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आपदाओं का बार-बार आना: क्या आप जानते हैं कि अपनी दूसरी वापसी पर प्रभु कैसे प्रकट होगा और कार्य करेगा?

जब कुछ लोग गवाही देते हैं कि परमेश्वर देह बन गया है और उसने अंत के दिनों में न्याय का कार्य किया है, तो कई भाई-बहन यह सोचते हुए इसे स्वीकार नहीं करेंगे कि जब प्रभु लौटेगा, तो वह पुनर्जीवित आध्यात्मिक शरीर रूप में सफेद बादल पर खुलेआम लोगों के सामने प्रकट होगा, और वह सम्भवतः मनुष्य के पुत्र के रूप में देह में नहीं आ सकता है, क्योंकि बाइबल कहती है, "तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे" (मत्ती 24:30)। अब लगातार आपदाएँ आने लगी हैं, और चार रक्त चंद्रमा दिखाई दिए हैं। प्रभु की वापसी की भविष्यवाणियाँ मूल रूप से सच हो चुकी हैं, और प्रभु वापस आ गया होगा, लेकिन हमने उसका स्वागत क्यों नहीं किया? "बस हमें स्वर्ग में ले जाने के लिए बादलों पर प्रभु के आने का इंतज़ार करना" क्या यह नज़रिया सही है?

बाइबल भविष्यवाणी करती है कि जब प्रभु लौटेगा तो वह कैसे प्रकट होगा और कार्य करेगा

दूसरी वापसी पर प्रभु कैसे प्रकट होगा और कार्य करेगा?

असल में, अंत के दिनों में प्रभु कैसे प्रकट होगा, इसका, वापस लौटने पर परमेश्वर क्या कार्य करेगा, से एक निश्चित संबंध है। उदाहरण के लिए, व्यवस्था के युग में, परमेश्वर ने इंसान को उसके पापों से अवगत कराने और धरती पर उसके जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए ख़ास तौर पर नियमों की घोषणा की, इसलिए उसे व्यक्तिगत रूप से देह बनने की जरूरत नहीं थी, बल्कि उसने अपना कार्य करने के लिए सीधे मूसा का उपयोग किया। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने मानवजाति के लिए सूली पर चढ़ने का कार्य किया। हम भ्रष्ट इंसान कार्य नहीं कर सकते, और न ही परमेश्वर का आध्यात्मिक शरीर सूली पर चढ़ाया जा सकता है। इसलिए प्रभु यीशु मानवजाति को छुटकारा दिलाने का कार्य करने के लिए देह बन गया। तो प्रभु अंत के दिनों में क्या कार्य करेगा? चलो बाइबल के पदों पर नजर डालें, "वह जाति-जाति का न्याय करेगा, और देश-देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा" (यशायाह 2:4)। "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:48)। प्रकाशितवाक्य 14:7 कहता है, "और उसने बड़े शब्द से कहा, 'परमेश्‍वर से डरो, और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है; और उसकी आराधना करो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए।'" पतरस 4:17 कहता है, "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है, कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए।" इन बाइबल पदों में "न्याय" या "न्याय करने" का पूरा उल्लेख है, और इनके अलावा, बाइबल में न्याय करने के बारे में दो सौ से ज्यादा पद हैं, बाइबल से परिचित हर कोई इस बारे में जानता है। यह दर्शाता है कि जब प्रभु लौटेगा, वह निश्चित ही न्याय करने का कार्य करेगा और इंसान का न्याय और शुद्धिकरण करने के लिए सत्य व्यक्त करेगा। यानी, जब प्रभु लौटेगा, वह ज्यादा वचन बोलेगा और उस वचन का उपयोग करेगा जो उसने इंसान का न्याय और उसका पाप उजागर करने, इंसान को खुद पर विचार करने देने, सच्चा पश्चाताप करने, उसे शुद्ध किये जाने और बदले जाने के लिए बोला। हम भ्रष्ट इंसान शैतान द्वारा इतनी गहराई से भ्रष्ट हो चुके हैं; कि भले ही प्रभु द्वारा हमें छुटकारा मिल गया है और हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, और अब हम क़ानून द्वारा दंडित नहीं किये जाते, लेकिन हमारे पाप का बीज अभी भी हमारे अंदर मौजूद है। अपनी पापी प्रकृति से नियंत्रित, हम अक्सर पाप में बंधे रहने के मलाल में जीते हैं। अंत के दिनों में, परमेश्वर, हमारी जरूरत के अनुसार, सत्य व्यक्त करता है और हमारे पापों को शुद्ध करने के लिए अपना न्याय का कार्य करता है ताकि हम अब और पाप में बंधे न रहें, जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। यूहन्ना 17:17 कहता है, "सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है।"

अब हमें विश्वास है कि जब प्रभु वापस लौटेगा, वह सत्य व्यक्त करेगा और न्याय का कार्य करेगा। तो प्रभु अपना कार्य कैसे करेगा? प्रभु यीशु ने कहा, "पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है ... वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिए कि वह मनुष्य का पुत्र है" (यूहन्ना 5:22-27)। इन पदों से हम देख सकते हैं कि जब प्रभु लौटेगा, वह लोगों के न्याय और शुद्धिकरण के लिए सत्य व्यक्त करने के लिए देह बन जायेगा, क्योंकि "मनुष्य का पुत्र" देह में सामान्य मानवता रखने वाले, परमेश्वर को दर्शाता है। उदाहरण के तौर पर प्रभु यीशु को लें। वह परमेश्वर का आत्मा देह का आवरण पहने और लोगों के बीच कार्य करने के लिए एक सामान्य इंसान में बदल रहा है। हालाँकि पुनर्जीवित प्रभु यीशु का आध्यात्मिक शरीर मनुष्य के पुत्र की छवि था, उसका आध्यात्मिक शरीर आलौकिक था, वह लोगों के सामने हवा में प्रकट हो सकता था और दीवारों को भेद सकता था, इस कारण उसे मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जा सकता था। इसलिए जब अंत के दिनों में प्रभु लौटेगा, वह मनुष्य के पुत्र के रूप में न्याय का कार्य करने के लिए देह बन जायेगा।

प्रभु न्याय का कार्य करने के लिए देह में क्यों लौटता हैं

शायद कुछ लोगों को यह समझ में नहीं आता कि परमेश्वर का न्याय करने का कार्य सिर्फ देहधारी परमेश्वर द्वारा ही क्यों किया जा सकता है। सत्य के इस पहलू के लिए, आओ हम परमेश्वर के वचनों के कुछ अंशों को देखें, "यदि परमेश्वर देह न बना होता, तो वह पवित्रात्मा बना रहता जो मनुष्यों के लिए अदृश्य और अमूर्त दोनों है। चूँकि मनुष्य देह वाला प्राणी है, इसलिए वह और परमेश्वर दो अलग-अलग दुनिया के हैं और अलग-अलग प्रकृति के हैं। परमेश्वर का आत्मा देह वाले मनुष्य से बेमेल है, और उनके बीच संबंध स्थापित किए जाने का कोई उपाय ही नहीं है, और इसका तो जिक्र ही क्या करना कि मनुष्य आत्मा नहीं बन सकता। ऐसा होने के कारण, अपना मूल काम करने के लिए परमेश्वर के आत्मा को एक सृजित प्राणी बनना आवश्यक है। परमेश्वर दोनों काम कर सकता है, वह सबसे ऊँचे स्थान पर भी चढ़ सकता है और मनुष्यों के बीच कार्य करने और उनके बीच रहने के लिए अपने आपको विनम्र भी कर सकता है, किंतु मनुष्य सबसे ऊँचे स्थान पर नहीं चढ़ सकता और पवित्रात्मा नहीं बन सकता, और वह निम्नतम स्थान में तो बिलकुल भी नहीं उतर सकता। इसीलिए अपना कार्य करने हेतु परमेश्वर का देह बनना आवश्यक है।"

