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मेन्‍यू

पूरी धार्मिक दुनिया इतनी निराशाजनक क्यों है? हमें "प्रकाशितवाक्य" पुस्तक में धार्मिक दुनिया के प्रति परमेश्वर के शाप को कैसे समझना चाहिए?

प्रश्न: हाल के वर्षों में, धार्मिक संसार में विभिन्न मत और संप्रदाय अधिक से अधिक निराशाजनक हो गए हैं, लोगों ने अपना मूल विश्वास और प्यार खो दिया है और वे अधिक से अधिक नकारात्मक और कमज़ोर बन गए हैं। हम उत्साह का मुरझाना भी देखते हैं और हमें लगता है कि हमारे पास प्रचार करने के लिए कुछ नहीं है और हम सभी ने पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है। कृपया हमें बताओ, पूरी धार्मिक दुनिया इतनी निराशाजनक क्यों है? क्या परमेश्वर वास्तव में इस दुनिया से नफरत करता है और क्या उसने इसे त्याग दिया है? हमें "प्रकाशितवाक्य" पुस्तक में धार्मिक दुनिया के प्रति परमेश्वर के शाप को कैसे समझना चाहिए?

उत्तर:

अब, धर्म की पूरी दुनिया पवित्र आत्मा के कार्य से रहित, व्यापक वीरानी का सामना कर रही है, और कई लोगों का विश्वास और प्रेम ठंडा हो गया है—यह पहले से ही एक स्वीकृत तथ्य बन गया है। धार्मिक मण्डलों में वीरानी का प्राथमिक कारण वास्तव में क्या है, यह ऐसा प्रश्न है जिसे हम सभी को अच्छी तरह से अवश्यसमझना चाहिए। सबसे पहले, आइए हम ज़रा इस बात पर ध्यान दें कि क्यों व्यवस्था के युग के बाद के दिनों में मंदिर वीरान हो गया था, और तब हम अंत के दिनों में धार्मिक दुनिया की वीरानी के कारण को अच्छी तरह से समझ पाएँगे। व्यवस्था के युग के बाद के दिनों में, यहूदी अगुवाओं ने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं किया। वे अपने स्वयं के मार्ग पर चले और परमेश्वर के विरुद्ध गए; यही मुख्य कारण है जिसके प्रत्यक्ष परिणामस्वरूप मंदिर वीरान हुआ। प्रभु यीशु ने यह कहकर फरीसियों को उजागर किया और फटकार लगाई: "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम चूना फिरी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं। इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो" (मत्ती 23:27-28)

पूरी धार्मिक दुनिया इतनी निराशाजनक क्यों है

"हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम भविष्यद्वक्‍ताओं की कब्रें सँवारते और धर्मियों की कब्रें बनाते हो, और कहते हो, 'यदि हम अपने बापदादों के दिनों में होते तो भविष्यद्वक्‍ताओं की हत्या में उनके साझी न होते।' इससे तो तुम अपने पर आप ही गवाही देते हो कि तुम भविष्यद्वक्‍ताओं के हत्यारों की सन्तान हो। अत: तुम अपने बापदादों के पाप का घड़ा पूरी तरह भर दो। हे साँपो, हे करैतों के बच्‍चो, तुम नरक के दण्ड से कैसे बचोगे? इसलिये देखो, मैं तुम्हारे पास भविष्यद्वक्‍ताओं और बुद्धिमानों और शास्त्रियों को भेजता हूँ; और तुम उनमें से कुछ को मार डालोगे और क्रूस पर चढ़ाओगे, और कुछ को अपने आराधनालयों में कोड़े मारोगे और एक नगर से दूसरे नगर में खदेड़ते फिरोगे। जिससे धर्मी हाबिल से लेकर बिरिक्याह के पुत्र जकरयाह तक, जिसे तुम ने मन्दिर और वेदी के बीच में मार डाला था, जितने धर्मियों का लहू पृथ्वी पर बहाया गया है वह सब तुम्हारे सिर पर पड़ेगा। मैं तुम से सच कहता हूँ, ये सब बातें इस समय के लोगों पर आ पड़ेंगी" (मत्ती 23:29-36)

"'यशायाह ने तुम कपटियों के विषय में बहुत ठीक भविष्यद्वाणी की; जैसा लिखा है: ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उनका मन मुझ से दूर रहता है। ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्यों की आज्ञाओं को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं। क्योंकि तुम परमेश्‍वर की आज्ञा को टालकर मनुष्यों की रीतियों को मानते हो।' उसने उनसे कहा, 'तुम अपनी परम्पराओं को मानने के लिये परमेश्‍वर की आज्ञा कैसी अच्छी तरह टाल देते हो!'" (मरकुस 7:6-9)

