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अविश्वासियों का जीवन और मृत्यु चक्र

आओ, हम अविश्वासियों के जीवन और मृत्यु के चक्र से आरम्भ करें। मृत्यु के पश्चात् किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक दुनिया के एक नाज़िर द्वारा ले जाया जाता है। किसी व्यक्ति का ठीक-ठीक कौन—सा भाग ले जाया जाता है? उसकी देह नहीं, बल्कि उसकी आत्मा। जब उसकी आत्मा ले जायी जाती है, तब वह एक ऐसे स्थान पर पहुंचता है जो आध्यात्मिक दुनिया का एक अभिकरण है, एक ऐसा स्थान जो विशेष रूप से अभी-अभी मरे हुए लोगों की आत्मा को ग्रहण करता है। (ध्यान दें: किसी के भी मरने के बाद पहला स्थान जहाँ वे जाते हैं, आत्मा के लिए अजनबी होता है।) जब उन्हें इस स्थान पर ले जाया जाता है, तो एक अधिकारी पहली जाँचें करता है, उनका नाम, पता, आयु और उनके समस्त अनुभव की पुष्टि करता है। जब वे जीवित थे तो उन्होंने जो भी किया वह एक पुस्तक में लिखा जाता है और सटीकता के लिए उसका सत्यापन किया जाता है। इस सब की जाँच हो जाने के पश्चात्, उन मनुष्यों के पूरे जीवन के व्यवहार और कार्यकलापों का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि उन्हें दण्ड दिया जाएगा या वे फिर से मनुष्य के रूप में जन्म लेना जारी रखेंगे, जो कि पहला चरण है। क्या यह पहला चरण भयावह है? यह अत्यधिक भयावह नहीं है, क्योंकि इसमें केवल इतना ही हुआ है कि मनुष्य एक अन्धकारमय और अपरिचित स्थान में पहुँचा है।

दूसरे चरण में, यदि इस मनुष्य ने जीवनभर बहुत से बुरे कार्य किये हैं और अनेक कुकर्म किये हैं, तब उससे निपटने के लिए उसे दण्ड के स्थान पर ले जाया जाएगा। यह वह स्थान होगा जो स्पष्ट रूप से लोगों के दण्ड के लिए उपयोग किया जाता है। उन्हें किस प्रकार के दण्ड दिया जाता है इसका वर्णन उनके द्वारा किये गए पापों पर, और इस बात पर निर्भर करता है कि मृत्यु से पूर्व उन्होंने कितने दुष्टतापूर्ण कार्य किए—यह इस द्वितीय चरण में होने वाली पहली स्थिति है। उनकी मृत्यु से पूर्व उनके द्वारा किये गये बुरे कार्यों और उनकी दुष्टताओं की वजह से, दण्ड के पश्चात् जब वे पुनः जन्म लेते हैं—जब वे एक बार फिर से भौतिक संसार में जन्म लेते हैं—तो कुछ लोग मनुष्य बनते रहेंगे, और कुछ पशु बन जाएँगे। कहने का अर्थ है कि, आध्यात्मिक दुनिया में किसी व्यक्ति के लौटने के पश्चात् उनके द्वारा किए गए दुष्टता के कार्यों की वजह से उन्हें दण्डित किया जाता है; इसके अतिरिक्त, उनके द्वारा किए गए दुष्टता के कार्य की वजह से, अपने अगले जन्म में वे सम्भवत: मनुष्य नहीं, बल्कि पशु बनकर लौटेंगे। जो पशु वे बन सकते हैं उनमें गाय, घोड़े, सूअर, और कुत्ते शामिल हैं। कुछ लोग पक्षी या बत्तख या कलहंस के रूप में पुनर्जन्म ले सकते हैं... पशुओं के रूप में पुनर्जन्म लेने के बाद, जब वे फिर से मरेंगे तो आध्यात्मिक दुनिया में लौट जाएँगे। वहाँ जैसा कि पहले हुआ, मरने से पहले उनके व्यवहार के आधार पर, आध्यात्मिक दुनिया तय करेगी कि वे मनुष्य के रुप में पुनर्जन्म लेंगे या नहीं। अधिकांश लोग बहुत अधिक दुष्टता करते हैं, और उनके पाप अत्यन्त गंभीर होते हैं, इसलिए उन्हें सात से बारह बार तक पशु के रूप में पुनर्जन्म लेना पड़ता है। सात से बारह बार—क्या यह भयावह है? (यह भयावह है।) तुम लोगों को क्या डराता है? किसी मनुष्य का पशु बनना—यह भयावह है। और एक मनुष्य के लिए, एक पशु बनने में सर्वाधिक पीड़ादायक बातें क्या हैं? किसी भाषा का न होना, केवल कुछ साधारण विचार होना, केवल उन्हीं चीज़ों को कर पाना जो पशु करते हैं और पशुओं वाला भोजन ही खा पाना, पशु के समान साधारण मानसिकता और हाव-भाव होना, सीधे खड़े हो कर चलने में समर्थ न होना, मनुष्यों के साथ संवाद न कर पाना, और यह तथ्य की मनुष्यों के किसी भी व्यवहार और गतिविधियों का पशुओं से कोई सम्बन्ध न होना। कहने का आशय है कि, सब चीज़ों के बीच, पशु होना सभी जीवित प्राणियों में तुम्हें निम्नतम कोटि का बना देता है, और यह मनुष्य होने से कहीं अत्यधिक दुःखदायी है। यह उन लोगों के लिए आध्यात्मिक दुनिया के दण्ड का एक पहलू है जिन्होंने बहुत अधिक दुष्टता के कार्य और बड़े पाप किए हैं। जब उनके दण्ड की प्रचण्डता की बात आती है, तो