"पवित्रात्मा केवल उन्हीं कार्यों को कर सकता है जो मनुष्य के लिए अदृश्य हैं और जिसकी कल्पना करना उसके लिए कठिन है, उदाहरण के लिए पवित्रात्मा की प्रबुद्धता, पवित्रात्मा का प्रेरित करना, और पवित्रात्मा का मार्गदर्शन, लेकिन समझदार इंसान को इनका कोई स्पष्ट अर्थ समझ में नहीं आता। वे केवल एक चलता-फिरता या एक मोटा-मोटा अर्थ प्रदान करते हैं, और शब्दों से कोई निर्देश नहीं दे पाते। जबकि, देह में परमेश्वर का कार्य बहुत भिन्न होता है: इसमें वचनों का सटीक मार्गदर्शन होता है, स्पष्ट इच्छा होती है, और उसमें स्पष्ट अपेक्षित लक्ष्य होते हैं। इसलिए इंसान को अँधेरे में भटकने या अपनी कल्पना का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है, और अंदाज़ा लगाने की तो बिलकुल भी आवश्यकता नहीं होती। देह में किया गया कार्य बहुत स्पष्ट होता है, और पवित्रात्मा के कार्य से काफी अलग होता है। पवित्रात्मा का कार्य केवल एक सीमित दायरे में ही उपयुक्त होता है, यह देह के कार्य का स्थान नहीं ले सकता। देह का कार्य मनुष्य को पवित्रात्मा के कार्य की अपेक्षा कहीं अधिक सटीक और आवश्यक लक्ष्य तथा कहीं अधिक वास्तविक, मूल्यवान ज्ञान प्रदान करता है। भ्रष्ट मनुष्य के लिए सबसे अधिक मूल्य रखने वाला कार्य वो है जो सटीक वचन, अनुसरण के लिए स्पष्ट लक्ष्य प्रदान करे, जिसे देखा या स्पर्श किया जा सके। केवल यथार्थवादी कार्य और समयोचित मार्गदर्शन ही मनुष्य की अभिरुचियों के लिए उपयुक्त होता है, और केवल वास्तविक कार्य ही मनुष्य को उसके भ्रष्ट और दूषित स्वभाव से बचा सकता है। इसे केवल देहधारी परमेश्वर के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है; केवल देहधारी परमेश्वर ही मनुष्य को उसके पूर्व के भ्रष्ट और पथभ्रष्ट स्वभाव से बचा सकता है। यद्यपि पवित्रात्मा परमेश्वर का अंतर्निहित सार ही है, फिर भी इस तरह के कार्य को केवल उसके देह के द्वारा ही किया जा सकता है। यदि पवित्रात्मा अकेले ही कार्य करता, तब उसके कार्य का प्रभावशाली होना संभव नहीं होता—यह एक स्पष्ट सत्‍य है।"

