परमेश्वर आध्यात्मिक क्षेत्र पर कैसे शासन करता और उसे चलाता है : अविश्वासियों का जीवन और मृत्यु चक्र
भौतिक संसार के संबंध में, जब भी कुछ बातें या घटनाएँ लोगों की समझ में नहीं आतीं, तो वे प्रासंगिक जानकारी खोज सकते हैं, या उनके मूल और पृष्ठभूमि का पता लगाने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन जब दूसरे संसार की बात आती है, जिसके बारे में हम आज बात कर रहे हैं—आध्यात्मिक क्षेत्र, जिसका अस्तित्व भौतिक संसार के बाहर है—तो लोगों के पास बिलकुल भी ऐसा कोई साधन या माध्यम नहीं है, जिसके द्वारा इसके बारे में कुछ भी जाना जा सके। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ, क्योंकि मनुष्य के संसार में भौतिक संसार की हर चीज मनुष्य के भौतिक अस्तित्व से अविभाज्य है, और चूँकि लोगों को ऐसा महसूस होता है कि भौतिक संसार की हर चीज उनके भौतिक रहन-सहन और भौतिक जीवन से अविभाज्य है, इसलिए अधिकतर लोग केवल उन भौतिक चीजों से ही अवगत हैं, या उन्हें ही देखते हैं, जो उनकी आँखों के सामने होती हैं, जो उन्हें दिखाई पड़ती हैं। लेकिन जब आध्यात्मिक क्षेत्र की बात आती है—अर्थात् हर उस चीज की, जो दूसरे संसार की है—तो यह कहना उचित होगा कि अधिकतर लोग विश्वास नहीं करते। चूँकि लोग उसे देख नहीं सकते, और मानते हैं कि उसे समझने की या उसके बारे में कुछ जानने की आवश्यकता नहीं है, साथ ही आध्यात्मिक क्षेत्र भौतिक संसार से पूरी तरह से भिन्न है, और परमेश्वर के दृष्टिकोण से तो वह खुला है—लेकिन मनुष्यों के लिए वह गुप्त और बंद है—इसलिए लोगों को इस ससार के विभिन्न पहलुओं को समझने का मार्ग खोजने में अत्यंत कठिनाई होती है। आध्यात्मिक क्षेत्र के विभिन्न पहलू, जिनके बारे में मैं बोलने जा रहा हूँ, केवल परमेश्वर के प्रशासन और उसकी संप्रभुता से संबंध रखते हैं; मैं कोई रहस्य प्रकट नहीं कर रहा हूँ, न ही मैं तुम लोगों को उन रहस्यों में से कोई रहस्य बता रहा हूँ, जिन्हें तुम लोग जानना चाहते हो। चूँकि यह परमेश्वर की संप्रभुता, परमेश्वर के प्रशासन और परमेश्वर के भरण-पोषण से संबंधित है, इसलिए मैं केवल उस हिस्से के बारे में बोलूँगा, जिसे जानना तुम लोगों के लिए आवश्यक है।
पहले, मैं तुम लोगों से एक प्रश्न पूछता हूँ : तुम्हारे विचार से आध्यात्मिक क्षेत्र क्या है? मोटे तौर पर कहा जाए, तो यह भौतिक संसार से बाहर का संसार है, एक ऐसा संसार, जो लोगों के लिए अदृश्य और अमूर्त दोनों है। फिर भी, तुम्हारी कल्पना में, आध्यात्मिक क्षेत्र किस प्रकार का होना चाहिए? इसे न देख पाने के परिणामस्वरूप, शायद तुम लोग इसके बारे में सोच पाने में असमर्थ हो। लेकिन जब तुम लोग कुछ किंवदंतियाँ सुनते हो, तब तुम लोग इसके बारे में सोच रहे होते हो, और इसके बारे में सोचने से स्वयं को रोक नहीं पाते हो। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? बहुत सारे लोग जब छोटे होते हैं, तो उनके साथ एक बात होती है : जब कोई उन्हें कोई डरावनी कहानी—भूतों या आत्माओं की—सुनाता है, तो वे अत्यंत भयभीत हो जाते हैं। आखिर वे भयभीत क्यों हो जाते हैं? ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे उन चीजों की कल्पना कर रहे होते हैं; भले ही वे उन्हें देख नहीं सकते, लेकिन उन्हें महसूस होता है कि वे उनके कमरे में चारों ओर हैं, किसी छिपे या अँधेरे कोने में, और वे इतने डर जाते हैं कि उनकी सोने की हिम्मत नहीं होती। विशेष रूप से रात में, वे अपने कमरे में अकेले रहने या अपने आँगन में अकेले जाने की हिम्मत नहीं करते। यह है तुम्हारी कल्पना का आध्यात्मिक क्षेत्र, और लोगों को लगता है कि यह एक भयावह संसार है। तथ्य यह है कि हर कोई कुछ हद तक इसकी कल्पना करता है, और हर कोई इसे थोड़ा अनुभव कर सकता है।
हम आध्यात्मिक क्षेत्र के बारे में बात करने से आरंभ करते हैं। वह क्या है? मैं तुम्हें एक छोटा-सा और सरल स्पष्टीकरण देता हूँ : आध्यात्मिक क्षेत्र एक महत्वपूर्ण स्थान है, जो भौतिक संसार से भिन्न है। मैं क्यों कहता हूँ कि वह महत्वपूर्ण है? हम उसके बारे में विस्तार से बात करने जा रहे हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र का अस्तित्व मनुष्य के भौतिक संसार से अभिन्न रूप से जुड़ा है। सभी चीजों के ऊपर परमेश्वर के प्रभुत्व में वह मनुष्य के जीवन और मृत्यु के चक्र में एक बड़ी भूमिका निभाता है; यह उसकी भूमिका है, और यह उन कारणों में से एक है जिससे उसका अस्तित्व महत्वपूर्ण है। क्योंकि वह एक ऐसा स्थान है, जो पाँच इंद्रियों के लिए अगोचर है, कोई भी सही-सही अनुमान नहीं लगा सकता कि आध्यात्मिक क्षेत्र का अस्तित्व है या नहीं। इसके विभिन्न गत्यात्मक पहलू मनुष्य के अस्तित्व के साथ घनिष्ठता से जुड़े हैं, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य के जीवन की व्यवस्था भी आध्यात्मिक क्षेत्र से बेहद प्रभावित होती है। इसमें परमेश्वर की संप्रभुता शामिल है या नहीं? शामिल है। जब मैं ऐसा कहता हूँ, तो तुम लोग समझ जाते हो कि मैं क्यों इस विषय पर चर्चा कर रहा हूँ : ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह परमेश्वर की संप्रभुता से और साथ ही उसके प्रशासन से संबंधित है। इस तरह के संसार में—जो लोगों के लिए अदृश्य है—उसकी हर स्वर्गिक आज्ञा, आदेश और प्रशासनिक प्रणाली भौतिक संसार के किसी भी देश की व्यवस्थाओं