उस सच्ची कलीसिया को कैसे पायें जो बड़ी आपदा से पहले स्वर्गारोहित होगी
बओदा, आस्ट्रेलिया से
प्रभु यीशु ने एक बार अपनी वापसी के संकेत दिए थे, "क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह-जगह अकाल पड़ेंगे, और भूकम्प होंगे। ये सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी" (मत्ती 24:7-8)। अब आपदाएँ ज्यादा से ज्यादा भयंकर हो रही हैं। अकाल और भूकंप आ गये हैं, और महामारियाँ, आगजनी और बाढ़ एक के बाद एक आ रहे हैं। उदाहरण के लिए, दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान में पनपा नया वायरस कोरोना दो महीनों में ही तेजी से दुनिया के दूसरे भागों में फ़ैल गया है। आस्ट्रेलिया के जंगल की आग लगभग 6 महीने तक दहकती रही, जिसमें लाखों जानवर मारे गये हैं, और फिर 700,000 चमगादडों ने आस्ट्रेलिया के कई मुख्य शहरों में झुंड बना लिए हैं। पूर्वी अफ्रीका को 25 वर्षों में सबसे खराब टिड्डी संक्रमण का सामना करना पड़ा है और कई लाख लोग खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं। 7 जनवरी, 2020 में, प्युर्टो-रीको 102 वर्षों के सबसे ज्यादा शक्तिशाली भूकंप की चपेट में आ गया और उस देश के दो तिहाई भाग की बिजली चली गई। 28 जनवरी, 2020 में कैरेबियन में 7.7-तीव्रता का भूकंप आया। ... आपदाएँ प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियों को पूरा करती हैं। कई ईसाइयों ने महसूस किया है कि प्रभु पहले ही वापस आ चुका है।
जैसा कि हम सब जानते हैं, बाइबल भविष्यवाणी करती है कि जब प्रभु लौटेगा, तो सिर्फ फ़िलाडेल्फ़िया ही वह कलीसिया है जो महा-आपदा से पहले स्वर्गारोहित होगी, और लौदीकिया की कलीसिया को प्रभु द्वारा त्याग दिया जायेगा। कहने का अर्थ है, अगर हम आपदा से पहले स्वर्गारोहित होना चाहते हैं, तो हमें ऐसी कलीसिया खोजनी चाहिए जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हो। यह देखते हुए कि पादरी उपदेशों में कोई रोशनी प्रदान नहीं करते हैं, विश्वासी अपने विश्वास में उदासीन हो जाते हैं, वे खाने, पीने और मौज-मस्ती करने के बारे में बात करते हैं और दुनिया के रिवाजों का अनुसरण करते हैं, कई लोग चिंता करते हैं कि उनकी कलीसियाएं झूठी कलीसियाएं हैं और जब प्रभु वापस आयेगा तो उन्हें त्याग दिया जायेगा। हालाँकि, कुछ लोग सोचते हैं कि उनकी कलीसियाओं में बहुत से विश्वासी भी हैं, और जब उनकी कलीसियाएं बाइबल आधारित ज्ञान प्रतियोगिता और पवित्र समागम आयोजित करती हैं, तो वातावरण जीवंत हो जाता है, इसलिए उनकी कलीसियाएं झूठी कलीसियाएं नहीं हो सकती। तो हमें सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर कैसे करना चाहिए? हम सच्ची कलीसिया कैसे पा सकते हैं? आओ इन विषयों पर ध्यान दें।
सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर करने का पहला सिद्धांत: क्या कलीसिया के पास पवित्र आत्मा का कार्य है और क्या विश्वासी सत्य का अनुसरण करते हैं
बाइबल कहती है "कलीसिया उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है, जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है" (इफिसियों 1:23)। यहोवा परमेश्वर ने सोलोमन से कहा, "क्योंकि अब मैंने इस भवन को अपनाया और पवित्र किया है कि मेरा नाम सदा के लिये इसमें बना रहे; मेरी आँखें और मेरा मन दोनों नित्य यहीं लगे रहेंगे" (2 इतिहास 7:16)। प्रभु यीशु ने कहा, "फिर मैं तुम से कहता हूँ, यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिये जिसे वे माँगें, एक मन के हों, तो वह मेरे पिता की ओर से जो स्वर्ग में है उनके लिये हो