सोमवार नवम्बर 25, 2024
आरंभ में परमेश्वर विश्राम में था। उस समय पृथ्वी पर कोई मनुष्य या अन्य कुछ भी नहीं था और परमेश्वर ने तब तक किसी भी तरह का कोई कार्य नहीं किया था। उसने अपने प्रबंधन का कार्य केवल तब आरंभ किया, जब मानवता अस्तित्व में आ गई और जब मानवता भ्रष्ट कर दी गई; उस पल से, उसने विश्राम नहीं किया बल्कि इसके बजाय उसने स्वयं को मानवता के बीच व्यस्त रखना आरंभ कर दिया...
परमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 11
कार्य के ये तीनों चरणों का निरन्तर उल्लेख क्यों किया गया है? युगों की समाप्ति, सामाजिक विकास और प्रकृति का बदलता हुआ स्वरूप सभी कार्य के तीनों चरणों में परिवर्तनों का अनुसरण करते हैं। मानवजाति परमेश्वर के कार्य के साथ समय के अनुसार बदलती है, और अपने आप में विकसित नहीं होती है। परमेश्वर के कार्यों के चरणों का उल्लेख करने का कारण सभी प्राणियों को और ... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 10
कार्य के तीनों चरण एक ही परमेश्वर के द्वारा किए गए थे; यही सबसे महान दर्शन है और परमेश्वर को जानने का एकमात्र मार्ग है। कार्य के तीनों चरण केवल स्वयं परमेश्वर के द्वारा ही किए गए हो सकते हैं, और कोई भी मनुष्य इस प्रकार का कार्य उसकी ओर से नहीं कर सकता है—कहने का तात्पर्य है कि आरंभ से लेकर आज तक केवल परमेश्वर स्वयं ही अपना स्वयं का कार्य कर सकता था... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 9
मनुष्यों के बीच परमेश्वर का कार्य मनुष्यों से छिपा नहीं है, और उन सभी को जानना चाहिए जो परमेश्वर की आराधना करते हैं। चूँकि परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच उद्धार के कार्य के तीन चरणों को पूरा किया है, इसलिए मनुष्य को कार्य के इन तीन चरणों के दौरान परमेश्वर के पास क्या है और वह क्या है इसकी अभिव्यक्ति को जानना चाहिए। यही मनुष्यों के द्वारा अवश्य किया जा... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 8
परमेश्वर स्वयं का कार्य वह दर्शन है जो मनुष्य को अवश्य जानना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर का कार्य मनुष्यों के द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है, और मनुष्यों के द्वारा धारण नहीं किया जाता है। कार्य के तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन की सम्पूर्णता हैं, और इससे बड़ा कोई दर्शन नहीं है जो मनुष्यों के द्वारा ज्ञात किया जाना चाहिए। यदि मनुष्य इस शक्तिशाली दर्शन ... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 7
कार्य के तीन चरण परमेश्वर के सम्पूर्ण कार्य का अभिलेख हैं, ये परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार का अभिलेख हैं, और ये काल्पनिक नहीं हैं। यदि तुम लोग परमेश्वर के सम्पूर्ण स्वभाव के ज्ञान की वास्तव में खोज करना चाहते हो, तो तुम लोगों को परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के तीनों चरणों को अवश्य जानना चाहिए और, इसके अलावा, तुम लोगों को किसी भी चरण को चूकना ... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 6
कार्य के तीनों चरण परमेश्वर के प्रबंधन का मुख्य केन्द्र हैं और उनमें परमेश्वर का स्वभाव और वह क्या है व्यक्त होते हैं। जो परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों के बारे में नहीं जानते हैं वे यह जानने में अक्षम हैं कि परमेश्वर कैसे अपने स्वभाव को व्यक्त करता है, न ही वे परमेश्वर के कार्य की बुद्धि को जानते हैं, और वे उन कई मार्गों जिनके माध्यम से वह मानवज... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 5
मानवजाति के प्रबंधन करने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है, जिसका अर्थ यह है कि मानवजाति को बचाने के कार्य को तीन चरणों में बाँटा जाता है। इन चरणों में संसार की रचना का कार्य समाविष्ट नहीं है, बल्कि ये व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग के कार्य के तीन चरण हैं। संसार की रचना करने का कार्य, सम्पूर्ण मानवजाति को उत्पन्न करने का कार... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 45
जब अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्त्ता का आगमन होता है, यदि उसे तब भी यीशु कहकर पुकारा जाता, और उसने एक बार फिर से यहूदिया में जन्म लिया होता, और यहूदिया में अपना काम किया होता, तो इससे यह प्रमाणित होता कि मैंने केवल इस्राएलियों की रचना की और केवल इस्राएलियों के लोगों को ही छुटकारा दिलाया, और यह कि अन्य जातियों से मेरा कोई वास्ता नहीं है। क्या यह म... और देखेंपरमेश्वर के दैनिक वचन : कार्य के तीन चरण | अंश 44
"यहोवा" वह नाम है जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोग) का परमेश्वर जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन को मार्गदर्शन दे सकता है। इसका अर्थ है वह परमेश्वर जिसके पास बड़ी सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है। "यीशु" इमैनुअल है, और इसका मतलब है ... और देखें