और प्रणालियों से बहुत ऊपर है, और उस संसार में रहने वाला कोई भी प्राणी उनकी अवहेलना या उल्लंघन करने का साहस नहीं करेगा। क्या यह परमेश्वर की संप्रभुता और प्रशासन से संबंधित है? आध्यात्मिक क्षेत्र में स्पष्ट प्रशासनिक आदेश, स्पष्ट स्वर्गिक आज्ञाएँ और स्पष्ट विधान हैं। विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न क्षेत्रों में सेवक सख्ती से अपने कर्तव्यों का निर्वाह और नियमों-विनियमों का पालन करते है, क्योंकि वे जानते हैं कि किसी स्वर्गिक आज्ञा के उल्लंघन का क्या परिणाम होता है; वे स्पष्ट रूप से अवगत हैं कि किस प्रकार परमेश्वर दुष्टों को दंड और भले लोगों को इनाम देता है, और किस प्रकार वह सभी चीजों को चलाता है, और उन पर शासन करता है। इसके अतिरिक्त, वे स्पष्ट रूप से देखते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर अपने स्वर्गिक आदेशों और विधानों को कार्यान्वित करता है। क्या वे उस भौतिक संसार से भिन्न हैं, जिसमें मानवजाति रहती है? वे दरअसल बहुत ज्यादा भिन्न हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र एक ऐसा संसार है, जो भौतिक संसार से पूर्णतया भिन्न है। चूँकि वहाँ स्वर्गिक आदेश और विधान हैं, इसलिए यह परमेश्वर की संप्रभुता, प्रशासन, और इसके अतिरिक्त, उसके स्वभाव और स्वरूप को स्पर्श करता है। इसे सुनने के बाद, क्या तुम लोगों को यह नहीं लगता कि इस विषय पर बोलना मेरे लिए अत्यंत आवश्यक है? क्या तुम लोग इसमें निहित रहस्य जानना नहीं चाहते? (हाँ, हम चाहते हैं।) ऐसी है आध्यात्मिक क्षेत्र की अवधारणा। हालाँकि यह भौतिक संसार के साथ सह-अस्तित्व में है, और साथ-साथ परमेश्वर के प्रशासन और उसकी संप्रभुता के अधीन है, लेकिन इस संसार का परमेश्वर का प्रशासन और उसकी संप्रभुता भौतिक संसार की तुलना में बहुत सख्त है। जब विवरण की बात आती है, तो हमें इस बात से आरंभ करना चाहिए कि किस प्रकार आध्यात्मिक क्षेत्र मनुष्य के जीवन और म़ृत्यु के चक्र के कार्य के लिए उत्तरदायी है, क्योंकि यह आध्यात्मिक क्षेत्र के प्राणियों के कार्य का एक बड़ा भाग है।
मानवजाति में मैं सभी लोगों को तीन प्रकारों में वर्गीकृत करता हूँ। पहले हैं अविश्वासी, जो धार्मिक विश्वासों से रहित होते हैं। वे अविश्वासी कहलाते हैं। अविश्वासियों की बहुत बड़ी संख्या केवल धन में विश्वास रखती है; वे केवल अपने हित साधते हैं, भौतिकवादी होते हैं और केवल भौतिक संसार में विश्वास करते है—वे जीवन और मृत्यु के चक्र में, या देवताओं और भूतों के बारे में कही जाने वाली किसी बात में विश्वास नहीं रखते। मैं इन लोगों को अविश्वासियों के रूप में वर्गीकृत करता हूँ, और ये पहले प्रकार के हैं। दूसरा प्रकार अविश्वासियों से अलग विभिन्न आस्था वाले लोगों का है। मानवजाति में मैं इन आस्था वाले लोगों को अनेक मुख्य समूहों में विभाजित करता हूँ : पहले हैं यहूदी, दूसरे कैथोलिक, तीसरे ईसाई, चौथे मुस्लिम और पाँचवें बौद्ध; ये पाँच प्रकार हैं। ये विभिन्न आस्था वाले लोग हैं। तीसरा प्रकार उन लोगों का है जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और इसमें तुम लोग शामिल हो। ऐसे विश्वासी वे लोग हैं, जो आज परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। ये लोग दो प्रकारों में विभाजित हैं : परमेश्वर के चुने हुए लोग और सेवाकर्ता। इन प्रमुख प्रकारों में स्पष्ट रूप से अंतर किया गया है। तो अब तुम लोग अपने मन में मनुष्यों के प्रकारों और श्रेणियों में स्पष्ट रूप से अंतर करने में सक्षम हो, है न? पहला प्रकार अविश्वासियों का है और मैं बता चुका हूँ कि वे कौन होते हैं। क्या वे लोग, जो आकाश के वृद्ध मनुष्य में विश्वास करते हैं, अविश्वासी होते हैं? कई अविश्वासी केवल आकाश के वृद्ध मनुष्य में विश्वास करते हैं; वे मानते हैं कि वायु, वर्षा, आकाशीय बिजली इत्यादि आकाश के इस वृद्ध मनुष्य द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं, जिस पर वे फसल बोने और काटने के लिए निर्भर रहते हैं—लेकिन जब परमेश्वर पर विश्वास करने का उल्लेख किया जाता है, तो वे उसमें विश्वास करने के लिए तैयार नहीं होते। क्या इसे परमेश्वर में विश्वास होना कहा जा सकता है? ऐसे लोगों को अविश्वासियों में सम्मिलित किया जाता है। तुम इसे समझते हो, है न? इन श्रेणियों को समझने में गलती मत करना। दूसरे प्रकार में आस्था वाले लोग आते हैं और तीसरा प्रकार उन लोगों का है जो इस समय परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हैं। तो मैंने सभी मनुष्यों को इन प्रकारों में क्यों विभाजित किया है? (क्योंकि विभिन्न प्रकार के लोगों के अंत और गंतव्य भिन्न-भिन्न हैं।) यह इसका एक पहलू है। जब इन विभिन्न प्रजातियों और प्रकारों के लोग आध्यात्मिक क्षेत्र में लौटते हैं, तो उनमें से प्रत्येक के जाने का भिन्न स्थान होता है और वे जीवन और मृत्यु के चक्र की भिन्न-भिन्न व्यवस्थाओं के अधीन किए जाते हैं, और यही कारण है कि मैंने मनुष्यों को इन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया है।
अविश्वासियों का जीवन और मृत्यु चक्र