इसका निर्णय इस आधार पर लिया जाता है कि वे किस प्रकार के पशु बनते हैं। उदाहरण के लिए, क्या एक कुत्ता बनने की तुलना में एक सूअर बनना अधिक अच्छा है? कुत्ते की तुलना में सूअर अधिक अच्छा जीवन जीता है या बुरा? बदतर, है न? यदि लोग गाय या घोड़ा बनते हैं, तो वे एक सूअर की तुलना में अधिक बेहतर जीवन जिएंगे या बदतर? (बेहतर।) यदि कोई व्यक्ति बिल्ली के रूप में पुनर्जन्म लेता है तो क्या यह अधिक आरामदायक होगा? वह बिल्कुल वैसा ही पशु होगा, और एक बिल्ली होना एक गाय या घोड़ा होने की तुलना में अधिक आसान है क्योंकि बिल्लियाँ अपना अधिकांश समय नींद की सुस्ती में गुज़ारती हैं। गाय या घोड़ा बनना अधिक मेहनत वाला काम है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति गाय या घोड़े के रुप में पुनर्जन्म लेता है, तो उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ता है जो एक कष्टप्रद दण्ड के समान है। गाय या घोड़ा बनने की तुलना में कुत्ता बनना कुछ अधिक बेहतर होगा, क्योंकि कुत्ते का अपने स्वामी के साथ निकट संबंध होता है। कुछ कुत्ते, कई वर्षों तक पालतू होने के बाद, अपने मालिक की कही हुई कई बातें समझने में समर्थ हो जाते हैं। कभी-कभी, कोई कुत्ता अपने मालिक की मनःस्थिति और अपेक्षाओं के अनुरूप बन सकता है और मालिक कुत्ते के साथ ज्यादा अच्छा व्यवहार करता है, और कुत्ता ज्यादा अच्छा खाता और पीता है, और जब वह पीड़ा में होता है तो इसकी अधिक देखभाल की जाती है। तो क्या कुत्ता एक अधिक सुखी जीवन व्यतीत नहीं करता है? इसलिये एक गाय या घोड़ा होने की तुलना में कुत्ता होना बेहतर है। इसमें, किसी व्यक्ति के दण्ड की प्रचण्डता यह निर्धारित करती है कि वह कितनी बार, और साथ ही किस प्रकार के पशु के रूप में जन्म लेता है।

चूँकि अपने जीवित रहने के समय उन्होनें बहुत से पाप किये थे, इसलिए कुछ लोगों को सात से बारह जन्म पशु के रूप में पुनर्जन्म लेने का दण्ड दिया जाता है। पर्याप्त बार दण्डित होने के पश्चात्, आध्यात्मिक दुनिया में लौटने पर उन्हें अन्यत्र ले जाया जाता है—एक ऐसे स्थान पर जहाँ विभिन्न आत्माएँ पहले ही दण्ड पा चुकी होती हैं, और उस प्रकार की होती हैं जो मनुष्य के रूप में जन्म लेने के लिये तैयार हो रही होती हैं। यह स्थान प्रत्येक आत्मा को उस प्रकार के परिवार जिसमें वे उत्पन्न होंगे, एक बार पुनर्जन्म लेने के बाद उनकी क्या भूमिका होगी, आदि के अनुसार श्रेणीबद्ध करता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग जब इस संसार में आएँगे तो गायक बनेंगे, इसलिए उन्हें गायकों के बीच रखा जाता है; कुछ लोग इस संसार में आएँगे तो व्यापारी बनेंगे और इसलिए उन्हें व्यापारी लोगों के बीच रखा जाता है; और यदि किसी को मनुष्य रूप में आने के बाद विज्ञान अनुसंधानकर्ता बनना है तो उसे अनुसंधानकर्ताओं के बीच रखा जाता है। उन्हें वर्गीकृत कर दिए जाने के पश्चात्, प्रत्येक को एक भिन्न समय और नियत तिथि के अनुसार भेजा जाता है, ठीक वैसे ही जैसे कि आजकल लोग ई-मेल भेजते हैं। इसमें जीवन और मृत्यु का एक चक्र पूरा हो जाएगा। जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक दुनिया में पहुँचता है उस दिन से ले कर जब तक उसका दण्ड समाप्त नहीं हो जाता है तब तक, या जब तक उसका एक पशु के रुप में अनेक बार पुनर्जन्म नहीं हो जाता है तथा वह मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेने की तैयारी कर रहा होता है तब यह प्रक्रिया पूर्ण होती है।

अविश्वासियों का जीवन और मृत्यु का चक्र

जहाँ तक उनकी बात है जिन्होंने दण्ड भोग लिया है और जो अब पशु के रूप में जन्म नहीं लेंगे, क्या उन्हें मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेने के लिए भौतिक संसार में तुरंत भेजा जाएगा? या उन्हें मनुष्यों के बीच आने से पहले कितना समय लगेगा? वह आवृत्ति क्या है जिसके साथ यह हो सकता है? इसके कुछ लौकिक प्रतिबंध हैं। आध्यात्मिक दुनिया में होने वाली हर चीज़ कुछ उचित लौकिक प्रतिबंधों और नियमों के अधीन है—जिसे, यदि मैं संख्याओं के साथ समझाऊँ, तो तुम लोग समझ जाओगे। उनके लिये जो अल्पावधि में पुनर्जन्म लेते हैं, जब वे मरते हैं तो मनुष्य के रूप में उनके पुनर्जन्म की तैयारियाँ पहले ही की जा चुकी होंगी। यह हो सकने का अल्पतम समय तीन दिन है। कुछ लोगों के लिए, इसमें तीन माह लगते हैं, कुछ के लिए इसमें तीन वर्ष लगते हैं, कुछ के लिए इसमें तीस वर्ष लगते हैं, कुछ के लिए इसमें तीन सौ वर्ष लगते हैं, इत्यादि। तो इन लौकिक नियमों के बारे में क्या कहा जा सकता है, और उनकी विशिष्टताएँ क्या हैं? यह भौतिक संसार—मनुष्यों के संसार—किसी आत्मा से क्या चाहता है, इस पर और उस भूमिका पर आधारित होता है जिसे इस आत्मा को इस संसार में निभाना है। जब लोग साधारण व्यक्ति के रूप में पुनर्जन्म लेते हैं, तो उनमें से अधिकांश अतिशीघ्र पुनर्जन्म लेते हैं, क्योंकि मनुष्य के संसार को ऐसे साधारण लोगों की महती आवश्यकता होती है और इसलिए तीन दिन के पश्चात् वे एक ऐसे परिवार में भेज दिए जाते हैं जो उनके मरने से पहले के परिवार से सर्वथा भिन्न होता है। परन्तु कुछ ऐसे होते हैं जो इस संसार में विशेष भूमिका निभाते हैं। "विशेष" का अर्थ है कि मनुष्यों के संसार में उनकी कोई बड़ी माँग नहीं होती है; न ही ऐसी भूमिका के लिये अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, इसलिए इसमें तीन सौ वर्ष लग सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यह आत्मा हर तीन सौ वर्ष में एक बार अथवा यहाँ तक कि तीन हजार वर्ष में भी एक केवल बार आएगी। ऐसा क्यों है? ऐसा इस तथ्य के कारण है कि तीन सौ वर्ष या तीन हज़ार वर्ष तक संसार में ऐसी भूमिका की आवश्यकता नहीं है, इसलिए उन्हें आध्यात्मिक दुनिया में कहीं पर रखा जाता है। उदाहरण के लिए, कनफ्यूशियस को लें, पारंपरिक चीनी संस्कृति पर उसका गहरा प्रभाव था और उसके आगमन ने उस समय की संस्कृति, ज्ञान, परम्परा और उस समय के लोगों की विचारधारा पर गहरा प्रभाव डाला था। परन्तु इस तरह के मनुष्य की हर एक युग में आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए उसे पुनर्जन्म लेने से पहले, तीन सौ या तीन हजार वर्ष तक प्रतीक्षा करते हुए, आध्यात्मिक दुनिया में ही रहना पड़ा था। क्योंकि मनुष्यों के संसार को ऐसे किसी व्यक्ति की आवश्यकता नहीं थी, इसलिए उसे निष्क्रिय रुप से प्रतीक्षा करनी पड़ी, क्योंकि इस तरह की बहुत कम भूमिकाएँ थी, उसके करने के लिए बहुत कम था, इसलिए उसे, निष्क्रिय, और मनुष्य के संसार में उसकी आवश्यकता पड़ने पर भेजे जाने के लिए, अधिकांश समय आध्यात्मिक दुनिया में कहीं पर रखना पड़ा था। जिस बारम्बारता के साथ अधिकतर लोग पुनर्जन्म लेते हैं उसके लिए इस प्रकार के आध्यात्मिक दुनिया के लौकिक नियम हैं। लोग चाहे कोई साधारण या विशेष हों, आध्यात्मिक दुनिया में लोगों के पुनर्जन्म लेने की प्रक्रिया के लिये उचित नियम और सही अभ्यास हैं, और ये नियम और अभ्यास परमेश्वर द्वारा भेजे जाते हैं, उनका निर्णय या नियन्त्रण आध्यात्मिक दुनिया के किसी ना‍ज़िर या प्राणी के द्वारा नहीं किया जाता है। अब तुम समझ गए, है ना?

किसी आत्मा के लिए उसका पुनर्जन्म, इस जीवन में उसकी भूमिका क्या है, किस परिवार में वह जन्म लेती है और उसका जीवन किस प्रकार का होता है, इन सबका उस आत्मा के पिछले जीवन से गहरा संबंध होता है। मनुष्य के संसार में हर प्रकार के लोग आते हैं, और उनके द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाएँ भिन्न—भिन्न होती हैं, उसी तरह से उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं। ये कौन से कार्य हैं? कुछ लोग अपना कर्ज़ चुकाने आते हैं: यदि उन्होंने पिछली ज़िंदगी में किसी से बहुत सा पैसा उधार लिया था, तो वे इस ज़िंदगी में उस कर्ज़ को चुकाने के लिए आते हैं। कुछ लोग, इस बीच, अपना ऋण उगाहने के लिए आए हैं: विगत जीवन में उनके साथ बहुत सी चीज़ों में, और अत्यधिक पैसों का घोटाला किया गया था, और इसलिए उनके आध्यात्मिक दुनिया में आने के बाद, आध्यात्मिक दुनिया उन्हें न्याय देगी और उन्हें इस जीवन में अपना कर्ज़ा उगाहने देगी। कुछ लोग एहसान का कर्ज़ चुकाने के लिए आते हैं: उनके पिछले जीवन के दौरान—यानि उनके पिछले पुनर्जन्म में—कोई उनके प्रति दयावान था, और इस जीवन में उन्हें पुनर्जन्म लेने के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान किया गया है और इसलिए वे उस कृतज्ञता का बदला चुकाने के