प्रभु यीशु के वचनों से, जिन्होंने फरीसियों को उजागर किया, यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि यहूदी मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों की करतूतें परमेश्वर का अनादर करना थीं और उसके विरुद्ध गई थीं। उन्होंने केवल धार्मिक परंपराओं का पालन करते हुए, परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आदेशों का उल्लंघन किया था। यह इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि उनका परमेश्वर की सेवा करना वास्तव में उसका अनादर करना था, और यह परमेश्वर की इच्छा के विपरीत जाता था। विशेष रूप से प्रभु यीशु की अभिव्यक्ति और कार्य के समय, उन्होंने उसकी बेतहाशा निंदा की और उसका अनादर किया, इससे उनके स्वभाव और सार अच्छी तरह से उजागर हुए थे। इस तरह यह देखा जा सकता है कि यहूदी धर्म के वीरान होने का मुख्य कारण यह था कि यहूदी मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों ने परमेश्वर का अनादर किया और उसके विरुद्ध गए। एक अन्य कारण यह था कि परमेश्वर का कार्य पहले ही स्थानांतरित हो चुका था। देहधारी प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में मंदिर के बाहर छुटकारे का कार्य आरम्भ कर दिया था। अर्थात्, परमेश्वर का कार्य व्यवस्था के युग के कार्य की बुनियाद पर आगे बढ़ गया, और परमेश्वर के कार्य का मूल अनुग्रह के युग में छुटकारे के कार्य में चला गया। जब प्रभु यीशु ने छुटकारे का अपना कार्य शुरू कर दिया, तो अनुग्रह का युग शुरू हो गया और व्यवस्था का युग समाप्त हो गया। जो लोग प्रभु यीशु को स्वीकार करते थे, केवल उनमें पवित्र आत्मा का कार्य और प्रभु का मार्गदर्शन था, जबकि जो लोग मंदिर में बने रहे, जिन्होंने प्रभु यीशु को एक ओर कर दिया, उसका अनादर किया और उसकी निंदा की, वे परमेश्वर के कार्य द्वारा स्वाभाविक रूप से त्याग दिए गए, अंधकार में गिर गए और परमेश्वर के शापों और दंडों के भागी बने। इसलिए, हम यह निश्चितता से कह सकते हैं कि व्यवस्था के युग के दौरान धर्म की दुनिया की वीरानी अधिक निश्चित रूप से मनुष्य द्वारा उत्पन्न की गई थी और पूरी तरह से इसलिए थी क्योंकि धार्मिक अगुवा प्रभु के मार्ग से भटक गए थे, प्रभु की आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे, परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध चले गए थे और उन्होंने स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध कर लिया था। यदि यहूदी अगुवा प्रभु के मार्ग को थामे रहने और प्रभु की आज्ञाओं का पालन करने में समर्थ रहे होते, तो क्या प्रभु यीशु तब भी उपदेश देने और कार्य करने के लिए जंगल में गया होता? क्या वह तब भी उन लोगों की खोज करने के लिए अविश्वासियों के बीच गया होता जो परमेश्वर का अनुसरण करेंगे? बिलकुल नहीं। प्रभु यीशु उपदेश देने के लिए, मनुष्य को दिखाई देते हुए और अपना कार्य करते हुए, निश्चित रूप से पहले मंदिर और आराधनालयों में गया होता। तो प्रभु यीशु ने ऐसा क्यों नहीं किया? स्पष्ट है कि ऐसा पूरी तरह से इसलिए था क्योंकि जो मंदिर के भीतर और आराधनालयों के भीतर थे वे प्रभु यीशु को स्वीकार नहीं करते थे, बल्कि इसके बजाय उसकी निंदा और उसका अनादर करते थे, यहाँ तक कि हर जगह जाकर उसे गिरफ्तार करने की कोशिश करते थे। इस वजह से, प्रभु यीशु के पास उपदेश देने और कार्य करने के लिए जंगल में जाने और उन लोगों की खोज करने के लिए जो उनका अनुसरण करेंगे, अविश्वासियों के बीच जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। बुद्धिमान लोग इस तथ्य को स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं।