हम अविश्वासियों के जीवन और मृत्यु के चक्र से आरंभ करते हैं। मृत्यु के बाद व्यक्ति को आध्यात्मिक क्षेत्र के एक परिचारक द्वारा ले जाया जाता है। व्यक्ति का ठीक-ठीक क्या ले जाया जाता है? उसकी देह नहीं, बल्कि उसकी आत्मा। जब उसकी आत्मा ले जाई जाती है, तब वह एक ऐसे स्थान पर पहुँचता है, जो आध्यात्मिक क्षेत्र की एक एजेंसी होती है, जो अभी-अभी मरे लोगों की आत्मा को विशेष रूप से प्राप्त करती है। यह पहला स्थान है, जहाँ मरने के बाद व्यक्ति जाता है, जो आत्मा के लिए अजनबी होता है। जब उन्हें इस स्थान पर ले जाया जाता है, तो एक अधिकारी पहली जाँचें करता है, उनके नाम, पते, आयु और समस्त अनुभवों की पुष्टि करता है। जीवित रहते हुए उनके द्वारा की गई हर चीज एक पुस्तक में लिखी जाती है और उसकी सटीकता का सत्यापन किया जाता है। इस सब की जाँच हो जाने के बाद उन मनुष्यों के पूरे जीवन के व्यवहार और कार्यकलापों का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि उन्हें दंड दिया जाएगा या मनुष्य के रूप में उनका पुनर्जन्म जारी रहेगा, जो कि पहला चरण है। क्या यह पहला चरण भयावह होता है? यह अत्यधिक भयावह नहीं होता, क्योंकि इसमें केवल इतना ही होता है कि मनुष्य एक अंधकारमय और अपरिचित स्थान पर पहुँचता है।
दूसरे चरण में, अगर इस मनुष्य ने जीवनभर बहुत सारे बुरे कार्य किए होते हैं और अनेक बुराई के किए होते हैं, तो उससे निपटने के लिए उसे दंड के स्थान पर ले जाया जाता है। यह वह स्थान होता है, जो स्पष्ट रूप से लोगों को दंड देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उन्हें किस प्रकार दंड दिया जाता है, इसका सटीक विवरण उनके द्वारा किए गए पापों पर, और इस बात पर निर्भर करता है कि मृत्यु से पूर्व उन्होंने कितने बुरे कार्य किए—यह इस द्वितीय चरण में होने वाली पहली स्थिति है। मृत्यु से पूर्व उनके द्वारा किए गए बुरे कार्यों और उनकी दुष्टताओं की वजह से, दंड पाने के बाद जब वे पुनः जन्म लेते हैं—जब वे एक बार फिर भौतिक संसार में जन्म लेते हैं—तो कुछ लोग मनुष्य ही बनते हैं, जबकि कुछ पशु बनते हैं। अर्थात्, व्यक्ति के आध्यात्मिक क्षेत्र में लौटने के बाद उनके द्वारा की गई बुराई के कर्मों की वजह से उन्हें दंडित किया जाता है; इसके अतिरिक्त, उनके द्वारा किए गए बुरे कार्यों की वजह से, अपने अगले जन्म में वे संभवतः मनुष्य नहीं, बल्कि पशु बनकर लौटेंगे। जो पशु वे बन सकते हैं, उनमें गाय, घोड़े, सूअर और कुत्ते शामिल हैं। कुछ लोग चिड़िया, बतख या कलहंस के रूप में पुनर्जन्म ले सकते हैं...। पशुओं के रूप में पुनर्जन्म लेने के बाद जब वे फिर से मरेंगे, तो आध्यात्मिक क्षेत्र में लौट जाएँगे। वहाँ, पहले की तरह, उनकी मृत्यु से पहले के उनके व्यवहार के आधार पर आध्यात्मिक क्षेत्र तय करेगा कि वे मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेंगे या नहीं। अधिकतर लोग बहुत अधिक बुराई करते हैं, और उनके पाप बहुत गंभीर होते हैं, इसलिए उन्हें सात से बारह बार तक पशुओं के रूप में पुनर्जन्म लेना पड़ता है। सात से बारह बार—क्या यह डरावना नहीं है? (यह डरावना है।) तुम लोगों को क्या चीज डराती है? किसी मनुष्य का पशु बनना—यह भयावह है। और मनुष्य के लिए पशु बनने में सबसे पीड़ादायक चीजें क्या हैं? कोई भाषा न होना, केवल साधारण विचार होना, केवल वही चीजें कर पाना जो पशु करते हैं और वही खाना खा पाना जो पशु खाते हैं, पशु जैसी साधारण मानसिकता और हाव-भाव होना, सीधे खड़े होकर न चल पाना, मनुष्यों के साथ संवाद न कर पाना, और यह तथ्य कि मनुष्यों के किसी भी व्यवहार और गतिविधियों का पशुओं से कोई संबंध नहीं होता। अर्थात्, सब चीजों के बीच, पशु होना सभी जीवित प्राणियों में तुम्हें निम्नतम बना देता है, जो मनुष्य होने से कहीं अधिक दुःखदायी है। यह उन लोगों के लिए आध्यात्मिक क्षेत्र के दंड का एक पहलू है, जिन्होंने बहुत बुराई और बड़े पाप किए होते हैं। जब उनके दंड की गंभीरता की बात आती है, तो इसका निर्णय इस आधार पर लिया जाता है कि वे किस प्रकार के पशु बनते हैं। उदाहरण के लिए, क्या सूअर बनना कुत्ता बनने से बेहतर है? सूअर कुत्ते से बेहतर जीवन जीता है या बदतर? बदतर, है न? अगर लोग गाय या घोड़ा बनते हैं, तो वे सूअर से बेहतर जीवन जिएँगे या बदतर? (बेहतर।) क्या बिल्ली के रूप में पुनर्जन्म लेने वाला व्यक्ति ज्यादा सुखी रहेगा? वह बिलकुल वैसा ही पशु होगा, और बिल्ली होना गाय या घोड़ा होने से अधिक आसान होगा, क्योंकि बिल्लियाँ अपना अधिकांश समय नींद की सुस्ती में गुजारती हैं। गाय या घोड़ा बनना अधिक मेहनत वाला काम है। इसलिए अगर व्यक्ति गाय या घोड़े के रूप में पुनर्जन्म लेता है, तो उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है, जो एक कठोर दंड के समान है। कुत्ता बनना गाय या घोड़ा बनने से थोड़ा बेहतर होगा, क्योंकि कुत्ते का अपने स्वामी के साथ निकट संबंध होता है। कई वर्षों तक पालतू रहने के बाद कुछ कुत्ते अपने मालिक की कही हुई बहुत सारी बातें समझने में समर्थ हो जाते हैं। कभी-कभी कुत्ता अपने मालिक की मनःस्थिति और अपेक्षाओं के अनुसार ढल सकता है और मालिक कुत्ते के साथ बेहतर व्यवहार करता है, और कुत्ता बेहतर खाता और पीता है, और जब उसे दर्द होता है तो उसकी अधिक देखभाल की जाती है। तो क्या कुत्ता अधिक सुखी जीवन व्यतीत नहीं करता? इस प्रकार, गाय या घोड़ा होने की तुलना में कुत्ता होना बेहतर है। इसमें, व्यक्ति के दंड की गंभीरता यह निर्धारित करती है कि वह कितनी बार, और साथ ही किस प्रकार के पशु के रूप में जन्म लेता है।
