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बाइबल संदेश: "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता" का सही अर्थ

चार रक्त चंद्रमायें प्रकट हो चुकी हैं, भूकंप, अकाल और महामारी जैसी आपदायें सामान्य हो गयी हैं। प्रभु के लौटकर आने की भविष्यवाणियाँ मूल रूप से पूरी हो गयी हैं, और कुछ लोगों ने तो खुले तौर पर ऑनलाइन गवाही दी है कि वह पहले ही लौट आया है। कुछ भाई-बहनें उलझन में हैं, क्योंकि बाइबल में यह स्पष्ट लिखा है: "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता" (मत्ती 24:36)। उन्हें कैसे पता होगा कि प्रभु लौट आया है? क्या वह वास्तव में लौट आया है? उसका स्वागत करने में सक्षम होने के लिए हमें क्या करना होगा? आइये इस सवाल पर एक साथ मिलकर सहभागिता करें।

परमेश्वर का संदेश ,बाइबल संदेश, लेकिन उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता

"उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता"—इसका क्या अर्थ हो सकता है?

बाइबल के इस पद के आधार पर, "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता," कुछ भाई-बहनों का मानना है कि जब प्रभु लौटेगा, तो इस बारे में किसी को भी पता नहीं चलेगा। इसलिये उनमें से कोई भी प्रभु के लौटकर आने की ख़बर फ़ैलाने वाले लोगों के दावों पर भरोसा या सोच-विचार नहीं करता है। यह वास्तव में एक सही समझ है या नहीं? क्या यह प्रभु की इच्छा के अनुरूप है? प्रभु यीशु ने एक बार भविष्यवाणी की थी, "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। हम बाइबल की इन पंक्तियों से यह समझ सकते हैं कि अंत के दिनों में प्रभु के लौटने के बाद, वह अपने वचनों के साथ हमारे दरवाज़े पर खटखटायेगा, और यहाँ तक कि हमें बाहर आकर इस पुकार के साथ कि "दूल्हा आ रहा है" उसका स्वागत करने पर मजबूर कर देगा। क्योंकि ऐसे लोग हैं जो हमें प्रभु के लौटकर आने की खबर बताते हैं, इससे पता चलता है कि जब वह आयेगा, तो वह निश्चित रूप से लोगों को बता देगा। ज़ाहिर है कि "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता" की यह समझ अर्थात प्रभु के आने के बारे में कोई नहीं जानता, पूरी तरह से गलत है।