अब जबकि हम व्यवस्था के युग के बाद के दिनों में धार्मिक दुनिया की वीरानी का कारण समझते हैं, तो आइए हम अंत के दिनों में धार्मिक दुनिया की वीरानी के कारण पर नज़र डालें। हम सभी देख सकते हैं कि अंत के दिनों में धार्मिक दुनिया के पादरी और एल्डर्स मुख्य रूप से कलीसियाओं के भीतर बाइबल के ज्ञान और धार्मिक सिद्धांतों का उपदेश देने को अपनी प्राथमिकता के रूप में लेते हैं। वे अपने आप पर इतराने और दिखावा करने के लिए प्रायः शास्त्र की व्याख्याओं का उपयोग करते हैं ताकि दूसरे लोग उनकी आराधना करें, वे प्रभु यीशु के वचनों या आदेशों का पालन नहीं करते हैं और प्रभु के मार्ग पर नहीं चलते हैं। वे शायद ही कभी जीवन में प्रवेश के बारे में उपदेश देते हैं, और वे कभी भी लोगों को प्रभु के वचनों का उस तरह से अभ्यास या अनुभव करने के लिए अगुवाई नहीं करते हैं जो उन्हें प्रभु के बारे में सत्य और ज्ञान की समझ प्राप्त करवाएगा। इसका परिणाम धार्मिक मंडलियों के सभी विश्वासियों का प्रभु के मार्ग से भटकना है। उन्होंने कई वर्षों तक प्रभु पर विश्वास भी किया होगा, फिर भी वे सभी जो समझते हैं वह केवल बाइबल का ज्ञान और धार्मिक सिद्धांत है; उनके पास प्रभु के ज्ञान का नितान्त अभाव है, और उसके लिए उनमें कोई आदर या आज्ञाकारिता नहीं है। वे प्रभु के वचनों से पूरी तरह से भटक गए हैं और ऐसे लोग बन गए हैं जो प्रभु में तो विश्वास करते हैं लेकिन उसे जानते नहीं हैं, जो प्रभु का अनादर करने और उसके साथ विश्वासघात करने में सक्षम हैं। इससे यह देखा जा सकता है कि धर्म की दुनिया के अगुवा प्रभु के मार्ग से पूरी तरह से भटक गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने पवित्र आत्मा का कार्य गँवा दिया है और परमेश्वर के आशीष गँवा दिए हैं; ऐसा कहा जा सकता है कि यह धर्म की दुनिया की वीरानी का प्राथमिक कारण है। एक अन्य कारण यह है कि परमेश्वर का कार्य स्थानांतरित हो गया है और प्रभु यीशु देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में पहले ही लौट आया है जो प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय का कार्य कर रहा है। उसने राज्य के युग की स्थापना की है और अनुग्रह के युग को समाप्त किया है। पवित्र आत्मा के कार्य का मूल अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य में स्थानांतरित हो गया है, और केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने वालों के पास ही पवित्र आत्मा का कार्य होगा और वे उस जीवन जल की आपूर्ति का आनंद लेने में सक्षम होंगे जो सिंहासन से बहता है। जो लोग परमेश्वर के वर्तमान कार्य के साथ बने नहीं रह सकते और जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, वे पवित्र आत्मा के कार्य को गँवा चुके हैं और अंधकार में गिर गए हैं। विशेष रूप से धर्म की दुनिया के पादरी और एल्डर्स, जो अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का सामना कर रहे हैं, न केवल वे इसकी तलाश या खोज नहीं करते हैं, बल्कि वे विश्वासियों को धोखा देने और नियंत्रित करने और लोगों को सच्चे मार्ग की तलाश और खोज करने से रोकने लिए परमेश्वर का बेतहाशा अनादर और उसकी निंदा भी करते हैं, वे सभी प्रकार की अफवाहों और झूठों को फैलाते हैं। उन्होंने बहुत पहले परमेश्वर के स्वभाव को भड़का दिया था और परमेश्वर से घृणा और शाप अर्जित किया था, इसलिए भला कैसे उन्हें परमेश्वर के द्वारा त्यागा और हटाया नहीं जा सकता था? अब हम देख चुके हैं कि चार रक्त चंद्रमाओं के प्रकट होने के बाद महान आपदाएँ घटित होने के कगार पर होंगी। वे सभी लोग जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं किया है, वे निश्चित रूप से आपदा में पड़ेंगे और उसमें ताड़ना और शुद्धिकरण को भुगतेंगे, जबकि जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लिया है, ये वे लोग होंगे जिनका आपदा से पहले स्वर्गारोहण कर लिया जाता है। जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार नहीं किया है वे केवल आपदाओं में गिर सकते हैं और आपदाओं के बाद स्वर्गारोहण की प्रतीक्षा ही कर सकते हैं। क्या ऐसे लोगों को प्रभु के द्वारा त्यागा और हटाया नहीं जाएगा? आपदा के बाद, स्वर्गारोहण किए जाने के लिए कितने लोग छूटे रह सकते हैं? अब, धर्म की लगभग पूरी दुनिया पादरियों और अगुवाओं के इस गिरोह के नियंत्रण में है जो सत्य से नफ़रत करते हैं और स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध स्थापित करते हैं, तो इस स्थिति में यह पवित्र आत्मा के कार्य को कैसे प्राप्त कर सकती है? और यह वीरान होने से कैसे बच सकती है? यह धार्मिक दुनिया के वीरान होने का मूल कारण है।