"यदि इस कार्य को परमेश्वर के आत्मा द्वारा किया जाता, तो इसका अर्थ शैतान पर विजय नहीं होता। पवित्रात्मा अंतर्निहित रूप से ही नश्वर प्राणियों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट है, और परमेश्वर का आत्मा अंतर्निहित रूप से पवित्र है, और देह पर विजय प्राप्त किए हुए है। यदि पवित्रात्मा ने इस कार्य को सीधे तौर पर किया होता, तो वह मनुष्य की समस्त अवज्ञा का न्याय नहीं कर पाता, और उसकी सारी अधार्मिकता को प्रकट नहीं कर पाता। क्योंकि न्याय के कार्य को परमेश्वर के बारे में मनुष्य की धारणाओं के माध्यम से भी कार्यान्वित किया जाता है, और मनुष्य के अंदर कभी भी पवित्रात्मा के बारे में कोई धारणाएँ नहीं रही हैं, इसलिए पवित्रात्मा मनुष्य की अधार्मिकता को बेहतर तरीके से प्रकट करने में असमर्थ है, वह ऐसी अधार्मिकता को पूरी तरह से उजागर करने में तो बिल्कुल भी समर्थ नहीं है। देहधारी परमेश्वर उन सब लोगों का शत्रु है जो उसे नहीं जानते। अपने प्रति मनुष्य की धारणाओं और विरोध का न्याय करके, वह मनुष्यजाति की सारी अवज्ञा का खुलासा करता है। देह में उसके कार्य के प्रभाव पवित्रात्मा के कार्य की तुलना में अधिक स्पष्ट होते हैं। इसलिए, संपूर्ण मनुष्यजाति के न्याय को पवित्रात्मा के द्वारा सीधे तौर पर सम्पन्न नहीं किया जाता, बल्कि यह देहधारी परमेश्वर का कार्य है। देहधारी परमेश्वर को मनुष्य देख और छू सकता है, और देहधारी परमेश्वर मनुष्य पर पूरी तरह से विजय पा सकता है। देहधारी परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में, मनुष्य विरोध से आज्ञाकारिता की ओर, उत्पीड़न से स्वीकृति की ओर, धारणा से ज्ञान की ओर, और तिरस्कार से प्रेम की ओर प्रगति करता है—ये हैं देहधारी परमेश्वर के कार्य के प्रभाव। मनुष्य को परमेश्वर के न्याय की स्वीकृति से ही बचाया जाता है, वह परमेश्वर के बोले गए वचनों से ही धीरे-धीरे उसे जानने लगता है, परमेश्वर के प्रति उसके विरोध के दौरान परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर विजय पायी जाती है, और परमेश्वर की ताड़ना की स्वीकृति के दौरान वह उससे जीवन की आपूर्ति प्राप्त करता है। यह समस्त कार्य देहधारी परमेश्वर के कार्य हैं, यह पवित्रात्मा के रूप में परमेश्वर के कार्य नहीं हैं।"

हम सब जानते हैं कि परमेश्वर का आध्यात्मिक शरीर असाधारण और निराकार है। हम उसे देख या महसूस नहीं कर सकते, और न ही उसके नज़दीक जा सकते हैं। असल में, प्रभु यीशु के पुनर्जीवित होने के बाद का आध्यात्मिक शरीर उसके देहधारी शरीर से ज्यादा अलग नहीं है, लेकिन उसका आध्यात्मिक शरीर भौतिक संसार, स्थान और स्थिति से नियंत्रित नहीं है और वह दीवारों को भेदकर, और अपनी इच्छा से प्रकट और अदृश्य होकर, लोगों को आश्चर्यचकित और हैरान छोड़ सकता है। इसके अलावा, हम इंसान नश्वर प्राणी हैं, भौतिक संसार में रहते हैं और सामान्य मानवता और सोच रखते हैं। अगर हम असाधारण और महान आध्यात्मिक शरीर के सम्पर्क में आते, तो हम खौफ से भयभीत हो जाते और घबरा जाते, और हमारे विचार सनकी और उन्मादी बन गये होते। क्योंकि मनुष्य का सार परमेश्वर के आत्मा के सार से और पुनर्जीवित प्रभु यीशु के आध्यात्मिक शरीर से अलग है, और इंसान सामान्य रूप से परमेश्वर के साथ नहीं रह सकता, न ही परमेश्वर मानवजाति के बीच उचित रूप से बोल सकता और उनका नेतृत्व कर सकता है, और न ही इंसान परमेश्वर के स्पष्ट वचनों का सिंचन और मार्गदर्शन पा सकता है। जब परमेश्वर देह का आवरण धारण करता है और सामान्य मानवता में रहता है, केवल तभी वह व्यवहारिक तौर पर सत्य व्यक्त कर सकता है, और तभी इंसान को बचाने का परमेश्वर का कार्य प्रभावी हो सकता है। उदाहरण के लिए, सूली पर चढ़ाने से पहले, प्रभु यीशु देह बना और इंसानों के बीच रहा; जब उसने अपना कार्य किया, वचन बोले, संकेत और चमत्कार दिखाए, लोग उसके देह की वास्तविकता और सामान्यता को महसूस कर सकते थे, उसके साथ घुलमिल सकते थे और अगर उन्हें कुछ समझ नहीं आता था तो वे उसे खोज सकते थे। प्रभु यीशु भी लोगों को सिखाने के लिए स्पष्ट वचनों का उपयोग कर सकता था। उदाहरण के लिए, जब प्रभु ने लोगों की कमियों को देखा, उसने, उनकी जरूरत के अनुसार, दूसरों को सत्तर से सात गुना ज्यादा बार माफ़ करना, सहनशील और संतोषी बनना, और अपने पड़ोसी को अपनों सा प्यार करना सिखाया। फलस्वरूप, लोग सरलता से उसकी शिक्षाओं को स्वीकार कर सकते थे, वे प्रभु की इच्छा को सही ढंग से समझ सकते थे और अभ्यास का मार्ग अपना सकते थे। इसी तरह, अंत के दिनों में परमेश्वर देह में न्याय का कार्य करता है, और वह, इंसान की जरूरतों के अनुसार, इंसान का न्याय करने, हमारे भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करने और हमें पाप से मुक्ति का मार्ग दिखाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है, ताकि हम परमेश्वर के साथ एक सामान्य संबंध रख सकें, अपने भ्रष्ट स्वभावों को ठीक से जान सकें और समझ सकें कि परमेश्वर के वचन के अनुसार अपना आचरण कैसा रखना है, अपने भ्रष्ट स्वभावों से कैसे बचा जाये, और कैसे पाप की जंजीरों को तोड़ा जाये। इस तरह के प्रभाव केवल देहधारी परमेश्वर के माध्यम से प्राप्त किये जा सकते हैं।