लिए पुनर्जन्म लेते हैं। इस बीच, दूसरे किसी का जीवन लेने के लिए इस जीवन में पैदा हुए हैं। और वे किसका जीवन लेते हैं? उन व्यक्तियों का जिन्होंने पिछले जन्मों में उनके प्राण लिये थे। सारांश में, प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान जीवन अपने विगत जीवनों के साथ प्रगाढ़ रुप से संबंध रखता है, यह संबंध तोड़ा नहीं जा सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान जीवन उसके पिछले जीवन से बहुत अधिक प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, हम कहते हैं कि झांग ने अपनी मृत्यु से पहले ली को एक बड़ी मात्रा में पैसों का धोखा दिया था। तो क्या झांग ली का ऋणी बन गया? वह ऋणी है, तो क्या यह स्वाभाविक है कि ली को झांग से अपना ऋण वसूल करना चाहिए? नतीजतन, उनकी मृत्यु के उपरान्त, उनके बीच एक ऋण है जिसका निपटान अवश्य ही किया जाना चाहिए। जब वे पुनर्जन्म लेते हैं और झांग मनुष्य बनता है, तो किस प्रकार से ली उससे अपना ऋण वसूल करता है? एक तरीका है झांग के पुत्र के रुप में पुनर्जन्म लेकर; झांग खूब धन अर्जित करता है जिसे ली द्वारा उड़ा दिया जाता है। चाहे झांग कितना ही धन क्यों न कमाये, उसका पुत्र ली, उसे लुटा देता है। चाहे झांग कितना ही धन क्यों न अर्जित करे, वह कभी पर्याप्त नहीं होता है; और इस बीच उसका पुत्र किसी न किसी कारण से पिता के धन को विभिन्न तरीकों से उड़ा देता है। झांग हैरान रह जाता है, वह सोचता है, "मेरा यह पुत्र हमेशा अपशकुन ही क्यों लाता है? ऐसा क्यों है कि दूसरों के पुत्र इतने शिष्ट हैं? क्यों मेरा ही पुत्र महत्वकांक्षी नहीं है, वह इतना निकम्मा और धन अर्जित करने के अयोग्य क्यों है, और क्यों मुझे सदा उसकी सहायता करनी पड़ती है? चूँकि मुझे उसे सहारा देना है तो मैं सहारा दूँगा—किन्तु ऐसा क्यों है कि चाहे मैं कितना ही धन उसे क्यों न दूँ, वह सदा और अधिक चाहता है? क्यों वह दिनभर में कोई ईमानदारी का काम करने के योग्य नहीं है, और उसके बजाय बाकी सब चीजों जैसे कि आवारागर्दी, खान-पीना, वेश्यावृत्ति और जुएबाजी करने में ही लगा रहता है? आखिर ये हो क्या रहा है?" फिर झांग कुछ समय तक विचार करता है: "ऐसा हो सकता है कि विगत जीवन में मैं उसका ऋणी रहा हूँ? तो ठीक है, मैं वह कर्ज उतार दूँगा! जब तक मैं पूरा चुकता नहीं कर दूँगा, यह मामला समाप्त नहीं होगा!" वह दिन आ सकता है जब ली अपना ऋण वसूल कर लेता है, और जब वह चालीस या पचास के दशक में चल रहा होता है, तो हो सकता है कि एक दिन अचानक उसे चेतना आए और वह महसूस करे कि, "अपने जीवन के पूरे पूर्वार्द्ध में मैंने एक भी भला काम नहीं किया है! मैंने अपने पिता के कमाये हुए सारे धन को उड़ा दिया, इसलिए मुझे एक अच्छा इन्सान बनने की शुरुआत करनी चाहिए! मैं स्वयं को मज़बूत बनाऊँगा; मैं एक ऐसा व्यक्ति बनूँगा जो ईमानदार हो, और उचित रूप से जीवन जीता हो, और मैं अपने पिता को फिर कभी दुःख नहीं पहुँचाऊँगा!" वह ऐसा क्यों सोचता है? वह अचानक अच्छे में कैसे बदल गया? क्या इसका कोई कारण है? क्या कारण है? (ऐसा इसलिए है क्योंकि ली ने अपना ऋण वसूल कर लिया है, झांग ने अपना कर्ज़ चुका दिया है।) इसमें, कार्य-कारण है। कहानी बहुत-बहूत पहले आरम्भ हुई थी, उनके मौजूदा जीवन से पहले, उनके विगत जीवन की यह कहानी उनके वर्तमान जीवन तक लायी गई है, और दोनों में से कोई भी अन्य को दोष नहीं दे सकता है। चाहे झांग ने अपने पुत्र को कुछ भी क्यों न सिखाया हो, उसके पुत्र ने कभी नहीं सुना, और न ही एक दिन भी ईमानदारी से कार्य किया। परन्तु जिस दिन कर्ज चुका दिया गया, उसके पुत्र को सिखाने की कोई आवश्यकता नहीं रही—वह स्वाभाविक रुप से समझ गया। यह एक साधारण सा उदाहरण है। क्या ऐसे अनेक उदाहरण हैं? (हाँ, हैं।) यह लोगों को क्या बताता है? (कि उन्हें अच्छा बनना चाहिए और दुष्टता नहीं करनी चाहिए।) उन्हें कोई दुष्टता नहीं करनी चाहिए, और उनके कुकर्मों का प्रतिफल मिलेगा! अधिकांश अविश्वासी बहुत दुष्टता करते हैं, और उन्हें उनके कुकर्मों का प्रतिफल मिलता है, ठीक है ना? परन्तु क्या यह प्रतिफल मनमाना है? हर कार्य कि पृष्ठभूमि होती है और उसके प्रतिफल का एक कारण होता है। क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारे किसी के साथ पैसे की धोखाधड़ी करने के बाद तुम्हें कुछ नहीं होगा? क्या तुम्हें लगता है कि उस पैसे की ठगी करने के पश्चात्, तुम्हें कोई परिणाम नहीं भुगतना पड़ेगा? यह तो असंभव होगा; और निश्चित रूप से इसके परिणाम होंगे! इस बात की परवाह किए बिना कि वे कौन हैं, या वे यह विश्वास करते हैं अथवा नहीं कि परमेश्वर है, सभी व्यक्तियों को अपने व्यवहार का उत्तरदायित्व लेना होगा और अपनी करतूतों के परिणामों को भुगतना होगा। इस साधारण से उदाहरण के संबंध में—झांग को दण्डित किया जाना और ली का ऋण चुकाया जाना—क्या यह उचित नहीं है? जब लोग इस प्रकार के कार्य करते हैं तो इसी प्रकार का परिणाम होता है। यह आध्यात्मिक दुनिया के प्रशासन से अवियोज्य है। अविश्वासी होने के बावजूद, जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, उनका अस्तित्व ऐसी स्वर्गिक आज्ञाओं और आदेशों के अधीन होता है, इससे कोई बच कर नहीं भाग सकता है और इस सच्चाई से कोई नहीं बच सकता है।

वे लोग जिन्हें परमेश्वर में विश्वास नहीं है, वे प्रायः मानते हैं कि मनुष्य को दृश्यमान प्रत्येक चीज़ अस्तित्व में है, जबकि प्रत्येक चीज जिसे देखा नहीं जा सकता, या जो लोगों से बहुत दूर है, वह अस्तित्व में नहीं है। वे यह मानना पंसद करते हैं कि "जीवन और मृत्यु का चक्र" नहीं होता है, और कोई "दण्ड" नहीं होता है; इसलिए, वे बिना किसी मलाल के पाप और दुष्टता करते हैं। बाद में वे दण्डित किये जाते हैं, या पशु के रूप में पुनर्जन्म लेते हैं। अविश्वासियों में से अधिकतर प्रकार के लोग इस दुष्चक्र में फँस जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि आध्यात्मिक दुनिया समस्त जीवित प्राणियों के अपने प्रशासन में सख्त है। चाहे तुम विश्वास करो अथवा नहीं, वह तथ्य अस्तित्व में रहता है, क्योंकि एक भी व्यक्ति या वस्तु उस दायरे से बच नहीं सकती है जो परमेश्वर अपनी आँखों से देखता है, और एक भी व्यक्ति या वस्तु उसकी स्वर्गिक आज्ञाओं और आदेशों के नियमों और उनकी सीमाओं से बच नहीं सकती है। इस प्रकार, यह साधारण सा उदाहरण हर एक को बताता है कि इस बात की परवाह किए बिना कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो अथवा नहीं, पाप करना और दुष्टता करना अस्वीकार्य है और हर कार्य के परिणाम होते हैं। जब कोई, जिसने किसी को धन का धोखा दिया है, इस प्रकार से दण्डित किया जाता है, तो ऐसा दण्ड उचित है। इस तरह के आम तौर पर देखे जाने वाले व्यवहार को आध्यात्मिक दुनिया में दण्डित किया जाता है और ऐसा दण्ड परमेश्वर के आदेशों और स्वर्गिक आज्ञाओं द्वारा दिया जाता है। इसलिए गंभीर आपराधिक और दुष्टतापूर्ण व्यवहार—बलात्कार और लूटपाट, धोखाधड़ी और कपट, चोरी और डकैती, हत्या और आगजनी, इत्यादि—और भी अधिक भिन्न-भिन्न उग्रता वाले दण्ड की श्रृंखला के अधीन किए जाते हैं। और इन भिन्न-भिन्न उग्रता वाले दंडों की श्रृंखला में क्या शामिल हैं? उनमें से कुछ उग्रता के स्तर का निर्धारण करने के लिये समय का प्रयोग करते हैं, जबकि कुछ विभिन्न तरीकों का उपयोग करके ऐसा करते हैं; और अन्य इस निर्धारण के माध्यम से करते हैं कि लोग पुनर्जन्म के बाद कहाँ जाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग गालियाँ बकने वाले होते हैं। "गालियाँ बकने वाले" किसे संदर्भित करता है? इसका अर्थ होता है प्रायः दूसरों को गाली देना और द्वेषपूर्ण भाषा का, ऐसी भाषा का उपयोग करना जो दूसरों को कोसती है। द्वेषपूर्ण भाषा क्या प्रकट करती है? यह प्रकट करती है कि उस व्यक्ति का हृदय कलुषित है। द्वेषपूर्ण भाषा जो लोगों को कोसती है, प्रायः ऐसे ही लोगों के मुख से निकलती है, और ऐसी द्वेषपूर्ण भाषा कठोर परिणाम लाती है। इन लोगों के मरने और उचित दण्ड भोग लेने के पश्चात्, उनका गूंगे के रूप में पुनर्जन्म हो सकता है। कुछ लोग, जब वे जीवित रहते हैं, तो बडे चौकस रहते हैं, वे प्रायः दूसरों का लाभ उठाते हैं, उनकी छोटी-छोटी योजनाएँ विशेषरूप से सुनियोजित होती हैं, और वे लोगों को बहुत नुकसान पहुँचती हैं। जब उनका पुनर्जन्म होता है, तो वे मूर्ख या मानसिक रूप से विकलांग हो सकते हैं। कुछ लोग दूसरों के निजी जीवन में अक्सर ताक-झाँक करते हैं; उनकी आँखें बहुत