मानवजाति उस पवित्रता को पुनः प्राप्त करती है जिससे वह कभी संपन्न थी
1 बिजली की एक कौंध में, प्रत्येक जानवर अपने असली स्वरूप में प्रकट हो जाता है। इसी प्रकार, मेरे प्रकाश से रोशन होकर मनुष्यों ने भी उस पवित्रता को पुनः प्राप्त कर लिया है, जो कभी उसके पास थी। ओह, अतीत का वह भ्रष्ट संसार! अंततः यह गंदे पानी में पलट गया है और सतह के नीचे डूबकर कीचड़ में घुल गया है! ओह, पूरी मानवजाति, मेरी अपनी सृष्टि! अंततः वे इस प्रकाश में फिर से जीवित हो गए हैं, उन्हें अस्तित्व का आधार मिल गया है और कीचड़ में संघर्ष करना बंद कर चुके हैं! ओह, सृष्टि की असंख्य वस्तुएं, जिन्हें मैं अपने हाथों में थामे हूँ! मेरे वचनों के माध्यम से वे पुनः नई कैसे नहीं हो सकतीं? वे इस प्रकाश में, अपने कामों को कैसे पूरी तरह विकसित नहीं कर सकते? पृथ्वी अब मौत सी स्थिर और मूक नहीं है, स्वर्ग अब उजाड़ और दुःखी नहीं है। स्वर्ग और पृथ्वी अब एक रिक्त स्थान द्वारा अलग नहीं हैं, कभी अलग न होने के लिए एकाकार हो गए हैं।
2 इस उल्लासपूर्ण अवसर पर, इस हर्षोन्माद के क्षण में, मेरी धार्मिकता और मेरी पवित्रता पूरे ब्रह्मांड में फैल गई है और समस्त मानव जाति उनकी निरंतर जयकार कर रही है। स्वर्ग के नगर आनंद से हँस रहे हैं और पृथ्वी का साम्राज्य प्रसन्न होकर नृत्य कर रहा है। इस समय कौन आनंदित नहीं है और इस समय कौन रो नहीं रहा है? पृथ्वी अपनी मूल स्थिति में स्वर्ग से संबद्ध है और स्वर्ग पृथ्वी के साथ जुड़ा है। मनुष्य, स्वर्ग और पृथ्वी को बाँधे रखने वाली डोर है और मनुष्य की निर्मलता के कारण, मनुष्य के नवीनीकरण के कारण, स्वर्ग अब पृथ्वी से छुपा हुआ नहीं है और पृथ्वी अब स्वर्ग की ओर मौन नहीं है। मानवजाति के चेहरे आभार की मुस्कान से सज्जित हैं और उनके हृदय में एक असीमित मिठास छिपी है, जिसकी कोई सीमा नहीं। मनुष्य अन्य मनुष्य से झगड़ा नहीं करता, न मनुष्य एक दूसरे के साथ मारपीट करते हैं। क्या कुछ ऐसे हैं, जो मेरे प्रकाश में दूसरों के साथ शांति से नहीं रहते? क्या कुछ ऐसे हैं, जो मेरे दिवस में मेरा नाम बदनाम करते हैं?
3 सभी मनुष्य मेरी ओर श्रद्धा से देखते हैं और अपने हृदय में वे चुपचाप मेरी दुहाई देते हैं। मैंने मानवजाति के हर कर्म को जांचा है : जिन मनुष्यों की शुद्धि कर दी गई है, उनमें से कोई भी मेरे समक्ष अवज्ञाकारी नहीं है, कोई भी मेरी आलोचना नहीं करता। समस्त मानवजाति मेरे स्वभाव से ओतप्रोत है। सभी मनुष्य मेरे बारे में जान रहे हैं, मेरे निकट आ रहे हैं और अत्यधिक प्रेम कर रहे हैं। मैं मनुष्य की आत्मा में अडिग खड़ा हूँ, उसकी आँखों में उच्चतम शिखर तक पहुँच गया हूँ और उसकी नसों में रक्त के साथ प्रवाहित हूँ। मनुष्यों के हृदय में आनंदमय उल्लास से पृथ्वी का हर स्थान भर जाता है, हवा तीव्र और ताज़ा है, घना कोहरा अब भूमि को नहीं ढकता और सूरज अपनी दीप्ति से प्रकाशित है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 18 से रूपांतरित