अब हम धर्म की दुनिया के वीरान होने के प्राथमिक कारण को समझते हैं, जो यह है कि धर्म की दुनिया के अगुवा प्रभु के वचनों का अनुसरण नहीं करते हैं, बल्कि इसके विपरीत वे उसके मार्ग से भटक गए हैं, वे उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर की इच्छा का पूरी तरह से उल्लंघन किया है और ऐसे लोग बन गए हैं जो परमेश्वर का अनादर करते हैं। दूसरा, क्योंकि धर्म की दुनिया के अगुवा ऐसे लोग बन गए हैं जो परमेश्वर का अनादर करते हैं और उनमें से कोई भी परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने या उसका पालन करने में समर्थ नहीं है, इसलिए परमेश्वर ने अपने कार्य को स्थानांतरित कर दिया है, और धर्म की दुनिया ने पवित्र आत्मा के कार्य को गँवा दिया है और अंधकार में गिर गई है। फिर क्यों, उस समय जब प्रभु यीशु ने अपना कार्य किया, तो उसने मंदिर में उपदेश नहीं दिया? ऐसा इसलिए था क्योंकि मंदिर के सभी याजक और एल्डर्स ऐसे लोग थे जिन्होंने प्रभु का अनादर किया था। यदि प्रभु यीशु ने मंदिर में प्रवेश किया होता, तो उसे केवल एक तरफ कर दिया जाता और उसकी निंदा की जाती, या उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता और सूली पर चढ़ा दिया जाता—क्या यह एक तथ्य नहीं है? परमेश्वर का अपने कार्य को स्थानांतरित करने का यह प्राथमिक कारण है। यदि मंदिर के याजक और एल्डर्सप्रभु के वचनों का अनुसरण करने और उसकी इच्छा के अनुरूप परमेश्वर की सेवा करने में सक्षम रहे होते, तो मंदिर कैसे वीरान हो सकता था? और परमेश्वर अपने कार्य को स्थानांतरित कैसे कर सकता था? क्या यही मामला नहीं है? धर्म की दुनिया की वीरानी पूरी तरह से बाइबल में दी गई इस भविष्यवाणी को भी पूरा करती है: "'जब कटनी के तीन महीने रह गए, तब मैं ने तुम्हारे लिये वर्षा न की; मैं ने एक नगर में जल बरसाकर दूसरे में न बरसाया; एक खेत में जल बरसा, और दूसरा खेत जिस में न बरसा, वह सूख गया। इसलिये दो तीन नगरों के लोग पानी पीने को मारे मारे फिरते हुए एक ही नगर में आए, परन्तु तृप्‍त न हुए; तौभी तुम मेरी ओर न फिरे,' यहोवा की यही वाणी है" (आमोस 4:7-8)। "परमेश्‍वर यहोवा की यह वाणी है, 'देखो, ऐसे दिन आते हैं, जब मैं इस देश में महँगी करूँगा; उस में न तो अन्न की भूख और न पानी की प्यास होगी, परन्तु यहोवा के वचनों के सुनने ही की भूख प्यास होगी'" (आमोस 8:11)। बाइबल के इन दो अंशों से हम समझ सकते हैं कि "एक नगर में जल बरसाकर" में "एक नगर" उस कलीसिया को संदर्भित करता है जहाँ देहधारी परमेश्वर प्रकट होता है और अपना कार्य करता है, और "दूसरे में न बरसाया" में "दूसरे नगर" स्वाभाविक रूप से धर्म की दुनिया को संदर्भित करता है जो परमेश्वर के वचनों पर ध्यान नहीं देती है, परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करती है, और जो देहधारी परमेश्वर की अभिव्यक्ति प्रकटन और कार्य को नकारती है, उसका अनादर करती है और उसकी निंदा करती है। जो लोग धर्म के भीतर हैं, जो परमेश्वर पर ईमानदारी से विश्वास करते हैं और सत्य से प्रेम करते हैं, परमेश्वर उन पर अकाल लाते हैं, ताकि उन्हें इस मार्ग को छोड़ने के लिए बाध्य किया जा सके, ताकि वे परमेश्वर के कार्य के पदचिह्नों की खोज कर सकें, पवित्र आत्मा सभी कलीसियाओं से क्या कहता है इसकी खोज कर सकें और परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की तलाश कर सकें। वे सभी जो परमेश्वर की वाणी को सुनते हैं और जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसका आज्ञापालन करते हैं, वे बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं और वे हैं जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने उठा लिए जाते हैं। ये सभी लोग मेमने के विवाह भोज में भाग ले रहे हैं और जीवन जल के सतत प्रवाह का आनंद ले रहे हैं जो सिंहासन से बहता है; उनका मूल विश्वास और प्रेम बहाल हो गया है। वे परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने और उन्हें अभ्यास में लाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, इस तरह वे सत्य और वास्तविकता में प्रवेश की समझ प्राप्त करेंगे। जब ये लोग सत्य को समझ लेते हैं और परमेश्वर के बारे में सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, तो वे परमेश्वर का आदर कर पाएँगे और उसका आज्ञापालन कर पाएँगे, और इस तरह परमेश्वर से एक नया जीवन प्राप्त कर पाएँगे! उन सभी धार्मिक संगठनों या व्यक्तियों से, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, परमेश्वर नफ़रत करता है, उन्हें अस्वीकृत कर देता है और हटा देता है, इस तरह वे पवित्र आत्मा के कार्य से रहित होते हैं—यह पूर्णतया संदेह से परे है! आइए हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ें: "परमेश्वर इस सत्य को पूर्ण करेगा: वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लोगों को अपने सामने आने देगा, और पृथ्वी पर परमेश्वर की आराधना करवाएगा, अन्य स्थानों पर उसका कार्य समाप्त हो जाएगा और लोगों को सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर किया जाएगा। यह यूसुफ की तरह होगा: हर कोई भोजन के लिए उसके पास आया, और उसके सामने झुका, क्योंकि उसके पास खाने की चीज़ें थीं। अकाल से बचने के लिए लोग सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर हो जाएँगे। सम्पूर्ण धार्मिक समुदाय गंभीर भूखमरी से पीड़ित होगाऔर केवल परमेश्वर ही आज, मनुष्य के आनन्द के लिए हमेशा बहने वाले स्रोत को धारण किए हुए, जीवन के जल का स्रोत है, और लोग आकर उस पर निर्भर हो जाएँगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "सहस्राब्दि राज्य आ चुका है")। "समस्त ब्रम्हांड में परमेश्वर के सारे कार्यों में इसी एक जनसमूह पर ध्यान केंद्रित किया गया है। उसने अपने सभी प्रयास तुम लोगों के लिये समर्पित किये और तुम्हारे लिये सब कुछ बलिदान किया है, उसने समस्त ब्रम्हांड में पवित्र आत्मा के सभी कार्यों को वापस लेकर तुम्हें सौंप दिया है। यही कारण है कि मैं कहता हूं, तुम सभी सौभाग्यशाली हो। और यही नहीं, उसने अपनी महिमा इज़राइल से, अर्थात उसके चुने हुए लोगों सेहटाकर तुम लोगों को दी है, ताकि वह अपनी योजना के उद्देश्यों को तुम्‍हारे जनसमूह के द्वारा पूर्ण रूप से प्रकट कर सके। इस कारण तुम सभी वे लोग हो जो परमेश्वर की विरासत को पाएंगे, और इससे भी अधिक परमेश्वर की महिमा के वारिस बनेंगे" ("क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है, जितना मनुष्य कल्पना करता है?")

हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से स्पष्ट रूप से देखते हैं कि परमेश्वर ने उन लोगों को कभी नहीं छोड़ा है जो ईमानदारी से उस पर विश्वास करते हैं और जो उसकी अभिव्यक्ति की लालसा करते हैं। अपनी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि के माध्यम से, परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो उस पर ईमानदारी से विश्वास करते हैं ताकि वे मसीह-विरोधियों और धार्मिक दुनिया के दुष्ट मनुष्यों के बंधनों और नियंत्रण से मुक्त हो सकें, और वह उन्हें परमेश्वर के सिंहासन के सामने ऊपर उठवाता है, उनसे परमेश्वर के वचनों के न्याय, शुद्धि और सिद्धता को स्वीकार करवाता है। अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर न्याय का अपना कार्य करता है और उस समस्त सत्य को व्यक्त करता है जो मनुष्यजाति को शुद्ध करता और बचाता है, ताकि आपदाओं से पहले विजेताओं का एक समूह बनाया जा सके, ये उसका पहला फल होते हैं। यह प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में दी गई इस भविष्यवाणी को पूरा करता है: "ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुँवारे हैं; ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्‍वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)। परमेश्वर द्वारा विजेताओं के इस समूह को बनाए जाने के बाद, परमेश्वर के घर में शुरू होने वाले न्याय के कार्य का एक चरण जो कि देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया जाता है, अस्थायी रूप से संपन्न हो जाएगा, इसके बाद परमेश्वर अच्छे लोगों को पुरस्कृत करने और दुष्टों को दंडित करने के लिए महान आपदाओं को नीचे लाएगा। उस समय, जिन लोगों ने अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं किया है, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा करते हैं और उसका अनादर करते हैं, वे सभी आपदाओं में पड़ेंगे और उसमें न्याय और ताड़ना किए जाने का शुद्धिकरण भुगतेंगे। यदि हम धर्म को छोड़ देते हैं, मेमने के पदचिह्नों के साथ कदम मिला कर चलते हैं, अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और उसका आज्ञापालन करते हैं, और मसीह के आसन के सामने न्याय और शुद्धिकरण से गुज़रते हैं, केवल तभी हम परमेश्वर द्वारा विजेताओं के रूप में सिद्धपूर्ण बनाए जा सकते हैं। केवल तभी हम परीक्षणों से बख्शे जाएँगे जबकि स्वर्ग के नीचे सभी को परीक्षणों का सामना करना पड़ेगा। केवल ये विजेता—ये पहले फल—जो परमेश्वर के द्वारा बनाए गए हैं, परमेश्वर के वचन और आशीषों को प्राप्त करने के योग्य हैं! परमेश्वर ने अब पहले से ही मुख्य भूमि चीन में विजेताओं का एक समूह बना लिया है, और उन बड़ी आपदाओं के साथ जो कि बिल्कुल आसपास ही हैं, वे सभी जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और उसका अनादर करते हैं, आपदाओं में पड़ जाएँगे और दंडित किए जाएँगे, बचाए जाने का कोई भी अवसर हमेशा के लिए गँवा देंगे।

— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत

धार्मिक समुदाय का परमेश्वर के विरोध का इतिहास कम से कम व्यवस्था के युग के अंत से शुरू हुआ। जब परमेश्वर ने अनुग्रह के युग के दौरान पहली बार देह धारण की और अपना कार्य किया, उस समय भी धार्मिक समुदाय पर फरीसियों और मसीह विरोधियों ने बहुत पहले से ही कब्जा कर लिया था। यह प्रभु यीशु के पाप मुक्ति के कार्य के लिए विरोधी बन गया था। जब, अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट होते हैं और अपना कार्य करते हैं, वे लोग जो धार्मिक समुदाय में हैं वे अभी भी परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य के सामने एक दुश्मन की तरह खडे हो जाते हैं। वे न सिर्फ पागलपन के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और तिरस्कार करते हैं, बल्कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर अत्याचार करने और दमन के लिए शैतानी सीसीपी शासन के साथ मिल जाते हैं। उन्होंने दोबारा परमेश्वर को सूली पर चढ़ाने का घोर पाप पाप किया है! प्रभु यीशु ने न केवल फरीसियों को शापित किया, धार्मिक समुदाय के अन्धकार को भी उजागर किया, लेकिन जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिन में अपना न्याय का कार्य करते हैं, वे तब भी पादरियों और एल्डर्स के वास्तविक स्वभाव: उनका परमेश्वर के प्रति विरोध को उजागर करते हैं। इसके साथ ही वे उन मसीह विरोधियों को शापित करते हैं जिन्होंने परमेश्वर को दुबारा सूली पर चढ़ाया। यह वास्तव में सोचने पर मजबूर कर देता है! दोनों ही बार जब परमेश्वर ने देहधारण की उन्होंने धार्मिक समुदाय को निंदित और शापित किया। यह क्या दर्शाता है? परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोग आखिरकार समज जाते हैं कि धार्मिक समुदाय, महान बेबीलोन का पतन नियत है। धार्मिक समुदाय केवल परमेश्वर के नाम में विश्वास रखता है, लेकिन वास्तव में कभी भी परमेश्वर को गौरवान्वित नहीं करता और उनकी गवाही नहीं देता। वे यकीनन उनकी इच्छा को क्रियान्वित नहीं करते। वे परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोगों को उनके सिंहासन तक नहीं ला सकते। वे वाकई उनका सही मार्ग पर जाने के लिए अगुवाई नहीं कर सकते, जिससे कि वे सत्य को समझें और परमेश्वर को उनके वचनों के पालन और अनुभव से जानें। धार्मिक नेता पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध जाते हैं। वे खुद भी सत्य का पालन नहीं करते, लेकिन वे लोगों को आदर पाने और उनसे अपनी आराधना करवाने के लिए उनको बाइबल के ज्ञान और धार्मिक सिद्धांत का उपदेश देते हैं। वे विश्वासियों को पाखंडी फरीसियों के मार्ग पर ले जाते हैं। वे परमेश्वर के द्वारा चुने हुए लोगों को ठेस पहुँचाते और बरबाद करते हैं। सभी धार्मिक नेता शैतान के हथियार बन गये हैं, असली मसीह विरोधी। मानवजाति को बचाने के उसके कार्य के तीन चरणों के दौरान मानवता को बचाने और मानवता की रक्षा के लिए परमेश्वर ने दो बार देह धारण की। पूरा धार्मिक समुदाय मसीह का दुश्मन है; वे परमेश्वर के उद्धार के कार्य में रुकावटें बन गये हैं। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित किया और परिणामस्वरूप उन्होंने उनको शापित और दंडित किया। यह ऐसे ही है जैसे कि भविष्यवाणियाँ कहती है, "गिर गया, बड़ा बेबीलोन गिर गया है! वह दुष्‍टात्माओं का निवास, और हर एक अशुद्ध आत्मा का अड्डा" (प्रकाशितवाक्य 18:2), "गिर पड़ा, वह बड़ा बेबीलोन गिर पड़ा, जिसने अपने व्यभिचार की कोपमय मदिरा सारी जातियों को पिलाई है" (प्रकाशितवाक्य 14:8), "हे बड़े नगर, बेबीलोन! हे दृढ़ नगर, हाय! हाय! घड़ी भर में ही तुझे दण्ड मिल गया है" (प्रकाशितवाक्य 18:10)

चलिये देखते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर किस तरह कट्टरता से परमेश्वर का विरोध करनेवाले मसीह विरोधियों और मसीह विरोधियों द्वारा नियंत्रित धार्मिक समुदाय को निंदित करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वे सभी जो सच्चाई से उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें जीवन प्रदान किया जाए। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है और यही वह मार्ग है जिसे नए युग में प्रवेश करने वालों को अपनाना चाहिए। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और उसकी भर्त्सना करते हो, निंदा करते हो और यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम अनंत समय तक जलाए जाते रहने के लिए निर्धारित हो और तुम कभी भी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। क्योंकि यह मसीह ही स्वयं पवित्र आत्मा और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना कार्य सौंपा है। इसलिए मैं कहता हूँ कि अंत के दिनों के मसीह के द्वारा जो भी कार्य किया गया है यदि उसे तुम स्वीकार नहीं करते हो तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। जो प्रतिकार पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को सहना होगा वह सभी के लिए स्वत:-स्पष्ट है। मैं यह भी कहता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का विरोध करोगे और उसे ठुकराओगे, तो ऐसा कोई भी नहीं है जो तुम्हारे लिए इसका नतीजा भुगत लेगा। इसके अलावा, आज के बाद से फिर कभी तुम्हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करने का अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम खुद की गलती पर प्रायश्चित करने की कोशिश भी करते हो, तो भी तुम कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देख पाओगे। क्योंकि तुम जिसका विरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, जिसको ठुकरा रहे हो वह क्षुद्र प्राणी नहीं है, बल्कि मसीह है। क्या तुम इसके परिणामों के बारे में जानते हो? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं बल्कि एक बहुत ही जघन्य अपराध किया होगा" ("केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है")