सा वह भी देखती हैं जिसकी जानकारी उन्‍हें नहीं होना चाहिए, और वे ऐसा बहुत कुछ जान लेते हैं जो उन्हें नहीं जानना चाहिए। नतीजतन, जब उनका पुनर्जन्म होता है, तो वे अन्धे हो सकते हैं। कुछ लोग जब जीवित होते हैं तो बहुत फुर्तीले होते हैं, वे प्रायः झगड़ते हैं और बहुत दुष्टता करते हैं। इसलिए वे विकलांग, लंगड़े, एक बाँह विहीन के रूप में पुनर्जन्म ले सकते हैं; या वे कुबड़े, या टेढ़ी गर्दन वाले, लचक कर चलने वाले के रूप में पुनर्जन्म ले सकते हैं या उनका एक पैर दूसरे की अपेक्षा छोटा हो सकता है, इत्यादि। इसमें, उन्हें अपने जीवित रहने के दौरान की गई दुष्टता के स्तर के आधार पर विभिन्न दण्डों के अधीन किया गया है। तुम लोगों को क्या लगता है कि कुछ लोग भेंगे क्यों होते हैं? क्या ऐसे काफी लोग हैं? आजकल ऐसे बहुत से लोग हैं। कुछ लोग इसलिए भेंगे होते हैं क्योंकि अपने विगत जीवन में उन्होंने अपनी आँखों का बहुत अधिक उपयोग किया था और बहुत से बुरे कार्य किए थे, और इसलिए इस जीवन में उनका जन्म भेंगे के रूप में होता है और गंभीर मामलों में वे अन्धे भी जन्मे हैं। यह प्रतिफल है! कुछ लोग अपनी मृत्यु से पूर्व दूसरों के साथ बहुत अच्छी तरह से निभाते हैं; वे अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, साथियों, या उनसे जुड़ें लोगों के लिए कई अच्छे कार्य करते हैं। वे दूसरों को दान देते हैं और उनकी सहायता करते हैं, या आर्थिक रुप से उनकी सहायता करते हैं, लोग उनके बारे में बहुत अच्छी राय रखते हैं। जब ऐसे लोग आध्यात्मिक दुनिया में वापस आते है तब उन्हें दंडित नहीं किया जाता है। किसी अविश्वासी को किसी भी प्रकार से दण्डित नहीं किए जाने का अर्थ है कि वह बहुत अच्छा इन्सान था। परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करने के बजाय, वे केवल आकाश में वृद्ध व्यक्ति पर विश्वास करते हैं। ऐसा व्यक्ति केवल इतना ही विश्वास करता है कि उससे ऊपर कोई आत्मा है जो हर उस चीज़ को देखती है जो वह करता है—बस यही है जिसमें यह व्यक्ति विश्वास रखता है। इसका परिणाम होता है कि यह व्यक्ति कहीं बेहतर व्यवहार वाला होता। ये लोग दयालु और परोपकारी होते हैं और जब अन्ततः वे आध्यात्मिक दुनिया में लौटते हैं, तो वह उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करेगी और शीघ्र ही उनका पुनर्जन्म होगा। जब वे पुनः पैदा होंगे, तो वे किस प्रकार के परिवारों में आएँगे? यद्यपि वे परिवार धनी नहीं होंगे, किन्तु वे किसी नुकसान से मुक्त होंगी, इसके सदस्यों के बीच समरसता होगी; पुनर्जन्म पाए ये लोग अपने दिन सुरक्षा, खुशहाली में गुज़रेंगे और हर कोई आनंदमय होगा, और अच्छा जीवन जिएगा। जब ये लोग प्रौढ़ावस्था में पहुँचेंगे, तो उनके बड़े, भरे-पूरे परिवार होंगे, उनकी संतानें बुद्धिमान होंगी और सफलता का आनंद लेंगी, और उनके परिवार सौभाग्य का आनन्द लेंगे—और इस तरह का परिणाम बहुत हद तक इन लोगों के विगत जीवन से जुड़ा होता है। कहने का आशय है कि, कोई व्यक्ति मरने के बाद कहाँ जाता है और कहाँ उसका पुनर्जन्म होता है, वह पुरुष होगा अथवा स्त्री, उसका ध्येय क्या है, जीवन में वह किन परिस्थितियों से गुज़रेगा, उसे कौनसी असफलताएँ मिलेंगी, वह किन आशीषों का सुख भोगेगा, वह किनसे मिलेगा और उसके साथ क्या होगा—कोई भी इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता है, इससे बच नहीं सकता है, या इससे छुप नहीं सकता है। कहने का अर्थ है कि, तुम्हारा जीवन निश्चित कर दिए जाने के पश्चात्, तुम्हारे साथ जो भी होता है उसमें—तुम इससे बचने का कैसा भी, किसी भी साधन से प्रयास करो—आध्यात्मिक दुनिया में परमेश्वर ने तुम्हारे लिये जो जीवन पथ निर्धारित कर दिया है उसके उल्लंघन का तुम्हारे पास कोई उपाय नहीं है। क्योंकि जब तुम पुनर्जन्म लेते हो, तो तुम्हारे जीवन का भाग्य पहले ही निश्चित किया जा चुका होता है। चाहे वह अच्छा हो अथवा बुरा, प्रत्येक को इसका सामना करना चाहिए, और आगे बढते रहना चाहिए। यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे इस संसार में रहने वाला कोई भी बच नहीं सकता है, और कोई भी मुद्दा इससे अधिक वास्तविक नहीं है। मैं जो भी कहता रहा हूँ, तुम सब वह सब समझ गए हो, ठीक है न?