जीवित रहते हुए बहुत सारे पाप करने के कारण कुछ लोगों को सात से बारह बार पशु के रूप में पुनर्जन्म लेने का दंड दिया जाता है। पर्याप्त बार दंडित होने के बाद, आध्यात्मिक क्षेत्र में लौटने पर उन्हें कहीं और ले जाया जाता है—एक ऐसे स्थान पर, जहाँ विभिन्न आत्माएँ पहले ही दंड पा चुकी होती हैं, और उस प्रकार की होती हैं जो मनुष्य के रूप में जन्म लेने के लिए तैयार हो रही होती हैं। इस स्थान पर प्रत्येक आत्मा को इस प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है कि वे किस प्रकार के परिवार में जन्म लेंगे, पुनर्जन्म होने के बाद उनकी क्या भूमिका होगी, आदि। उदाहरण के लिए, कुछ लोग जब इस संसार में आएँगे तो गायक बनेंगे, इसलिए उन्हें गायकों के बीच रखा जाता है; कुछ लोग इस संसार में आएँगे तो व्यापारी बनेंगे और इसलिए उन्हें व्यापारी लोगों के बीच रखा जाता है; और अगर किसी को मनुष्य बनने के बाद वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता बनना है तो उसे अनुसंधानकर्ताओं के बीच रखा जाता है। वर्गीकृत कर दिए जाने के बाद उनमें से प्रत्येक को एक भिन्न समय और नियत तिथि के अनुसार भेजा जाता है, ठीक वैसे ही जैसे कि आजकल लोग ई-मेल भेजते हैं। इसमें जीवन और मृत्यु का एक चक्र पूरा हो जाता है। जिस दिन कोई व्यक्ति आध्यात्मिक क्षेत्र में पहुँचता है, उस दिन से लेकर जब तक उसका दंड समाप्त नहीं हो जाता या जब तक उसका किसी पशु के रूप में अनेक बार पुनर्जन्म नहीं हो जाता और जब वह मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेने की तैयारी करता है, तब यह प्रक्रिया पूर्ण होती है।
जहाँ तक उनकी बात है, जिन्होंने दंड भोग लिया है और जो अब पशु के रूप में जन्म नहीं लेंगे, क्या उन्हें मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेने के लिए भौतिक संसार में तुरंत भेजा जाता है? या, उन्हें मनुष्यों के बीच आने से पहले कितना समय लगता है? यह किस आवृत्ति के साथ हो सकता है? इसके कुछ सामयिक प्रतिबंध हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र में होने वाली हर चीज कुछ सटीक सामयिक प्रतिबंधों और नियमों के अधीन है—जिसे अगर मैं संख्याओं के साथ समझाऊँ, तो तुम लोग समझ जाओगे। जो लोग थोड़े समय के भीतर पुनर्जन्म लेते हैं, जब वे मरते हैं तो मनुष्य के रूप में उनके पुनर्जन्म की तैयारियाँ पहले ही की जा चुकी होती हैं। अल्पतम समय, जिसमें यह हो सकता है, तीन दिन है। कुछ लोगों के लिए इसमें तीन माह लगते हैं, कुछ के लिए इसमें तीन वर्ष लगते हैं, कुछ के लिए इसमें तीस वर्ष लगते हैं, कुछ के लिए इसमें तीन सौ वर्ष लगते हैं, इत्यादि। तो इन सामयिक नियमों के बारे में क्या कहा जा सकता है, और उनका सटीक विवरण क्या है? वह इस बात पर, कि भौतिक संसार—मनुष्यों का संसार—किसी आत्मा से क्या चाहता है, और उस भूमिका पर आधारित होता है, जिसे उस आत्मा को इस संसार में निभाना है। जब लोग साधारण व्यक्ति के रूप में पुनर्जन्म लेते हैं, तो उनमें से अधिकतर का पुनर्जन्म बहुत जल्दी हो जाता है, क्योंकि मनुष्यों के संसार को ऐसे साधारण लोगों की अत्यधिक आवश्यकता होती है—और इसलिए तीन दिन के बाद वे एक ऐसे परिवार में भेज दिए जाते हैं, जो उनके मरने से पहले के परिवार से सर्वथा भिन्न होता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो इस संसार में विशेष भूमिका निभाते हैं। “विशेष” का अर्थ है कि मनुष्यों के संसार में उनकी कोई बड़ी माँग नहीं होती; ऐसी भूमिका निभाने के लिए ज्यादा लोगों की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए इसमें तीन सौ वर्ष लग सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यह आत्मा हर तीन सौ वर्ष में या तीन हजार वर्ष तक में एक केवल बार आएगी। ऐसा क्यों होता है? ऐसा इस तथ्य के कारण होता है कि या तो तीन सौ वर्ष तक या तीन हजार वर्ष तक संसार में ऐसी भूमिका की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए उन्हें आध्यात्मिक क्षेत्र ही में कहीं पर रखा जाता है। उदाहरण के लिए, कनफ्यूशियस को लो, परंपरागत चीनी संस्कृति पर उसका गहरा प्रभाव था और उसके आगमन ने उस समय की संस्कृति, ज्ञान, परंपरा और लोगों की विचारधारा पर गहरा प्रभाव डाला था। लेकिन इस तरह के मनुष्य की हर एक युग में आवश्यकता नहीं होती, इसलिए उसे पुनर्जन्म लेने से पहले, तीन सौ या तीन हजार वर्ष तक प्रतीक्षा करते हुए आध्यात्मिक क्षेत्र में ही रहना पड़ा था। चूँकि मनुष्यों के संसार को ऐसे किसी व्यक्ति की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए उसे व्यर्थ ही प्रतीक्षा करनी पड़ी, क्योंकि उसके जैसी बहुत कम भूमिकाएँ थीं, और उसके करने के लिए बहुत कम काम था। इसलिए उसे अधिकांश समय आध्यात्मिक क्षेत्र में ही कहीं पर निष्क्रिय रखना पड़ा था, ताकि मनुष्यों के संसार में आवश्यकता पड़ने पर उसे भेजा जा सके। जिस बारंबारता के साथ अधिकतर लोग पुनर्जन्म लेते हैं, उसके लिए आध्यात्मिक क्षेत्र के ऐसे सामयिक नियम हैं। लोग चाहे साधारण हों या विशेष हों, उनके पुनर्जन्म लेने की प्रक्रिया के लिए आध्यात्मिक क्षेत्र में उचित नियम और सही अभ्यास हैं, और ये नियम और अभ्यास परमेश्वर द्वारा भेजे जाते हैं, वे आध्यात्मिक क्षेत्र के किसी परिचारक या प्राणी द्वारा निर्धारित या नियंत्रित नहीं किए जाते। अब तुम इसे समझते हो, है न?
