमेश्वर द्वारा अब्राहम से किया गया एक वादा भी था। केवल परमेश्वर ही इस वादे को पूरा करने के काबिल और सक्षम है। मनुष्य इस पर विश्वास करे या न करे, मनुष्य इसे स्वीकार करे या न करे, और मनुष्य इसे जैसे चाहे देखे और समझे, यह सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों के अनुसार हूबहू पूरा किया जाएगा। परमेश्वर के वचन मनुष्य की इच्छा या धारणाओं में परिवर्तन के कारण बदले नहीं जाएँगे, और वे किसी व्यक्ति, घटना या चीज में परिवर्तन के कारण भी नहीं बदले जाएँगे। सभी चीजें गायब हो सकती हैं, लेकिन परमेश्वर के वचन हमेशा रहेंगे। वास्तव में, जिस दिन सभी चीजें गायब होती हैं, ठीक वही दिन परमेश्वर के वचनों के पूरी तरह से साकार होने का दिन होता है, क्योंकि वह सृष्टिकर्ता है, उसके पास सृष्टिकर्ता का अधिकार, सृष्टिकर्ता का सामर्थ्य है, और वह सभी चीजों और समस्त जीवन-शक्ति को नियंत्रित करता है; वह शून्य में से कोई चीज प्रकट करवा सकता है या किसी चीज को शून्य बना सकता है, और वह सभी चीजों के जीवित से मृत में रूपांतरण को नियंत्रित करता है; परमेश्वर के लिए वंशजों की वृद्धि करने से आसान कुछ भी नहीं हो सकता। यह मनुष्य को किसी परी-कथा की तरह काल्पनिक लगता है, लेकिन परमेश्वर के लिए, जो वह तय करता है और जो करने का वादा करता है, वह काल्पनिक नहीं है, न ही वह कोई परी-कथा है। बल्कि, वह एक तथ्य है जिसे परमेश्वर पहले ही देख चुका है, और जो निश्चित रूप से पूरा होगा। क्या तुम लोग इसे समझते हो? क्या तथ्य साबित करते हैं कि अब्राहम के वंशज असंख्य थे? वे कितने असंख्य थे? क्या वे “आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान” असंख्य थे, जैसा परमेश्वर ने कहा था? क्या वे सभी जाति-समूहों और क्षेत्रों में, दुनिया के हर स्थान पर फैल गए थे? यह तथ्य किसके माध्यम से पूरा हुआ? क्या यह परमेश्वर के वचनों के अधिकार द्वारा पूरा हुआ? परमेश्वर के वचनों के बोले जाने के बाद सैकड़ों-हजारों वर्षों तक परमेश्वर के वचन पूरे होते रहे और लगातार तथ्य बनते रहे; यह परमेश्वर के वचनों की शक्ति है, और परमेश्वर के अधिकार का प्रमाण है। जब परमेश्वर ने शुरुआत में सभी चीजें बनाईं, तो परमेश्वर ने कहा “उजियाला हो,” और उजियाला हो गया। यह बहुत जल्दी हो गया, बहुत कम समय में पूरा हो गया, और इसकी प्राप्ति और पूर्ति में कोई देरी नहीं हुई; परमेश्वर के वचनों का प्रभाव तत्काल हुआ। दोनों ही परमेश्वर के अधिकार का प्रदर्शन थे, लेकिन जब परमेश्वर ने अब्राहम को आशीष दिया, तो उसने मनुष्य को परमेश्वर के अधिकार के सार का दूसरा पक्ष दिखाया, और यह तथ्य भी कि सृष्टिकर्ता का अधिकार गणना से परे है, और इसके अलावा, उसने मनुष्य को सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक ज्यादा व्यावहारिक, ज्यादा उत्तम पक्ष दिखाया।