तो हमें बाइबल के इस अंश को कैसे समझना चाहिए? हम इन पदों को एक साथ जोड़ सकते हैं: "अंजीर के पेड़ से यह दृष्‍टान्त सीखो : जब उसकी डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो कि ग्रीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो कि वह निकट है, वरन् द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त नहीं होगा। आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी। उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता" (मत्ती 24:32-36)। "इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा" (मत्ती 24:44)। और प्रकाशितवाक्य 3:3 कहता है, "यदि तू जागृत न रहेगा तो मैं चोर के समान आ जाऊँगा, और तू कदापि न जान सकेगा कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पड़ूँगा।" ये अंश हमें बताने के लिए प्रभु के आगमन के शुभ संकेतों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें यह उल्लेख है कि "मनुष्य का पुत्र आयेगा" और "एक चोर के रूप में"। असल में "मनुष्य का पुत्र" से तात्पर्य है देहधारी परमेश्वर; आध्यात्मिक देह को मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जा सकता। केवल प्रभु यीशु के सामान्य ही किसी को—देह रूपी वस्त्र में परमेश्वर की आत्मा मनुष्य का पुत्र कहा जा सकता है, जो मनुष्यों के बीच बहुत ही व्यवहारिक कार्य करने के लिए आया है और जिसमें सामान्य मानवता है। "एक चोर के रूप में" का अर्थ है चुपके से और गुप्त रूप से आना। इससे यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर के लौटकर आने में मनुष्य के पुत्र के रूप में गुप्त रूप से देह में आना शामिल है। यह देखते हुए कि वह गुप्त रूप से आता है, हम फ़िर भी उसे आसानी से नहीं देख सकेंगे, क्योंकि वह दिन और वह समय जब परमेश्वर देहधारण करके आयेगा, सभी के लिए अज्ञात है। अर्थात "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता," इसका मतलब है कि किसी को भी प्रभु के लौटकर आने का सटीक समय नहीं पता है। हालाँकि, जब वह वचन बोलने और कार्य करने के लिए आयेगा, तो उसके बाद निश्चित रूप से कुछ ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस बारे में पता होगा, और यही हमारे जागने का सही समय होगा। जब भी हम लोगों को प्रभु के लौटकर आने का सुसमाचार फैलाते हुए सुनते हैं, तो हमें खोजबीन करनी चाहिए; तभी हम प्रभु का स्वागत कर सकते हैं और उसके साथ रात्रि भोज में शामिल हो सकते हैं। हालाँकि, अभी हम सिर्फ़ सोये हुए ही नहीं हैं, बल्कि हम तो दूसरों को प्रभु के लौटकर आने की खबर फैलाते हुए सुनने के बाद, इसकी तलाश या जांच तक नहीं करने जाते। इस प्रकार, हमें परमेश्वर की इच्छा को समझने में भूल तो नहीं हो गयी? आइये हम परमेश्वर के वचनों के कुछ और अंशों को पढ़ें, इससे हमें बाइबल के इन अंशों का कुछ ज्ञान मिलेगा।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा: "भोर के समय, अधिकांश लोगों की जानकारी में आए बिना, परमेश्वर पृथ्वी पर आया और देह में अपना जीवन शुरू कर दिया। लोग इस क्षण के आगमन से अनभिज्ञ थे। कदाचित वे सब घोर निद्रा में थे, कदाचित बहुत-से लोग जो सतर्कतापूर्वक जागे हुए थे, प्रतीक्षा कर रहे थे, और कदाचित कई लोग स्वर्ग के परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना कर रहे थे। किंतु इन सभी अनेक लोगों के बीच, एक भी व्यक्ति नहीं जानता था कि परमेश्वर पहले ही पृथ्वी पर आ चुका है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (4)')। "शुरुआत में, जब यीशु ने आधिकारिक रूप से अपनी सेवकाई को क्रियान्वित नहीं किया था, तब उन चेलों के समान जो उसका अनुसरण करते थे, वह भी कभी-कभी सभाओं में उपस्थित होता था, और मन्दिर में भजनों को गाता था, स्तुति करता था, और पुराना नियम पढ़ता था। जब उसने बपतिस्मा लिया और उसका अभ्युदय हुआ, उसके बाद पवित्र आत्मा ने, उसकी पहचान को और उस सेवकाई को जो वह शुरू करने वाला था, प्रकट करते हुए आधिकारिक रूप से उस पर उतर कर कार्य करना शुरू किया। इससे पहले, कोई उसे नहीं पहचानता था, और मरियम को छोड़कर, यहाँ तक कि यूहन्ना भी नहीं जानता था। यीशु 29 वर्ष का था जब उसने बपतिस्मा लिया। जब उसका बपतिस्मा पूरा हो गया उसके बाद, आकाश खुल गया और एक आवाज आई: 'यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।' जब एक बार यीशु का बपतिस्मा हो गया, तो पवित्र आत्मा ने इस तरह से उसकी गवाही देनी शुरू कर दी। बपतिस्मा दिए जाने से पहले 29 वर्ष की आयु तक, उसने एक साधारण मनुष्य का जीवन जिया था, तब खाया जब उसे खाना चाहिए था, वह सामान्य रूप से सोता और कपड़े पहनता था, और उसके बारे में कुछ भी अन्य लोगों से भिन्न नहीं था, निस्संदेह ऐसा सिर्फ मनुष्य की दैहिक आँखों के लिए था। ... बाइबल इस बात को दर्ज नहीं करती है कि उसने बपतिस्मा से पहले क्या किया था क्योंकि उसने इस कार्य को बपतिस्मा किए जाने से पहले नहीं किया था। वह मात्र एक साधारण मनुष्य था, और एक साधारण मनुष्य का प्रतिनिधित्व करता था; यीशु के अपनी सेवकाई को क्रियान्वित करना शुरू करने से पहले, वह साधारण लोगों से भिन्न नहीं था, और दूसरे उसमें कोई भिन्नता नहीं देख सकते थे। जब वह 29 वर्ष का हो गया उसके बाद ही ऐसा हुआ कि यीशु ने जाना कि वह परमेश्वर के कार्य के एक चरण को पूरा करने के लिए आया है; इससे पहले, वह स्वयं यह नहीं जानता था, क्योंकि परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य अलौकिक नहीं था" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में')

हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से यह देख सकते हैं कि कोई भी यह नहीं जानता कि परमेश्वर देहधारण करके पृथ्वी पर कब आयेगा; यहाँ तक कि मनुष्य का पुत्र भी नहीं जानता। सिर्फ़ स्वर्ग का आत्मा ही यह जानता है। हालांकि, जब परमेश्वर अपना कार्य करना शुरू करेगा, तब पवित्र आत्मा देहधारी परमेश्वर के कार्यों की गवाही देगा, और फ़िर सुसमाचार का प्रचार करने के लिए परमेश्वर के विश्वासियों का इस्तेमाल करेगा; फ़िर धीरे-धीरे लोग इसके बारे में जान जायेंगे। यह बिलकुल वैसा ही है जैसा कि शुरुआत में यहोवा परमेश्वर ने मसीहा के आने की भविष्यवाणी करने के लिए एक पैगंबर का इस्तेमाल किया था, लेकिन मसीहा कब और कहाँ आएगा, यह सिर्फ़ यहोवा परमेश्वर ही जानता था। जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए देह में लौटा, तो वह खुद भी पहले यह नहीं जानता था कि वही मसीहा है, और वह छुटकारा दिलाने का कार्य करने के लिए आया है। उसने एक साधारण मनुष्य की तरह एक सामान्य जीवन जीया। दूसरे लोग यह नहीं जानते थे कि प्रभु यीशु ही मसीह है, स्वयं देहधारी परमेश्वर है। प्रभु यीशु के बपतिस्मा लेने के बाद, पवित्र आत्मा ने उसके लिए गवाही देना शुरू किया और प्रभु यीशु ने परमेश्वर के संकेतों और चमत्कारों को प्रदर्शित करते हुए, बीमारों को ठीक करते हुए और दुष्टों को बहिष्कृत करते हुए, मनुष्य के लिए पश्चाताप का मार्ग बताना शुरू किया। कुछ लोग धीरे-धीरे यह पहचान गए कि प्रभु यीशु ही मसीहा है। जिन लोगों ने पहले प्रभु यीशु के छुटकारा दिलाने के कार्य को स्वीकार किया था, जैसे कि पतरस और यूहन्ना, प्रभु के सुसमाचार को फैलाने के लिए विश्व भर में यात्रा करने लगे। इस प्रकार, प्रभु के उद्धार के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पता चला, और यह कार्य कई युगों से गुजरते हुए आज भी जारी है। आज दुनिया के हर हिस्से में विश्वासी मौजूद हैं।