इसके अलावा, केवल जब परमेश्वर अंत के दिनों में धरती पर अपना कार्य करने के लिए एक साधारण और सामान्य देह बन जाता है, तो इंसान की हर तरह की धारणाओं, और उसके विद्रोह और विरोध को उजागर किया जा सकता है। यह वैसा ही समय है जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए देह बना था। क्योंकि प्रभु यीशु का प्रकटन साधारण और सामान्य था, यहूदी नहीं जानते थे कि देहधारी प्रभु यीशु आने वाला मसीहा था और इसलिए वे प्रभु यीशु के बारे में धारणाओं से भरे हुए थे और उन्होंने उसकी निंदा और विरोध किया। उस समय, अगर परमेश्वर का आत्मा सीधे कार्य कर रहा होता, देखने या छूने के काबिल न होता, और इसके अलावा उसका कार्य लोगों की धारणाओं के अनुरूप होता, तो लोग उसकी आराधना करने के लिए ज़मीन पर गिर पड़ते और यह कार्य यहूदियों की अवज्ञा और विरोध को उजागर नहीं कर सकता था। अंत के दिनों में, जब परमेश्वर देह बन जाता है और इंसान की भ्रष्टता को उजागर करने और न्याय करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, वह बिना किसी बुनियाद के ऐसा नहीं करता है, लेकिन वह लोगों के विद्रोह और विरोध को अपने देहधारण के माध्यम से उजागर करता है और लोगों की उजागर हुई भ्रष्टता के अनुसार उनका न्याय करता है। जो लोग परमेश्वर के न्याय को मानते और स्वीकार करते हैं, वे वास्तव में खुद को जान सकते हैं, सच्चा पश्चाताप करते हैं और धीरे-धीरे शुद्ध होते हैं, परमेश्वर के बारे में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त करते हैं और अंततः परमेश्वर द्वारा बचाए जाते हैं। अगर परमेश्वर ने अंत के दिनों में पुनर्जीवित आध्यात्मिक शरीर में न्याय का कार्य किया, तो हमारा विद्रोह और विरोध उजागर नहीं किया जायेगा, क्योंकि परमेश्वर का आत्मा महान, सम्माननीय, अधिकार से सम्पन्न, और इंसानी धारणाओं के अनुरूप है। अगर परमेश्वर ने हमारे भ्रष्ट स्वभावों को जाहिर किया, हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे, तो फिर परमेश्वर के न्याय और इंसान के शुद्धिकरण के कार्य के परिणाम कैसे प्राप्त हो सकेंगे? इसलिए, मनुष्य की अधार्मिकता को प्रकट करने के लिए परमेश्वर का देह बनना अविश्वसनीय रूप से बुद्धिमानी है।