जब परमेश्वर के वचन बोले जाते हैं, तो परमेश्वर का अधिकार इस कार्य की कमान अपने हाथ में ले लेता है, और परमेश्वर के मुख से किए गए वादे का तथ्य धीरे-धीरे एक वास्तविकता बनने लगता है। नतीजतन, सभी चीजों के बीच परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं, ठीक उसी तरह जैसे बसंत के आगमन पर घास हरी हो जाती है, फूल खिल जाते हैं, पेड़ों से कलियाँ फूट जाती हैं, पक्षी गाने लगते हैं, हंस लौट आते हैं और खेत लोगों से भर जाते हैं...। बसंत के आगमन के साथ सभी चीजों का कायाकल्प हो जाता है, और यह सृष्टिकर्ता का चमत्कारपूर्ण कार्य है। जब परमेश्वर अपने वादे पूरे करता है, तो आकाश और पृथ्वी की सभी चीजें परमेश्वर के विचारों के अनुसार फिर से नई होकर बदल जाती हैं—कुछ भी नहीं छूटता। जब कोई प्रतिज्ञा या वादा परमेश्वर के मुख से उच्चरित होती है, तो सभी चीजें उसे पूरा करती और उसे पूरा करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं; सभी प्राणी अपनी-अपनी भूमिका निभाते हुए और अपना-अपना कार्य करते हुए सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के तहत आयोजित और व्यवस्थित किए जाते हैं। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार की अभिव्यक्ति है। तुम इसमें क्या देखते हो? तुम परमेश्वर के अधिकार को कैसे जानते हो? क्या परमेश्वर के अधिकार की कोई सीमा है? क्या उसकी कोई समय-सीमा है? क्या उसे किसी निश्चित ऊँचाई या किसी निश्चित लंबाई का कहा जा सकता है? क्या उसे किसी निश्चित आकार या ताकत का कहा जा सकता है? क्या उसे मनुष्य के आयामों से मापा जा सकता है? परमेश्वर का अधिकार जलता-बुझता नहीं, आता-जाता नहीं, और ऐसा कोई नहीं जो यह नाप सके कि उसका अधिकार कितना महान है। चाहे परमेश्वर द्वारा किसी व्यक्ति को आशीष दिए कितना भी समय बीत जाए, वह आशीष जारी रहेगा, और उसकी निरंतरता परमेश्वर के अपरिमेय अधिकार की गवाही देगी, और मानव-जाति को बार-बार सृष्टिकर्ता की अविनाशी जीवन-शक्ति का पुनः प्रकटन देखने देगी। उसके अधिकार का प्रत्येक प्रदर्शन उसके मुँह से निकले वचनों का पूर्ण प्रदर्शन है, जो सभी चीजों और मानव-जाति को दिखाया जाता है। इसके अलावा, उसके अधिकार द्वारा पूरी की गई हर चीज अतुलनीय रूप से उत्तम और पूरी तरह से निर्दोष होती है। कहा जा सकता है कि उसके विचार, उसके वचन, उसका अधिकार, और वह समस्त कार्य जो वह पूरा करता है, सब एक अतुलनीय रूप से सुंदर चित्र हैं, और प्राणियों के लिए, मानव-जाति की भाषा, प्राणियों के लिए उसका महत्व और मूल्य व्यक्त करने में असमर्थ है। जब परमेश्वर किसी व्यक्ति से कोई वादा करता है, तो उसके बारे में हर चीज से परमेश्वर पूरी तरह से परिचित होता है, चाहे वह यह हो कि वह व्यक्ति कहाँ रहता है, क्या करता है, वादा किए जाने से पहले या बाद की उसकी पृष्ठभूमि, या उसके जीवन-परिवेश में कितनी बड़ी उथल-पुथल रही है। परमेश्वर के वचन बोले जाने के बाद चाहे कितना भी समय बीत जाए, उसके लिए यह ऐसा होता है मानो वे अभी-अभी बोले गए हों। कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर के पास सामर्थ्य और ऐसा अधिकार है कि वह मानव-जाति से किए गए प्रत्येक वादे की जानकारी रख सकता है, उसे नियंत्रित कर सकता है और उसे पूरा कर सकता है, और चाहे वादा कुछ भी हो, उसे पूरी तरह से पूरा होने में कितना भी समय लगे, और, इसके अलावा, उसका पूरा होना कितने भी व्यापक दायरे को स्पर्श करता हो—उदाहरण के लिए, समय, भूगोल, नस्ल आदि—यह वादा मुकम्मल और पूरा किया जाएगा, और, इसके अलावा, इसे मुकम्मल और पूरा करने के लिए उसे थोड़ा-सा भी प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होगी। यह क्या साबित करता है? यह साबित करता है