प्रभु यीशु ने अंत के दिनों के लिए ये भविष्यवाणियाँ भी की थीं: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:48)। और बाइबल में यह भी दर्ज है: "सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है" (यूहन्ना 17:17)। "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। जब प्रभु लौटेगा, तो वह हमारी कद-काठी के अनुसार, उन सत्यों का ख़ुलासा करेगा जो कि अनुग्रह के युग की तुलना में बहुत ज़्यादा और उन्नत होंगे। वह अपने वचनों से हमारा न्याय करेगा और हमें शुद्ध करेगा, ताकि हम पाप के बंधनों से मुक्त हो सकें और इस प्रकार शुद्ध होकर परिवर्तित हो सकें। इसलिए, जब प्रभु अंत के दिनों में प्रकट होने और कार्य करने के लिए लौटेगा, तो निश्चित रूप से कुछ ऐसे लोग होंगे जो परमेश्वर की वाणी को सुनेंगे और उसके कार्य को स्वीकार करेंगे, और फ़िर प्रभु के लौटकर आने की खुशखबरी को फ़ैलाने के लिए चारों दिशाओं में यात्रा करेंगे। यह बिलकुल वैसा ही है जब हमने पहली बार प्रभु में विश्वास किया था; हमने इसे तभी स्वीकार किया जब हमने दूसरों को प्रभु यीशु का सुसमाचार फ़ैलाते हुए सुना। जैसा कि बाइबल में लिखा है, "अत: विश्‍वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है" (रोमियों 10:17)

इसलिए, जब हम प्रभु के लौटकर आने की खबर सुनते हैं, तो हमें आँखें मूंदकर इसे अस्वीकार नहीं करना चाहिए; हमें एक खुले दिमाग के साथ इसकी तलाश करनी चाहिए, सुसमाचार को फ़ैलाने वाले लोगों से यह पूछना चाहिए कि प्रभु ने लौटने के बाद क्या-क्या कार्य किये हैं, और उसने क्या-क्या वचन बोले हैं। अगर उनकी गवाहियाँ प्रभु की भविष्यवाणियों के साथ मेल खाती हैं, तो यह इस बात का प्रमाण है कि वह वास्तव में प्रकट होने और कार्य करने के लिए लौट आया है, इसलिये इसे स्वीकार करके और उसके प्रति समर्पित होकर हम प्रभु का स्वागत कर पाएंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि 'परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।' और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है')

पूरी दुनिया में, सिर्फ़ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ही खुले तौर पर प्रभु के लौट आने की गवाही दे रही है—अर्थात, अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत से सत्यों का ख़ुलासा किया है और लोगों का न्याय करने और उन्हें शुद्ध करने का कार्य किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ज़्यादातर कथन वचन देह में प्रकट होता है नाम की किताब में दर्ज हैं। परमेश्वर के वचनों ने सत्य के हर पहलू को स्पष्ट किया है। उसने परमेश्वर के देहधारणों के रहस्यों, बाइबल के अंदरूनी सत्यों, मानवजाति के लिए परमेश्वर की छह हज़ार साल की प्रबंधन योजना के उद्देश्य, उसके कार्य और मनुष्य के कार्य के बीच के अंतर को बहुत ही सरल तरीके से बताया है। साथ ही साथ, उसने यह भी बताया है कि परमेश्वर कैसे लोगों का न्याय करके उन्हें शुद्ध करता है, लोगों को परमेश्वर को कैसे जानना चाहिए, परमेश्वर हर मनुष्य के परिणाम और मंज़िल को कैसे निर्धारित करता है, वगैरह वगैरह। ये सत्य परमेश्वर के अपने कार्य से संबंधित हैं; ये सभी ऐसे रहस्य हैं जो स्पष्ट रूप से हमारे लिए उद्धार का मार्ग बताते हैं। हमें यह देखने की कोशिश में जुट जाना चाहिए कि क्या यह वास्तव में कलीसियाओं से वचन बोलने वाला पवित्र आत्मा है, और क्या यह वास्तव में अंत के दिनों का परमेश्वर है जो अपने घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य कर रहा है। इस तरह हम यह पुष्टि कर सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर वास्तव में लौटकर आया प्रभु यीशु है या नहीं। मेरा मानना है कि जब तक हम तलाश करने की इच्छा रखते हैं, प्रभु के लौटकर आने का स्वागत करने के लिए परमेश्वर हमारी अगुवाई करेगा! ऐसा इसलिए है, क्योंकि प्रभु यीशु ने कहा है, "धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:3)

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