इन बातों को समझ लेने के बाद, क्या अब तुम लोगों ने देखा कि परमेश्वर के पास अविश्वासियों के जीवन और मृत्यु के चक्र के लिए बिल्कुल सटीक और कठोर जाँच और व्यवस्था है? सबसे पहले, उसने आध्यात्मिक राज्य में विभिन्न स्वर्गिक आज्ञाएँ, आदेश और प्रणालियाँ स्थापित की हैं, और एक बार इनकी घोषणा हो जाने के बाद, आध्यात्मिक दुनिया के विभिन्न आधिकारिक पदों के प्राणियों के द्वारा, परमेश्वर के द्वारा निर्धारित किए गए अनुसार, उन्हें बहुत कड़ाई से कार्यान्वित किया जाता है, और कोई भी उनका उल्लंघन करने का साहस नहीं करता है। और इसलिए, मनुष्य के संसार में मानवजाति के जीवन और मृत्यु के चक्र में, चाहे कोई पशु के रूप में पुनर्जन्म ले या इंसान के रूप में, दोनों के लिए नियम हैं। क्योंकि ये नियम परमेश्वर की ओर से आते हैं, इसलिए उन्हें तोड़ने का कोई साहस नहीं करता है, न ही कोई उन्हें तोडने में समर्थ है। यह केवल परमेश्वर की इस संप्रभुता की वजह से है, और चूंकि ऐसे नियम अस्तित्व में हैं, इसलिए यह भौतिक संसार, जिसे लोग देखते हैं नियमित और व्यवस्थित है; यह केवल परमेश्वर की इस संप्रभुता के कारण ही है कि मनुष्य उस दूसरे संसार के साथ शान्ति से रहने में समर्थ है जो मानवजाति के लिए पूर्णरूप से अदृश्य है और इसके साथ समरसता से रहने में सक्षम है—जो पूर्ण रूप से परमेश्वर की संप्रभुता से अभिन्‍न है। व्यक्ति के दैहिक जीवन की मृत्यु के पश्चात्, आत्मा में अभी भी जीवन रहता है, और इसलिए यदि वह परमेश्वर के प्रशासन के अधीन नहीं होती तो क्या होता? आत्मा हर स्थान पर भटकती रहती, हर स्थान में हस्तक्षेप करती, और यहाँ तक कि मनुष्य के संसार में जीवित प्राणियों को भी हानि पहुँचाती। ऐसी हानि केवल मानवजाति को ही नहीं पहुँचाई जाती, बल्कि वनस्पति और पशुओं की ओर भी पहुँचाई जा सकती थी—लेकिन सबसे पहले हानि लोगों को पहुँचती। यदि ऐसा होता—यदि ऐसी आत्मा प्रशासनरहित होती, वाकई लोगों को हानि पहुँचाती, और वाकई दुष्टता के कार्य करती—तो ऐसी आत्मा का भी आध्यात्मिक दुनिया में ठीक से निपटान किया जाता: यदि चीज़ें गंभीर होती तो शीघ्र ही आत्मा का अस्तित्व समाप्त हो जाता और उसे नष्ट कर दिया जाता। यदि संभव हुआ तो, उसे कहीं रख दिया जाएगा और फिर उसका पुनर्जन्म होगा। कहने का आशय है कि, आध्यात्मिक दुनिया में विभिन्न आत्माओं का प्रशासन व्यवस्थित होता है, और उसे चरणबद्ध तरीके से तथा नियमों के अनुसार किया जाता है। यह केवल ऐसे प्रशासन के कारण ही है कि मनुष्य का भौतिक संसार अराजकता में नहीं पड़ा है, कि भौतिक संसार के मनुष्य एक सामान्य मानसिकता, साधारण तर्कशक्ति और एक व्यवस्थित दैहिक जीवन धारण करते हैं। मानवजाति के केवल ऐसे सामान्य जीवन के बाद ही वे जो देह में रहते हैं, वे पनपते रहना और पीढ़ी-दर-पीढ़ी संतान उत्पन्न करना जारी रखने में समर्थ हो सकते हैं।

... जब अविश्वासियों की बात आती है, तो क्या परमेश्वर की कार्रवाइयों के पीछे अच्छों को पुरस्कृत करने और दुष्टों को दण्ड देने का सिद्धांत है? क्या कोई अपवाद हैं? (नहीं।) क्या तुम लोग देखते हो कि परमेश्वर की कार्यवाइयों के पीछे एक सिद्धांत है? अविश्वासी वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, न ही वे परमेश्वर के आयोजनों का पालन करते हैं। इसके अलावा वे उसकी संप्रभुता से अनभिज्ञ हैं, उसे स्वीकार तो बिल्कुल नहीं करते हैं। अधिक गंभीर बात यह है कि वे परमेश्वर की निन्दा करते हैं और उसे कोसते हैं, और उन लोगों के प्रति शत्रुतापूर्ण होते हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं। परमेश्वर के प्रति उनके ऐसे रवैये के बावजूद, उनके प्रति परमेश्वर का प्रशासन अपने सिद्धांतो से विचलित नहीं होता है; वह अपने सिद्धांतों और अपने स्वभाव के अनुसार व्यवस्थित रूप से उन्हें प्रशासित करता है। उनकी शत्रुता को वह किस प्रकार लेता है? अज्ञानता के रूप में! नतीजतन, उसने इन लोगों का—अविश्वासियों में से अधिकतर का—अतीत में एक बार पशु के रूप में पुनर्जन्म करवाया है। तो परमेश्वर की नज़रों में अविश्वासी सही मायने में हैं क्या? वे सब जंगली जानवर हैं। परमेश्वर जंगली जानवरों और साथ ही मानवजाति को प्रशासित करता है, और इस प्रकार के लोगों के लिए उसके सिद्धांत एक समान हैं। यहाँ तक कि इन लोगों के उसके प्रशासन में उसके स्वभाव को अभी भी देखा जा सकता है, जैसा कि सभी चीज़ों पर उसके प्रभुत्व के पीछे उसकी व्यवस्थाओं को देखा जा सकता है। और इसलिए, क्या तुम उन सिद्धांतों में परमेश्वर की संप्रभुता को देखते हो जिनके द्वारा वह उन अविश्वासियों