जाएगी। क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ" (मत्ती 18:19-20)। इन पदों से हम देख सकते हैं कि सच्ची कलीसिया वह कलीसिया है जहाँ पवित्र आत्मा का कार्य है। यह उन लोगों के द्वारा बनाई गई है जो वास्तव परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, और इनमें से भी बहुत ही कम ऐसे हैं जो सत्य के लिए तरसते हैं। वे हर चीज में परमेश्वर की इच्छा खोजने, परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और पालन करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और वे परमेश्वर की इच्छा पूरी करना चाहते हैं, ताकि वे लगातार पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और कार्य प्राप्त कर सकें, और जब वे सभा में संगति करें तो उनके पास पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी हो, और उनका आध्यात्मिक जीवन निरंतर बढ़ता रहे। इसके अलावा, जब वे गलती करते हैं, परमेश्वर उन्हें ताड़ित और अनुशासित करेगा, ताकि उनके पास एक परमेश्वर-भीरू हृदय हो। जैसे व्यवस्था के युग के मंदिर में, क्योंकि यह परमेश्वर यहोवा की महिमा से भरा हुआ था, लोगों में गलत काम करने की हिम्मत नहीं थी, और उन्होंने यहोवा परमेश्वर को सम्मान दिया और आदरपूर्वक मंदिर में उसकी आराधना की, और किसी ने भी क़ानून का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं की। ऐसी कलीसिया में ही, लोगों का विश्वास बढ़ सकता है और उनके जीवन में निरंतर बढोत्तरी हो सकती है। झूठी कलीसिया में निश्चित ही पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है। पादरी हमेशा उन्हीं पुरानी चीजों के बारे में प्रचार कर रहे हैं और कोई नई प्रबुद्धता नहीं है। विश्वासी सच्चा पोषण प्राप्त नहीं कर सकते हैं, और वे कमजोर और नकारात्मक हैं और उनका विश्वास धुँधला होने लगता है। यहाँ तक कि जब वे एक साथ इकठ्ठे होते हैं, वे परमेश्वर के वचनों के अभ्यास करने के बारे में संगति नहीं करते बल्कि केवल उन चीजों के बारे में बात करते हैं जिनका सत्य से कोई वास्ता नहीं है। ये नाममात्र के विश्वासी हैं। ऐसी कलीसिया कभी परमेश्वर की अनुशंसा प्राप्त नहीं करेगी।
आजकल कई कलीसियाओं में, पादरी और एल्डर्स बाइबल आधरित ज्ञान और आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, जो विश्वासियों की वास्तविक कठिनाई का समाधान नहीं कर सकता है। इस बीच, बहुत ही कम संख्या में विश्वासी कलीसिया जाते हैं और वे खुद को पैसा कमाने और देह के आनंद में व्यस्त रखते हैं। हालाँकि, जब वे किसी संकट को सामने पाते हैं, वे कलीसिया जायेंगे। असल में, वे ईमानदारी से सच्चाई की खोज नहीं करते बल्कि सिर्फ अनुग्रह और व्यक्तिगत सुरक्षा पाने की चाह रखते हैं। कुछ विश्वासियों को सत्य की संगति करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, वे सिर्फ तभी सक्रिय होते हैं जब उनकी कलीसियाएं डिनर पार्टियों या किसी तरह की गतिविधियों का आयोजन करती हैं, और वे कलीसिया सिर्फ मजे के लिए, आपसी संबंध बनाने के लिए या जो उत्पाद वो बेचना चाहते हैं उसके प्रचार के लिए जाते हैं। विश्वासी क्या पहना और क्या खाया में होड़ करने के लिए इक्कठे होते हैं, और वे आध्यात्मिक मामलों पर संगति नहीं करते हैं और उनमें परमेश्वर के लिए कोई श्रद्धा नहीं है। ऐसी कलीसियाएं ठहरे हुए पानी की तरह हैं और चाहें उनमें बहुत से विश्वासी हों या कलीसियाएं जीवंत दिखती हों, वे परमेश्वर का आशीष और मार्गदर्शन नहीं पा सकती। ये कलीसियाएं झूठी कलीसियाएं हैं, व्यवस्था के युग के अंत के उस मंदिर की तरह, जो वह स्थान नहीं था जहाँ लोग परमेश्वर की आराधना करते थे, बल्कि वह स्थान मवेशियों के लेन-देन का बाज़ार और परमेश्वर द्वारा ठुकराए गये चोरों का अड्डा बन गया था। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा, "क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है" (मरकुस 11:17)। इसलिए, सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर के लिए, हमें खास तौर पर यह देखना होगा कि क्या कलीसिया में पवित्र आत्मा का कार्य है, क्या यह उन लोगों के द्वारा बनाई गई है जो सत्य से प्रेम और उसका अनुसरण करते हैं और क्या विश्वासी परमेश्वर की आराधना करना और उसकी इच्छा को पूरा करना चाहते हैं। केवल वही कलीसिया जिसमें वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करने वाले और परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने वाले शामिल हैं, सच्ची कलीसिया है और उसे ही परमेश्वर द्वारा मान्यता की जायेगी। अगर कलीसिया में वे लोग शामिल हैं जो सत्य में दिलचस्पी नहीं रखते हैं, फिर इसमें चाहें बहुत से विश्वासी हों और धरातल पर वे उत्साही दिखाई देते हों, यह एक झूठी कलीसिया है और आज नहीं तो कल इसे परमेश्वर द्वारा त्याग दिया जायेगा। जैसे कि यूहन्ना ने परमेश्वर के प्रकाशन में लौदीकिया की कलीसिया को लिखा, "मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठण्डा है और न गर्म; भला होता कि तू ठण्डा या गर्म होता। इसलिए कि तू गुनगुना है, और न ठण्डा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुँह से उगलने पर हूँ" (प्रकाशितवाक्य 3:15-16)।
सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर करने का दूसरा सिद्धांत: क्या कलीसिया में सच्चे चरवाहे सत्ता में हैं या झूठे
सच्ची और झूठी कलीसियाओं में अंतर करने का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत है—हमें देखना चाहिए कि क्या कलीसिया में सच्चे चरवाहे सत्ता में हैं या झूठे। कलीसिया परमेश्वर के कार्य के कारण अस्तित्व में आती है, इसलिए बेशक परमेश्वर और सत्य सत्ता में हैं। कलीसिया में, अगर अगुवे सच्चाई का अनुसरण करने वाले लोग हैं, तो वे यकीनन परमेश्वर की इच्छा पर विचार कर सकते हैं, उसकी स्तुति कर सकते हैं और सभी मामलों में परमेश्वर की गवाही वहन कर सकते हैं, परमेश्वर के वचन का अभ्यास और पालन करने के लिए विश्वासियों की अगुवाई कर सकते हैं, और लोगों को परमेश्वर के सामने ला सकते हैं। साथ ही, विश्वासी अपने हृदय में परमेश्वर का महिमामंडन कर सकते हैं, परमेश्वर की इच्छा चाह सकते हैं और सभी कार्य परमेश्वर के वचनों के अनुसार कर सकते हैं, और वे आँख मूँदकर अपने अगुवाओं की पूजा नहीं करते हैं। इस तरह की कलीसिया परमेश्वर के वचनों और सच्चाई द्वारा शासित होती है। इसके विपरीत, झूठी कलीसिया झूठे चरवाहों द्वारा नियंत्रित होती है, अगुवे ईमानदारी से परमेश्वर की सेवा नहीं करते हैं, वे अपने पद और पैसे के लिए कार्य करते हैं, शोहरत और फायदे के लिए एक दूसरे से होड़ करते हैं और ईर्ष्यालु विवादों में लिप्त रहते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए और लोगों से अपनी पूजा करवाने के लिए अक्सर अपनी बड़ाई करते हैं। वे सिर्फ उनके साथ अच्छे बने रहते हैं और उनकी चापलूसी और बड़ाई करते हैं जो बहुत सारा पैसा दान करता है, और वे उन्हें दबाते और नकारते हैं जिनकी संगति प्रबुद्ध है और जो सुझाव देने में ईमानदार और सच्चे हैं, और कलीसिया में अगुवाओं को अपने मंशाएं पूरी करने में अक्षम बनाते हैं। वरना, ज्यादातर विश्वासियों में विवेक की कमी है और वे आँख मूंदकर अगुवाओं की पूजा करते हैं और