किसी आत्मा के लिए उसका पुनर्जन्म, इस जीवन में उसकी भूमिका क्या है, किस परिवार में वह जन्म लेती है और उसका जीवन किस प्रकार का होता है, ये उस आत्मा के पिछले जीवन से गहराई से संबंधित होते हैं। मनुष्य के संसार में हर प्रकार के लोग आते हैं, और जो भूमिकाएँ वे निभाते हैं, वे अलग-अलग होती हैं, उसी तरह उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य भी अलग-अलग होते हैं। और वे कौन-से कार्य होते हैं? कुछ लोग कर्ज चुकाने आए होते हैं : अगर उन्होंने पिछली जिंदगी में दूसरों से बहुत ज्यादा पैसा उधार लिया था, तो वे इस जिंदगी में वही कर्ज चुकाने के लिए आते हैं। इस बीच कुछ लोग अपने कर्ज उगाहने के लिए आते हैं : पिछले जन्मों में उनके साथ बहुत-सी चीजों में और अत्यधिक पैसों का घोटाला किया गया होता है, जिसके परिणामस्वरूप, उनके आध्यात्मिक क्षेत्र में आने के बाद वह उन्हें न्याय देता है और उन्हें इस जीवन में अपने कर्ज उगाहने देता है। कुछ लोग एहसान का कर्ज चुकाने के लिए आते हैं : उनके पिछले जीवन-काल में—यानी उनके पिछले जन्म में—कोई उनके प्रति दयावान था, और इस जीवन में उन्हें पुनर्जन्म लेने का एक बड़ा अवसर प्रदान किए जाने के कारण वे उस एहसान का बदला चुकाने के लिए पुनर्जन्म लेते हैं। इस बीच, दूसरे इस जीवन में किसी की जान लेने के लिए पैदा हुए होते हैं। और वे किसकी जान लेते हैं? उनकी जान, जिन्होंने पिछले जन्मों में उनकी जान ली थी। संक्षेप में, प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान जीवन अपने पिछले जन्मों के साथ मजबूत संबंध रखता है, यह संबंध अटूट होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान जीवन उसके पिछले जीवन से बहुत अधिक प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, मान लो, मरने से पहले झांग ने ली को एक बड़ी रकम का धोखा दिया था। तो क्या झांग ली का कर्जदार है? हाँ है, तो क्या यह स्वाभाविक है कि ली को झांग से अपना कर्ज वसूल करना चाहिए? नतीजतन, उनकी मृत्यु के उपरांत, उनके बीच एक कर्ज है जिसका निपटान होना ही चाहिए। जब वे पुनर्जन्म लेते हैं और झांग मनुष्य बनता है, तो ली किस तरह उससे अपना कर्ज वसूल करता है? एक तरीका है झांग के पुत्र के रूप में पुनर्जन्म लेना; झांग खूब धन अर्जित करता है, जिसे ली द्वारा उड़ा दिया जाता है। चाहे झांग कितना भी धन कमाए, उसका पुत्र ली उसे उड़ा देता है। चाहे झांग कितना भी धन अर्जित करे, वह कभी पर्याप्त नहीं होता; और इस बीच उसका पुत्र किसी न किसी कारण से पिता के धन को विभिन्न तरीकों से उड़ा देता है। झांग हैरान रह जाता है और सोचता है, “मेरा यह पुत्र हमेशा दुर्भाग्य ही क्यों लाता है? दूसरों के पुत्र इतने सदाचारी क्यों हैं? मेरे ही पुत्र की कोई महत्वकांक्षा क्यों नहीं है, वह इतना निकम्मा और धन कमाने में असमर्थ क्यों है, और मुझे हमेशा उसकी सहायता क्यों करनी पड़ती है? चूँकि मुझे उसे सहारा देना है, तो मैं सहारा दूँगा—लेकिन ऐसा क्यों है कि चाहे मैं कितना भी धन उसे दे दूँ, उसे हमेशा और अधिक चाहिए? क्यों वह मेहनत का काम करने में असमर्थ है, और उसके बजाय आवारागर्दी, खाना-पीना, वेश्यावृत्ति और जुएबाजी जैसी चीजें करने में ही लगा रहता है? आखिर यह हो क्या रहा है?” फिर झांग कुछ देर के लिए विचार करता है : “हो सकता है, पिछले जन्म में मैं उसका ऋणी रहा हूँ। तो ठीक है, मैं वह कर्ज उतार दूँगा! यह मामला तब तक समाप्त नहीं होगा, जब तक मैं कर्ज पूरा नहीं चुका दूँगा!” वह दिन आ सकता है, जब ली अपना कर्ज वसूल कर ले, और जब वह चालीस या पचास के दशक में चल रहा हो, तो हो सकता है कि एक दिन अचानक उसे चेतना आए और वह महसूस करे कि, “अपने जीवन के पूरे पूर्वार्द्ध में मैंने एक भी भला काम नहीं किया है! मैंने अपने पिता का कमाया हुआ सारा धन उड़ा दिया है, इसलिए मुझे एक अच्छा इंसान बनने की शुरुआत करनी चाहिए! मैं स्वयं को मजबूत बनाऊँगा; मैं एक ऐसा व्यक्ति बनूँगा जो ईमानदार हो और उचित रूप से जीवन जीता हो, और मैं अपने पिता को फिर कभी दुःख नहीं पहुँचाऊँगा!” वह ऐसा क्यों सोचता है? वह अचानक बदलकर अच्छा कैसे गया? क्या इसका कोई कारण है? क्या कारण है? (ऐसा इसलिए है, क्योंकि ली ने अपना कर्ज वसूल कर लिया है, झांग ने अपना कर्ज चुका दिया है।) इसमें कार्य-कारण संबंध है। कहानी बहुत समय पहले आरंभ हुई थी, उनके मौजूदा जीवन से पहले, उनके पिछले जन्म की यह कहानी वर्तमान तक लाई गई है, और दोनों में से कोई दूसरे को दोष नहीं दे सकता। चाहे झांग ने अपने पुत्र को कुछ भी सिखाया हो, उसके पुत्र ने कभी नहीं सुना, और कभी मेहनत का काम नहीं किया। लेकिन जिस दिन कर्ज चुका दिया गया, उसे अपने पुत्र को सिखाने की कोई आवश्यकता नहीं रही—वह स्वाभाविक रूप से समझ गया। यह एक साधारण-सा उदाहरण है। क्या ऐसे अनेक उदाहरण हैं? (हाँ, हैं।) यह लोगों को क्या बताता है? (कि उन्हें अच्छा बनना चाहिए और बुराई नहीं करनी चाहिए।) कि उन्हें कोई बुराई नहीं करनी चाहिए, और उनके कुकर्मों का प्रतिफल मिलेगा! अधिकतर अविश्वासी बहुत बुराई करते हैं, और उन्हें उनके कुकर्मों का प्रतिफल मिलता है, है न? लेकिन क्या यह प्रतिफल मनमाना होता है? हर कार्य की एक पृष्ठभूमि और उसके प्रतिफल का एक कारण होता है। क्या तुम्हें लगता है कि किसी के साथ पैसे की धोखाधड़ी करने के बाद तुम्हें कुछ नहीं होगा? क्या तुम्हें लगता है कि उस पैसे की ठगी करने के बाद तुम्हें कोई परिणाम नहीं भुगतना पड़ेगा? यह असंभव है; निश्चित रूप से इसके परिणाम होंगे! सभी व्यक्तियों को, चाहे वे जो भी हों, या वे यह विश्वास करते हों या नहीं कि परमेश्वर है, अपने व्यवहार का उत्तरदायित्व लेना होगा और अपने कार्यों के परिणाम भुगतने होंगे। इस साधारण-से उदाहरण के संबंध में—झांग को दंडित किया जाना और ली का कर्ज चुकाया जाना—क्या यह उचित नहीं है? जब लोग ऐसे कार्य करते हैं, तो इसी प्रकार का परिणाम होता है। यह आध्यात्मिक क्षेत्र के प्रशासन से अविभाज्य है। अविश्वासी होने के बावजूद, परमेश्वर में विश्वास न करने वालों का अस्तित्व इसी तरह की स्वर्गिक आज्ञाओं और आदेशों के अधीन होता है। कोई इनसे बच नहीं सकता, और कोई इस हकीकत को टाल नहीं सकता।
