ऑनलाइन बैठक

मेन्‍यू

प्रभु की वापसी का स्वागत करने में गलतियाँ सबसे आसानी से होती हैं

हमारी धारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहना

जैसा कि हम सभी जानते हैं, व्यवस्था के युग में, यहूदी मुख्य याजक, शास्त्री और फरीसी मसीहा के आगमन के लिए उत्सुक थे, लेकिन साथ ही, उन्होंने उनका विरोध करने और उनकी निंदा करने की पूरी कोशिश की। उन्होंने भविष्यवाणियों के बारे में बहुत सारे भ्रम पाल रखे थे, उनका विचार था कि जब उद्धारकर्ता आए तो उसे मसीहा कहा जाना चाहिए, कि उसे शाही महल में या एक महान परिवार में या कम से कम एक प्रतिष्ठित परिवार में पैदा होना चाहिए। फिर भी जब प्रभु यीशु आए, तो उन्हें मसीहा नहीं कहा गया और उनका जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, जो कि पूरी तरह से उनकी धारणाओं और कल्पनाओं के खिलाफ था। तो उन्होंने प्रभु यीशु की निंदा की और और उनका तिरस्कार किया। वे प्रभु यीशु का विरोध करने और उन्हें नुकसान पहुँचाने के लिए अपने इस गलत विचार पर कायम रहे कि "जब तक आपको मसीहा नहीं कहा जाता है, आप मसीह नहीं हैं", उनके पास एक ऐसा दिल नहीं था जो सत्य की तलाश करता है। अंत में, न केवल वे मसीहा का स्वागत करने में विफल रहे, बल्कि उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उन्होंने एक राक्षसी पाप किया और पूरे राष्ट्र को विनाश के अधीन कर दिया गया।

यशायाह 55:8-9 कहते हैं: "मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।" यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के कार्य की थाह नहीं पा सकता है, इसलिए हम अपने मन की कल्पनाओं के अनुसार परमेश्वर के काम को नहीं चित्रित नहीं कर सकते। ईसाई के रूप में, हम परमेश्वर की जल्द वापसी के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं। उनका स्वागत करने के लिए, यहूदियों की गलती को दोहराने से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

प्रभु की वापसी का स्वागत करने के लिए एक समीक्षात्मक कदम

प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)। और प्रकाशितवाक्य ने भविष्यवाणी की "जिसके कान हों, वह सुन ले कि पवित्र आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्‍वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूँगा" (प्रकाशितवाक्य 2:7), तथा "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। इन पदों से, हम देख सकते हैं कि जब प्रभु लौटकर आएँगे, तो वे मानवता का न्याय और शुद्धिकरण करने के लिए काम का एक चरण करते हुए सत्य को व्यक्त करेंगे। तो, परमेश्वर की वापसी का स्वागत करने की मुख्य बात यह है कि हमें परमेश्वर की वाणी को सुनने पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें उनके वचन और काम के माध्यम से जानने की कोशिश करनी चाहिए, बुद्धिमान कुंवारियोंकी तरह, जो दूल्हे का अभिवादन करने गयीं जब उन्होंने उनकी वाणी सुनी।

प्रभु यीशु मसीह लोगों के साथ संगति करता है

यह सोचकर कि जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए आए, तो उन्होंने पतरस, यूहन्ना, मत्ती, मरकुस और अन्य लोगों को बुलाया। हालाँकि उन्होंने नहीं पहचाना कि प्रभु यीशु मसीहा हैं, लेकिन क्योंकि उन्होंने पाया कि उनके उपदेशों में सच्चाई है, वे प्रभु का पालन करने और उनका अनुसरण करने में सक्षम हो पाए, बजाय इसके कि वे अपनी आँखों से देखकर या दूसरों की बातें सुनकर उन्हें आंकें। वैसे ही नतनएल भी, जो तुरंत आश्वस्त हो गया था और उसने विश्वास कर लिया था कि प्रभु यीशु ही एक आने वाला था और जब उसने प्रभु यीशु को अपने दिल के विचारों को बोलते सुना तो उसने उनका अनुसरण किया। साथ ही, बहुत से लोगों ने प्रभु यीशु के उपदेश और सत्य को सुनने के बाद प्रभु यीशु का अनुसरण किया, जैसे कि ये पद "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17), "तू परमेश्‍वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था एवं भविष्यद्वक्ताओं का आधार है" (मत्ती 22:37-40), इत्यादि, और जब उन्होंने प्रभु यीशु के कार्यों को देख लिया: पाँच हज़ार लोगों को पाँच रोटियों और दो मछलियों से खिलाना, हवा और समुद्र को शांत करना, एक शब्द से मृत को फिर से जीवित करना, आदि। उपर्युक्त बातों से, हम देख सकते हैं कि ये लोग अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर आश्रित नहीं थे, और फरीसियों द्वारा विवश नहीं थे। इसके बजाय, उनके कथन और काम के माध्यम से, उन्होंने पहचाना कि प्रभु यीशु आने वाले मसीहा थे और इस तरह उनका अनुसरण किया। इसलिए उन्होंने प्रभु का स्वागत किया, उनकी नियति अन्य यहूदियों से बहुत अलग थी।

इसलिए, यदि हम अंतिम दिनों में प्रभु की वापसी का स्वागत करना चाहते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं को जाने दें और परमेश्वर की आवाज को सुनना सीखें। जब हम किसी को गवाही देते सुनते हैं कि प्रभु काम करने और सच्चाई को व्यक्त करने के लिए प्रकट हुआ है, तो हमें विनम्रतापूर्वक यह देखने की तलाश करनी चाहिए कि क्या इस मार्ग में सच्चाई है और अगर यह परमेश्वर की आवाज़ है। हमें अपनी इच्छा के अनुसार प्रभु को हमारे सामने प्रकट होने के लिए नहीं कहना चाहिए, अन्यथा यह पूरी तरह से अनुचित है और हम प्रभु की वापसी का स्वागत करने के हमारे अवसर को खो देने के लिये उपयुक्त होंगे।

क्या आप यीशु की वापसी का स्वागत करने के बारे में अधिक जानना चाहते हैं? हमारे “प्रभु यीशु का स्वागत करें” पृष्ठ पर या नीचे दी गई सामग्री में ज़्यादा जानकारी पाएं।

उत्तर यहाँ दें