हर बात के लिए उनकी तरफ देखते हैं। हालाँकि ऐसा लगता है कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, लेकिन असलियत में वे पादरियों और एल्डर्स पर विश्वास करते हैं। इस प्रकार, यह कलीसिया झूठे चरवाहों द्वारा नियंत्रित की जाती है और एक झूठी कलीसिया है। जैसा कि यह अवतरण कहता है, "कलीसिया के भीतर सत्य का अभ्यास करने वाले लोगों को अलग हटा दिया जाता है और वे अपना सर्वस्व अर्पित करने में असमर्थ हो जाते हैं, जबकि कलीसिया में परेशानियाँ खड़ी करने वाले, मौत का वातावरण निर्मित करने वाले लोग यहां उपद्रव मचाते फिरते हैं, और इतना ही नहीं, अधिकतर लोग उनका अनुसरण करते हैं। साफ बात है, ऐसी कलीसियाएँ शैतान के कब्ज़े में होती है; हैवान इनका सरदार होता है। यदि समागम के सदस्य विद्रोह नहीं करेंगे और उन प्रधान राक्षसों को खारिज नहीं करेंगे, तो देर-सवेर वे भी बर्बाद हो जाएँगे। अब ऐसी कलीसियाओं के ख़िलाफ़ कदम उठाए जाने चाहिए। जो लोग थोड़ा भी सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं यदि वे खोज नहीं करते हैं, तो उस कलीसिया को मिटा दिया जाएगा" ("जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी")।
अब, कई पादरी और एल्डर्स परमेश्वर के कार्यों के अभ्यास और पालन के लिए लोगों की अगुवाई नहीं करते और विश्वासियों की जीवन में उनके प्रवेश की कठिनाईयाँ हल नहीं कर सकते और न ही वे उन लोगों को अनुमति देते हैं जिनके पास कलीसिया की अगुवाई करने के लिए पवित्र आत्मा का कार्य है। अपने ओहदे को सुरक्षित रखने के लिए, खुद को निम्न दिखाने और लोगों से अपनी पूजा करवाने के लिए, पादरी और एल्डर्स सिर्फ बाइबल आधरित ज्ञान और आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रचार करते हैं। इतना ही नहीं, वे विश्वासियों को आकर्षित करने के लिए दुनिया की कुछ मुख्य घटनाओं और स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान के बारे में बात करते हैं, और वे सिर्फ बाइबल में मनुष्य के शब्दों की व्याख्या पर ध्यान देते हैं और लोगों को कुछ धार्मिक कर्मकाण्डों का पालन करना सिखाते हैं। कुछ पादरी और एल्डर्स बहुत धर्मनिष्ठ दिखाई देते हैं, लेकिन वे गुप्त रूप से अंशदान चुराते हैं और यौन व्याभिचारी होते हैं। विश्वासियों को आकर्षित करने और अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए, कुछ पादरी और एल्डर्स भोजन संबंधी कार्यकलापों की व्यवस्था करते हैं, उत्पादों का प्रचार करते हैं और फैक्ट्रियाँ खोलते हैं, विश्वासियों की भौतिक मार्ग पर बढ़ने के लिए अगुवाई करते हैं और कलीसिया में एक अपवित्र माहौल को बढ़ावा देते हैं। ऐसी कलीसिया दुनिया से अलग नहीं है, और बाइबल के बड़े शहर बेबीलोन की तरह हैं। इसने परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित किया है और ये पवित्र आत्मा द्वारा त्यागी गई हैं, और अंत में परमेश्वर द्वारा शापित होंगी। जैसा कि बाइबल में कहती है, "उसने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, 'गिर गया, बड़ा बाबेल गिर गया है! और दुष्टात्माओं का निवास, और हर एक अशुद्ध आत्मा का अड्डा, और हर एक अशुद्ध और घृणित पक्षी का अड्डा हो गया। क्योंकि उसके व्यभिचार के भयानक मदिरा के कारण सब जातियाँ गिर गई हैं, और पृथ्वी के राजाओं ने उसके साथ व्यभिचार किया है; और पृथ्वी के व्यापारी उसके सुख-विलास की बहुतायत के कारण धनवान हुए हैं'" (प्रकाशितवाक्य 18:2-3)। इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण है कि कलीसिया का अगुआ सही व्यक्ति है या नहीं। अगर कलीसिया को झूठे चरवाहों द्वारा नियंत्रित किया जाता है तो पवित्र आत्मा उसमें कार्य नहीं करेगा। यह अंधे द्वारा अंधे का नेतृत्व करना और अंत में सबका गड्ढे में गिर जाना है।