साथ ही, बाइबल की कई भविष्यवाणियाँ यह बताती हैं कि जब अंत के दिनों में प्रभु लौटेगा, वह कटाई और छंटाई का कार्य करेगा, यानी, लोगों को उनकी किस्म के अनुसार अलग करने का कार्य करेगा, जैसे बकरियों में से भेड़ को, गेहूँ में से भूसे को, अच्छे सेवकों में से बुरे सेवकों को अलग करने का कार्य। यह कार्य केवल देहधारी परमेश्वर ही कर सकता है। उदाहरण के लिए, अपना कार्य करने के लिए प्रभु यीशु का देह बनना वास्तव में सब किस्म के लोगों को उजागर करता है: एक किस्म के लोग वे हैं जो परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं और उसका अनुसरण कर सकते हैं, जैसे पतरस और यूहन्ना; और परमेश्वर का विरोध करने वाले फरीसी दूसरे किस्म के लोग हैं जिन्होंने प्रभु को नकारा और विरोध किया; यहूदी लोग, जो प्रभु में अपने विश्वास को लेकर भ्रम में थे, उन्होंने आँख मूँदकर फरीसियों का अनुसरण किया और प्रभु को स्वीकार नहीं किया, वे दूसरे किस्म के लोग हैं। इस तरह, गेहूँ और भूसा, उजागर और अलग होते है। इसी तरह, अंत के दिनों में जब परमेश्वर देह बन जाता है, वे जो परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और वे जो इसे स्वीकार नहीं करते हैं, वे जो परमेश्वर को मानते हैं और वे जो उसका विरोध करते हैं, वे जो सत्य से प्रेम करते हैं और वे जो सत्य से प्रेम नहीं करते हैं, परमेश्वर के न्याय के कार्य के विकास में धीरे-धीरे उजागर होते हैं, तो लोगों का उनकी किस्म के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है। अगर प्रभु अधिकार और सम्पूर्ण महिमा के साथ बादलों पर आया, यानी, अगर वह लोगों के सामने पुनर्जीवित आध्यात्मिक शरीर के रूप में प्रकट होता है, तो हर कोई उसके आगे दंडवत हो जायेगा, इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं या शैतान को मानते हैं। तब क्या बुरे को अच्छे से अलग किया जा सकता है? कैसे परमेश्वर बकरियों में से भेड़ को और भूसे में से गेहूँ को अलग कर सकता है? इस प्रकार, अंत के दिनों में, इंसान को पूरी तरह बचाने और अपने न्याय के कार्य द्वारा इंसान को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत करने के लिए, परमेश्वर को देह बनना है और सामान्य मानवता में कार्य करना है। सिर्फ ऐसा करने से ही उसका कार्य प्रभावी हो सकता है।