कि परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य का विस्तार पूरे ब्रह्मांड और पूरी मानव-जाति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त है। परमेश्वर ने प्रकाश बनाया, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि परमेश्वर केवल प्रकाश का ही प्रबंधन करता है, या वह केवल पानी का ही प्रबंधन करता है क्योंकि उसने पानी बनाया है, और बाकी सब-कुछ परमेश्वर से संबंधित नहीं है। क्या यह गलतफहमी नहीं होगी? हालाँकि परमेश्वर द्वारा अब्राहम को आशीष देने की स्मृति सैकड़ों वर्षों के बाद धीरे-धीरे मनुष्य की स्मृति से फीकी पड़ गई थी, फिर भी परमेश्वर के लिए यह वादा वैसा ही बना रहा। यह अभी भी पूरा होने की प्रक्रिया में था, और कभी रुका नहीं था। मनुष्य ने कभी नहीं जाना या सुना कि कैसे परमेश्वर ने अपने अधिकार का प्रयोग किया, कैसे सभी चीजें आयोजित और व्यवस्थित की गईं, और इस दौरान परमेश्वर की सृष्टि की सभी चीजों के बीच कितनी अद्भुत कहानियाँ घटित हुईं, लेकिन परमेश्वर के अधिकार के प्रदर्शन और उसके कर्मों के प्रकटन का हर अद्भुत अंश सभी चीजों के बीच पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हुआ और ऊँचा उठाया गया, सभी चीजों ने सृष्टिकर्ता के चमत्कारी कर्म दर्शाए और उनके बारे में बात की, और सभी चीजों पर सृष्टिकर्ता की संप्रभुता की बहुत बार सुनाई गई प्रत्येक कहानी सभी चीजों द्वारा हमेशा उद्घोषित की जाएगी। वह अधिकार, जिसके द्वारा परमेश्वर सभी चीजों पर शासन करता है, और परमेश्वर का सामर्थ्य सभी चीजों को दिखाता है कि परमेश्वर हर जगह और हर समय मौजूद है। जब तुम परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य की सर्वव्यापकता देख लोगे, तो तुम देखोगे कि परमेश्वर हर जगह और हर समय मौजूद है। परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य समय, भूगोल, स्थान या किसी व्यक्ति, घटना या चीज से प्रतिबंधित नहीं है। परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य का विस्तार मनुष्य की कल्पना से बढ़कर है; वह मनुष्य के लिए अथाह है, मनुष्य के लिए अकल्पनीय है, और मनुष्य इसे कभी भी पूरी तरह से नहीं जान पाएगा।
कुछ लोग अनुमान लगाना और कल्पना करना पसंद करते हैं, लेकिन मनुष्य की कल्पना कहाँ तक पहुँच सकती है? क्या वह इस दुनिया से परे जा सकती है? क्या मनुष्य परमेश्वर के अधिकार की प्रामाणिकता और सटीकता का अनुमान लगाने और उसकी कल्पना करने में सक्षम है? क्या मनुष्य का अनुमान और कल्पना उसे परमेश्वर के अधिकार का ज्ञान प्राप्त करने देने में सक्षम हैं? क्या वे मनुष्य को वास्तव में परमेश्वर के अधिकार को समझने और उसके प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं? तथ्य साबित करते हैं कि मनुष्य का अनुमान और कल्पना केवल मनुष्य की बुद्धि की उपज हैं, और मनुष्य को परमेश्वर के अधिकार का ज्ञान प्राप्त करने में थोड़ी-सी भी सहायता या लाभ प्रदान नहीं करते। विज्ञान-कथाएँ पढ़ने के बाद कुछ लोग चंद्रमा की कल्पना करने में सक्षम होते हैं, या इस बात की कि तारे कैसे होते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि मनुष्य को परमेश्वर के अधिकार की कोई समझ है। मनुष्य की कल्पना तो बस कल्पना ही है। इन चीजों के तथ्यों के