सच्ची कलीसिया कैसे खोजें
इस बिंदू पर, कई लोग महसूस कर सकते हैं कि ऐसी बहुत सी कलीसिया हैं जिनमें पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है। तो हम ऐसी कलीसिया कहाँ पा सकते हैं जिसमें परमेश्वर और पवित्र आत्मा के कार्य की उपस्थिति हो? इस वास्तविक कठिनाई का सामना करते हुए, चलो पहले उस समय को देखें, जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए प्रकट हुआ। तो मंदिर भी उजाड़ हो गया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि एक तरफ तो, मुख्य यहूदी पादरियों, शास्त्रियों और फरीसियों ने सही मार्ग पर चलने के लिए विश्वासियों की अगुवाई नहीं की, और मंदिर को पवित्र आत्मा द्वारा त्याग दिया गया, और दूसरी तरफ, प्रभु यीशु ने नया कार्य किया था, और पवित्र आत्मा ने मंदिर से अपना कार्य वापस लेकर, उन लोगों में कार्य किया जो मेमने के पदचिन्हों का अनुसरण कर सकते थे। जिन लोगों ने प्रभु यीशु का अनुसरण किया, उन्होंने जीवन के सजीव जल का पोषण प्राप्त किया, जबकि जो मंदिर के साथ बने रहे, वे अन्धकार में खो गये। जैसे कि बाइबल कहती है, "और जब कटनी के तीन महीने रह गए, तब मैंने तुम्हारे लिये वर्षा न की; मैंने एक नगर में जल बरसाकर दूसरे में न बरसाया; एक खेत में जल बरसा, और दूसरा खेत जिसमें न बरसा; वह सूख गया। इसलिए दो तीन नगरों के लोग पानी पीने को मारे-मारे फिरते हुए एक ही नगर में आए, परन्तु तृप्त न हुए; तो भी तुम मेरी ओर न फिरे" (आमोस 4:7-8)। यह देखा जा सकता है कि जब परमेश्वर नया कार्य करने के लिए वापस आयेगा, पुराने जमाने की कलीसिया वीरान हो जायेंगी। हालाँकि, कलीसिया की वीरानी के पीछे परमेश्वर की इच्छा है, परमेश्वर अपने पदचिन्हों की खोज करने के लिए हमें बाध्य करते हैं। अब आपदाएँ बद से बदतर होती जा रही हैं, और प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियाँ मूल रूप से पूरी हुई हैं। वहीं, धार्मिक संसार उजाड़ हो गया है और उसने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है। इसलिए, इस बात की काफी सम्भावना है कि प्रभु एक निश्चित कलीसिया में कार्य करने के लिए पहले ही प्रकट हो गया है। अगर हम परमेश्वर के पदचिन्हों का पता लगा सकते हैं, तो हम निश्चित ही सच्ची कलीसिया पा सकते हैं।
तो हम परमेश्वर के पदचिन्हों को कैसे खोज सकते हैं? वचनों का यह अवतरण इस बारे में स्पष्टता से बताता है। "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है" ("परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है")। इससे, हम देख सकते हैं कि अगर हम परमेश्वर के पदचिन्हों की खोज करना चाहते हैं, हमें परमेश्वर के कथनों को खोजना चाहिए और परमेश्वर की वाणी सुनने पर ध्यान देना चाहिए। बाइबल कहती है, "जिसके कान हों, वह सुन ले कि पवित्र आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। यह दर्शाता है कि प्रभु जब लौटेगा तो कलीसिया के लिए नये वचनों को व्यक्त करेगा। अगर कोई भी कलीसिया प्रचारित करती है कि प्रभु नये वचनों को व्यक्त करने के लिए लौट आया है, तो हमें जल्दी से खोज करनी चाहिए और देखना चाहिए कि क्या ये वचन परमेश्वर की वाणी हैं। अगर हम परमेश्वर की वाणी को पहचान लेते हैं, तो हमें उसके कार्य को जल्दी से स्वीकार कर लेना चाहिए। सिर्फ तभी हम मेमने के पदचिन्हों पर चल सकते हैं और सच्ची कलीसिया को पा सकते हैं।
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