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मेन्‍यू

झूठे मसीह को कैसे पहचाना जा सकता है और उसके प्रमाण चिह्न कौन-कौन से हैं

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:23-24)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर का सार धारण करता है, और अपने कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि धारण करता है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। वे जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते हैं, धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्य के बीच रहकर अपना कार्य करता और पूरा करता है। यह देह किसी भी आम मनुष्य द्वारा उसके बदले धारण नहीं की जा सकती है, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से संभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। जो मसीह का भेस धारण करते हैं, उनका देर-सवेर पतन हो जाएगा, क्योंकि वे भले ही मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि स्वयं परमेश्वर द्वारा ही इसका उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है' से उद्धृत

एक झूठा मसीह क्या होता है?

जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना' से उद्धृत

यद्यपि पृथ्वी पर मसीह, स्वयं परमेश्वर के स्थान पर कार्य करने में समर्थ है, पर वह सभी मनुष्यों को देह में अपनी छवि दिखाने के आशय से नहीं आता। वह सब लोगों को अपना दर्शन कराने नहीं आता; वह मनुष्य को अपने हाथ की अगुआई में चलने की अनुमति देने आता है, और इस प्रकार मनुष्य नए युग में प्रवेश करता है। मसीह की देह का काम स्वयं परमेश्वर के कार्य के लिए है, यानी देह में परमेश्वर के कार्य के लिए है, और अपनी देह के सार को पूर्णत: मनुष्य को समझाने में समर्थ करने के लिए नहीं है। चाहे वह जैसे भी कार्य करे, वह कुछ ऐसा नहीं करता, जो देह के लिए प्राप्य से परे हो। चाहे वह जैसे कार्य करे, वह ऐसा देह में होकर सामान्य मानवता के साथ करता है और वह मनुष्य के सामने परमेश्वर की वास्तविक मुखाकृति प्रकट नहीं करता। इसके अतिरिक्त, देह में उसका कार्य इतना अलौकिक या अपरिमेय नहीं है, जैसा मनुष्य समझता है। यद्यपि मसीह देह में स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है और व्यक्तिगत रूप से वह कार्य करता है, जिसे स्वयं परमेश्वर को करना चाहिए, वह स्वर्ग में परमेश्वर के अस्तित्व को नहीं नकारता, न ही वह उत्तेजनापूर्वक अपने स्वयं के कर्मों की घोषणा करता है। इसके बजाय, वह विनम्रतापूर्वक अपनी देह के भीतर छिपा रहता है। मसीह के अलावा, जो मसीह होने का झूठा दावा करते हैं, उनमें उसकी विशेषताएं नहीं हैं। अभिमानी और ख़ुद की बढ़ाई के स्वभाव वाले उन झूठे मसीहों से तुलना में यह स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में किस प्रकार की देह में मसीह है। जितने वे झूठे होते हैं, उतना ही अधिक इस प्रकार के झूठे मसीह स्वयं का दिखावा करते हैं और उतना ही लोगों को धोखा देने के लिये वे ऐसे संकेत और चमत्कार करने में समर्थ होते हैं। झूठे मसीहों में परमेश्वर के गुण नहीं होते; मसीह पर झूठे मसीहों से संबंधित किसी भी तत्व का दाग़ नहीं लगता। परमेश्वर केवल देह का कार्य पूर्ण करने के लिए देहधारी बनता है, न कि महज़ मनुष्यों को उसे देखने की अनुमति देने के लिए। इसके बजाय, वह अपने कार्य से अपनी पहचान की पुष्टि होने देता है और जो वह प्रकट करता है, उसे अपना सार प्रमाणित करने देता है। उसका सार निराधार नहीं है; उसकी पहचान उसके हाथ से ज़ब्त नहीं की गई थी; यह उसके कार्य और उसके सार से निर्धारित होती है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है' से उद्धृत