जिन लोगों में आस्था नहीं है, वे प्रायः मानते हैं कि मनुष्य को दिखने वाली हर चीज का अस्तित्व है, जबकि देखी न जा सकने वाली या लोगों से बहुत दूर स्थित चीज का अस्तित्व नहीं है। वे यह मानना पंसद करते हैं कि “जीवन और मृत्यु का चक्र” नहीं होता, और कोई “दंड” नहीं होता; इसलिए वे बिना किसी मलाल के पाप और बुराई करते हैं। बाद में उन्हें दंडित किया जाता है, या उनका पुनर्जन्म पशुओं के रूप में होता है। अविश्वासियों के बीच विभिन्न प्रकार के अधिकतर लोग इस दुष्चक्र में फँसते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि आध्यात्मिक क्षेत्र समस्त जीवित प्राणियों के अपने प्रशासन में सख्त है। चाहे तुम विश्वास करो या नहीं, यह तथ्य मौजूद है, क्योंकि एक भी व्यक्ति या वस्तु उस दायरे से नहीं बच सकती, जिसे परमेश्वर अपनी आँखों से देखता है, और एक भी व्यक्ति या वस्तु उसकी स्वर्गिक आज्ञाओं और आदेशों के नियमों और सीमाओं से नहीं बच सकती। इस प्रकार, यह साधारण-सा उदाहरण हर एक को बताता है कि चाहे तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो या नहीं, पाप और बुराई करना अस्वीकार्य है, और सभी कार्यों के परिणाम होते हैं। जब किसी के साथ पैसे की धोखाधड़ी करने वाला कोई दंडित किया जाता है, तो ऐसा दंड उचित है। इस तरह के आम तौर पर देखे जाने वाले व्यवहार को आध्यात्मिक क्षेत्र में दंडित किया जाता है और वह दंड परमेश्वर के आदेशों और स्वर्गिक आज्ञाओं द्वारा दिया जाता है। इसलिए गंभीर आपराधिक और बुराई का व्यवहार—बलात्कार और लूटपाट, धोखाधड़ी और कपट, चोरी और डकैती, हत्या और आगजनी इत्यादि—और भी अधिक भिन्न-भिन्न गंभीरता वाले दंड की शृंखला के भागी होते हैं। इन भिन्न-भिन्न गंभीरता वाले दंडों की शृंखला में क्या शामिल है? उनमें से कुछ समय के उपयोग द्वारा गंभीरता के स्तर का निर्धारण करते हैं, जबकि कुछ विभिन्न तरीकों का उपयोग करके ऐसा करते हैं; और अन्य यह निर्धाररित करके करते हैं कि लोग पुनर्जन्म होने पर कहाँ जाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग बदजबान होते हैं। “बदजबान” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है प्रायः दूसरों को गाली देना और दूसरों को कोसने वाली द्वेषपूर्ण भाषा का उपयोग करना। द्वेषपूर्ण भाषा क्या दर्शाती है? वह दर्शाती है कि व्यक्ति का हृदय कलुषित है। ऐसे लोगों के मुख से अकसर दूसरों को कोसने वाली अभद्र भाषा निकलती है, और ऐसी द्वेषपूर्ण भाषा गंभीर परिणाम लाती है। मरने और उचित दंड भोगने के बाद ऐसे लोगों का पुनर्जन्म गूँगों के रूप में हो सकता है। कुछ लोग जीवित रहते हुए बड़े धूर्त होते हैं, वे प्रायः दूसरों का लाभ उठाते हैं, उनके छोटे-छोटे षड्यंत्र विशेष रूप से सुनियोजित होते हैं, और वे लोगों को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। उनका पुनर्जन्म मूर्ख या मानसिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के रूप में हो सकता है। कुछ लोग अकसर दूसरों के निजी जीवन में ताक-झाँक किया करते हैं; उनकी आँखें बहुत-कुछ वह देखती हैं जिससे उन्हें अवगत नहीं होना चाहिए, और वे बहुत-कुछ ऐसा जान लेते हैं जो उन्हें नहीं जानना चाहिए। नतीजतन, उनका पुनर्जन्म अंधे के रूप में हो सकता है। कुछ लोग जब जीवित होते हैं तो बहुत चालाक होते हैं, वे प्रायः झगड़ते हैं और बहुत दुष्टता करते हैं। इसलिए उनका पुनर्जन्म विकलांग, लँगड़े या लूले के रूप में हो सकता है; या वे कुबड़े या अकड़ी हुई गर्दन वाले, लँगड़ाकर चलने वाले के रूप में पुनर्जन्म ले सकते हैं या उनका एक पैर दूसरे से छोटा हो सकता है, इत्यादि। इसमें उन्हें अपने जीवित रहने के दौरान की गई दुष्टता के स्तर के आधार पर विभिन्न दंडों का भागी बनाया जाता है। तुम लोगों को क्या लगता है, कुछ लोग कमजोर नजर वाले क्यों होते हैं? क्या ऐसे काफी लोग हैं? आजकल ऐसे बहुत लोग हैं। कुछ लोग कमजोर नजर वाले इसलिए होते हैं, क्योंकि अपने पिछले जन्मों में उन्होंने अपनी आँखों का बहुत अधिक उपयोग करते हुए बहुत सारे बुरे कार्य किए होते हैं, इसलिए वे इस जन्म में कमजोर नजर वाले पैदा होते हैं और गंभीर मामलों में वे अंधे भी जन्मते हैं। यह प्रतिफल है! कुछ लोग मरने से पहले दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं; वे अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, सहकर्मियों या अपने से जुड़े लोगों के लिए कई अच्छे कार्य करते हैं। वे दूसरों को दान देते हैं और उनकी देखभाल करते हैं, या आर्थिक रूप से उनकी सहायता करते हैं, लोग उनके बारे में बहुत अच्छी राय रखते हैं। जब ऐसे लोग आध्यात्मिक क्षेत्र में लौटते है, तो उन्हें दंडित नहीं किया जाता। किसी अविश्वासी को किसी भी प्रकार से दंडित न किए जाने का अर्थ है कि वह बहुत अच्छा इंसान था। परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करने के बजाय वे केवल आकाश के वृद्ध व्यक्ति पर विश्वास करते हैं। ऐसा व्यक्ति केवल इतना ही विश्वास करता है कि उससे ऊपर कोई आत्मा है, जो उनके हर कार्य को देखती है—यह व्यक्ति बस इसी में विश्वास करता है। परिणामस्वरूप यह व्यक्ति कहीं अधिक सदाचारी होता है। ये लोग दयालु और परोपकारी होते हैं और जब अंततः वे आध्यात्मिक क्षेत्र में लौटते हैं, तो वह उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करेगा और उनका पुनर्जन्म शीघ्र ही हो जाएगा। जब उनका पुनर्जन्म होगा, तो वे किस प्रकार के परिवारों में आएँगे? हालाँकि वे परिवार धनी नहीं होंगे, लेकिन वे हर नुकसान से मुक्त होंगे, उनके सदस्यों के बीच सामंजस्य होगा; पुनः जन्मे ये लोग सुरक्षित, खुशहाल दिन बिताएँगे, और हर कोई आनंदित होगा और अच्छा जीवन जिएगा। जब ये लोग व्यस्क होंगे, तो उनके बड़े, भरे-पूरे परिवार होंगे, उनके बच्चे प्रतिभाशाली होंगे और सफलता का आनंद लेंगे, और उनके परिवार सौभाग्य का आनंद उठाएँगे—और ऐसा परिणाम इन लोगों के पिछले जन्मों से अत्यधिक जुड़ा होता है। अर्थात्, मरने और पुनः जन्म लेने के बाद लोग कहाँ जाते हैं, वे पुरुष होते हैं या स्त्री, उनका मिशन क्या होता है, जीवन में वे क्या करेंगे, कौन-से झटके सहेंगे, किन आशीषों का आनंद लेंगे, किनसे मिलेंगे और उनके साथ क्या होगा—कोई इन चीजों की भविष्यवाणी नहीं कर सकता, इनसे बच नहीं सकता या इनसे छिप नहीं सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि तुम्हारा जीवन निर्धारित कर दिए जाने के बाद तुम्हारे साथ जो भी होता है—तुम उससे बचने का कैसे भी प्रयास करो, और किसी भी तरह से करो—आध्यात्मिक क्षेत्र में परमेश्वर तुम्हारे लिए जो जीवन-क्रम निर्धारित कर देता है, उसके उल्लंघन का तुम्हारे पास कोई उपाय नहीं होता। क्योंकि जब तुम्हारा पुनर्जन्म होता है, तो तुम्हारे जीवन की नियति पहले ही निर्धारित की जा चुकी होती है। चाहे वह अच्छी हो या बुरी, सभी को उसका सामना करना चाहिए, और आगे बढ़ते रहना चाहिए। यह एक ऐसा मुद्दा है, जिससे इस संसार में रहने वाला कोई भी व्यक्ति बच नहीं सकता, और कोई भी मुद्दा इससे अधिक वास्तविक नहीं है। मैं जो कुछ भी कहता रहा हूँ, तुम सब वह समझ गए हो, है न?