"याद करो कि 2,000 वर्ष पहले यहूदियों द्वारा यीशु को सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद क्या हुआ था। यहूदी इजराइल से निर्वासित कर दिए गए थे और वे दुनिया भर के देशों में भाग गए थे। बहुत लोग मारे गए थे, और संपूर्ण यहूदी राष्ट्र अभूतपूर्व विनाश का भागी हो गया था। उन्होंने परमेश्वर को सलीब पर चढ़ाया था—जघन्य पाप किया था—और परमेश्वर के स्वभाव को भड़काया था। उनसे उनके किए का भुगतान करवाया गया था, और उन्हें उनके कार्यों के परिणाम भुगतने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने परमेश्वर की निंदा की थी, परमेश्वर को अस्वीकार किया था, और इसलिए उनकी केवल एक ही नियति थी : परमेश्वर द्वारा दंडित किया जाना। यही वह कड़वा परिणाम और आपदा थी, जो उनके शासक उनके देश और राष्ट्र पर लाए थे" ("परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है")

"हमें विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ प्राप्त करना चाहता है, उसके मार्ग में कोई भी देश या शक्ति ठहर नहीं सकती। जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, परमेश्वर के वचन का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ते हैं, अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे। जो परमेश्वर के कार्य की अवहेलना करता है, उसे नरक भेजा जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य का विरोध करता है, उसे नष्ट कर दिया जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है, उसे इस पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा, और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा" ("परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है")

"जब तक पुराना संसार निरन्तर बना रहता है, मैं सारे विश्व में खुले तौर पर अपनी प्रशासनिक आज्ञाओं की घोषणा करते हुए, अपने प्रचण्ड प्रकोप को इनके राष्ट्रों के ऊपर तेजी से फेंकूँगा, और जो कोई उनका उल्लंघन करता है उनको ताड़ना दूँगा:

जैसे ही मैं बोलने के लिए विश्व की तरफ अपने चेहरे को घुमाता हूँ, सारी मानवजाति मेरी आवाज़ को सुनती है, और उसके बाद उन सभी कार्यों को देखती है जिसे मैंने समूचे ब्रह्माण्ड में गढ़ा है। वे जो मेरी इच्छा के विरूद्ध जाते हैं, अर्थात्, जो मनुष्य के कार्यों से मेरा विरोध करते हैं, वे मेरी ताड़ना के अधीन नीचे गिर जाएँगे। मैं स्वर्ग के असंख्य तारों को लूँगा और उन्हें फिर से नया कर दूँगा, और मेरे कारण सूर्य और चन्द्रमा को नया बना दिया जायेगा—आकाश अब और वैसा नहीं रहेगा जैसा वह था; पृथ्वी पर बेशुमार चीज़ों को फिर से नया बना दिया जाएगा। मेरे वचनों के माध्यम से सभी पूर्ण हो जाएँगे। विश्व के भीतर अनेक राष्ट्रों को नए सिरे से विभक्त कर दिया जाएगा और मेरे राष्ट्र के द्वारा बदल दिया जाएगा, जिसकी वजह से पृथ्वी के राष्ट्र हमेशा हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएँगे और एक राष्ट्र बन जाएँगे जो मेरी आराधना करता हो; पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को नष्ट कर दिया जाएगा, और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। विश्व के भीतर मनुष्यों में, वे सभी जो शैतान से संबंध रखते हैं उनका सर्वनाश कर दिया जाएगा; वे सभी जो शैतान की आराधना करते हैं उन्हें जलती हुई आग के द्वारा नीचा दिखाया जायेगा—अर्थात उनको छोड़कर जो अभी इस धारा के अन्तर्गत हैं, बाकियों को राख में बदल दिया जाएगा। जब मैं बहुत से लोगों को ताड़ना देता हूँ, तो वे जो, भिन्न-भिन्न अंशों में, धार्मिक संसार में हैं, मेरे कार्यों के द्वारा जीत लिए जा कर मेरे राज्य में लौट आएँगे, क्योंकि उन्होंने एक श्वेत बादल पर सवार पवित्र जन के आगमन को देख लिया होगा। समस्त मानवता अपने-अपने स्वभाव का अनुसरण करेगी, और जो कुछ उसने किया है उससे भिन्न-भिन्न ताड़नाएँ प्राप्त करेगी। वे जो मेरे विरूद्ध खड़े हुए हैं सभी नष्ट हो जाएँगे; जहाँ तक उनकी बात है जिन्होंने पृथ्वी पर अपने कार्यों में मुझे शामिल नहीं किया है, वे अपने आपको दोषमुक्त करने के ढंग के कारण, पृथ्वी पर मेरे पुत्रों और मेरे लोगों के शासन के अधीन निरन्तर बने रहेंगे। मैं अपने महान कार्य की समाप्ति की घोषणा करने के लिए पृथ्वी पर अपनी ध्वनि आगे करते हुए अपने आपको असंख्य लोगों और असंख्य राष्ट्रों के सामने प्रकट करूँगा, ताकि समस्त मानवजाति अपनी आँखों से देखे" (संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 26")