को प्रशासित करता है जिसका मैंने अभी-अभी उल्लेख किया है? क्या तुम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को देखते हो? (हम देखते हैं।) दूसरे शब्दों में, चाहे वह किसी भी चीज़ से क्यों न निपटे, परमेश्वर अपने सिद्धांतों और स्वभाव के अनुसार कार्य करता है। यही परमेश्वर का सार है; वह उन आदेशों या स्वर्गिक आज्ञाओं को यूँ ही कभी नहीं तोड़ेगा जो उसने स्थापित किए हैं सिर्फ इसलिए कि वह ऐसे लोगों को जंगली जानवर मानता है। परमेश्वर ज़रा भी लापरवाही के बिना, सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है और उसकी कार्रवाइयाँ किसी भी कारक से अप्रभावित रहती हैं। वह जो भी करता है, वह सब उसके स्वयं के सिद्धांतों के अनुपालन में होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर के पास स्वयं परमेश्वर का सार है; यह उसके सार का एक पहलू है, जो किसी सृजित किए गए प्राणी के पास नहीं होता है। परमेश्वर हर वस्तु, हर व्यक्ति, और सभी जीवित चीज़ों के बीच जो उसने सृजित की हैं, अपनी सँभाल में, उनके प्रति अपने दृष्टिकोण में, प्रबंधन में, प्रशासन में, और उन पर शासन में न्यायपरायण और उत्तरदायी है, और इसमें वह कभी भी लापरवाह नहीं रहा है। जो अच्छे हैं, वह उनके प्रति कृपापूर्ण और दयावान है; जो दुष्ट हैं, उन्हें वह निर्दयता से दंड देता है; और विभिन्न जीवित प्राणियों के लिए, वह समयबद्ध और नियमित तरीके से, विभिन्न समयों पर मनुष्य संसार की विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार उचित व्यवस्थाएँ करता है, इस तरह से कि ये विभिन्न जीवित प्राणी उन भूमिकाओं के अनुसार जो वे निभाते हैं व्यवस्थित रूप से जन्म लेते रहें, और एक विधिवत तरीके से भौतिक जगत और आध्यात्मिक दुनिया के बीच चलते रहें।

एक जीवित प्राणी की मृत्यु—दैहिक जीवन का अंत—यह दर्शाता है कि एक जीवित प्राणी भौतिक संसार से आध्यात्मिक दुनिया में चला गया है, जबकि एक नए दैहिक जीवन का जन्म यह दर्शाता है कि एक जीवित प्राणी आध्यात्मिक दुनिया से भौतिक संसार में आया है और उसने अपनी भूमिका ग्रहण करना और उसे निभाना आरम्भ कर दिया है। चाहे एक जीवित प्राणी का प्रस्थान हो या आगमन, दोनों आध्यात्मिक दुनिया के कार्य से अवियोज्य हैं। जब तक कोई व्यक्ति भौतिक संसार में आता है, तब तक परमेश्वर द्वारा आध्यात्मिक दुनिया में उस परिवार, जिसमें वह जाता है, उस युग में जिसमें उसे आना है, उस समय जब उसे आना है, और उस भूमिका की, जो उसे निभानी है, की उचित व्यवस्थाएँ और विशेषताएँ पहले ही तैयार की जा चुकी होती हैं। इसलिए इस व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन—जो काम वह करता है, और जो मार्ग वह चुनता है—जरा से भी विचलन के बिना, आध्यात्मिक दुनिया में की गई व्यवस्थाओं के अनुसार चलेगा। इसके अतिरिक्त, जिस समय दैहिक जीवन समाप्त होता है और जिस तरह और जिस स्थान पर यह समाप्त होता है, आध्यात्मिक दुनिया के सामने वह स्पष्ट और प्रत्यक्ष होता है। परमेश्वर भौतिक संसार पर शासन करता है, और वह आध्यात्मिक दुनिया पर भी शासन करता है, और वह किसी आत्मा के जीवन और मृत्यु के साधारण चक्र को विलंबित नहीं करेगा, न ही वह किसी आत्मा के जीवन और मृत्यु के चक्र के प्रबंधन में कभी भी कोई त्रुटि कर सकता है। आध्यात्मिक दुनिया के आधिकारिक पदों के सभी नाज़िर अपने व्यक्तिगत कार्यों को कार्यान्वित करते हैं, और परमेश्वर के निर्देशों और नियमों के अनुसार वह करते हैं जो उन्हें करना चाहिए। इस प्रकार, मानवजाति के संसार में, मनुष्य द्वारा देखी गई कोई भी भौतिक घटना व्यवस्थित होती है, और उसमें कोई अराजकता नहीं होती है। यह सब कुछ सभी चीज़ों पर परमेश्वर के व्यवस्थित शासन की वजह से है, और साथ ही इस तथ्य के कारण है कि उसका अधिकार प्रत्येक वस्तु पर शासन करता है। उसके प्रभुत्व में वह भौतिक संसार जिसमें मनुष्य रहता है, और, इसके अलावा, मनुष्य के पीछे की वह अदृश्य आध्यात्मिक दुनिया शामिल है। इसलिए, यदि मनुष्य अच्छा जीवन चाहते हैं, और अच्छे परिवेश में रहने की आशा रखते हैं, तो सम्पूर्ण दृश्य भौतिक जगत प्रदान किए जाने के अलावा, मनुष्य को वह आध्यात्मिक दुनिया भी अवश्य प्रदान की जानी चाहिए, जिसे कोई देख नहीं सकता है, जो मानवजाति की ओर से प्रत्येक जीवित प्राणी को संचालित करती है और जो व्यवस्थित है। इस प्रकार, यह कहने के बाद कि परमेश्वर सभी चीज़ों के जीवन का स्रोत है, क्या हमने "सभी चीज़ों" के अर्थ की अपनी जानकारी और समझ को नहीं बढ़ाया है? (हाँ।)

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