इन चीजों को समझने के बाद, क्या अब तुम लोगों ने देखा कि परमेश्वर के पास अविश्वासियों के जीवन और मृत्यु के चक्र के लिए बहुत सख्त और कठोर जाँच-व्यवस्था और प्रशासन है? पहली बात, उसने आध्यात्मिक क्षेत्र में विभिन्न स्वर्गिक आज्ञाएँ, आदेश और प्रणालियाँ स्थापित की हुई हैं, और एक बार इनकी घोषणा हो जाने के बाद, आध्यात्मिक क्षेत्र के विभिन्न आधिकारिक पदों के प्राणियों द्वारा उन्हें परमेश्वर द्वारा निर्धारित किए अनुसार बहुत कड़ाई से कार्यान्वित किया जाता है, और कोई उनका उल्लंघन करने का साहस नहीं करता। इसलिए, मनुष्य के संसार में मनुष्य के जीवन और मृत्यु के चक्र में, चाहे कोई पशु के रूप में पुनर्जन्म ले या इंसान के रूप में, दोनों के लिए नियम हैं। चूँकि ये नियम परमेश्वर से आते हैं, इसलिए कोई उन्हें तोड़ने का साहस नहीं करता, न ही कोई उन्हें तोडने में समर्थ है। यह केवल परमेश्वर की इस संप्रभुता और ऐसे नियम होने के कारण ही है कि यह भौतिक संसार, जिसे लोग देखते हैं, नियमित और व्यवस्थित है; यह केवल परमेश्वर की इस संप्रभुता के कारण ही है कि मनुष्य उस दूसरे संसार के साथ शांति से रहने में समर्थ हैं, जो उनके लिए पूर्ण रूप से अदृश्य है, और वे इसके साथ समरसता से रहने में सक्षम हैं—जो पूर्ण रूप से परमेश्वर की संप्रभुता से अभिन्न है। व्यक्ति के दैहिक जीवन की मृत्यु के बाद भी आत्मा में जीवन रहता है, और इसलिए अगर वह परमेश्वर के प्रशासन के अधीन न होती तो क्या होता? आत्मा हर जगह भटकती रहती, हर जगह घुसपैठ करती, यहाँ तक कि मनुष्य के संसार में जीवित प्राणियों को भी हानि पहुँचाती। यह हानि केवल मनुष्यों को ही नहीं, बल्कि पौधों और पशुओं को भी पहुँचाई जा सकती थी—लेकिन पहले हानि लोगों को पहुँचती। अगर ऐसा होता—अगर वह आत्मा प्रशासन-रहित होती, वाकई लोगों को हानि पहुँचाती, और वाकई बुरी चीजें करती—तो उस आत्मा से भी आध्यात्मिक क्षेत्र में ठीक से निपटा जाता : अगर चीजें गंभीर होतीं, तो शीघ्र ही आत्मा का अस्तित्व समाप्त हो जाता और उसे नष्ट कर दिया जाता। अगर संभव होता, तो उसे कहीं रख दिया जाता और फिर उसका पुनर्जन्म होता। कहने का आशय है कि आध्यात्मिक क्षेत्र में विभिन्न आत्माओं का प्रशासन व्यवस्थित होता है, और उसे चरणों और नियमों के अनुसार किया जाता है। यह केवल ऐसे प्रशासन के कारण ही है कि मनुष्य के भौतिक संसार में अराजकता नहीं आई है, कि भौतिक संसार के लोगों में एक सामान्य मानसिकता, सामान्य तर्कशक्ति और एक व्यवस्थित दैहिक जीवन है। मनुष्यों में ऐसा सामान्य जीवन होने के बाद ही देह में रहने वाले जीव पीढ़ियों तक पनपते और प्रजनन करते रह सकते हैं।
अभी-अभी सुने वचनों के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या वे तुम्हारे लिए नए हैं? आज की संगति के विषयों ने तुम लोगों पर कैसी छाप छोड़ी है? उनकी नवीनता के अतिरिक्त क्या तुम कुछ और महसूस करते हो? (लोगों को सदाचारी होना चाहिए, और हम देख सकते हैं कि परमेश्वर महान है और उस पर श्रद्धा रखनी चाहिए।) (विभिन्न प्रकार के लोगों के अंत की व्यवस्था परमेश्वर कैसे करता है, इस बारे में अभी-अभी परमेश्वर की संगति सुनने के बाद, एक ओर मुझे लगता है कि उसका स्वभाव कोई अपराध नहीं होने देता, और यह कि मुझे उसका भय मानना चाहिए; दूसरी ओर, मैं जानता हूँ कि परमेश्वर किस प्रकार के लोगों को पसंद करता है और किस प्रकार के लोगों को पसंद नहीं करता, इसलिए मैं उनमें से एक बनना चाहूँगा जिन्हें वह पसंद करता है।) क्या तुम लोग देखते हो कि परमेश्वर इस क्षेत्र में अपने कार्यों में सिद्धांतवादी है? वे कौन-से सिद्धांत हैं, जिनसे वह कार्य करता है? (लोग जो कार्य करते हैं, उन्हीं के अनुसार वह उनका अंत तय करता है।) यह अविश्वासियों के विभिन्न अंतों के बारे में है, जिनकी हमने अभी बात की। जब अविश्वासियों की बात आती है, तो क्या परमेश्वर की कार्रवाइयों के पीछे अच्छों को पुरस्कृत करने और बुरों को दंड देने का सिद्धांत है? क्या इसमें कोई अपवाद है? (नहीं।) क्या तुम लोग देखते हो कि परमेश्वर की कार्रवाइयों के पीछे एक सिद्धांत है? अविश्वासी वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, न ही वे उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होते हैं। इसके अलावा, वे उसकी संप्रभुता से भी अनभिज्ञ हैं, उसे स्वीकार तो वे बिल्कुल नहीं करते। अधिक गंभीर बात यह है कि वे परमेश्वर की निंदा करते हैं, उसे कोसते हैं, और उन लोगों के प्रति शत्रुता रखते हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं। परमेश्वर के प्रति उनके ऐसे रवैये के बावजूद परमेश्वर उनका प्रशासन करने के अपने सिद्धांतों से विचलित नहीं होता; वह अपने सिद्धांतों और स्वभाव के अनुसार व्यवस्थित रूप से उन्हें प्रशासित करता है। उनकी शत्रुता को वह किस प्रकार लेता है? अज्ञानता के रूप में! नतीजतन, उसने इन लोगों का—अर्थात् अविश्वासियों की व्यापक संख्या का—अतीत में एक