"संसार का पतन हो रहा है! बेबीलोन गतिहीनता में है! धार्मिक संसार—कैसे इसे पृथ्वी पर मेरी सामर्थ्य द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता था? कौन अभी भी मेरी अवज्ञा और मेरा विरोध करने का साहस करता है? धर्म शास्त्र? सभी धार्मिक अधिकारी? पृथ्वी के शासक और अधिकारी? स्वर्गदूत? कौन मेरे शरीर की सिद्धता और परिपूर्णता का उत्सव नहीं मनाता है? सभी लोगों में से, कौन बिना रूके मेरी स्तुति नहीं गाता है, कौन बिना नागा किए प्रसन्न नहीं है?" (संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 22")

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का हर वाक्य सत्य है। उनमें अधिकार और प्रभाव है; वे पूरी तरह परमेश्वर की धार्मिकता, प्रताप, क्रोध और अपमानित न होने वाले स्वभाव को दर्शाते हैं। वे जो परमेश्वर का विरोध करते हैं, परमेश्वर के कार्य में रुकावट या बाधा डालते हैं निश्चित तौर पर परमेश्वर से दंड और प्रतिकार पायेंगे। व्यवस्था के युग में सोदोम के निवासियों ने सार्वजनिक रूप से परमेश्वर का खंडन और विरोध किया था। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव को क्रोधित किया और वे सभी परमेश्वर द्वारा नष्ट कर दिए गये; उनका एक कण भी नहीं बचा। अनुग्रह के युग में, यहूदियों के मुख्य प्रचारकों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों ने सार्वजनिक तौर पर प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की। उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाने के लिए रोमन सरकार के साथ साठ-गांठ की। उन्होंने एक घोर पाप किया जिसने परमेश्वर के स्वभाव को उकसाया। पूरा यहूदी राष्ट्र पहले न देखे गये विनाश के अधीन किया गया। अंत के दिनों में, धार्मिक नेताओं ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को बेहूदगी से आँका, उनका विरोध और निंदा की। यहाँ तक कि उन्होंने दुष्ट सीसीपी का सहयोग किया और उनके साथ सांठ-गाँठ की उन भाई-बहनों का दमन करने, गिरफ्तार कराने और उन पर अत्याचार करने के लिए जिन्होंने राज्य के सुसमाचार को फैलाया। उन्होंने बहुत पहले पवित्र आत्मा का तिरस्कार करने का और परमेश्वर को दोबारा से सूली पर चढ़ाने का घिनौना पाप किया। यहाँ तक कि उनका बुरा व्यवहार सोदोम के लोगों से भी ज्यादा बुरा था। ये यहूदी फरीसियों की तुलना में बहुत है। वे मसीह विरोधी हैं जिन्हें परमेश्वर के अंत के दिनों में किये गये कार्य के द्वारा उजागर किया गया। वे दुष्ट धार्मिक शक्तियाँ हैं जिन्होंने परमेश्वर का विरोध अत्यंत कठोरता और कट्टरता से किया जैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। पूरीधार्मिक समुदाय पूरी तरह दुष्ट ताकतों का बना हुआ है जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। यह मसीह विरोधी राक्षसों का झुंड है। यह एक कट्टर गढ़ है जो मसीह के राज्य के साथ बराबरी करने की कोशिश करता है। वो परमेश्वर के कट्टर दुश्मनों का शैतानी गुट है, जो हठपूर्वक उनका विद्रोह करता है! परमेश्वर का धर्मी स्वभाव का अपमानित नहीं किया जा सकता। परमेश्वर की पवित्रता को गंदा नहीं किया जा सकता! अंत के दिनों में किया गया परमेश्वर का कार्य एक नये युग की शुरुआत और पुराने युग का अंत है। धार्मिक समुदाय जो हर तरह के मसीह-विरोधी राक्षसों और साथ ही दुष्ट संसार द्वारा नियंत्रित है जल्द ही अंत के दिनों में परमेश्वर की महाविपति के द्वारा नष्ट हो जायेगा। परमेश्वर का धर्मी दंड पहले ही पहुँच चुका है! यह वैसा ही है जैसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "संसार का पतन हो रहा है! बेबीलोन गतिहीनता में है! धार्मिक संसार—कैसे इसे पृथ्वी पर मेरी सामर्थ्य द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता था?" (संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 22")

अगर वे सभी जो अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं करते, धार्मिक समुदाय में प्रभु यीशु के नाम को वे चाहे जैसे रखते हों, वे बाइबल का अनुसरण चाहे जैसे करतेहों, धर्म का उद्धार या धार्मिक समारोह चाहे जैसे करते हों, वे चाहे जैसे परिश्रम करते हों, तकलीफ या त्याग करते हों, अगर वे पश्चाताप नहीं करते और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की तरफ नहीं लौटते, तो वे भी बाकी बचे हुए धार्मिक समुदाय के साथ झंझोड़े और खत्म कर दिये जायेंगे। परमेश्वर ने यह आदेश बहुत पहले ही दे दिया था; कोई भी इसे बदल नहीं सकता। परमेश्वर ने बहुत पहले ही अपने चुने हुए लोगों को रहस्योद्घाटन की भविष्यवाणी में पुकारा था, "हे मेरे लोगो, उस में से निकल आओ कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उसकी विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े" (प्रकाशितवाक्य 18:4)

— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत

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