कार्य के इस चरण में, परमेश्वर संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता, ताकि कार्य वचनों के माध्यम से अपने परिणाम प्राप्त करे। क्योंकि देहधारी परमेश्वर का इस बार का कार्य बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना नहीं है, बल्कि बोलकर मनुष्य को जीतना है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर के इस देहधारण का सहज गुण वचन बोलना और मनुष्य को जीतना है, न कि बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना। सामान्य मानवता में उसका कार्य चमत्कार करना नहीं है, बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना नहीं है, बल्कि बोलना है, और इसलिए दूसरा देहधारी देह लोगों को पहले वाले की तुलना में अधिक सामान्य लगता है। लोग देखते हैं कि परमेश्वर का देहधारण मिथ्या नहीं है; बल्कि यह देहधारी परमेश्वर यीशु के देहधारण से भिन्न है, हालाँकि दोनों ही परमेश्वर के देहधारण हैं, फिर भी वे पूरी तरह से एक नहीं हैं। यीशु में सामान्य और साधारण मानवता थी, लेकिन उसमें अनेक संकेत और चमत्कार दिखाने की शक्ति थी। जबकि इस देहधारी परमेश्वर में, मानवीय आँखों को न तो कोई संकेत दिखाई देगा, और न कोई चमत्कार, न तो बीमार चंगे होते हुए दिखाई देंगे, न ही दुष्टात्माएँ बाहर निकाली जाती हुई दिखाई देंगी, न तो समुद्र पर चलना दिखाई देगा, न ही चालीस दिन तक उपवास रखना दिखाई देगा...। वह उसी कार्य को नहीं करता जो यीशु ने किया, इसलिए नहीं कि उसका देह सार रूप में यीशु से भिन्न है, बल्कि इसलिए कि बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना उसकी सेवकाई नहीं है। वह अपने ही कार्य को ध्वस्त नहीं करता, अपने ही कार्य में विघ्न नहीं डालता। चूँकि वह मनुष्य को अपने वास्तविक वचनों से जीतता है, इसलिए उसे चमत्कारों से वश में करने की आवश्यकता नहीं है, और इसलिए यह चरण देहधारण के कार्य को पूरा करने के लिए है। आज तुम जिस देहधारी परमेश्वर को देखते हो वह पूरी तरह से देह है, और उसमें कुछ भी अलौकिक नहीं है। वह दूसरों की तरह ही बीमार पड़ता है, उसे बाकी लोगों की तरह ही बीमार पड़ता है, उसी तरह उसे भोजन और कपड़ों की आवश्यकता होती है; वह पूरी तरह से देह है। यदि इस बार भी देहधारी परमेश्वर अलौकिक संकेत और चमत्कार दिखाता, बीमारों को चंगा करता, दुष्टात्माओं को निकालता, या एक वचन से मार सकता, तो विजय का कार्य कैसे हो पाता? कार्य को अन्यजाति राष्ट्रों में कैसे फैलाया जा सकता था? बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना अनुग्रह के युग का कार्य था, छुटकारे के कार्य का यह पहला चरण था, और अब जबकि परमेश्वर ने लोगों को सलीब से बचा लिया है, इसलिए अब वह उस कार्य को नहीं करता। यदि अंत के दिनों में यीशु के जैसा ही कोई "परमेश्वर" प्रकट हो जाता, जो बीमार को चंगा करता और दुष्टात्माओं को निकालता, और मनुष्य के लिए सलीब पर चढ़ाया जाता, तो वह "परमेश्वर", बाइबल में वर्णित परमेश्वर के समरूप तो अवश्य होता और उसे मनुष्य के लिए स्वीकार करना भी आसान होता, लेकिन तब वह अपने सार रूप में, परमेश्वर के आत्मा द्वारा नहीं, बल्कि एक दुष्टात्मा द्वारा धारण किया गया देह होता। क्योंकि जो परमेश्वर ने पहले ही पूरा कर लिया है, उसे कभी नहीं दोहराना, यह परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत है। इसलिए परमेश्वर के दूसरे देहधारण का कार्य पहले देहधारण के कार्य से भिन्न है। अंत के दिनों में, परमेश्वर विजय का कार्य एक सामान्य और साधारण देह में पूरा करता है; वह बीमार को चंगा नहीं करता, उसे मनुष्य के लिए सलीब पर नहीं चढ़ाया जाएगा, बल्कि वह केवल देह में वचन कहता है, देह में मानव को जीतता है। ऐसा देह ही देहधारी परमेश्वर का देह है; ऐसा देह ही देह में परमेश्वर के कार्य को पूर्ण कर सकता है।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार' से उद्धृत

यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। परमेश्वर का कार्य मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता; उदाहरण के लिए, पुराने नियम ने मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी की, और इस भविष्यवाणी का परिणाम यीशु का आगमन था। चूँकि यह पहले ही घटित हो चुका है, इसलिए एक और मसीहा का पुनः आना ग़लत होगा। यीशु एक बार पहले ही आ चुका है, और यदि यीशु को इस समय फिर आना पड़ा, तो यह गलत होगा। प्रत्येक युग के लिए एक नाम है, और प्रत्येक नाम में उस युग का चरित्र-चित्रण होता है। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए।

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आज परमेश्वर के कार्य को जानना' से उद्धृत

कुछ ऐसे लोग हैं, जो दुष्टात्माओं से ग्रस्त हैं और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते रहते हैं, "मैं परमेश्‍वर हूँ!" लेकिन अंत में, उनका भेद खुल जाता है, क्योंकि वे गलत चीज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे शैतान का प्रतिनिधित्व करते हैं, और पवित्र आत्मा उन पर कोई ध्यान नहीं देता। तुम अपने आपको कितना भी बड़ा ठहराओ या तुम कितना भी जोर से चिल्लाओ, तुम फिर भी एक सृजित प्राणी ही रहते हो और एक ऐसा प्राणी, जो शैतान से संबंधित है। मैं कभी नहीं चिल्लाता, "मैं परमेश्वर हूँ, मैं परमेश्वर का प्रिय पुत्र हूँ!" परंतु जो कार्य मैं करता हूँ, वह परमेश्वर का कार्य है। क्या मुझे चिल्लाने की आवश्यकता है? मुझे ऊँचा उठाए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर अपना काम स्वयं करता है और वह नहीं चाहता कि मनुष्य उसे हैसियत या सम्मानजनक उपाधि प्रदान करे : उसका काम उसकी पहचान और हैसियत का प्रतिनिधित्व करता है। अपने बपतिस्मा से पहले क्या यीशु स्वयं परमेश्वर नहीं था? क्या वह परमेश्वर द्वारा धारित देह नहीं था? निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि केवल गवाही मिलने के पश्चात् ही वह परमेश्वर का इकलौता पुत्र बना। क्या उसके द्वारा काम शुरू करने से बहुत पहले ही यीशु नाम का कोई व्यक्ति नहीं था? तुम नए मार्ग लाने या पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो। तुम पवित्र आत्मा के कार्य को या उसके द्वारा बोले जाने वाले वचनों को व्यक्त नहीं कर सकते। तुम स्वयं परमेश्वर का या पवित्रात्मा का कार्य करने में असमर्थ हो। परमेश्वर की बुद्धि, चमत्कार और अगाधता, और उसके स्वभाव की समग्रता, जिसके द्वारा परमेश्वर मनुष्य को ताड़ना देता है—इन सबको व्यक्त करना तुम्हारी क्षमता के बाहर है। इसलिए परमेश्वर होने का दावा करने की कोशिश करना व्यर्थ होगा; तुम्हारे पास सिर्फ़ नाम होगा और कोई सार नहीं होगा। स्वयं परमेश्वर आ गया है, किंतु कोई उसे नहीं पहचानता, फिर भी वह अपना काम जारी रखता है और ऐसा वह पवित्रात्मा के प्रतिनिधित्व में करता है। चाहे तुम उसे मनुष्य कहो या परमेश्वर, प्रभु कहो या मसीह, या उसे बहन कहो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। परंतु जो कार्य वह करता है, वह पवित्रात्मा का है और वह स्वयं परमेश्वर के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि मनुष्य उसे किस नाम से पुकारता है। क्या वह नाम उसके काम का निर्धारण कर सकता है? चाहे तुम उसे कुछ भी कहकर पुकारो, जहाँ तक परमेश्वर का संबंध है, वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारी स्वरूप है; वह पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करता है और उसके द्वारा अनुमोदित है। यदि तुम एक नए युग के लिए मार्ग नहीं बना सकते, या पुराने युग का समापन नहीं कर सकते, या एक नए युग का सूत्रपात या नया कार्य नहीं कर सकते, तो तुम्हें परमेश्वर नहीं कहा जा सकता!

— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'देहधारण का रहस्य (1)' से उद्धृत

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