बार पशुओं के रूप में पुनर्जन्म करवाया है। तो परमेश्वर की नजरों में अविश्वासी सटीक रूप से क्या हैं? वे सब जंगली जानवर हैं। परमेश्वर जंगली जानवरों और साथ ही मनुष्यों को भी प्रशासित करता है, और इस प्रकार के लोगों के लिए उसके वही सिद्धांत हैं। यहाँ तक कि इन लोगों के उसके प्रशासन में भी उसके स्वभाव को देखा जा सकता है, जैसे कि सभी चीजों पर उसके प्रभुत्व के पीछे उसकी व्यवस्थाओं को देखा जा सकता है। और इसलिए, क्या तुम उन सिद्धांतों में परमेश्वर की संप्रभुता देखते हो, जिनसे वह उन अविश्वासियों को प्रशासित करता है, जिसका मैंने अभी उल्लेख किया है? क्या तुम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को देखते हो? (हम देखते हैं।) दूसरे शब्दों में, चाहे वह सभी चीजों में से किसी भी चीज से निपटे, परमेश्वर अपने सिद्धांतों और स्वभाव के अनुसार कार्य करता है। यह परमेश्वर का सार है; वह स्वयं द्वारा स्थापित आदेशों या स्वर्गिक आज्ञाओं को यूँ ही सिर्फ इसलिए कभी नहीं तोड़ेगा कि वह ऐसे लोगों को जंगली जानवर मानता है। परमेश्वर सिद्धांत से कार्य करता है, लापरवाही से बिल्कुल नहीं, और उसकी कार्रवाइयाँ किसी भी कारक से पूरी तरह अप्रभावित रहती हैं। वह जो कुछ भी करता है, उसमें उसके सिद्धांतों का पालन होता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर में स्वयं परमेश्वर का सार है; यह उसके सार का एक पहलू है, जो किसी सृजित प्राणी में नहीं है। परमेश्वर स्वयं द्वारा सृजित सभी चीजों में से हर चीज, व्यक्ति और सभी जीवित चीजों की सार-सँभाल में, उनके प्रति अपने दृष्टिकोण, प्रबंधन, प्रशासन और शासन में न्यायपरायण और उत्तरदायी है, और इसमें वह कभी भी लापरवाह नहीं रहा। जो अच्छे हैं, वह उनके प्रति कृपापूर्ण और दयावान है; जो बुरी हैं, उन्हें वह निर्दयता से दंड देता है; और विभिन्न जीवित प्राणियों के लिए वह समयबद्ध और नियमित तरीके से, विभिन्न समयों पर मानव-संसार की विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार उचित व्यवस्थाएँ करता है, इस तरह से कि इन विभिन्न जीवित प्राणियों का उनके द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाओं के अनुसार व्यवस्थित रूप से पुनर्जन्म होता रहे, और वे एक व्यवस्थित तरीके से भौतिक संसार और आध्यात्मिक क्षेत्र के बीच आते-जाते रहें।
किसी जीवित प्राणी की मृत्यु—दैहिक जीवन का अंत—यह दर्शाता है कि वह जीवित प्राणी भौतिक संसार से आध्यात्मिक क्षेत्र में चला गया है, जबकि एक नए दैहिक जीवन का जन्म यह दर्शाता है कि जीवित प्राणी आध्यात्मिक क्षेत्र से भौतिक संसार में आ गया है और उसने अपनी भूमिका ग्रहण करनी और निभानी शुरू कर दी है। चाहे प्राणी का प्रस्थान हो या आगमन, दोनों आध्यात्मिक क्षेत्र के कार्य से अविभाज्य हैं। जब तक कोई व्यक्ति भौतिक संसार में आता है, तब तक परमेश्वर द्वारा आध्यात्मिक क्षेत्र में उचित व्यवस्थाएँ और परिभाषाएँ पहले ही तैयार की जा चुकी होती हैं, जैसे कि वह व्यक्ति किस परिवार में आएगा, किस युग में आएगा, किस समय आएगा, और क्या भूमिका निभाएगा। इसलिए इस व्यक्ति का संपूर्ण जीवन—जो काम वह करता है, और जो मार्ग वह अपनाता है—जरा-से भी विचलन के बिना, आध्यात्मिक क्षेत्र में की गई व्यवस्थाओं के अनुसार चलेगा। इसके अतिरिक्त, दैहिक जीवन जिस समय, जिस तरह और जिस स्थान पर समाप्त होता है, वह आध्यात्मिक क्षेत्र के सामने स्पष्ट और प्रत्यक्ष होता है। परमेश्वर भौतिक संसार पर शासन करता है, और वह आध्यात्मिक क्षेत्र पर भी शासन करता है, और वह किसी आत्मा के जीवन और मृत्यु के साधारण चक्र को विलंबित नहीं करेगा, न ही वह उस चक्र की व्यवस्थाओं में कभी कोई त्रुटि कर सकता है। आध्यात्मिक क्षेत्र के आधिकारिक पदों के सभी परिचारक अपने-अपने कार्य करते हैं, और परमेश्वर के निर्देशों और नियमों के अनुसार वह करते हैं, जो उन्हें करना चाहिए। इस प्रकार, मनुष्य के संसार में, मनुष्य द्वारा देखी जाने वाली हर भौतिक घटना व्यवस्थित होती है, और उसमें कोई अराजकता नहीं होती। यह सब-कुछ सभी चीजों पर परमेश्वर के व्यवस्थित शासन की वजह से है, और साथ ही इस तथ्य के कारण है कि उसका अधिकार प्रत्येक वस्तु पर शासन करता है। उसके प्रभुत्व में भौतिक संसार, जिसमें मनुष्य रहता है, के अलावा मनुष्य के पीछे का अदृश्य आध्यात्मिक क्षेत्र भी शामिल है। इसलिए, अगर मनुष्य अच्छा जीवन चाहते हैं, और अच्छे परिवेश में रहने की आशा करते हैं, तो संपूर्ण दृश्य भौतिक संसार प्रदान किए जाने के अलावा उसे वह आध्यात्मिक क्षेत्र भी प्रदान किया जाना चाहिए, जिसे कोई देख नहीं सकता, जो मानवजाति की ओर से प्रत्येक जीवित प्राणी को नियंत्रित करता है और जो व्यवस्थित है। इस प्रकार, यह कहने के बाद कि परमेश्वर सभी चीजों के जीवन का स्रोत है, क्या हमने “सभी चीजों” के बारे में अपनी जागरूकता और समझ नहीं बढ़ाई है? (हाँ।)
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X