प्रभु के बादलों के साथ आने वाली भविष्यवाणी कैसे पूरी होगी

अब कुछ लोग पूछ सकते हैं, "बाइबल भविष्यवाणी करती है कि प्रभु बादलों में आयेगा। ऐसी भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी?" परमेश्वर विश्वसनीय है, इसलिए उसकी भविष्यवाणियाँ जरूर पूरी होंगी—ये बस कुछ ही समय की बात है। अंत के दिनों में, परमेश्वर पहले देह बन जाता है और आपदा से पहले न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त करता है। वे जो अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करते हैं, जबकि देहधारी परमेश्वर अपना कार्य गुप्त रूप से करता है, वो लोग हैं जो परमेश्वर के सामने उठाये गये हैं और जिन्हें परमेश्वर द्वारा शुद्ध किया और बचाया जा रहा है। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के बाद, ये लोग शैतान द्वारा अपनी भ्रष्टता की, साथ ही साथ अपनी पापी प्रकृति की वास्तविकता की सही समझ रखते हैं, वे हृदय के भीतर अपने आप से नफरत कर सकते हैं, सच्चा पश्चाताप करते हैं, अपने भ्रष्ट स्वभावों को छोड़ने के लिए तैयार हैं और अंततः परमेश्वर के वचनों और सत्य में जीवन जीते हैं। ये लोग शैतान के प्रभाव के चंगुल से धीरे-धीरे मुक्त हो सकते हैं, और किसी भी परिस्थिति में परमेश्वर का आज्ञापालन, उससे प्रेम और उसकी आराधना कर सकते हैं; और ये वो हैं जिन्हें परमेश्वर द्वारा विजेता बनाया गया है और प्रकाशितवाक्य में भविष्यवाणी किये गये 144,000 नर बच्चे हैं, और वे भी हैं जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करते हैं और अनंत जीवन प्राप्त करते हैं। यह प्रकाशितवाक्य 14:4 को पूरा करता है, "ये वे हैं, जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं, कि जहाँ कहीं मेम्‍ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर और मेम्‍ने के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।" हालाँकि, जो अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को खोजते या स्वीकार नहीं करते, बल्कि अंत के दिनों में भी परमेश्वर के न्याय के कार्य का विरोध, तिरस्कार, और निंदा करते हैं, उजागर हो रहे हैं। उस समय, अच्छे सेवक और बुरे सेवक, बुद्धिमान कुंवारियाँ और मुर्ख कुंवारियाँ, वे जो सत्य से प्रेम करते हैं और वे जो सत्य से प्रेम नहीं करते उनका उनकी किस्म के अनुसार वर्गीकरण किया जायेगा। तब परमेश्वर सार्वजनिक तौर पर सफेद बादलों में आयेगा और सभी लोगों को दिखाई देगा, दुनिया पर आपदाएँ बरसायेगा और विनाश लायेगा, और सज्जन को पुरस्कार और दुष्टों को दंड देगा, जो प्रभु के इन वचनों को पूरा करेगा, "तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे" (मत्ती 24:30)। जब परमेश्वर सार्वजनिक तौर पर मनुष्य के सामने प्रकट होता है, मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का कार्य सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो जायेगा। वे जो सिर्फ इस धारणा को पकड़ते हैं कि प्रभु एक बादल पर उतरेगा लेकिन देहधारी परमेश्वर के कार्य की खोज या जाँच नहीं करते, और वे जो अंत के दिनों के मसीह का विरोध और निंदा करते हैं, वे फरीसी, मसीह-विरोधी अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य द्वारा उजागर हो रहे हैं। वे बड़ी आपदा में गिर जायेंगे और दंड पायेंगे, रोयेंगे और दांत पीसेंगे। जैसे परमेश्वर के वचन कहते हैं, "बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी।"

इसलिए, परमेश्वर आपदा से पहले गुप्त रूप से आयेगा और आपदा के बाद सार्वजनिक तौर पर लोगों के सामने प्रकट होगा। जिस अवधि में परमेश्वर गुप्त रूप से कार्य करता है, उस दौरान वह मनुष्य को बचाता है, और अंत के दिनों में अपना न्याय का कार्य करने के दौरान वह विजेताओं का एक समूह बनाता है, उसके बाद, वह उन सभी को तबाह करने के लिए आपदाएँ भेजेगा जो अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते बल्कि अंत के दिनों के मसीह का विरोध और त्याग करते हैं। यह वह समय है जब परमेश्वर मनुष्य के परिणाम का निर्धारण करता है। तो हमें अंत के दिनों में परमेश्वर के उद्धार को कैसे अपनाना चाहिए? यह कुछ ऐसा है जो सीधे हमारे परिणाम और मंजिल से संबंधित है।

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