बारे में, अर्थात् परमेश्वर के अधिकार से उनके संबंध के बारे में, उसे बिलकुल भी समझ नहीं है। अगर तुम चाँद पर हो भी आए, तो उससे क्या फर्क पड़ता है? क्या यह दर्शाता है कि तुम्हें परमेश्वर के अधिकार की बहुआयामी समझ है? क्या यह दर्शाता है कि तुम परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य की व्यापकता की कल्पना करने में सक्षम हो? चूँकि मनुष्य का अनुमान और कल्पना उसे परमेश्वर के अधिकार को जानने देने में असमर्थ हैं, तो मनुष्य को क्या करना चाहिए? सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण विकल्प अनुमान या कल्पना न करना होगा अर्थात जब परमेश्वर के अधिकार को जानने की बात आए, तो मनुष्य को कभी कल्पना पर भरोसा नहीं करना चाहिए और अनुमान पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। मैं यहाँ तुम लोगों से क्या कहना चाहता हूँ? परमेश्वर के अधिकार, परमेश्वर के सामर्थ्य, परमेश्वर की पहचान और परमेश्वर के सार का ज्ञान अपनी कल्पना पर भरोसा करके प्राप्त नहीं किया जा सकता। चूँकि परमेश्वर के अधिकार को जानने के लिए तुम कल्पना पर भरोसा नहीं कर सकते, तो फिर तुम परमेश्वर के अधिकार का सच्चा ज्ञान किस तरह प्राप्त कर सकते हो? इसका तरीका है परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना, संगति करना और परमेश्वर के वचनों का अनुभव करना। इस तरह तुम्हें परमेश्वर के अधिकार का एक क्रमिक अनुभव और सत्यापन होगा और तुम उसकी एक क्रमिक समझ और वर्धमान ज्ञान प्राप्त करोगे। परमेश्वर के अधिकार का ज्ञान प्राप्त करने का यही एकमात्र तरीका है; इसका कोई छोटा रास्ता नहीं है। तुम लोगों से कल्पना न करने के लिए कहना तुम लोगों को विनाश की प्रतीक्षा करते हुए निष्क्रिय बैठने के लिए प्रेरित करने या तुम लोगों को कुछ भी करने से रोकने के समान नहीं है। सोचने और कल्पना करने के लिए अपने मस्तिष्क का उपयोग न करने का अर्थ है अनुमान लगाने के लिए तर्क का उपयोग न करना, विश्लेषण करने के लिए ज्ञान का उपयोग न करना, आधार के रूप में विज्ञान का उपयोग न करना, बल्कि इस बात को समझना, सत्यापित करना और पुष्टि करना कि जिस परमेश्वर में तुम विश्वास करते हो, उसके पास अधिकार है, इस बात की पुष्टि करना कि वह तुम्हारे भाग्य पर संप्रभुता रखता है, और यह कि परमेश्वर के वचनों के माध्यम से, सत्य के माध्यम से, हर उस चीज के माध्यम से जिसका तुम जीवन में सामना करते हो, उसका सामर्थ्य हर समय उसे स्वयं सच्चा परमेश्वर साबित करता है। यही एकमात्र तरीका है, जिससे परमेश्वर की समझ प्राप्त की जा सकती है। कुछ लोग कहते हैं कि वे इस लक्ष्य को प्राप्त करने का कोई आसान तरीका खोजना चाहते हैं, लेकिन क्या तुम लोग ऐसा कोई तरीका सोच सकते हो? मैं तुमसे कहता हूँ, सोचने की कोई जरूरत नहीं : कोई दूसरा तरीका नहीं है! उसके द्वारा व्यक्त प्रत्येक वचन और वह जो भी करता है, बस उसी के माध्यम से परमेश्वर के पास जो कुछ है और जो वह है, उसे कर्तव्यनिष्ठा और दृढ़ता से जाना और सत्यापित किया जा सकता है। परमेश्वर को जानने का यही एकमात्र तरीका है। क्योंकि जो कुछ परमेश्वर के पास है और जो वह है, और परमेश्वर की हर चीज, खोखली और खाली नहीं, बल्कि व्यावहारिक है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I